धन सिंह कोतवाल का जन्म 27 नवम्बर सन् 1814 दिन रविवार (सम्वत् 1871 कार्तिक पूर्णिमा) को प्रात:करीब छ:बजे माता मनभरी के गर्भ से हुआ था।इनके पिता का नाम सालिगराम था,जो गांव के मुखिया थे।धन सिंह मेरठ की सदर कोतवाली में पुलिस मे कोतवाल थे। पुलिस में कोतवाल तथा सेना में सूबेदार का पद भारतियों के लिए उच्च पद था।इस पद से ऊपर अंग्रेज अधिकारी नियुक्त रहते थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी के नेतृत्व में ब्रिटेन ने पूरे भारत पर अधिकार कर लिया था ।अंग्रेजो का शासन इतना फैल गया कि उनके शासन में सूर्य अस्त ही नहीं रहता था, वे विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बन गए। अंग्रेजों ने भारतीयों से बड़ा व्यापार छीन कर अपने हाथ में ले लिया तथा भारतीय व्यापारियों को जमींदारे बेच दिए। साहूकारे के लाइसेंस दे दिये। लगान व ब्याज बडी कठोरता से वसूला जाने लगा। उस वसूली के लिए जिस पुलिस का उपयोग अँग्रेज कर रहे थे, वे किसानों के ही बेटे थे। जिस सेना के बल पर अंग्रेजों ने भारत जीता था वे सिपाही भी भारतीय किसान के ही बेटे थे,अतः जब अंग्रेजों की दमनकारी नीति से किसानों को दर्द हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया सेना व पुलिस मे बंदूक थामे, उसके बेटो में होनी स्वभाविक थी। रही - सही कसर डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति ने पूरी कर दी। दारूल इस्लाम के स्थान पर दारूल हरब बन गया था। इसलिए वहाबी भी सक्रिय थे, परंतु हथियार तो सेना व पुलिस के पास थे, जब तक भारतीय सेना अंग्रेजों के विरुद्ध न खडी हो, कोई प्रयास कामयाब नहीं था। वो दिन आया 10 मई 1857 को, जब मेरठ की भारतीय सेना, मेरठ की पुलिस व मेरठ के किसान एक साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार से भिड़ गए। मेरठ में 8 मई को उन सैनिकों को हथियार जब्त कर कैद कर लिया गया था,जिन्होंने गाय व सूअर की चर्बी लगे कारतूस लेने से इंकार कर दिया था। इन गिरफ्तार सिपाहियों को मेरठ डिवीजन के मेजर जनरल डब्ल्यू एच हेविट ने 10-10 वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड सुना दिया था।
10 मई को चर्च के घंटे के साथ ही भारतीय सैनिकों की गतिविधियाँ प्रारंभ हो गई।शाम 6.30 बजे भारतीय सैनिकों ने ग्यारहवीं रेजिमेंट के कमांडिंग आफिसर कर्नल फिनिश व कैप्टन मेक डोनाल्ड जो बीसवीं रेजिमेंट के शिक्षा विभाग के अधिकारी थे, को मार डाला तथा जेल तोडकर अपने 85 साथियों को छुड़ा लिया। सदर कोतवाली के कोतवाल धन सिंह गुर्जर तुरंत सक्रिय हो गए, उन्होंने तुरंत एक सिपाही अपने गांव पांचली जो कोतवाली से मात्र पांच किलोमीटर दूर था भेज दिया। पांचली से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर सीकरी गांव था, तुरंत जो लोग संघर्ष करने लायक थे एकत्र हो गए और हजारों की संख्या में धनसिंह कोतवाल के भाईयों के साथ सदर कोतवाली में पहुंच गए। मेरठ के आसपास के गांवों में प्रचलित किवदंती के अनुसार इस क्रांतिकारी भीड़ ने धनसिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोडकर 839 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। मेरठ शहर व कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बंधित था उसे यह क्रांतिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। क्रांतिकारी भीड़ ने मेरठ में अंग्रेजों से सम्बन्धित सभी प्रतिष्ठान जला डाले थे। सूचना का आदान-प्रदान न हो, टेलिग्राफ की लाईन काट दी थी, मेरठ से अंग्रेजी शासन समाप्त हो चुका था, कोई अंग्रेज नहीं बचा था। अंग्रेज या तो मारे जा चुके थे या कहीं छिप गये थे।
बरेली में बंगाल नेटिव इंफेंट्री के सिपाहियों ने क्रांति का बिगुल बजा दिया तथा बख्त खां जो सेना में सूबेदार था तथा नजीबुद्दौला के परिवार से था,को अपना नेता चुन लिया। सेनापति बख्त खान बरेली से सेना लेकर दिल्ली की ओर चल दिया। सेना दिल्ली ना पहुंचे, उसे रोकने के लिए अंग्रेजों ने गढ़ मुक्तेश्वर में बने नावों के पुल को तोड दिया। परंतु राव कदम सिंह ने 27 जून को नावों की व्यवस्था कर बख्त खान की सेना को गंगा पार करा दी।
यदि 27 जून को यह सेना गंगा पार कर दिल्ली नही पहुंचती तो दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार जुलाई के प्रथम सप्ताह में ही हो जाता। लेकिन सेना के एक जुलाई को दिल्ली पहुंच जाने के बाद दिल्ली ने 20 सितंबर सन् 1857 तक अंग्रेजों से संघर्ष किया।
तब मेरठ के तत्कालीन कलेक्टर आरएच डनलप ने मेजर जनरल हैविट को 28 जून 1857 को पत्र लिखा कि यदि हमने शत्रुओं को सजा देने और अपने समर्थकों को मदद देने के लिए जोरदार कदम नहीं उठाए तो क्षेत्र कब्जे से बाहर निकल जायेगा।
तब अंग्रेजों ने खाकी रिसाला के नाम से मेरठ में एक फोर्स का गठन किया जिसमें 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। इनके अतिरिक्त 100 रायफल धारी तथा 60 कारबाईनो से लैस सिपाही थे। इस फोर्स को लेकर सबसे पहले क्रांतिकारियों के गढ़ धनसिंह कोतवाल के गांव पांचली, नगला, घाट गांव पर कार्रवाई करने की योजना बनी।
सबसे बडी बात यह रही कि इस हमलें में तोप का प्रयोग किया गया। कहने का अर्थ यह है कि अब अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को और अपने को दो अलग-अलग शासकों के मध्य युद्ध में कोतवाल धन सिंह को क्रांतिकारी पक्ष का मान लिया। वर्ना सामान्य घटनाक्रम में कितना भी बडा अपराधी हो, सरकार तोप जैसे बड़े हथियार का इस्तेमाल नहीं करती।
धनसिंह कोतवाल पुलिस में थे, वह क्रांतिकारी गतिविधियों में राव कदम सिंह के सहयोगी थे। अतः उनके पास भी अपना सूचना तंत्र था। धनसिंह को इस हमले की भनक लग गई। वह तीन जुलाई की शाम को ही वह अपने गांव पहुंच गए। धनसिंह ने पांचली, नंगला व घाट के लोगों को हमले के बारे में बताया और तुरंत गांव से पलायन की सलाह दी। तीनों गांव के लोगों ने अपने परिवार की महिलाएं, बच्चों, वृद्धों को अपनी बैलगाड़ियो में बैठाकर रिश्तेदारों के यहाँ को रुखसत कर दिया। धनसिंह जब अपनी हबेली से बाहर निकले तो उन्होंने गांव की चौपाल पर अपने भाई बंधुओं को हथियारबंद बैठे देखा। ये वही लोग थे जो धनसिंह के बुलावे पर दस मई को मेरठ पहुंचे थे। धनसिंह ने उनसे वहां रूकने व एकत्र होने का कारण पूछा। जिस पर उन्होंने जबाब दिया कि हम अपने जिंदा रहते अपने गांव से नहीं जायेंगे, जो गांव से जाने थे वो जा चुके हैं। आप भी चले जाओ। धन सिंह परिस्थिती को समझ गए कि उनके भाई बंधु साका के मूड में आ गए हैं। जो लोग उनके बुलावे पर दुनिया की सबसे शक्तिशाली सत्ता से लड़ने मेरठ पहुंच गए थे, उन्हें आज मौत के मुंह में छोड़कर कैसे जाएं? धनसिंह ने अपना निर्णय ले लिया। उन्होंने अपने गाँव के क्रांतिकारियों को हमले का मुकाबला करने के लिए जितना हो सकता था मोर्चाबंद कर लिया।
चार जुलाई सन् 1857 को प्रात:ही खाकी रिसाले ने गांव पर हमला कर दिया। अँग्रेज अफसर ने जब गाँव में मुकाबले की तैयारी देखी तो वह हतप्रभ रह गया। वह इस लड़ाई को लम्बी नहीं खींचना चाहता था, क्योंकि लोगों के मन से अंग्रेजी शासन का भय निकल गया था। कहीं से भी रेवेन्यू नहीं मिल रहा था और उसका सबसे बड़ा कारण था धनसिंह कोतवाल व उसका गांव पांचली। अतः पूरे गांव को तोप के गोलो से उड़ा दिया गया। धनसिंह कोतवाल की कच्ची मिट्टी की हवेली धराशायी हो गई। भारी गोलीबारी की गई। सैकड़ों लोग शहीद हो गए, जो बच गए उनमें से 40 कैद कर लिए गए और इनमें से 36 को मिल्ट्री कमीशन के माध्यम से फांसी दे दी गई। मृतकों की किसी ने शिनाख्त नहीं की। इस हमले के बाद धनसिंह कोतवाल की कहीं कोई गतिविधि नहीं मिली। सम्भवतः धनसिंह कोतवाल भी इसी गोलीबारी में अपने भाई बंधुओं के साथ शहीद हो गए। उनकी शहादत को शत् -शत् नमन।