इस समय के इतिहास को समझने के लिए विद्वानों ने पांच चरणों में बांटा है। और अंग्रेजों ने इस समय को तीन चरणो में बांटा -
1- अपने को शासकों के बीच स्थापित करना।
2- घेरें की निति/रिंग आंफ फेंस पालिसी (सन् 1765-1813)।
3- अधिनस्थ पार्थक्य की निती (सन् 1813-1858).
सबसे पहले अंग्रेजों ने फ्रांसीसी भय को समाप्त किया तथा युद्ध में फ्रांसीसियों को हराकर यूरोप की चारों कम्पनियों में अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर दी।
सन् 1765 की इलाहबाद संधि जो मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के साथ मुगल बादशाह के बक्सर के युद्ध में हार जाने के बाद अंग्रेजों ने की।इस संधि में अंग्रेजों ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार बादशाह से ले लिए तथा मुगल बादशाह को पैंशन लेने के लिए बाध्य कर दिया।इस संधि के बाद इस्ट इंडिया कम्पनी सिर्फ व्यापारी कम्पनी नही रही।वह भारत की क्षेत्रिय शक्तियों में से एक हो गई। सन् 1789 में फ्रांसीसी क्रांति हो गई थी।इस क्रांति से एक नेता पैदा हुआ जिसका नाम था नेपोलियन बोनापार्ट।यह अंग्रेजों का घोर विरोधी था तथा भारत में अंग्रेजों को समाप्त करना चाहता था, नेपोलियन बोनापार्ट का मानना था कि भारत से ही अंग्रेजों को शक्ति प्राप्त हो रही है। नेपोलियन बोनापार्ट को अंग्रेज सेनापति नेल्सन ने नील नदी के किनारे युद्ध में पराजित कर दिया।अब सन् 1798 में नेपोलियन बोनापार्ट मिश्र आ गया।इस नेपोलियन बोनापार्ट के हमले से बचने के लिए अंग्रेजों ने भारत में अपनी सुरक्षा के लिए बफर स्टेट मध्यवर्ती राज्य बनाए,जिसे घेरे की निति/रिंग आंफ फेंस पालिसी कहा गया।इस सन्धि की कुछ शर्तें थी, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण शर्तें यह थी कि जो रियासत सन्धि कर लेगी,उसकी सुरक्षा अंग्रेज करेगे,वह रियासत किसी भी रियासत से कोई सम्पर्क नही रखेगी, अंग्रेज एक सेना उस रियासत में रखेंगे,जिसका खर्च वह रियासत देंगी।रियासत में एक अंग्रेज़ अधिकारी कम्पनी के प्रतिनिधि के रूप में रहेगा, जिसे पोल्टीकल एजैंट कहा गया।
सन् 1798 में हैदराबाद से अंग्रेजों की पहली संधि हुई। सन् 1799 में हैदराबाद की सहायता से टीपू सुल्तान को मारकर वहा के वाडियार राजा को अंग्रेजों ने मैसूर का राजा बना दिया तथा मैसूर के साथ संधि कर ली। सन् 1799को तंजौर से, सन् 1801 को अवध से, सन् 1802को पैशवा से भसीन की संधि, सन् 1803 में दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
राजस्थान में सितम्बर सन् 1803 में भरतपुर से, नवम्बर सन् 1803 में अलवर से तथा दिसम्बर सन् 1803 में जयपुर से सहायक संधि कर ली।
इसके बाद तृतीय चरण प्रारंभ हुआ।इसे अधीनस्थ पारथक्य की निति कहते हैं।जिसका समय सन् 1813 से सन् 1858 तक कहा गया है।इस दौरान सन् 1813 से सन् 1823 तक लार्ड हैस्टिंग्स तथा सन् 1848 से सन् 1856 तक लार्ड डलहौजी का समय रहा।
इस समय में ब्रिटिश सर्वोच्चता की स्थापना को प्रतिपादित किया गया।इसका नियम था एक शक्ति की सर्वोच्चता तथा दूसरी उसके अधीन। ब्रिटेन की संसद में चार्टर एक्ट सन् 1813 आया,उसके अंतर्गत भारत में मुक्त व्यापार हो गया,इस्ट इंडिया कम्पनी का अधिकार भारत में सिर्फ चाय तथा चीन देश में होने वाले व्यापार पर ही रहा।अब कम्पनी का भारत में केवल राजनैतिक क्षेत्र में ही एकाधिकार रहा।इस समय में सन् 1817-18 में पेशवा को पूना से हटाकर कानपुर के पास बिठुर भेज दिया गया।मराठौ के सैनिक सहायक पिंडारियो का सफाया कर दिया गया तथा पिंडारी नेता अमीर खां को टौंक रियासत देकर संतुष्ट कर दिया।
चार्ल्स मेटकांक को राजपूताने की रियासतों से संधि करने के लिए नियुक्त किया गया।
दिल्ली में सन् 1818 में इन रियासतों का एक सम्मेलन बुलाया गया तथा सुरक्षा और अनाक्रमण की संधि की गई।
करौली व टांक से नवम्बर सन् 1817 में,कोटा-जोधपुर-उदयपुर से सन् 1818 में, सिरोही से सन् 1823 में, झालावाड़ जो सन् 1837 में रियासत अंग्रेजों ने बनाई थी से सन् 1838 में सन्धि कर ली गई। डूंगरपुर बांसवाड़ा और प्रताप गढ़ के साथ मालवा के रेजीडेण्ट माल्कम ने संधि की। लार्ड हैस्टिंग्स ने 310 भारतीय रियासत ब्रिटिश सर्वोच्चता के अधीन लाई।
विलियम बैंटिक ने सन् 1831 में मैसूर, सन् 1832 में कछार, सन् 1834 में कुर्ग, सन् 1835 में जैतिया रियासत ब्रिटिश सर्वोच्चता के अधीन कर ली।
लार्ड आकलैंड ने सन् 1839 मैं कानूल और मांडवी, सन् 1840 में कोलाबा और जालौन ब्रिटिश सर्वोच्चता के अधीन कर ली।
लार्ड डलहौजी जब सन् 1848 में भारत के गवर्नर जनरल बन कर आये ।उनका ऐसा मत था कि ये जो ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत नाम के राजा बने हुए हैं,इनकी कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिए ये भारतीय राजा समाप्त होने चाहिए। इसलिए डलहौजी ने समस्त रियासतों को ब्रिटिश भारत में मिलाने का प्रयास किया, डलहौजी द्वारा किए गए प्रयास निम्न थे-
1- युद्ध के द्वारा-
सन् 1849 में पंजाब को, सन् 1850 में सिक्किम को,सन् 1852 में वर्मा में पीगू और लोअर वर्मा को।
2- कुशासन, भ्रष्टाचार व बकाया धनराशि के आरोप द्वारा-
सन् 1856 में कुशासन का आरोप लगाकर अवध को,बकाया धनराशि का भुगतान न करने का आरोप लगाकर हैदराबाद से बरार का क्षेत्र ले लिया।
पैंशन समाप्त,पद समाप्त, उपाधियां छीन ली गई।
3- व्यपगत सिद्धांत/राज्य हडप निति-
राजाओं को अपनी रियासत के वारिसाना हक के लिए वारिस गोद लेने से रोक दिया गया।
लार्ड डलहौजी ने रियासतों की तीन श्रेणियां बनाई।
१- स्वतंत्र रियासत-
ये रियासतें वारिस गोद ले सकती थी।
२- मुगल,मराठा और अंग्रेजों के अधीन रियासत-
इन रियासतों को वारिस गोद लेने के लिए सरकार से परमिशन लेनी होगी, परमिशन मिल जायेगी।
३- पुनर्जीवित रियासतें-
इन रियासत के राजा वारिस गोद नही ले सकते, अंग्रेजी राज में मिला ली जायेंगी। ये पुनर्जीवित रियासते वो थी जिनका निर्माण अंग्रेजों ने किया था, जैसे मैसूर का राजा वाडियार परिवार से था,हैदर अली ने वाडियार राजा से यह रियासत छीन ली थी,हैदर अली वाडियार राजा का सेनापति था। अंग्रेजों ने हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान को मारकर पुनः वाडियार राजा को मैसूर का शासक बना दिया था,इसी प्रकार सतारा मराठा राजा को हटाकर पेशवा जो मराठा राजा के सेनापति थे ने रियासत अपने अधीन कर ली थी और सतारा के स्थान पर पूना को अपनी राजधानी बना लिया था, अंग्रेजों ने पेशवा को हटाकर मराठा राजा प्रताप सिंह को सतारा का पुनः राजा बना दिया था।
इस तरह की रियासतों को वारिस गोद लेने का अधिकार नहीं था।ऐसी रियासतें जब्त कर ली गई जो निम्न थी-
1-सतारा(महाराष्ट्र) सन् 1848 में।
2-जैतपुर(बुंदेलखंड) सन् 1849 में।
3- सम्भल पुर (ओडिशा) सन् 1849 में।
4- बघाट (हिमाचल) सन् 1850 में।
5- उदयपुर (छत्तीसगढ़) सन् 1852 में।
6- झांसी (बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश) सन् 1853 में।
7- नागपुर (महाराष्ट्र) सन् 1854 में।
8- करौली (राजस्थान) सन् 1855 में , परन्तु करौली एक स्वतंत्र रियासत थी इसलिए इस्ट इंडिया कम्पनी के बीओडी (बोर्ड आफ डायरेक्टर) ने इस विलय को रद्द कर दिया था।