राजस्थान/उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत में ब्रिटिश सेना की 6 सैनिक छावनी थी।
1- नसीराबाद (सन् 1818 में बनी)
2- ब्यावर (अजमेर)
3- एरिनपुरा (पाली, सन् 1835 में बनी)
4- खेरवाड़ा (उदयपुर)
5- देवली (टांक)
6- नीमच (वर्तमान में मध्यप्रदेश में शिवपुरी जिले के पास)
23 अगस्त सन् 1857 को एरिनपुरा की छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत कर दी।इन भारतीय सिपाहियो का नेतृत्व मोती खां,तिलक राम तथा शीतल प्रसाद नाम के तीन सिपाही कर रहे थे।ये क्रांति कारी सैनिक पाली के खेरखा गांव पहुंचे,वहा पर इन सैनिकों की मुलाकात आऊआ नाम की जागीर के जागीरदार ठाकुर खुशाल सिंह चम्पावत, जिनकी जागीर जोधपुर के राजा तख्त सिंह ने जब्त कर ली थी, से हुई। क्रांतिकारी सैनिकों ने ठाकुर खुशाल सिंह से नेतृत्व करने का आग्रह किया, परन्तु खुशाल सिंह ने नेतृत्व करने से इंकार कर दिया। दोबारा आग्रह करने पर ठाकुर खुशाल सिंह ने क्रांतिकारी सैनिकों का आग्रह स्वीकार कर लिया।
बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सैनिकों से अलग भी ठाकुर खुशाल सिंह ने मारवाड़/जोधपुर तथा मेवाड़/उदयपुर के अपने मित्र जागीरदारों से अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में सहायता करने का आग्रह किया। जिसमें जोधपुर रियासत के आसोया के जागीरदार ठाकुर शिवनाथ सिंह, आलनियावास के जागीरदार ठाकुर अजित सिंह,गूलर के जागीरदार ठाकुर बिशन सिंह तथा लांबिया,देतावास और दूदावास के जागीरदारो ने सैनिक सहायता दी। मेवाड़ रियासत के आसींद,लखानी, कोठारिया,रूप नगर तथा सलूम्बर के जागीरदारों ने आर्थिक सहायता दी।
इस घटनाक्रम के अनुसार आऊआ जागीर के पदच्युत जागीरदार ठाकुर खुशाल सिंह क्षेत्र की जनता की नजरों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक नेता के रूप में प्रकट हो गए।
जहां ठाकुर खुशाल सिंह क्षेत्र की जनता की नजरों में एक नायक का स्थान ले चुके थे, परंतु दूसरी ओर ठाकुर खुशाल सिंह अपनी जागीर प्राप्त करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहते थे। जोधपुर के राजा तख्त सिंह उनके घोर विरोधी थे,अब ठाकुर खुशाल सिंह ने 31 अगस्त सन् 1857 को जोधपुर के पोलिटिकल एजेंट को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि उन पर अंग्रेज सरकार सदा से ही दयालु रही है और मैं (खुशाल सिंह) भी आपका (अंग्रेज) सेवक रहा हूं। यदि आप मेरी जागीर राजा तख्त सिंह से वापस दिला दे तो मैं (खुशाल सिंह) क्रांतिकारियों का समर्पण या दमन करवा सकता हूं ।
जहां एक ओर स्थानीय जनता और क्रांतिकारी सैनिक तथा क्रांतिकारियों का साथ देने वाले जागीरदार ठाकुर खुशाल सिंह को अपना महानायक मान कर जान हथेली पर लिए खड़े थे,वही दूसरी ओर ठाकुर खुशाल सिंह अपने इन वफादार साथियों के सिरों का सौदा अपनी जागीर के बदले में करने का प्रयास कर रहे थे।उस समय ठाकुर खुशाल सिंह का यह देशद्रोही प्रयास कामयाब नही हो सका तथा 8 सितंबर सन् 1857 को बिथौरा नामक स्थान पर राजा तख्त सिंह एवं अंग्रेजों की संयुक्त सेना का युद्ध क्रांतिकारी सेना के साथ हो गया।राजा तख्त सिंह की सेना के भारतीय सैनिकों की हमदर्दी भी क्रांतिकारी सेना के साथ थी,इस युद्ध में क्रांतिकारी सेना विजयी हुई।जब अंग्रेज अधिकारियों को इस हार की सूचना पहुंची तो वो भौंचक्के रह गए। तुरंत दोबारा हमले की तैयारी की गई।18 सितंबर सन् 1857 को चेलावास नामक स्थान पर दूसरा युद्ध हुआ।इस युद्ध में भी अंग्रेजों की सेना बुरी तरह हारी। क्रांतिकारी सेना ने अंग्रेजों की सेना से 12 तोपें छीन ली।एक अंग्रेज अधिकारी हीटकोट मारा गया। जोधपुर रियासत का पोलिटिकल एजेंट मोकमेसेस का क्रांतिकारी सैनिकों ने सिर काटकर आऊआ के किले के दरवाजे पर टांग दिया।एजीजी पेट्रिक लारेंस युद्ध के मैदान से जान बचाकर भाग गया।
10 अक्टूबर सन् 1857 को आऊआ से क्रांतिकारी सेना का बडा हिस्सा ठाकुर शिवनाथ सिंह, ठाकुर बिशन सिंह तथा ठाकुर अजीत सिंह के नेतृत्व में दिल्ली की ओर चल दिया।16 अक्टूबर सन् 1857 को नारनौल (वर्तमान हरियाणा) में अंग्रेजों की सेना से भयंकर युद्ध हुआ।इस युद्ध में क्रांतिकारी सेना हार गई। ठाकुर शिवनाथ सिंह, ठाकुर बिशन सिंह तथा ठाकुर अजीत सिंह की जागीर राजा तख्त सिंह ने जब्त कर ली।20 जनवरी सन् 1858 को कर्नल हेम्स के नेतृत्व में एक ब्रिटिश सेना आऊआ पहुंच गई।24 जनवरी सन् 1858 को अंग्रेजों की सेना का किले पर अधिकार हो गया। क्रांतिकारी सेना हार गई।
ठाकुर खुशाल सिंह चम्पावत मेवाड़ के कोठारिया के ठाकुर रावत जोधा सिंह के यहा जाकर छुप गए।करीब दो वर्ष 6 माह बाद 8 अगस्त सन् 1860 को ठाकुर खुशाल सिंह ने नीमच में अंग्रेजों के सम्मुख आत्म समर्पण कर दिया।जब ठाकुर खुशाल सिंह ने अपने को अंग्रेजों का वफादार बताया, अंग्रेजों ने ठाकुर खुशाल सिंह की बात की सत्यता को जांचने के लिए एक आयोग का गठन किया, जिसे टेलर आयोग कहा गया।तब आयोग के समक्ष जोधपुर के नये पोलिटिकल एजेंट निक्सन तथा एजीजी पेट्रिक लारेंस ने गवाही दी कि ठाकुर खुशाल सिंह सत्य कह रहे हैं वो अंग्रेजों के ही आदमी है,वह पत्र भी पेश किया गया।इस तरह 10 नवम्बर सन् 1860 को ठाकुर खुशाल सिंह को निर्दोष करार दे दिया गया।राजा तख्त सिंह से ठाकुर खुशाल सिंह की जागीर वापस देने के लिए कहा गया। परंतु राजा तख्त सिंह ठाकुर खुशाल सिंह से अत्यधिक क्रोधित थे। उन्होंने ठाकुर खुशाल सिंह को जागीर वापस नही दी, ठाकुर खुशाल सिंह उदय पुर में रहें, जहां जुलाई सन् 1864 में उनकी मृत्यु हो गई। ठाकुर खुशाल सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र को राजा तख्त सिंह ने जागीर दे दी।ठाकुर शिवनाथ सिंह, ठाकुर बिशन सिंह तथा ठाकुर अजीत सिंह को बागी/डकैत घोषित कर दिया गया।वो बर्बाद हो गये तथा बिहडों में ही मर गए।
ठाकुर खुशाल सिंह इतिहास में एक खलनायक परन्तु आऊआ की जनता की नजरों में एक नायक ही रहें।आज भी ठाकुर खुशाल सिंह की प्रतिमा लगी हुई है,उनकी याद में मैला लगता है,वो आऊआ की क्रांति के नायक हैं जनता की नजर में।ठाकुर शिवनाथ सिंह, ठाकुर बिशन सिंह तथा ठाकुर अजीत सिंह का नाम भी लोग भूल गए।
ठाकुर शिवनाथ सिंह, ठाकुर बिशन सिंह तथा ठाकुर अजीत सिंह तथा उनके साथ मिलकर अंग्रेजों से संघर्ष करने वाले सभी क्रान्तिकारियों को शत-शत नमन।
संदर्भ ग्रंथ
1- रमन भारद्वाज https://youtu.be/XJPp23mB0xw