रविवार, 3 जनवरी 2021

भारत का किसान और वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये कृषि बिल और उनकी वास्तविकता - अशोक चौधरी मेरठ

भारत का किसान सैकड़ों वर्षों से प्रताड़ित रहा है, दिल्ली में सन् 1192 में विदेशी तुर्क शासन स्थापित हो गया था।जब भारत में भारतियों का शासन था तब किसान से फसल का छठवां हिस्सा यानि 16% लगान शासक द्वारा लिया जाता था।यदि किसान इस लगान को देने में कभी कभी असमर्थ हो जाता था तो शासक वर्ग किसान की समस्या पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करता था,उसकी समस्या को दूर करने की कोशिश करता था, परंतु तुर्की शासन अपने सैनिक बल पर ही स्थापित था, अतः तुर्की शासकों ने भारतीय किसानों से फसल का आधा यानि 50% लगान वसूल किया,लगान बडी निर्दयता से वसूला जाता था, भारत की हिन्दू जनता के प्रति उनके मन में कोई दयाभाव नही था,उनका न्याय सिर्फ मुस्लिमों तक ही सीमित था, अतः लोग मुसलमान बनने लगे, सुल्तान ग्यासुद्दीन तुगलक के समय (सन्1320-1325) तक यानि तुर्की शासनकाल जो 125 वर्ष से चल रहा था, काफी संख्या में भारतीय मुसलमान बन गए थे। अतः सुल्तान ने कृषि नीति बनाई, जिसमें हिन्दू किसानों पर तो लगान फसल का आधा ही रखा गया, परन्तु मुस्लिम किसानों पर लगान फसल का सातवां और दसवां भाग अर्थात 14%व 10% लगाया गया। फिरोजशाह तुगलक (सन् 1351-1388) ने चार नेहरे बनवायी तथा लगान का पुनः निर्धारण किया।नेहर का पानी प्रयोग करने वाले मुस्लिम किसानों पर 25%लगान तथा हिंदू किसानों पर 60%लगान लगा दिया गया, अकबर(सन् 1570-1605) के शासनकाल में भारतीयों को सत्ता में साझेदार तो बना लिया गया परन्तु लगान की दर फसल का आधा हिस्सा ही रही,अंतर सिर्फ इतना रहा कि हिंदू और मुस्लिम दोनों किसानों से लगान की दर समान कर दी गई। औरंगजेब(सन् 1658-1707) के शासनकाल में फिर मुस्लिम किसानों से लगान की दर फसल का चौथाई हिस्सा यानि 25% रखी गई।उससे आगे चलकर अंग्रेज भारत के शासक बने, किसान पर लगान अंग्रेजी शासन में भी कम नहीं हुआ,उसी शोषण के कारण 1857 की क्रांति हुई,जब रानी विक्टोरिया के हाथ में शासन चला गया,तब भी भारत में किसान आंदोलन चलते रहे, अंग्रेजों के शासन में दो प्रकार का भारत था,एक वह भारत, जिसका शासन सीधा अंग्रेजों के हाथ में था,दूसरा वह भारत जिसका शासन,भारतीय राजाओं के माध्यम से अंग्रेजों के हाथ में था, अतः अंग्रेजों के सीधे हाथ में जो भारत था उसमें भी किसान आंदोलन हुए, परंतु अंग्रेज अपने सीधे शासन के भारत में हुए आंदोलनों को जल्दी ही हल कर लिया करते थे, जैसे चम्पारण का आंदोलन जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी जी ने किया तथा गुजरात में खेड़ा का आंदोलन,जिसका नेतृत्व सरदार पटेल ने किया था।वही पर मेवाड़ रियासत में बिजौलियां का किसान आंदोलन जिसका नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया था,वो 43 वर्ष चला।
किसान लूटता पिटता आ रहा था, सन् 1947 में देश आजाद हुआ,देश का संविधान बना,तब यह भरोसा दिलाया गया कि भारत एक कृषि प्रधान देश है अतः किसानों के हित प्राथमिकता पर रहेंगे।भूमि सुधार के प्रयास किए गए,लगान की दर बहुत कम कर दी गई,खेती की आमदनी को इंकमटैक्स के दायरे से बाहर कर दिया गया।
आजाद भारत में कृषि के लिए कानून बनाने का संवैधानिक अधिकार राज्यों को दिया गया, परंतु भारत की केंद्र सरकार को बहुत जल्द ही यह अहसास हो गया कि कृषि का अधिकार यदि सिर्फ राज्यों पर ही रहा तो सुधार होना मुश्किल है, इसलिए सन् 1954 में संविधान में तिसरे संशोधन के द्वारा  संविधान की समवर्ती सूची की धारा 33 के अंतर्गत केंद्र सरकार को भी अधिकार दिया गया कि वह भी किसानों के लिए कानून बना सकती है।
सन् 1947 से लेकर सन् 2014 तक संसद में 1274 बार किसानों की समस्याओं पर चर्चा हुई है, आजादी के बाद 21 वी सदी के प्रारम्भ सन् 2000 तक 56 किसान आंदोलन हुए हैं,56 बार ही किसानों की समस्या पर प्रस्ताव पास किए गए।प्रस्ताव पर हुई चर्चा के समय संसद में 28 बार 15% से भी कम सांसद संसद में उपस्थित रहे हैं,बाकि 28 में 15% सांसद संसद में उपस्थित रहें हैं।15% की उपस्थिति संसद में प्रस्ताव पर बहस का कोरम पूरा करने के लिए आवश्यक है।जो इस बात को दर्शाता है कि भारत के सांसदो की किसानों की समस्या के हल मे कोई रूचि नहीं है।
देश के आजाद होने के बाद महात्मा गांधी जी ने कहा था कि क्या हम देश के किसान को उपज का वह मूल्य निर्धारण कर सकते हैं जो देश के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की नौकरी की बढ़ोत्तरी से तालमेल खा जाये? 
डा राजेंद्र प्रसाद जी ने कहा था कि क्या हम देश के उन लोगों को गरीबी की उस रेखा से ऊपर उठा सकते हैं जो अपने लिए बाजार भाव से अनाज खरीद सके ? यदि देश का प्रत्येक आदमी जिस दिन बाजार भाव से अनाज खरिदने में सक्षम हो जाएगा, उस दिन हम किसान को मुक्त बाजार के हवाले कर सकते हैं।
सरदार पटेल ने रियासत के राजाओं से कहा था कि वो यह न समझें कि उनके पास धन व सेना है तो वो मनमानी कर लेंगे,यह देश गरीबों और किसानों का है।
 सन् 1955 से लेकर आज तक 16 बार किसानों और गरीबों के कल्याण का नारा देकर चुनाव लडा गया।
सन् 1966-67 में जब जगजीवन राम जी भारत के कृषि मंत्री थे,तब उन्होंने कहा था कि हरित क्रांति जिन राज्यों के आधार पर की जा रही है वो भारत की आवश्यकता की पूर्ति लायक अन्न तो पैदा कर ही देंगे।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश इस हरीत क्रांति का मुख्य आधार थे। क्योंकि पूरे देश में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था यही पर थी।
 सन् 1965 में करीब 30 करोड लोग राशन की दुकान से सस्ता राशन लेते थे,आज भी 80-82 करोड़ बीपीएल कार्ड से सस्ता राशन ले रहें हैं।
21 वी सदी के प्रारम्भ में मनमोहन सरकार के कार्यकाल में जब शरद पवार देश के कृषि मंत्री थे,तब विदेश से गेहूं सस्ते मे खरीद कर एफसीआई के गोदामों में रख दिया गया, व्यापारियों ने किसानों से सस्ते मे गेहूं खरीद कर एमएसपी रेट पर एफसीआई को बेच दिया गया।21 वी सदी की शुरुआत भ्रष्टाचार से हुई।
आज भारत सरकार द्वारा लाए गए कृषि बिल का किसानों द्वारा विरोध किया जा रहा है।आइये देखते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ? जो इतना विरोध हो रहा है। क्या है कृषि कानूनों की वास्तविकता?
सन् 1991 में उद्योगों के लिए भारत में भारत सरकार द्वारा बाजार खोल दिया गया था।ये जो तीन बिल सरकार लाई है,इनकी औपचारिक सिफारिश पहली बार भानू प्रताप सिंह की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने सन् 1990 में की थी।तब से ही यह लम्बित पडी थी। सन् 2016 में मोदी जी ने किसानों की आय दोगुना करने के लिए कहा था,जब तक बाजार नही खुलेगा,आय कैसे दोगुना हो। अतः भारत सरकार ने 5 जून सन् 2020 में आर्डिनेंस के माध्यम से कृषि बिल ला कर 20 सितंबर सन् 2020 को कानून बना दिया।आज जो किसान आंदोलन भारत में किया जा रहा है,उसको भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए इन बिलो की समीक्षा एकेडमिक स्तर पर होनी बडी जरुरी है।
इस कृषि बिल में चार मुद्दे प्रमुख रूप से दिखाई पड़ते हैं।जो निम्न हैं-
1- संवैधानिकता
2- एक्ट 1
3- एक्ट 2
4- एक्ट 3
सबसे पहले एक्ट की संवैधानिकता पर विचार करते हैं।जब भी कोई एक्ट संसद में पारित किया जाता है तो उसकी संवैधानिकता के दो पहलू हैं।
1- एक्ट की विषय वस्तु
2- प्रक्रिया
1- क्या विषय वस्तु में समस्या है-
विषय-वस्तु में तीन बातें आती है।
 A- फंडामेंटल राइट्स
B- बेसिक स्टरक्चर
C- राज्य(धारा 246,254) और केंद्र की विधायी शक्ति या धारा।
भारत सरकार संविधान में संशोधन तो कर सकती हैं परन्तु उसका पुनर्लेखन नही कर सकती अर्थात बेसिक स्टरक्चर को नही हिला सकती। कुछ मामलों पर राज्य सरकार ही कानून बना सकती है, कुछ मामलों पर केंद्र सरकार ही कानून बना सकती है। कुछ मामले ऐसे हैं कि दोनों कानून बना सकते हैं, यदि किसी कानून पर राज्य सरकार व केंद्र सरकार में टकराव हो तो केंद्र सरकार का कानून माना जाता है।कृषि कानून राज्य और केंद्र सरकार दोनों बना सकती है।
कानून की प्रक्रिया इस प्रकार है-
संसद में सरकार के साथ बहुमत है।
राज्यसभा में भी बहुमत है,यदि राज्य सभा में बहुमत ना भी हो तो संयुक्त अधिवेशन बुला कर सरकार कानून पास करा सकती है।
सरकार ने वोईस वोटिंग से कानून राज्यसभा में इसलिए पास कराया,क्योकि सदस्य कोरोना के कारण दूरी लिए बैठे थे, अपनी सीट पर नही थे, इसलिए वोटिंग सम्भव नहीं थी।
बिल संसद की सलेक्ट कमेटी को सोपा जाना चाहिए था, परन्तु इस बात का फैसला भी बहुमत के आधार पर होता है।आम सहमति बन नही पा रही थी,यदि बिल राज्यसभा में पास ना होते तो निरस्त हो जाते। इसलिए सलेक्ट कमेटी को नही भेजें गए।
भारत की आज़ादी के बाद से ही राज्य सरकार और केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार करते रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में सन् 1991 में जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे तब किसानों का गन्ना भुगतान बैंकों के माध्यम से किया गया था,यानि गन्ना भुगतान किसान के बैंक खाते में जायेगा। उससे पहले सोसायटी के माध्यम से भुगतान होता था, ताकतवर किसान कमजोर किसान की गन्ने की पर्ची डाल कर, पेमेंट ले लिया करते थे, किसान को पता भी नहीं चलता था, बैंक से भुगतान होने के बाद पर्ची यदि कोई दूसरा किसान डाल भी दे तो भुगतना तो उसी किसान के खाते में जाना है जिसके नाम की पर्ची होगी। कमजोर किसान के शोषण पर रोक लग गई।
अगस्त 1998 में किसानों के लिए अटल जी की केंद्र सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड की योजना लागू की। 
सन् 2003 में अटल बिहारी वाजपेई जी ने सभी राज्यों को चिट्ठी लिखी कि वो किसानों को अपनी फसल बेचने की छूट मंडी के बाहर भी प्रदान करें।तब से किसान अपनी फसल बाहर बेचने के लिए स्वतंत्र है।
मनमोहन सरकार ने आम चुनाव से एक साल पहले वर्ष 2008 में 65 हजार करोड़ रुपये की किसान ऋण माफी योजना का ऐलान किया था।
सन् 2013 के अंत में मनमोहन सरकार ने नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट पास किया। जिसके अन्तर्गत मीड-डे-मिल तथा राशन की दुकानों पर गरीबों को सस्ता अनाज सरकार देने के लिए बाध्य है।
1 दिसम्बर सन् 2018 से किसान सम्मान निधि योजना मोदी जी द्वारा चालू की गई,जिसके अन्तर्गत 6000 रुपए प्रत्यक वर्ष देश के प्रत्येक किसान को दिया जा रहा है।
देश के आजाद होने से लेकर आज तक किसान की आय 21 गुणा बढी है जबकि सरकारी कर्मचारी की नौकरी 180 और 200 गुणा बढी है।
विश्व स्तर की तीन एजेंसी द्वारा जैसे WHO द्वारा 58%, दूसरी एजेंसी द्वारा 62% और तीसरी एजेंसी द्वारा 72% आबादी भारत की कृषि पर निर्भर है।86% रोजगार कृषि क्षेत्र से निकलता है। कारपोरेट सेक्टर में भारत का कुल 5-6% रोजगार निकलता है। लेकिन पिछले 15 वर्षों में 42 लाख करोड़ रुपए का कर्जा भारत सरकार द्वारा कारपोरेट सेक्टर का माफ कर दिया गया है।  20 सितंबर सन् 2020 को सरकार ने जो कृषि कानून पास किये वो निम्न हैं-
1- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य(the farmers trade and commerce(promotion and facilitation Bill 2020)
2- The farmers(Empowerment and protection) argument on price Assurance and farm service Bill 2020
3- The Essential Commodities(Amendment) Bill 2020
1- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (the farmers trade and commerce(promotion and facilitation Bill 2020)।
उद्देश्य-A-( Farmer produes)जो किसान उत्पादन करते हैं जमीन व पशु से सम्बंधित व्यवसाय
Trade and commerce (लेना बेचना व व्यापार)
promotion and facilitation(आगे बढाना और सहूलियत देना)
मुख्य प्रावधान-
(क) ट्रेड एरिया आऊट साइड ऐपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी)
खेत के बाहर,फूड प्रोसेसिंग यूनिट, भंडारण घर,कोल्ड स्टोरेज, निर्यात करने की छूट
2- पहले कानून के अनुसार किसान अपने एरिया में ही फसल बेच सकता था,अब कही भी बेच सकता है।
3- आन लाइन ट्रेडिंग किसान कर सकता है।
4- कोई स्टेट टेक्स नही, कोई राज्य का कानून नही लगेगा।
5- किसी विवाद को सुलझाने के लिए जिले के एसडीएम और डीएम 60 दिन में विवाद सुलझायेंगे।
अच्छाईयां- (क)बिजनेस से बिजनेस,अंतर राज्य, अच्छा कम्पटीशन,
(ख)बुरा होने की सम्भावना- एपीएमसी समाप्त हो सकती है।
(ग)न्याय की आजादी नही है, कोर्ट का रास्ता बंद है।
(घ)खरिदने वाले के लिए कोई नियम नही है।
(च) एक नया अल्प तंत्र बन सकता है।
उपाय- (क) एपीएमसी के बराबर ही बाहर खरीदार पर भी टैक्स लगने चाहिए।
(ख) न्याय की सुविधा मे कोर्ट का रास्ता मिलना चाहिए। कृषि न्याय प्राधिकरण बनना चाहिए।
(ग) रजिस्ट्रेशन होने चाहिए।
2- The farmers(Empowerment and protection) argument on price Assurance and farm service Bill 2020
कांटेक्ट फार्मिंग होगी। किसान किसी से भी कांटेक्ट कर सकता है।
उद्देश्य-
(क) किसान को ताकतवर व सुरक्षा
(ख) एग्रीमेंट
(ग) मूल्य व कृषि सेवा
मुख्य प्रावधान-
(क) एग्रिमेंट कर सकते हैं।दो पार्टी में एक किसान और दूसरा समझौता करने वाला।
2- समय सीमा (क) एक फसल सीजन से लेकर पांच साल तक या पशु के लिए एक ब्यात से लेकर पांच साल तक।
3- माडल कांटेक्ट- माडल कांट्रैक्टर बना सकते हैं।, केंद्र सरकार गाइड लाइन जारी कर सकती हैं।
4- मूल्य निर्धारण कैसे होगा- कांट्रैक्ट करते समय जो मूल्य निर्धारण हुआ,यदि फसल कटते समय रेट घट या बढ गए तो-(क) पहले से फिक्स रेट तय हो सकता है।
(ख)या तो एक ही रेट रहेगा या उतार चढ़ाव का प्रतिशत तय किया जा सकता है।
5- पेमेंट नकद या ज्यादा से ज्यादा एक दिन।
6- (क)किसान की जमीन को एग्रिमेंट में कोई कंडीशन नही बनाया जायेगा।
(ख) जिससे एग्रिमेंट होगा,वह किसान की जमीन में कोई स्थायी निर्माण नही करेगा, यदि किसान की सहमति से स्थायी निर्माण कर भी लिया है तो कांट्रैक्ट समाप्त होने पर हटाना पड़ेगा। यदि कांट्रेक्टर नही हटाता है तो वह निर्माण किसान का हो जायेगा।
7- रजिस्ट्रेशन- हर राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह एक एथोरिटी बना सकती है।
8- फोर्स मेजर- (क)यदि कोई ऐसी घटना घट जाय,जिसकी वजह से कांट्रेक्ट की शर्तों का पालन करना सम्भव न हो,तब कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी।
(ख)यदि किसान किसी ऐसी हालत में शर्त पूरी ना कर पाए तो वह भी इसका लाभ उठायेंगे।
9- झगड़ा होने पर-(क) आपसी समझौता (ख) एसडीएम और डीएम
कोर्ट नही।
10- दंड-(क) यदि गलती कांट्रेक्टर की है तो डेढ़ गुणा देना होगा।
(ख) किसान पर पेनल्टी नहीं लगेगी, किसान को वही पैसा देना होगा,जितना कांट्रेक्टर खर्च करेगा।
11- एग्रिमेंट का तरिका-एफपीओ, फर्टिलाइजर,बीज, कीटनाशक
अधिनियम की अच्छाईया-
(क)अच्छे किसान बढ़ेंगे
(ख)फसल का पेटर्न बदलेगा
(ग)एफपीओ (फार्म प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन) बनेंगे।
अधिनियम की चिंताएं-
(क) कोर्ट की हिस्सेदारी नही है
(ख) मार्केट रेट का बेनिफिट ना मिलने का खतरा
(ग) एग्रिमेंट का माडल सरकार बनाये
(घ) रेगुलेशन कमजोर है
3- The Essential Commodities(Amendment) Bill 2020
सन् 1955 में यह एक्ट बना था,एक सीमा से अधिक भंडारण नही कर सकते थे। उसमें संशोधन किया गया है कि अब भंडारण कर सकते हैं। युद्ध,अकाल व महमारी, बाढ़, भूकंप जैसी विपदा आने पर भंडारण नही होगा।
फल, फूल,सब्जी पर रेट 100% बढ गया हो एक साल या पांच साल में तो भंडारण नही होगा।
अनाज या तेल का रेट 50% बढ़ गया हो तो भंडारण नही होगा।
यदि कोई डेरी एक दिन में दस हजार लीटर दूध की दही या अन्य उत्पाद बना लेती है तो वह उसका एक दिन का भंडारण कर सकते हैं। यदि किसी ने निर्यात का जितना आर्डर ले रखा है,उतना भंडारण कर सकता है।
चिंताएं- आर्टिफिशल डिमांड पैदा की जा सकती है।
रेट बढ़ाए जा सकते हैं।
एमएसपी- 
न्यूनतम समर्थन मूल्य,यह केंद्र सरकार की ओर से होता है सीएसीपी व सीसीइए विभाग तय करता है, बिक्री एपीएमसी तथा एफसीआई के माध्यम से खरीद होती है।
23 फसलों पर सरकार एमएसपी घोषित करती है।
फल सब्जी डेरी फिशरी, फूल पर एमएसपी घोषित नही होता।
स्वामीनाथन आयोग ने दिसंबर 2004, अगस्त 2005, दिसंबर 2005 और अप्रैल 2006 में क्रमश: चार रिपोर्ट सौंपी थी और अंतिम रिपोर्ट चार अक्टूबर 2006 को सौंपी गई थी, जिसमें फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाने समेत किसानों की दशा सुधारने के लिए किए जाने वाले उपायों के सुझाव दिए गए थे।जो इस प्रकार है-
1- A2 इसमें किसान की लागत का डेढ़ गुणा।
2- A2+FL इसमें लागत+ परिश्रम की किमत का डेढ़ गुणा।
3- C2 इसमें लागत+परिश्रम+जमीन का रेंट+लागत के धन का ब्याज का डेढ़ गुणा।
स्वामीनाथन आयोग ने अन्य सुझाव भी दिए थे, जैसे भूमि सुधार, किसान पर कर्ज कम हो,कृषि भूमि में सिंचाई की व्यवस्था।
देश के आजाद होने से आज तक भारत में कृषि भूमि में सिंचाई की व्यवस्था में कुल 5-6% की बढ़ोत्तरी हुई है, जिसमें वर्तमान मोदी सरकार के छः साल में यह बढ़ोतरी 0.75% है। बाकि कृषि वर्षा पर आधारित है।
सन् 2014 के चुनाव में भाजपा की ओर से स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का वादा किया गया था। परन्तु जब सरकार बन गई तब सरकार ने अपने को तिसरे नम्बर को लागू करने में असमर्थ पाया। और दूसरे नम्बर को लागू कर दिया है सन् 2018-19 के बजट में।
पंजाब और हरियाणा का 88%चावल और 70% गेहूं एमएसपी पर जाता है। पूरे भारत का 35%चावल,62% गेहूं,50% मोटा अनाज पंजाब और हरियाणा से प्राप्त होता है।
आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश से 44% चावल तथा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से 23% गेहूं एमएसपी पर जाता है।
लेकिन जो अनाज किसान का बाहर बाजार में बिक रहा है वह आज से 10 वर्ष पहले जो एमएसपी रेट था,उस पर बिक रहा है।
एमएसपी पर जो सरकार का विभाग एफसीआई (फूड कारपोरेशन आफ इंडिया) खरीदारी करता है,उसकी आज हालत यह है कि उस पर 2018-2019 के साल में तीन लाख पन्द्रह हजार करोड़ का कर्ज है, जो 2013-14 में 91401 करोड था।यानि एफसीआई खुद दिवालिया होने के कगार पर है।
इन कानूनों को लेकर किसानों मे भ्रम पैदा हो गया है या कर दिया गया।लाभ हानि तो समय के गर्भ में हैं। परन्तु किसी विद्वान व्यक्ति ने कहा है-
शक की कैची के फलके जब, अनजाने भी चल जाते हैं।
सच कहता हूं विश्वासों के चंदन वन भी जल जाते हैं।।
संदर्भ- यू ट्यूब
 डां विकास दिव्य कीर्ति- कृषि कानून (विवाद और वास्तविकता।
https://youtu.be/YcqVWFZXyaE
यू ट्यूब-पुण्य प्रसून बाजपेई।