बुधवार, 23 अप्रैल 2025

भारत की विस्मृत वीरांगना रामप्यारी चौहान ( गुर्जर)- डा नीलम सिंह विभागाध्यक्ष अंग्रेजी विभाग किसान पी जी कालेज सिंभावली हापुड़।

"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"
अर्थात जननी व जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। इसलिए भारत माता हमारे लिए स्वर्ग से भी बढ़कर है। क्योंकि भारत माता की कोख से अनेक वीरों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया है। जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा व धर्म की स्थापना के लिए सर्वस्व समर्पित कर दिया। भारत माता की पवित्र धरा पर अनगिनत वीरांगनाओं जैसे रानी लक्ष्मीबाई,रानी दुर्गावती, मेवाड़ की महाबलिदानी माता पन्ना आदि ने मातृभूमि और अपने पक्ष के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।ऐसी ही एक महान वीरांगना हुई है रामप्यारी चौहान (गुर्जर)।जब भी तैमूर लंग के भारत पर आक्रामण का क्रुर इतिहास याद किया जाएगा तो रामप्यारी गुर्जर के साहस, शौर्य और पराक्रम को स्वत: ही याद किया जाएगा।
रामप्यारी गुर्जर का जन्म तत्कालीन समय के गुर्जर गढ जो वर्तमान में सहारनपुर के नाम से जाना जाता है, में हुआ था।वह चौहान गोत्र की गुर्जर जाती मे जन्मी थी।इनको बचपन से ही वीरता की कहानियां सुनने का बहुत शौक था। रामप्यारी बचपन से ही निर्भय और हठी स्वभाव की थी। देश मे गुलामी का दौर होते हुए भी बचपन में खेतों में अकेले चले जाना उनके स्वभाव में था। अपनी मां से पहलवान बनने के लिए वह जिज्ञासा पूर्वक पूछा करती थी और प्रातः सायं खेतों में जाकर एकांत स्थान पर व्यायाम किया करती थी। कुछ तो स्वयं बचपन से ही स्वच्छ, सुडौल और आकर्षक शरीर की लड़की,उस पर व्यायाम ने वही काम किया जो सोने पर अग्नि में तपकर कुन्दन बनने का होता है अर्थात आप कुन्दन बन गई थी।आप सदैव पुरूष जैसे वस्त्र पहनती थी और अपने गांव व पड़ोसी गांवों में पहलवानों के कौशल देखने अपने पिता व भाई के साथ जाती थी। रामप्यारी की इन बातों की चर्चा सारे गांव व क्षेत्र में फैलने लगी। सन् 1398 में जब समरकंद के शासक तैमूर लंग ने दिल्ली पर आक्रामण किया,उस समय दिल्ली पर तुगलक वंश का शासन था। तैमूर के आक्रमण होने पर तुगलक दिल्ली छोड़कर भाग गया, तैमूर दिल्ली से मेरठ होते हुए जब गंगा के किनारे हरिद्वार की ओर बढा तब क्रूरता और निष्ठुरता के लिए कुख्यात तैमूर लंग का उस समय सामना करने में रामप्यारी चौहान की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही। तैमूर लंग के विरुद्ध लड़ाई लड़ने के कारण ही रामप्यारी चौहान के नाम के साथ वीरांगना शब्द लग गया। रामप्यारी गुर्जर के रण कौशल को देखकर तैमूर भी दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो गया था। उसने अपने जीवन में इससे पहले कभी ऐसी वीरता व शौर्य से भरी महीला नही देखी थी। जिसने 40000 महिलाओं की सेना बनाकर,उसका नेतृत्व करते हुए तैमूर को युद्ध के लिए ललकार दिया था। इतिहास में लुप्त ऐसी महानायिका रामप्यारी गुर्जर की कहानी,जिसे कभी प्रचारित ही नहीं किया गया,ऐभी वीरांगना का परिचय भारत के बच्चे बच्चे से होना चाहिए था, लेकिन ऐसा ना हो सका। रामप्यारी गुर्जर एक ऐसी वीरांगना थी, जिसने मात्र 20 वर्ष की आयु में अपनी 40000 महीला सेनानियों की सहायता से तैमूर की सेना को गाजर मूली की तरह काट कर रख दिया था।
तैमूर विस्तार वादी प्रवृत्ति का व्यक्ति था,इसका मुख्य उद्देश्य भारत में कुफ्र/गैर मुस्लिम धर्म अर्थात सनातन को समाप्त करना था।यह उस समय की बात है जब दिल्ली में तुगलक वंश का शासन था।पूरे भारत में इस्लाम की ध्वजा फहराने का बहाना लेकर भारत पर हमला करने वाले तैमूर लंग के सामने दिल्ली के शासक की एक न चली। तैमूर ने मुस्लिम इलाकों को छोड़कर हिन्दू बाहुल्य क्षेत्रों में भयंकर नरसंहार और लूटपाट की।यह इतना भयावह था कि शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। इतिहासकार विन्सेंट ए स्मिथ की प्रसिद्ध पुस्तक "द आक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया-फ्राम द अर्ली एस्टेट टाइम्स टू द एंड आफ 1911" नामक पुस्तक में उन्होंने ने लिखा है कि तैमूर लंग का मुख्य उद्देश्य भारत में सनातनियों का सर्वविनाश कर इस्लाम की ध्वजा फहराना था। दिल्ली पर आक्रमण होते ही तुगलकी सेना ने तैमूर के सामने घुटने टेक दिए, जिससे उसके हौसले और अधिक बुलंद हो गये।वह अपनी विशालकाय सेना लेकर मेरठ की ओर चल दिया,जिसकी सूचना आसपास के सम्पूर्ण क्षेत्र में फैल गई थी।इस आक्रमण का सामना करने के लिए क्षेत्र में सर्वखाप पंचायत के नाम से बने संगठन ने पहल की तथा क्षेत्र के स्थानीय किसानों की एक सेना हरिद्वार के निकट पथरी गांव के जोगराजसिंह गुर्जर के नेतृत्व में तैयार की गई,उस सेना की सहायता के लिए ही महिलाओं की भी एक सेना रामप्यारी गुर्जर के नेतृत्व में तैयार हुई। मेरठ से गंगा के किनारे होते हुए तैमूर की सेना ने हरिद्वार की ओर प्रस्थान किया,इसी रास्ते पर तैमूर की सेना का मुकाबला महाबली जोगराजसिंह गुर्जर व रामप्यारी गुर्जर की सेना के साथ हुआ।इस संघर्ष में महाबली जोगराजसिंह गुर्जर, हरबीर सिंह गुलिया तथा रामप्यारी गुर्जर युद्ध में बारी बारी से बलिदान हो गये। तैमूर की सेना की भी भारी क्षती हुई।वह हरिद्वार तीर्थ को नही लूट सका और न ही भारत में टीक सका।
देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह रही की ऐसी वीरांगनाओं और वीरों की अमर गाथाओं को आजाद भारत में भी याद नही किया जा सका। रामप्यारी गुर्जर द्वारा लडा गया यह युद्ध कोई आम युद्ध नही था अपितु अपने सम्मान और संस्कृति की रक्षा हेतु किया गया एक धर्म युद्ध था। जिसमें सभी तुच्छ मानसिकता का त्याग करते हुए हमारे वीर योद्धाओं तथा वीरांगनाओं ने एक क्रूर आक्रांता को उसी की शैली में जबाब दिया। परंतु इसे हमारी विडम्बना ही कहिए कि इस युद्ध के किसी नायक का गुणगान तो दूर की बात है, हमारे देशवासियों को इस एतिहासिक युद्ध के बारे में लेश मात्र भी जानकारी नही होगी। रामप्यारी गुर्जर जैसी अनेकों वीर महिलाओं ने जिस तरह तैमूर लंग को नाकों चने चबाने पर विवश किया वह अपने आप में सभी भारतीय महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि ईश्वर प्रदत्त अधिकारों की सुरक्षा हेतु किए गए संघर्ष के लिए समूचे विश्व की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।यह संघर्ष अधर्म पर धर्म की विजय की प्रेरणा का स्रोत है। मानोशी सिन्हा की पुस्तक "सैफरन स्वार्डस" में भी रामप्यारी गुर्जर के साहस और पराक्रम को बड़े ही सुन्दर शब्दों में सहेजा गया है।
समाप्त 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें