कैराना भारत का प्राचीन नगर है। इसका सम्बंध महाभारत काल से है। ऐसी मान्यता है कि इसका पुराना व प्रसिद्ध नाम करनपुरी था जो बाद में बदल कर किराना तथा कुछ समय पश्चात कैराना हो गया। महाभारत के प्रसिद्ध पात्र महाबली कर्ण इस स्थान के राजा रहे हैं। इसके आसपास वे पांच गांव है जिन्हें कृष्ण जी ने पांडवों के लिए कौरवों से मांगा था, जिनके नाम क्रमशः -
श्रीपत (सिही) या इन्द्रप्रस्थ : कहीं-कहीं श्रीपत और कहीं-कहीं इन्द्रप्रस्थ का उल्लेख मिलता है। मौजूदा समय में दक्षिण दिल्ली के इस इलाके का वर्णन महाभारत में इन्द्रप्रस्थ के रूप में है। पांडवों और कौरवों के बीच जब संबंध खराब हुए थे, तो धृतराष्ट्र ने यमुना के किनारे खांडवप्रस्थ क्षेत्र को पांडवों को देकर अलग कर दिया था। यह क्षेत्र उजाड़ और दुर्गम था लेकिन पांडवों ने मयासुर के सहयोग से इसे आबाद कर दिया था। इसी खांडव क्षेत्र को आबाद कर पांडवों ने मयासुर से यहां एक किला और उसमें महल बनवाया था। इस क्षेत्र का नाम उन्होंने इन्द्रप्रस्थ रखा था।
बागपत : इसे महाभारत काल में व्याघ्रप्रस्थ कहा जाता था। व्याघ्रप्रस्थ यानी बाघों के रहने की जगह। यहां सैकड़ों साल पहले से बाघ पाए जाते रहे हैं। यही जगह मुगलकाल से बागपत के नाम से जाना जाने लगा।
सोनीपत : सोनीपत को पहले स्वर्णप्रस्थ कहा जाता था। बाद में यह 'सोनप्रस्थ' होकर सोनीपत हो गया। स्वर्णपथ का मतलब 'सोने का शहर'।
पानीपत : पानीपत को पांडुप्रस्थ कहा जाता था।
तिलपत : तिलपत को पहले तिलप्रस्थ कहा जाता था। यह हरियाणा के फरीदाबाद जिले का एक कस्बा है।
कैराना के पास से बहती यमुना नदी के किनारे कर्ण भगवान् सूर्य की पूजा करने जाया करता था तथा दान दिया करता था, पूजा के बाद जो भी मांगने वाले ने मांगा कर्ण ने उसे मना नहीं किया। यही पर भगवान् इन्द्र ने महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व, युद्ध में अर्जुन की विजय को आसान बनाने के लिए कर्ण से कवच व कुंडल दान में मांगे थे। जो कर्ण ने दे दिए थे, इसके बदले में इन्द्र ने कर्ण को दानवीर की उपाधि दी थी।
यह स्थान महाभारत के युद्ध के मैदान कुरूक्षेत्र के निकट है, इसलिए महाभारत युद्ध के कुछ मुख्य नायक कैराना के आसपास ही युद्ध के समय शिविर में रहे हैं। उदाहरणार्थ भगवान् कृष्ण का युद्ध शिविर "श्याम" के नाम से था जो स्थान अब शामली के नाम से है, कैराना के कर्ण, नुकुड में नकुल तथा थानाभवन में महाबली भीम का युद्ध शिविर रहा है। दुर्योधन से मित्रता के पश्चात कर्ण को अंग देश का राजा बनाया गया, उस राज्य में आज के हरियाणा के करनाल, कुरुक्षेत्र तथा उत्तर प्रदेश के कैराना व कांधला थे, जिन्हें राजा कर्ण ने विकसित किया था।
आधुनिक तथ्यों पर आधारित इतिहास के अनुसार दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान (शासनकाल सन् 1178 -1192)के ताऊ तथा चौहानों के प्रथम सम्राट बिसल देव के समय में दिल्ली के आसपास आज के राजस्थान (तत्कालीन समय के गुर्जर देश) के रहने वाले गूजरों को सम्राट बिसल देव चौहान द्वारा जागीरे देकर बसाया गया, दिल्ली के निकट दादरी के आसपास भाटी गूजरों को 360 गांव की जागीर दी गई, जिनमें करीब 80 गांव में भाटी गूजर निवास करते हैं, बाकी में 27 गांव नागडी (नागर), 24 गांव लोनी के आसपास बैसला (बंसल) व कसाना गूजरो के हैं जो भाटी गूजरो द्वारा दिए गए हैं, इसलिए इस सम्पूर्ण क्षेत्र को आम बोलचाल में भटनेर कह कर पुकारा जाता है, पृथ्वीराज चौहान द्वारा ही अपने गोत्र के भाईयो को 84 गांव कैराना के आसपास दिये थे। चौहानों की कुल देवी माता शाकुम्भरी शक्ति पीठ की स्थापना भी सम्भवतः तभी सहारनपुर में हुई है। चौहान सरदार दो सगे भाई थे। इनमें से एक का नाम झुंझुन बद्री प्रसाद उत्तमदत राणा था वह जहां बसा उस स्थान का नाम आज झींझाना (शामली जिले में झींझाना ब्लाक) है, दूसरा जो इनका चचेरा भाई था जिसका नाम कर्णपाल उत्तमदत राणा था, उसने कैराना नगर को पुनः आबाद कर स्थापित किया।
लगभग सौ वर्ष पश्चात् जब दिल्ली पर अलाउद्दीन खिलजी (शासनकाल सन् 1296 -1316)का शासन था, एक बार खिलजी की सेना यमुना के किनारे कैराना के पास से होकर जा रही थी, सेनापति ने कैराना के राजा से सेना के लिए रसद की मांग की, जिसे राजा पूरी नहीं कर सका। उस सेनापति ने कैराना के राजा की शिकायत अलाउद्दीन खिलजी से की। बादशाह क्रोधित हो गया, बादशाह ने काजी अमीनुददीन के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना कैराना के राजा पर हमले के लिए भेज दी। इस हमले का कैराना के चौहानो ने बड़ी बहादुरी से सामना किया, कैराना का राजा युद्ध के मैदान में लडता हुआ शहीद हो गया। काजी अमीनुददीन ने कैराना राज्य का दिल्ली के राज्य में विलय कर दिया। अब कैराना इस्लामिक राज्य में विलीन हो गया।
कुछ समय अंतराल के बाद कैराना राजपरिवार के सम्पर्क में एक सूफी आया, जिसका नाम सूफी शाह अब्दुल रज्जाक था जो झींझाना में रहता था, क्योंकि झींझाना राजपरिवार व कैराना राजपरिवार कभी एक ही बाप की संतान थे, अतः सूफी से सम्पर्क कराने में झींझाना वालों की भूमिका भी रही होगी। इस सूफी ने कैराना के राजपरिवार के लोगों को मुस्लिम बनने की सलाह दी, ऐसा विश्वास दिलाया कि मुसलमान बनने पर ही उनका आदर व उनकी सम्पत्ति सुरक्षित रह सकती है। इन्हीं सूफी की सलाह मान कर राजपरिवार के दो भाईयों में से एक भाई ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया, सूफी ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाले राजकुमार का नाम "हसन "रखा। उस राजकुमार के साथ 84 में से 42 गांव भी इस्लाम धर्म में चले गए। इस तरह से कैराना में मुस्लिम गूजर जाति अस्तित्व में आ गई।
इस विदेशी तुर्की शासनकाल में जो हिन्दू अपना धर्म त्याग कर मुसलमान बन गए, विजेता मुसलमानों ने उन्हें कोई खास तरजीह नहीं दी, भारतीय मुसलमानों को सत्ता में बडे पदों से सदा दूर रखा, उन्हें शक था यदि भारतीय मुसलमानों को शक्ति दे दी गई तो ये अपने हिन्दू भाईयों के साथ मिलकर उनके सामने चुनौती पेश कर सकते हैं। सम्पूर्ण तथाकथित गुलाम युग में इमादुल -मुल्क -रावत को छोड़कर किसी भी भारतीय मुसलमान को उच्च पद पर नियुक्त नहीं किया गया और इमाद भी इसलिए उच्च पद पर पहुंच सका कि उसने अपने माता-पिता का नाम छिपा रखा था और विदेशी मुसलमानों की संतान होने का भ्रम बना दिया था, जब यह खबर तत्कालीन बादशाह बलबन तक पहुंची तो बलबन ने उसके वंश का पता लगाने के लिए जांच करवाई और जब बादशाह को यह मालूम हो गया कि उसके माता-पिता भारतीय थे तो उसके प्रति सुल्तान का व्यवहार रूखा हो गया। एक बार बलबन ने अपने दरबारियों को बहुत बुरा-भला कहा, क्योंकि उन्होंने अमरोहा जिले हेतु लिपिक के पद पर एक भारतीय मुसलमान को चुन लिया था।
कैराना के मुस्लिम बने हिन्दू भी विदेशी मुस्लिम शासन की इसी भावना के शिकार रहे, दिल्ली के दरबार में उन्हें कोई पद प्राप्त नहीं हुआ, परन्तु स्थानीय स्तर पर वो इस्लामिक शासन में हिन्दुओं के किये जा रहे अनावश्यक शोषण से बचे रहे, अपने मुसलमान बने भाईयों की आड़ में हिन्दू राजकुमार के समर्थक हिन्दू चौहान गूजर भी बेवजह की बहुत सी मुसीबतों से बचे रहे।
समय चक्र चलता रहा, तुर्को के बाद, मुगल व अंग्रेजी शासन आया, 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया, देश में लोकतंत्र से मतदान द्वारा शासन चलाने की पद्धति प्रारंभ हो गई।
कैराना के चौहान गूजरों ने भारत की शासन पद्धति के माध्यम से प्रदेश व देश की सरकार में अपनी भागीदारी व सेवा अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार प्रदान की। चौधरी नारायण सिंह जी उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री पद पर रहे, नारायण सिंह जी के सुपुत्र संजय चौहान विधायक व सांसद रहे। बाबू हुकुम सिंह जी उत्तर प्रदेश के प्रभाव शाली नेताओं में रहे, वे विधायक, सांसद रहे तथा प्रदेश सरकार में विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री रहे, चौधरी अजब सिंह जी विधायक रहे, उनके भतीजे चौधरी विरेंद्र सिंह जी कांधला से कई बार विधायक रहे, प्रदेश सरकार में मंत्री रहे, चौधरी यशवीर सिंह जी खादी बोर्ड के चेयरमैन रहे।
मुस्लिम गूजरों में हसन परिवार से स्वर्गीय अख्तर हसन सन् 1984 में सांसद रहे, अख्तर हसन जी के बाद उनके पुत्र मुनव्वर हसन सांसद, विधायक व विधान परिषद् सदस्य व राज्य सभा सदस्य रहे। मुनव्वर हसन का नाम ग्रनिज बुक में इसलिए दर्ज है कि वो सबसे कम उम्र में सभी सदन के सदस्य रहे। उनके बेटे नाहीद हसन इस समय कैराना से विधायक है, उनकी पत्नी श्रीमती तबस्सुम भी कैराना लोकसभा से सांसद रह चुकी हैं।
संदर्भ ग्रंथ
1- भारत का इतिहास -डॉ आशीर्वादीलाल श्री वास्तव। 2- सत्ता के विरुद्ध दिल्ली एवं आसपास के गूजरों का प्रतिरोध -राणा अली हसन चौहान अनुवाद ओमप्रकाश गांधी (आवाज -ए- गुर्जर, जनवरी 2006,जम्मू)।
3- Chapter -4, History of Kairana page no -85,86, 87 :JNU Ganga sirij।
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
कैराना का (जिला शामली यूपी) बीता कल और आज -लेखक अशोक चौधरी मेरठ
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