धाकड़ एवं किरार जाति की उत्पत्ति के संबंध में परिपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी एवं साक्ष उपलब्ध नहीं है, कुछ विचारों एवं लेखकों का मत है कि धाकड़ और किरार चौहान गुर्जर क्षत्रिय जाति की उपजाति है या छत्रिय वंशजों में से बने हुए एक समूह का नाम है, इस समूह की कुलदेवी मां अन्नपूर्णा को माना गया है, सोलिया का सविस्तार विवरण देने के पूर्व #नागरचार (चार्या) की पोथी जो प्राचीन डिंगर लिपि में लिपिबद्ध है, के तथ्यों का उल्लेख करना चाहूंगा, नागरचार की पोती का विवरण-
गुर्जर चौहान क्षत्रियों की 24 शाखाओं में से एक शाखा दाईमां चौहान मे राजा धरणीधर हुए, उन्होंने शस्त्र छोड़कर कृषि का कार्य करना प्रारंभ किया, श्री धरणीधर से ही धाकड़ समाज का नामकरण हुआ, राजा धरणीधर के 4 पुत्र थे
1. सारपाल
2. वीरपाल
3. विशु पाल
4. बावनिया,
जिनके उत्तरोत्तर वंश से चार शाखाएं हुई
1.1. शारपाल – सौलिया मेवाड़ा धाकड़ 2. वीर पाल – नागर धाकड़ (नागर चार) 3. विशुपाल – मालवी धाकड़ 4. बावनिया – पुरवीया धाकड़ (किरार) गौ्त्र विवरण – चार शाखाओं की कुल 444 गौत्र है नागर की 144 गौत्र क्षत्रिय कुलों के नाम से हैं। ऐतिहासिक तथ्यों एवं पोथियों के विलेखों से इतना तो निर्विवाद है कि धाकड़ जाति की उत्पत्ति स्थाान राजस्थांन का मेवाड़ क्षेत्र है। कृषि व्यवसाय को अपनाकर वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसते रहे। विशेष का भी नामकरण पर प्रभाव पड़ा जैसे – जो समूह नागर चाल – बुंदी की सीमा व नागौर में जाकर बसे वे ‘नागर’ कहलाये। मालवा में बसे ‘मालवी’ एवं पूर्व-उत्तगरांचल में जाकर बसे वे ‘किरार’ (किराड़) कहलाये। इस तरह समाज के पूर्वजों, कुल ऋषियों एवं स्थान के अनुसार गौत्र एवं शाखाओं का नामकरण होता रहा।
किराड एक खेती करने वाली मेहनत कश जाति है,जो मध्यप्रदेश और राजस्थान तथा नर्मदा नदी तक बसी हुई है।किराड जाति का गुर्जर जाति से बडा गहरा नाता रहा है,बल्की यू कहिए कि किराड जाति गुर्जर जाति का ही एक हिस्सा रही है।
कन्नोज के गुर्जर प्रतिहार राजाओं के पतन के बाद विदेशी तुर्क आक्रमणकारियों का सामना अजमेर के चौहान शासको ने किया।इन चौहान शासको में सम्राट बिसलदेव(सन् 1150-1164) सबसे पहले चौहान सम्राट हुए हैं। बीसलदेव के समय में गजनी की मुस्लिम सेना वर्तमान राजस्थान में शेखावाटी में स्थित भवेरा गांव तक आ पहुंची थी। लेकिन बीसलदेव ने अपनी सेना तथा सहयोगियों की मदद से इन मुस्लिम सेनाओं को अटक नदी के पार खदेड दिया तथा हिमालय से लेकर विंध्याचल तक का क्षेत्र विदेशी मुस्लिम हमलावरों से खाली करा लिया।बीसलदेव का दिल्ली में एक शिलालेख 9 अप्रैल सन् 1163 का प्राप्त हुआ है,जिसको शिवालिक स्तम्भ लेख भी कहते हैं।इस शिलालेख में बीसलदेव के द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन है।बीसलदेव ने ही दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर को अपने अधीन कर लिया।बीसलदेव साहित्य प्रेमी, साहित्यकारों का आश्रय दाता था,बीसलदेव को कवि बांधव की उपाधि प्राप्त थी,वह हरि वेली नाटक के रचनाकार थे। इस समय चौहान राज्य की सीमा शिवालिक पहाड़ी सहारनपुर उत्तर प्रदेश से लेकर अटक नदी तक थी।
सम्राट बीसलदेव ने तुर्क हमलावरों से लडने के लिए अपने क्षेत्र के संघर्षशील किसान समूहों को एकत्रित किया था, क्योकि अजमेर के चौहान गुर्जर ही थे अतः किराड़ लोग भी गुर्जरों की एक शाखा कहलाते रहें हैं। गुर्जर राज-मरु गुर्जर पृथ्वीराज चौहान अथवा पृथ्वीराज चौहान तृतीय अथवा राय पिथोरा की राज्यसभा में 30 प्रतिनिधि इस धाकड समूहों के थे।
ऐसा इतिहास कारो का मानना है कि बीसलदेव चौहान तथा पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल के मध्य (सन् 1150-1192) ही दिल्ली के आसपास दादरी दनकौर के क्षेत्र में 360 गांव भाटी गुर्जर तथा कैराना के आसपास 84 गांव चौहान गुर्जरों को जागीर देकर बसाया गया है।
किराड जाति के चौहान गोत्र के लोग भी तभी से किराड़ जातिय समूह में शामिल हुए थे
पृथ्वीराज चौहान के दरबारी जयानक ने पृथ्वीराज विजय नामक एक ग्रंथ लिखा जिसमें पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर राज और मरू गुर्जर लिखा है।
पृथ्वीराज चौहान के बाद एक लम्बा संघर्ष भारतियों ने किया,आज गुर्जर और किराड़ दोनों जातियां ओबीसी मे आती है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान गुर्जर और किराड़ दोनों जातियों के सिरमौर है। आज पुनः सन् 1192 के पृथ्वीराज चौहान के वैभव के रूप में उपस्थित हैं।
समाप्त।