आज भीमराव अंबेडकर जी का जन्म दिन है। अम्बेडकर जी ने जीवन भर दलित शोषित व पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए संघर्ष किया। भारत के संविधान में समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था को लागू किया। परन्तु देश के संविधान को लागू होने के 69 (सन् 1950-2019) वर्ष बाद भी स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं है। हमें शक्तिशाली भारत के लिए अम्बेडकर जी के द्वारा बताए गए प्रावधानों को सशक्त रूप से लागू करना होगा। समाज के अलग-थलग पडे वर्गो के प्रतिनिधित्व के साथ-साथ समाज में व्याप्त गरीबी को दूर करने के लिए भी कठोर कदम उठाने होंगे। हालांकि देश को आजादी के 70 सालों में गरीबी को कम करने के लिए प्रयास हुए हैं परन्तु उन प्रयासों की रफ्तार इतनी धीमी रही है कि वो होकर भी ना हुए जैसे हो गए हैं। जैसे मजदूरों के लिए मनरेगा, किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड, लघु जोत के किसानों के लिए 6 हजार रुपये प्रति वर्ष तथा आयुष्मान योजना के अंतर्गत गरीबों का इलाज, जेनेटिक दवाईयों के स्टोर, 12 रूपए प्रति वर्ष का बीमा, गरीबों के लिए मकान, शौचालय आदि ऐसे कार्य है जिनके प्रारंभ होने से गरीब लोगों के जीवन में परिवर्तन दिखाई देने लगा है। वर्तमान लोकसभा के चुनाव में एक राजनीतिक दल के द्वारा 72000 रूपये प्रति वर्ष गरीब लोगों को देने की बात अपने घोषणा पत्र में शामिल करने से ऐसा महसूस होने लगा है कि गरीबी का अंत निकट है।
सही मायने में भारत के शासन व प्रशासन में प्रतिनिधित्व के साथ-साथ गरीबी मुक्त भारत बने, वो ही अम्बेडकर जी को सच्ची श्रद्धांजलि है। जब भारत में प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण लागू किया गया तो उसको तीन श्रेणियों में बांटा गया
-1 -विधायिका में आरक्षण।
2- शिक्षा के क्षेत्र में जो सरकार के शिक्षा संस्थान हो।
3- सरकारी नौकरियों से संबंधित जो शासकीय पद है।
सबसे पहले नम्बर का आरक्षण विधायिका में सन् 1950 में यह कहकर लागू किया था कि दस वर्ष बाद इसकी समीक्षा होगी, आवश्यकता हुई तो आगे बढाया जा सकता है, तब से सन् 1960, 1970,1980, 1990, 2000, 2010 में यह आरक्षण दस-दस वर्षो के लिए आगे बढाया जा चुका है, अब 2020 में फिर समीक्षा होगी।
इस आरक्षण के तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के चुने हुए प्रतिनिधियों का यह कर्तव्य है कि वो अन्य दो प्रकार के आरक्षण को लागू कराने में अपना योगदान दे तथा गरीबी को दूर करने के लिए चलाई जा रही योजनाओं के क्रियान्वयन को गति प्रदान करने में अपना योगदान दे। परन्तु आरक्षण के माध्यम से जो विधायक या सांसद चुन कर जाते हैं वो अपने राजनीतिक दलों के नेताओं के दबाव में इस कदर आ जाते हैं कि इस आरक्षण के मिलने के मकसद पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है।
लोकसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में मंत्री प्रकाश जावडेकर जी ने बताया कि 23 आईआईटी के कुल 6043 फैकल्टी मेम्बरस में से 149 एससी व 21 एसटी केटेगरी के प्रोफेसर हैं। अतः कुल 2.8 %फैकल्टी मेम्बरस रिजर्व केटेगरी से है।
481 हाईकोर्ट जजों में से सिर्फ 15 अनुसूचित जाति व 5 अनुसूचित जनजाति के जज है। सुप्रीम कोर्ट में एससी-एसटी का प्रतिनिधित्व आज शून्य है।
सन् 2018 में दि प्रिंट द्वारा फाईल की गई आरटीआई के जबाव में भारत सरकार ने बताया कि भारत सरकार के 81 सेक्रेटरी लेवल अफसरों में केवल 2 एससी वर्ग के हैं, 3 एसटी वर्ग से तथा ओबीसी वर्ग से शून्य है।
ऐडिसनल सैकररेटरी 75 में से 6 एससी, 4 एसटी व शून्य ओबीसी।
जोइननट सैकररेटरी 295 में से 16 एससी, 9 एसटी व 13 ओबीसी।
सामान्य श्रेणी के प्रोफेसर 95.2%,ऐसोसिएट प्रोफेसर 92.9%,असिस्टेंट प्रोफेसर 66.27%।
अनुसूचित जाति के प्रोफेसर 3.47%,एसोसिएट प्रोफेसर 4.96%,असिस्टेंट प्रोफेसर 12.02%।
अनुसूचित जनजाति के प्रोफेसर 0.7%,एसोसिएट प्रोफेसर 1.3%,असिस्टेंट प्रोफेसर 5.46%।
ओबीसी वर्ग का कोई भी प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी में रिजर्वेशन के तहत अब तक ऐपोइंटमेंट नहीं किया गया है, असिस्टेंट प्रोफेसर 14.38%।
2012 Don't रिपोर्ट के अनुसार ओबीसी की कुल जनसंख्या 41.1%है परन्तु GPA सर्विसेज में उनका प्रतिनिधित्व केवल 8.4%है और GPB सर्विसेज में 6.1%है।
अनुसूचित जनजाति वर्ग GPA में 4.5%और GPB में 5.7%है। जबकि जनसंख्या में यह वर्ग 8.5%है।
गुरुवार, 13 जून 2019
भीम राव अम्बेडकर 14 अप्रैल सन् 2019 पर विशेष -अशोक चौधरी
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