यह रागिनी छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति प्रताप राव गुर्जर के द्वारा फरवरी सन् 1672 में मुगल सेना को सल्हेर युद्ध में पराजित करने के अवसर पर दिखाई गई वीरता पर लिखी गई है। भाईयों सन 1191 में पृथ्वीराज चौहान के द्वारा मोहम्मद गौरी को तराईन के युद्ध में पराजित करने के 481 वर्ष बाद किसी भारतीय सेना की विदेशी सेना पर आमने-सामने के युद्ध में यह पहली विजय थी। इस युद्ध में विजय के पश्चात ही शिवाजी महाराज के छत्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया था।
जब प्रताप राव गुर्जर युद्ध में जाने से पहले शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई से आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं और उनके चेहरे पर चिंता व घबराहट की झलक देखते हैं तब क्या कहते हैं सुनिए।
आग बबूला हुआ प्रताप, पारा चढ़ गया हाई।खोज मिटा दूंगा दुष्टों का, क्यूं जीजा मा घबराई।।
सुनी युद्ध की बात वीर का,खून खौलता आया।
किसकी है औकात, जो मेरे राजा की ओर लखाया।।
किस चींटी के पर निकले है, काल शीश मडराया।
सामी पड़ते ही रणक्षेत्र में, जड से करूं सफाया।।
केहरी गुस्से में चिल्लाया, कसम राम की खाई।
खोज मिटा दूंगा का दुष्टों का, क्यूं जीजा मां घबराई।।
थर-थर कांपा गात क्रोध में, आंखों में अंगारे।
कौन है इगलास, कौन है मुगल ,खोज मिटा दू थारे।।
माता की सौगंध,दिखादू इनको दिन में तारे।
ये गुर्जर का वचन आज,सब बनें खुदा के प्यारे।।
में जाऊं सल्हेर युद्ध में,कह तलवार उठाई।
खोज मिटा दूंगा दुष्टों का, क्यूं जीजा मां घबराई।।
शाही शस्त्र,अपनी घोडी, बार-बार पुचकारी।
आंखों में रहें खटक दुष्ट,वो पापी अत्याचारी।।
मुगल सेना मार भगाई , मारें बड़े-बड़े बलकारी।
कई कई गोली दुष्टों की,काया के बीच उतारी।।
काट दई सारी बीमारी, कुछ ना देर लगाई।
खोज मिटा दूंगा दुष्टों का, क्यूं जीजा मां घबराई।।
वीर शिवा का रूक्का पड़ गया, दिल्ली के गलियारे में।
बदला लिया मराठों ने,यो चर्चा थी सारे में।।
अशोक विचलित थी दुनिया,सुन के इस बारे में।
लिखने लगा दो चार शब्द, भगवान् तेरे लारे में।।
सत गुरु के जयकारे में,हो जा सफल कमाई।
खोज मिटा दूंगा दुष्टों का, क्यूं जीजा मां घबराई।।