राजनैतिक क्षेत्र सदा साजिशों से भरा रहा है। राजतिलक से पहले राम को वनवास या कौरवों के द्वारा पांडवों के साथ छल करके सत्ता हडपना हो, ऐसे उदाहरणों से संसार भरा पड़ा है। ऐसी ही एक घटना भारत के मध्य काल में घटित हुई। जहां राज्य हड़पने के लिए एक भाई ने रिश्तों को कलंकित कर अपने चचेरे भाई जो अल्प व्यस्क थे को संरक्षण देने के स्थान पर हत्या करने का प्रयास किया। लेकिन दूसरी ओर राजकुमार की धाय ने अपने साहस व शौर्य से उस जटिल परिस्थिति का सामना करते हुए राज्य के वारिस को बचा लिया तथा एक कलुषित मानसिकता के व्यक्ति, जिसके पास राज्य के असिमित साधन थे, उसकी लालची योजना को धराशायी कर दिया। भले ही इस न्याय- अन्याय, सत्य- अस्तय, धर्म- अधर्म की लड़ाई में धाय के इकलौते पुत्र की शहादत हो गई।
सन् 1433 में मेवाड़ के राज्य पर राणा कुम्भा राजा के रूप में आसीन हुए। राणा कुम्भा ने अपने शौर्य व साहस से अपने आसपास के छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर मेवाड़ महा राज्य की स्थापना की तथा भारत की राजनीति को सिसौदिया (गहलौत) प्रशासन के रूप में एक नई दिशा दी। परन्तु राज सिंहासन को जल्द प्राप्त करने के लालच में राणा कुम्भा के बेटे उदय सिंह प्रथम ने राणा कुम्भा की सन् 1468 में हत्या कर दी। आगे चलकर राणा कुम्भा के पौत्र राणा सांगा मेवाड़ के शासक बने।राणा सांगा ने अपने जीवन में अनेक युद्ध लडे। इन युद्धों में राणा सांगा के अनेक सहयोगी थे। इन सहयोगियों में एक चित्तौड़गढ़ के पास माताजी की पांडोली नामक गांव के गुर्जर जाति के हरचंद हाकला भी थे। इन हरचंद हाकला के पन्ना नाम की एक पुत्री थी । पन्ना धाय का जन्म 8 मार्च 1490 ई० में हुआ था।जो आमेट के ठिकाने के पास कमेरी गांव के हिन्दूजी के पौत्र लाला गुर्जर के पुत्र सूरजमल से ब्याही थी। पन्ना का पति सूरजमल राणा सांगा का अंगरक्षक था, पन्ना युद्ध कौशल में निपुण घुड़सवारी व अस्त्र-शस्त्र चलाने में निपुण निडर स्वभाव की युवती थी। पन्ना के पिता हरचंद हाकला राणा सांगा की ओर से लडते हुए शहीद हो गए थे। पन्ना का पति सूरजमल भी सन् 1527 में मुगल हमलावर बाबर के साथ खानवा के युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गया था। अपने पीहर व ससुराल वालों की राजपरिवार के साथ वफादारी व दी गई कुर्बानी के कारण पन्ना राजपरिवार के अति निकट थी, राणा सांगा की पत्नी रानी कर्मवती जो बूंदी की राजकुमारी थी, पन्ना पर अति विश्वास करती थी। पन्ना के चन्दन सिंह नाम का एक पुत्र था, सन् 1528 में राणा सांगा की मृत्यु हो गई। राणा सांगा के दो पुत्र थे, जिनमें बड़े पुत्र का नाम विक्रम सिंह व छोटे का नाम उदय सिंह था, उदय सिंह पन्ना के पुत्र चन्दन का हम उम्र था। राणा सांगा की मृत्यु के पश्चात उनके अवयस्क बेटे विक्रम को मेवाड़ का राजा बना दिया गया, रानी कर्मवती ने कार्यवाहक राजा के रूप में शासन को सम्भाल लिया। छोटे बेटे उदय सिंह की देखभाल पन्ना करने लगी। सन् 1535 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। खतरे को भांप कर रानी कर्मवती ने अपने दोनों पुत्रों को पन्ना के साथ अपने पीहर बूंदी भेज दिया तथा स्वयं बहादुर शाह का सामना करने के लिए डट गई। इस युद्ध में चित्तौड़ का पतन हो गया, रानी कर्मवती ने जौहर कर आत्मबलिदान कर दिया।चित्तौड़ विजय के बाद बहादुर शाह हुमायूं से लड़ने के लिए रवाना हुआ, मंदसौर के पास मुगल सेना से युद्ध में बहादुर शाह हार गया। इस हार की सूचना मिलते ही 7000 मेवाड़ सैनिकों ने पुनः चित्तौड़ दुर्ग अपने कब्जे में ले लिया। चित्तौड़ पर पुनः राणा सांगा के वंश का शासन कायम हो गया। राजकुमार विक्रम को राजा बना दिया गया, शासन की देखभाल के लिए राणा सांगा के भाई पृथ्वीराज राणा के बेटे बनवीर को कार्यवाहक राजा नियुक्त कर दिया गया, कुंवर उदयसिंह की देखरेख के लिए पन्ना को राजधाय नियुक्त कर दिया गया।पन्ना उदयसिंह के साथ अपने बेटे चन्दन सहित चित्तौड़ दुर्ग में बने कुम्भा महल में रहने लगी। परन्तु बनवीर के मन में सम्पूर्ण राज्य को हड़पने का षडयंत्र पनपने लगा। इसके लिए वह विक्रम व उदयसिंह को मारने की योजना बनाने लगा। यह सन् 1537 की बात है। बनवीर ने मौका देख एक शाम राजकुमार विक्रम सिंह को मार डाला तथा उदयसिंह को मारने के लिए निकल पड़ा। बनवीर के इस दुष्कर्म की सूचना पन्ना को मिल गई। उदयसिंह के सर पर खतरा देख पन्ना ने अपने पुत्र चन्दन व उदयसिंह को लेकर तुरन्त सुरक्षित स्थान पर ले जाने की योजना बनाई। उदय सिंह के महल में कौन वफादार है और कौन बनवीर से मिला है यह मालूम नहीं था, अतः पन्ना ने किसी को पता दिये बिना उदय सिंह के शाही कपड़े अपने पुत्र चन्दन को पहनाकर उदय सिंह के कमरे में छोड़ दिया तथा चन्दन के साधारण कपड़े उदयसिंह को पहनाकर अपने वफादार सेवक के साथ महल से सुरक्षित स्थान को निकाल दिया। उदयसिंह की ओर से निश्चिंत होने के बाद पन्ना अपने पुत्र को ले जाने के लिए उदयसिंह के कक्ष की ओर चल दी। परन्तु इतने में बनवीर भी महल में प्रवेश कर गया। बनवीर को उदयसिंह के कक्ष की ओर जाता देख पन्ना सहम गई, वह समझ गई कि खतरा उसके पुत्र के सर पर मंडरा गया है। पन्ना ने ललकार कर बनवीर को रोकने का प्रयास किया, जब बनवीर नहीं रूका तो पन्ना ने कटार फेंककर बनवीर पर मारी जो बनवीर के हाथ को स्पर्श करती हुई निकल गई। बनवीर जल्द से जल्द अपने मकसद को पाना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि पन्ना के साथ उलझ कर वह अपने मकसद से दूर हो जाये। अत:वह उदयसिंह के कमरे में प्रवेश कर गया, रात को कक्ष की मंद रोशनी में उदयसिंह के पलंग पर सो रहे चन्दन को वह पहचान ही नहीं पाया, उधर पन्ना ने दीवार पर टंगी तलवार को म्यान से बाहर निकाला तो इधर बनवीर ने अपनी तलवार से पलंग पर सो रहे बालक पर शक्तिशाली वार कर दिया, बालक के दो टुकड़े हो गये, पन्ना ने जो तलवार बचाव के लिए उठाई थी,उसे चलाने का अवसर ही नहीं मिला। वह वहीं जड़ हो गई, उसकी चीख निकल गई, उसका बेटा चन्दन, उदयसिंह को बचाने के बदले में बलि पर चढ़ चुका था, बनवीर भी वहां पल भर भी नहीं रूका , अपने मकसद में अपने को कामयाब मान वह उदयसिंह के महल से निकल गया।
पन्ना ने अब अपने आप को सम्भाल लिया, जो हानि होनी थी वह हो चुकी थी। उस बहादुर नारी ने अपने बेटे के शव को उठा कर श्मशान घाट ले जाकर रात में ही उसका दाह संस्कार कर दिया, वहां उपस्थित सेवकों व अन्य लोगों की नजरों में उदयसिंह की मृत्यु हो चुकी थी, परन्तु यह सिर्फ पन्ना ही जानती थी कि जिसका दाह संस्कार हुआ है वह उदयसिंह नहीं, उसका पुत्र चन्दन सिंह है। पन्ना रात को ही उदयसिंह को लेकर टोडा के राजा के पास पहुची, लेकिन बनबीर के डर की वजह से उसने शरण देने के लिए मना कर दिया। उसके बाद पन्ना उदय सिंह को लेकर डूंगरपुर के राजा के पास पहुची, उसने भी शरण देने के लिए इंकार कर दिया। कुम्भल गढ किले के किलेदार देवपुरा जाति के आशा शाह तथा रणथम्भौर किले के किलेदार ओसवाल जाति के भारमल कवदिया जो भामाशाह के पिता थे, राणा सांगा के वफादार व्यक्तियों में से थे। अब पन्ना उदयसिंह को लेकर कुम्भल गढ़ के किले में किलेदार आशा शाह के पास पहुंची। पहले तो आशा शाह ने भी बनबीर के डर से शरण देने के लिए मना कर दिया। परंतु आशा शाह की मां ने आशा शाह को फटकार लगाते हुए अपने राजा के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए आशा शाह को कहा।तब आशा शाह ने उदयसिंह व पन्ना की पहचान गुप्त रखी तथा उदयसिंह का परिचय अपनी बहन के बेटे के रूप में कराया तथा पन्ना का परिचय अपनी बहन के रूप में। कुछ समय बाद ही बलवीर को यह सूचना मिलने लगी कि राज्य का वारिस उदयसिंह जिन्दा है, उसकी योजना को पन्ना ने धूल में मिला दिया है, जो मारा गया वह पन्ना का बेटा चन्दन सिंह था उदयसिंह नहीं। अब बनवीर ने अपने लोगों के माध्यम से यह प्रचार करवाना प्रारम्भ कर दिया कि पन्ना झूठ बोल रही है, वह अपने बेटे चन्दन सिंह को ही उदयसिंह बता रही है। लेकिन राणा सांगा के वफादार उदयसिंह को अच्छी तरह पहचानते थे। जब उदयसिंह पर बनवीर का षड्यंत्रकारी हमला हुआ, तब उसकी आयु 15 वर्ष की थी, वह इतना छोटा नहीं था कि पहचाना न जा सके। सन् 1539में कुम्भल गढ़ के किले में उदयसिंह का राज्याभिषेक हो गया। अब मेवाड़ के सरदारों ने, जिनमें कोठारिया के रावत खान, केलवा के जग्गा, बागौर के रावत सांगा आदि ने पाली के अखेराज सोनगरा को बुलाया और दबाव बनाया कि वह अपनी बेटी का विवाह उदयसिंह से करे, लेकिन सोनगरा ने कहा : चित्तौड़ के शासक बनवीर ने वास्तविक उदयसिंह का मारा जाना प्रसिद्ध कर रखा है। यदि आप सब सरदार उदयसिंह का जूठा खाएं तो मैं अपनी पुत्री का विवाह इससे कर दूंगा। अखेराज का संदेह दूर करने के लिए सभी सरदारों ने उदयसिंह का जूठा खाया। इसी पर अखेराज ने अपनी बेटी जिसका नाम जयवंती बाई था, का विवाह उदयसिंह से किया।9 मई 1540 को अखेराज की बेटी जयवंती बाई के गर्भ से महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ । अब सन् 1540में उदयसिंह ने बनवीर से चित्तौड़गढ़ को हस्तगत कर लिया। उदय सिंह ने पन्ना को रहने के लिए अलग महल का निर्माण करवाया। परन्तु पन्ना उसमें नहीं रही। वह अपने गांव चली गई, बाकि का जीवन पन्ना ने अपने गांव में ही व्यतीत किया। उदयसिंह जीवन भर पन्ना का अपनी माँ की तरह ही सम्मान करते रहे। पन्ना की सुरक्षा व भरण-पोषण के लिए चांदरास गांव में उदय सिंह द्वारा 451 बीघा भूमिदान का ताम्रपत्र, जो साह आसकर्ण देवपुरा को दिया । मेवाड़ में इतने बड़े भूभाग के अनुदान का यही एक मात्र लेख है, जिस पर संवत 1621, सन 1564 ई. आसोज सुदी नवमी अंकित है। पन्ना को आमेट के पास कमेरी में जहां पन्ना की ससुराल थी, उदयसिंह ने जागीर दी।
चित्तौड़ के राजपरिवार में पन्ना के साथ उसके परिवार का बड़ा सम्मान रहा। उस सम्मान के कारण यह परम्परा बन गई की पन्ना के गांव पांडोली का हाकला गुर्जर परिवार चित्तौड़गढ़ आकर सबसे पहले होली पूजन करता है, तदुपरांत वहां होली दहन किया जाता रहा है देश के आजाद होने तथा भारत में मेवाड़ रियासत के विलय हो जाने तक यह परम्परा निभायी जाती रही। पन्ना के त्याग को भारत व राजस्थान के इतिहास में राणा प्रताप के संघर्ष की तरह ही याद किया जाता है।
राजस्थान में पन्ना के नाम से अनेक योजनाएं चलायी गई हैं।
पन्नाधाय जीवन अमृत योजना जो कि (जन -श्री बीमा योजना) के नाम से भी जानी जाती है। यह एक भारत के राजस्थान राज्य की योजना है । इस योजना का शुभारम्भ १४ अगस्त २००६ में जीवन बीमा निगम के माध्यम से किया गया था। इसमें गरीबी रेखा से नीचे के परिवार वालों के मुखिया अथवा घर के कमाने वाले सदस्य को नि:शुल्क जीवन बीमा की सुविधा प्रदान की जाती है।
15 अगस्त सन् 2014के दिन राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने शहीद स्मारक और गोवर्धन सागर तालाब के निकट बोट के आकार में बनाए गए पन्ना बोट म्यूजियम का उद्घाटन किया। यह म्यूजियम पन्ना धाय और मेवाड़ के लिए दिये गये उनके बलिदान को समर्पित है। यहां पर पन्ना का जीवन चरित्र थ्री-डी पिक्चर के द्वारा दिखाया जाता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ में पन्ना धाय के नाम पर "पन्ना धाय माँ सुभारती नर्सिंग कालेज" बनाया गया है।
पन्ना धाय के सम्मान में एक राष्ट्रीय अवार्ड "पन्ना धाय अवार्ड" उन लोगों को दिया जाता है जो अपना कर्तव्य निष्ठा पूर्वक निभाते हैं। इस अवार्ड में नकद 25001/00 रुपए,एक शाल तथा एक चांदी का तोरण द्वार प्रतीक स्वरूप दिया जाता है।
सन्दर्भ ग्रंथ
1-भारत का इतिहास -आशीर्वादी लाल श्री वास्तव।
2- मोडीलाल बडवे की पोथी (पन्ना का वंश) -मासिक पत्रिका गुर्जर महासभा दिसम्बर 2018पृष्ठ 10,लेखक श्री रामसरन भाटी।