खिराज हारा हुआ राजा जीते हुए राजा को अदा करता है।
खोस बादशाह द्वारा किसानों से लिया जाने वाला टैक्स है।
जकात मुस्लिमों पर गरीबों की मदद के लिए दिया जाने वाला टैक्स है।
जजिया वो टैक्स है जो इस्लामिक शासन में रहने वाले गैर मुस्लिम से उसकी सम्पत्ति, सम्मान और धर्म के संरक्षण के बदले में लिया जाता है। जजिया देने वाले को जिम्मी भी कहा गया है। इस्लाम की सुन्नी शाखा में विधि शास्त्र की चार शाखाओं की रचना है।जो निम्न हैं -
1- हनफी
2- हनबली
3- गालीकि
4- शफिई
इन चारों शाखाओं की रचना आंठवी और नो वी सदी में की गई है।इन शाखाओं में हनबली सबसे कठोर और हनफी सबसे उदारवादी शाखा है।हनफी शाखा में ही जजिया का कानून है। जिसमें एक निश्चित टैक्स देकर गैर मुस्लिम अपने धन धर्म,मान सम्मान को सुरक्षित रख सकता है।
वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश से लेकर अफगानिस्तान ईरान ईराक में हनफी शाखा के अनुसार ही इस्लामिक शासन का संचालन हुआ है। जजिया सबसे पहले यहूदी तथा ईसाई धर्म के मानने वालों से इस्लामिक शासकों ने वसूल किया है।भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है। सर्वप्रथम उसने ही (सन् 712) में सिंध प्रान्त के देवल में जजिया कर लगाया था। इसके बाद जजिया कर लगाने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक था।
जजिया मानसिक रूप से स्वस्थ पुरुष से वसूला जाता था।औरते, भिक्षुक,दिव्यांग,साधु संत तथा और गैर मुस्लिम जो सुल्तान को सैनिक सहायता देते थे जजिया से बाहर थे। भिक्षुक,साधु संत की आड़ में ब्राह्मणों ने अपने को जजिया से मुक्त करवा लिया था। परन्तु फिरोज शाह तुगलक ने ब्राह्मण जाति पर जजिया लगा दिया था।जो ब्राह्मण भिक्षुक नही थे,साधु या संत भी नहीं थे।उनसे जजिया वसूला जाने लगा था।
फिरोज तुगलक ने जजिया को खराज (भूराजस्व) से पृथक कर अलग से वसूला। फिरोज तुगलक के ऐसा करने के विरोध में दिल्ली के ब्राह्मणों ने भूख हड़ताल कर दी। फिर भी फिरोज तुगलक ने इसे समाप्त करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अन्त में दिल्ली की जनता ने ब्राह्मणों के बदले स्वयं जजिया देने का निर्णय लिया। इसके बाद लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी ने जज़िया कर लगाया।
दिल्ली सल्तनत के फैलने के साथ जजिया कर का क्षेत्र भी बढ़ा। अलाउद्दीन खिलजी ने जजिया और खरज न दे पाने वालों को गुलाम बनाने का कानून बनाया। उसके कर्मचारी ऐसे लोगों को गुलाम बनाकर सल्तनत के शहरों में बेचते थे जहाँ गुलाम श्रमिकों की भारी मांग रहती थी। मुस्लिम दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि बयानह के काजी मुघिसुद्दीन ने अलाउद्दीन को सलाह दी थी कि इस्लाम की जरूरत है कि हिन्दुओं पर जजिया लगाया जाय ताकि हिन्दुओं के प्रति निरादर दिखाया जा सके और उन्हें अपमानित किया जा सके। उसने यह भी सलाह दी थी कि जजिया लगाना सुल्तान का मजहबी फर्ज है।
सल्तनत के बाहर के मुसलमान शासकों ने भी हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। कश्मीर में सर्वप्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगाया गया। यह एक धर्मान्ध शासक था और उसने हिन्दुओं पर भारी अत्याचार किये। उसके बाद इसका पुत्र जैनुल आबदीन (1420-70 ईo) शासक बना और सिकन्दर द्वारा लगाए गए जजिया को समाप्त कर दिया। जजिया कर को समाप्त करने वाला यह पहला शासक था। गुजरात में जजिया सर्वप्रथम अहमदशाह (1411-42 ईo) के समय लगाया गया। उसने इतनी कड़ाई से जजिया वसूला कि बहुत से हिन्दू मजबूर होकर मुसलमान बन गए।
शेरशाह के समय जजिया को 'नगर-कर' की संज्ञा दी गयी।
जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564 ईo में जज़िया कर समाप्त किया, लेकिन 1575 ईo में पुनः लगा दिया। इसके बाद 1579-80 ईo में पुनः समाप्त कर दिया। औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया। उसके राज्य में जजिया कर के विरुद्ध हिन्दुओं ने विद्रोह भी किया जिससे बीच-बीच में कुछ स्थानों पर जजिया हटा लिया गया। औरंगजेब ने मुगलों को सैनिक सहायता देने वाले मेवाड़ के हिंदू राजा से सन् 1680 में जजिया वसूला तथा दो परगने जजिया मे ले लिए।
सन् 1712 ईo में जहाँदारशाह ने अपने मंत्री जुल्फिकार खां व असद खां के कहने पर जजिया को विधिवत रूप से समाप्त कर दिया। इसके बाद फर्रूखशियर ने 1717 ईo में जजिया पुनः लगा दिया। अन्त में 1720 ईo में मुहम्मद शाह रंगीला ने जयसिंह के अनुरोध पर जजिया कर को सदा के लिए समाप्त कर दिया।
जजिया की कोई दर निश्चित नही थी,वह बादशाह की मर्ज़ी पर निर्भर करता था। लेकिन फिर भी सल्तनत काल में जजिया की तीन श्रेणी मिलती है।
1- प्रथम श्रेणी 48 दिरहम
2- दूसरी श्रेणी 24 दिरहम
3- तिसरी श्रेणी 12 दिरहम
आज दुनिया के किसी भी इस्लामिक देश में जजिया नही है। तालिबान के प्रभावित क्षेत्रों में हो सकता है।
संदर्भ ग्रंथ
1- https://youtu.be/IQHUgqoi7WI