सोमवार, 25 नवंबर 2019

भगवान् देवनारायण


भगवान देव नारायण
इनका बचपन का नाम उदय सिंह , जन्म सन् 1243
पिता का नाम सवाई भोज
माता का नाम सेडू खटानी/सेंदू गुजरी
दादा का नाम बाघ सिंह
पत्नी का नाम पीपल दे
घोड़े का नाम लीला गर
भिनाय (अजमेर) के ठाकुर के साथ युद्ध में पिताजी शहीद हो गए।
देवास (मध्य प्रदेश) में इनके मामा थे।
आसींद (भीलवाडा) में जन्म हुआ।
बड़े होकर भिनाय के ठाकुर को मार डाला।
इनके प्रमुख मंदिर
आसींद (भीलवाडा) में प्रमुख मंदिर है, जहां ईट व नीम की पत्ती की पूजा होती हैं।
देव धाम जोध पुरिया जिला टोंक, वनस्थली विद्यापीठ।
देव डूंगरी (चित्तौड़) राणा सांगा ने मन्दिर बनवाया।
मृत्यु देवमाली (ब्यावर अजमेर) इसे बगड़ावत गांव कहा जाता है। यहां इनके पिता सवाई भोज का भी मन्दिर है।
मेला लगता है भाद्र शुक्ल सप्तमी को।
भारत सरकार की ओर से सन् 1992 में पांच रुपए का देवनारायण की फड का डाक टिकट जारी हुआ।

सोमवार, 4 नवंबर 2019

पारिवारिक परिवेश एवं बचपन

लेखक अशोक चौधरी मेरठ।
व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में उसके बचपन के समय के पारिवारिक परिवेश का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। बचपन में  अपने चारों तरफ जो भी वातावरण वह देखता है, आगे चलकर वह वैसा ही बन जाता है,  कोई बच्चा अपने आसपास अपने परिवार या समाज के लोगो को जिस प्रकार का जीवन यापन करते देखता है, उसका जीवन उस वातावरण से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। बड़े लोग कहते है कि बच्चा भगवान का रूप होता है, समाज उसे जिस रूप में ढालना चाहे, वह ढल जाता है।
"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत चमकी तिन वैसी।"
हमारे देश में लव कुश जैसे बच्चे हुए है जिन्होंने अपने समय की सबसे शक्तशाली सत्ता की चुनौती को स्वीकार कर भगवान राम के अश्वमेघ के घोड़े को रोक लिया, अभिमन्यु जैसे शूरवीर हुए, जिसने महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह तोड़ते समय बड़े बड़े महारथियों को ललकार कर आश्चर्यचकित कर दिया। वर्तमान के आधुनिक युग में अपने धर्म की खातिर हकीकत राय ने तथा गरू गोविंद सिंह के दो छोटे बच्चों  जोरावर सिंह व फ तह सिंह
ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, परन्तु आह तक नहीं भरी। यह सब पराक्रम इन बच्चो की परवरिश जिस परिवेश में की गई थी, उसके कारण ही था। यह वह समय था जब देश में लोकतंत्र नहीं था, राजतंत्र से शासन चल रहा था,  इस समय जो शासन तंत्र था उसकी बनावट ऐसी थी कि वह अपनी आबादी के प्रत्येक हिस्से को छूता था। जैसे शासन चलाने के लिए दो अंग सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जिसमें एक सेना तथा दूसरा वित्तीय प्रबन्धन। समाज की बनावट में राजा, किसान व पशुपालक लोग जनता में थे। आज जैसे उद्योग नहीं थे, अत कर (tex) किसान से लगान के रूप में वसूला जाता था, कहने का मतलब यह है कि किसान शासन के वित्तीय प्रबन्धन की रीढ़ था, सेना में सैनिक भी किसानों के बेटे थे, आज जैसे आवागमन के साधन नहीं थे, आवागमन का आधार पशु थे। जैसे हाथी, घोड़ा, बेल आदि। ये सब साधन पशुपालक समाज से आते थे। अत पूंजी प्रत्येक वर्ग में घूम रही थी। चारों तरफ खुशहाली थी।
अंग्रेजो के भारत आने के बाद उद्योग बड़ी तेजी से पनपे। आवागमन के साधन पशु से हटकर मोटर, कार, मोटरसाईकिल बन गए। सेना में  हाथी, घोड़े व बेलो की जगह लोहे से बने टेंको व गाडियों ने ले ली। शासन का वित्तीय प्रबन्धन भी किसान से हट कर व्यापारी पर चला गया। किसान को भी खेती करने के लिए पशु के स्थान पर ट्रेक्टर मिल गया। इस नए तरीके ने सम्पूर्ण पूंजी का बहाव पशुपालक समाज से हटकर कृषि यंत्र व मोटर कार मोटरसाईकिल बनाने वाली कंपनी की ओर कर दिया । जब शासन चलाने के लिए पैसा व्यापारी से टैक्स के रूप में आने लगा तो किसान हित से सरकार का ध्यान हट गया। वहा गरीबी व भुखमरी फैलने लगी। समाज में शिक्षा की जरूरत महसूस होने लगी।
सन्1848 में सावत्रि बाई फूले ने महाराष्ट्र में लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रयास करना प्रारंभ कर दिया था। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम ने देश के पौरुष को झकझोर दिया था।सन् 1875 को स्वामी दयानंद जी ने आर्य समाज की स्थापना कर देश में जन जागरण के माध्यम से समाज के परिवेश को बदलने की कोशिश प्रारम्भ कर दी थी, सन् 1885 को कोंग्रेस की स्थापना हो गई थी। भारत की आजादी के लिए प्रयास पुन चलने लगे थे, किसान पर संकट दिखने लगा था, इसी कारण सन् 1916 में राजस्थान के बिजौलिया में किसान नेता विजय सिंह पथिक द्वारा आंदोलन किया गया, सन 1918 में गुजरात के खेड़ा में तथा 1928 में बारडोली में सरदार पटेल द्वारा किसान आंदोलन किया गया। सन् 1925 में आरएसएस के संस्थापक आदरणीय हेडगेवार जी ने छोटे छोटे बच्चों को एकत्रित कर शाखा के माध्यम से देश के लिए कार्य करने की भावना का परिवेश देश में बने, उसके लिए कार्य प्रारम्भ कर दिया था।
15 अगस्त सन् 1947 को देश आजाद हुआ और 26 जनवरी सन् 1950 को हमारा संविधान लागू हो गया। अब से पहले भारतीय समाज का परिवेश एक नियत खांचे में था, जिसमें राजा जमींदार, किसान और मजदूर थे जो हजारों जातियों में विभक्त थे। देश की मजदूर जातियां किसान के साथ बंधी थी, अंग्रेजो के आने से जो ओद्यौगिक यूनिट लगी थी लोग उसमे भी मजदूरी करने लगे थे।
अब जो परिवर्तन हुआ, उसमे सबसे अहम था कि भारत के प्रत्येक नागरिक को मताधिकार मिल गया। एक वोट, एक आदमी, एक कीमत। समाज में आर्थिक व सामाजिक बराबरी के लिए शासन, प्रशाशन व शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिनिधित्व/आरक्षण की व्यवस्था की गई। ऐसा होने के कारण भारतीय समाज का निश्चित परिवेश जो सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा था, उसमे परिवर्तन हुआ। मजदूर जातियों के लोग जब शासन के उच्च पदों पर आसीन हुए तथा शिक्षा का प्रसार उनके परिवारों में हुआ, तो जो उच्च पारिवारिक परिवेश पहले एक सीमित दायरे में था उसका विस्तार हो गया, परन्तु किसान व पशुपालक मजदूर गरीबी के गर्थ में चला गया। सन 1960 में हरित क्रांति के कारण किसान को लाभ हुआ। सन् 1970 में श्वेत क्रांति (दुग्ध) का प्रारम्भ हो गया। जिसका प्रभाव पशुपालक समाज के लिए लाभकारी रहा। परन्तु देश में जैसे जैसे अमीरों की संख्या बढ़ी, उससे ज्यादा तेजी से गरीबों की संख्या बढ़ती गई। सन् 1995 से लेकर 2011 तक करीब तीन लाख किसानों ने आत्म हत्या कर ली है। जो आज तक जारी है। मजदूर वर्ग का पलायन शहर की ओर को बढ़ गया। शहर में झुग्गी झोपड़ी की बस्तियां बढ़ गई।
इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार ने समय समय पर आयोग बनाए, जिसमें  सन 2006 में स्वामी नाथन आयोग ने किसानों के विषय में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कहा, किसानों के कर्ज भी माफ हुए। सन् 2006 में ही सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में बताया कि देश में मुस्लिमो की स्थिति दलितों से भी खराब बताई गई है। सन् 2006 में ही 6 व 7 पे कमिशन की रिपोर्ट भी अा गई। सरकारी कर्मचारियों के लिए पे कमिशन की रिपोर्ट तो लागू हो गई, परन्तु किसान हित के लिए स्वामी नाथन आयोग की रिपोर्ट आज तक लागू ना हो सकी।
अर्जुन सेन गुप्ता कमिशन ने अप्रैल 2009 में अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश की 75% आबादी भूखमरी के कगार पर है। इससे निबटने के लिए भारत सरकार ने मनरेगा योजना का प्रारम्भ किया।
जब देश की इतनी बड़ी आबादी गरीबी में जी रही है तो इन लोगो के परिवार का परिवेश का स्तर क्या होगा? इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। शायद यही कारण है कि वर्तमान में देश के प्रत्येक क्षेत्र में भ्रटाचार का बोलबाला है। जिस परिवार का मुखिया भ्रटाचार में लिप्त हो, उसका पारिवारिक परिवेश उत्तम कैसे हो सकता है। जिस परिवार में बचपन भूखा हो, कुपोषण से ग्रस्त हो, उसकी जवानी से क्या उम्मीद की जा सकती है। यदि माता को गर्भावस्था के समय समुचित खाना ना मिले , वह कुपोषण से ग्रस्त हो,तो बच्चे के दिमागी व शारीरिक रूप से कमजोर होने के अवसर ज्यादा हो जाते है।
आज की सरकार इस ओर ध्यान दे रही है, गरीबों के उत्थान के लिए कई योजनाएं चलाई गई है। किसानों के लिए भी प्रयास किए गए है।
उम्मीद है आने वाला समय खुशहाली भरा होगा तथा परिवार का परिवेश भी बच्चों के लिए अनुकूल बनेगा।
समाप्त