सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

धाकड़ और किराड (किरार ) और गुर्जर जाति में सम्बन्ध- लेखक अशोक चौधरी मेरठ

धाकड़ एवं किरार जाति की उत्पत्ति के संबंध में परिपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी एवं साक्ष उपलब्ध नहीं है, कुछ विचारों एवं लेखकों का मत है कि धाकड़ और किरार चौहान गुर्जर क्षत्रिय जाति की उपजाति है या छत्रिय वंशजों में से बने हुए एक समूह का नाम है, इस समूह की कुलदेवी मां अन्नपूर्णा को माना गया है, सोलिया का सविस्तार विवरण देने के पूर्व #नागरचार (चार्या) की पोथी जो प्राचीन डिंगर लिपि में लिपिबद्ध है, के तथ्यों का उल्लेख करना चाहूंगा, नागरचार  की पोती का विवरण-
 गुर्जर चौहान क्षत्रियों की 24 शाखाओं में से एक शाखा दाईमां चौहान मे  राजा धरणीधर हुए, उन्होंने शस्त्र छोड़कर कृषि का कार्य करना प्रारंभ किया, श्री धरणीधर से ही धाकड़ समाज का नामकरण हुआ, राजा धरणीधर के 4 पुत्र थे
 1. सारपाल
 2. वीरपाल
 3. विशु पाल
 4. बावनिया,
  जिनके उत्तरोत्तर वंश से चार शाखाएं हुई
  1.1. शारपाल – सौलिया मेवाड़ा धाकड़ 2. वीर पाल – नागर धाकड़ (नागर चार) 3. विशुपाल – मालवी धाकड़ 4. बावनिया – पुरवीया धाकड़ (किरार) गौ्त्र विवरण – चार शाखाओं की कुल 444 गौत्र है नागर की 144 गौत्र क्षत्रिय कुलों के नाम से हैं। ऐतिहासि‍क तथ्यों एवं पोथियों के विलेखों से इतना तो निर्विवाद है कि धाकड़ जाति की उत्पत्ति स्थाान राजस्थांन का मेवाड़ क्षेत्र है। कृषि व्यवसाय को अपनाकर वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसते रहे। विशेष का भी नामकरण पर प्रभाव पड़ा जैसे – जो समूह नागर चाल – बुंदी की सीमा व नागौर में जाकर बसे वे ‘नागर’ कहलाये। मालवा में बसे ‘मालवी’ एवं पूर्व-उत्तगरांचल में जाकर बसे वे ‘किरार’ (किराड़) कहलाये। इस तरह समाज के पूर्वजों, कुल ऋषियों एवं स्थान के अनुसार गौत्र एवं शाखाओं का नामकरण होता रहा।

किराड एक खेती करने वाली मेहनत कश जाति है,जो मध्यप्रदेश और राजस्थान तथा नर्मदा नदी तक बसी हुई है।किराड जाति का गुर्जर जाति से बडा गहरा नाता रहा है,बल्की यू कहिए कि किराड जाति गुर्जर जाति का ही एक हिस्सा रही है।
कन्नोज के गुर्जर प्रतिहार राजाओं के पतन के बाद विदेशी तुर्क आक्रमणकारियों का सामना अजमेर के चौहान शासको ने किया।इन चौहान शासको में सम्राट बिसलदेव(सन् 1150-1164) सबसे पहले चौहान सम्राट हुए हैं। बीसलदेव के समय में गजनी की मुस्लिम सेना वर्तमान राजस्थान में शेखावाटी में स्थित भवेरा गांव तक आ पहुंची थी। लेकिन बीसलदेव ने अपनी सेना तथा सहयोगियों की मदद से इन मुस्लिम सेनाओं को अटक नदी के पार खदेड दिया तथा हिमालय से लेकर विंध्याचल तक का क्षेत्र विदेशी मुस्लिम हमलावरों से खाली करा लिया।बीसलदेव का दिल्ली में एक शिलालेख 9 अप्रैल सन् 1163 का प्राप्त हुआ है,जिसको शिवालिक स्तम्भ लेख भी कहते हैं।इस शिलालेख में बीसलदेव के द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन है।बीसलदेव ने ही दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर को अपने अधीन कर लिया।बीसलदेव साहित्य प्रेमी, साहित्यकारों का आश्रय दाता था,बीसलदेव को कवि बांधव की उपाधि प्राप्त थी,वह हरि वेली नाटक के रचनाकार थे।  इस समय चौहान राज्य की सीमा शिवालिक पहाड़ी सहारनपुर उत्तर प्रदेश से लेकर अटक नदी तक थी। 

सम्राट बीसलदेव ने तुर्क हमलावरों से लडने के लिए अपने क्षेत्र के संघर्षशील किसान समूहों को एकत्रित किया था,  क्योकि अजमेर के चौहान गुर्जर ही थे अतः किराड़ लोग भी गुर्जरों की एक शाखा कहलाते रहें हैं। गुर्जर राज-मरु गुर्जर पृथ्वीराज चौहान अथवा पृथ्वीराज चौहान तृतीय अथवा राय पिथोरा की राज्यसभा में 30 प्रतिनिधि इस धाकड समूहों के थे।

ऐसा इतिहास कारो का मानना है कि बीसलदेव चौहान तथा पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल के मध्य (सन् 1150-1192) ही दिल्ली के आसपास दादरी दनकौर के क्षेत्र में 360 गांव भाटी गुर्जर तथा कैराना के आसपास 84 गांव चौहान गुर्जरों को जागीर देकर बसाया गया है।
किराड जाति के चौहान गोत्र के लोग भी तभी से किराड़ जातिय समूह में शामिल हुए थे 
पृथ्वीराज चौहान के दरबारी जयानक ने पृथ्वीराज विजय नामक एक ग्रंथ लिखा जिसमें पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर राज और मरू गुर्जर लिखा है।
पृथ्वीराज चौहान के बाद एक लम्बा संघर्ष भारतियों ने किया,आज गुर्जर और किराड़ दोनों जातियां ओबीसी मे आती है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान गुर्जर और किराड़ दोनों जातियों के सिरमौर है। आज पुनः सन् 1192 के पृथ्वीराज चौहान के वैभव के रूप में उपस्थित हैं।
समाप्त।

12 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ सही है गुर्जर साहब शिवराज सिंह दयमा चौहान व मै कुरूबंशी धाकड़ हूं

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  2. भगवान राम के भाई लक्ष्मण के एक पड़पोते मालव थे जिन्होंने मूलस्थान (वर्तमान में पाकिस्तान का मुल्तान) की स्थापना की।

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  3. चौहानों को मालव क्षत्रियों से जोड़ने पर श्री विंध्यराज चौहान आदि कुछ विद्वानों ने अपने मत रखे हैं। इतना तो लगभग निश्चित है कि चौहानों के मूलपुरुष “चाहमान” छठी सदी ईस्वी के मालवदेशीय क्षत्रियों के समकालीन थे और उनके सामंत या सहयोगी रहे ।

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  4. चाहमान के नाम आ जाने के बाद फिर से चौहानों की उत्पत्ति पर पीछे की ओर जाकर उन्हें मालव राजर्षि कहा गया

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  5. चन्द्रमहासेन चौहान के धौलपुर शिलालेख वि.स. 898 में ही सबसे पहले विक्रम संवत्सर का ऐसा नाम लेकर उसका प्रयोग हुआ है| विक्रम सम्वत मालव सम्राट विक्रमादित्य के नाम से है । फिर 12वीं सदी के पृथ्वीराज (द्वितीय) ने अपने मेनाल शिलालेख में मालवेश संवत् का प्रयोग किया है ।

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  6. विग्रहराज चौहान चतुर्थ का निम्लिखित शिलालेख वि.स. 1210-20 (12वीं सदी ईस्वी), चौहानों को मालव कहता है (दूसरी पंक्ति)- दावे की दूसरी पंक्ति में जिसे “तस्मात्स मालव(ब) दंडयोनिर भूज्जनस्य”

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  7. उत्तर मालव शब्द युक्त दूसरे सबसे पुराने अभिलेख में है – तीसरी सदी ईस्वी का नान्दसा यूप । ये अजमेर के नीचे दक्षिण पूर्वी राजस्थान (भीलवाड़ा) से है मिला है । इसकी पुष्टि 987 ई० के एक शिलालेख से होती है जो कि दक्षिण पूर्वी राजस्थान के उनियारा, टोंक से मिलता है [एपिग्राफिया इंडिका खंड 34 , पृष्ठ 79] और उस क्षेत्र में मालवनगर के होने की बात करता है । यही स्थिति दक्षिणी व पूर्वी राजस्थान से गुप्त काल में मिले कुछ अन्य शिलालेखों से झलकती है, जिनमें मालव सम्वत का प्रयोग हुआ है । यहाँ दोहरा दें कि पूरे मध्यकाल में दक्षिणपूर्वी राजस्थान और गुजरात से लगा हुआ केंद्रीय भारत का क्षेत्र ही मालवदेश कहलाता था । दक्षिण पूर्वी राजस्थान से निकटता मध्यभारत के मालवा की है।

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  8. *#सम्राट_पृथ्वीराज_चौहान_तृतीय*
    *------------------------------------*
    लेखक बलबीर सिंह चौहान घरौंडा

    *नाम*- सम्राट पृथ्वीराज चौहान- तृतीय
    (इनसे पूर्व इस वंश में प्रथम और द्वितीय दो राजा और पृथ्वीराज नामी हुए)

    *जन्म*- ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी
    तदनुसार 7 जून (1163 से 1166 ईस्वी के बीच)

    *जन्मभूमि* - अन्हिल पाटन-गुजरात (अपने पिता सोमेश्वर के मामा क्षत्रिय
    सम्राट कुमारपाल चालुक्य-सोलंकी की राजधानी में।)

    इससे पहले कि सम्राट पृथ्वीराज के संबंध में अन्य जानकारियां दी जायें प्रथम उनके #चौहान_वंश की उत्पत्ति पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जाता है जिसके लिये मुख्य वंश-#सूर्य_वंश, उप वंश-#मालव_वंश, शाखा वंश-#राजर्षि_वंश और प्रशाखा वंश-#चौहान_वंश क्रम से नीचे दिए जाते हैं :-

    *मुख्य वंश* - *सूर्यवंश*। मनु से पूर्व विवस्वान नामक एक बड़े ही धर्मात्मा और पराक्रमी नरेश हुए। उनका उपनाम सूर्य था। उनके उस सूर्य नाम से ही उनके वंशज सूर्यवंशी कहलाये। सूर्यवंश में वैवस्त मनु के पुत्र राजा इक्ष्वाकु के नाम से इसे इक्ष्वाकु वंश भी कहा जाता है।आगे चलकर इसमें रघु नाम के अन्य महान सम्राट हुए, उनके नाम से इस वंश को रघुवंश भी कहा जाता है।

    *उपवंश* - *#मालववंश*। श्री राम के अनुज भ्राता लक्ष्मण के अंगद और चंद्रकेतु दो पुत्र थे। चंद्रकेतु एक महान धनुर्धर होने के साथ-साथ प्रसिद्ध मल्ल (पहलवान) भी थे। उनको महाराज मल्ल नाम से उच्चारित किया जाता था। कारापथ देश में उनके शासन करने के लिए उनके नाम से चंद्रकांता नगरी बसाई गई। समयांतर में उनके मल्ल नाम से उनके राज्य को मल्ल राज्य और उनके वंशजों को मालव कहा जाने लगा। मालव वीरों ने पंजाब क्षेत्र के मालवा तथा मध्य प्रदेश क्षेत्र के मालवा बड़े-बड़े दो मालवा नामक आर्यावर्त के राज्यों पर हजारों वर्षों तक शासन किया।

    राजा पोरस से हार खाने के बाद 326 ईस्वी पूर्व में जब सिकंदर अपने यूनान राज्य को वापस लौट रहा था तो तब वह अपनी सेना के साथ पराक्रमी मालवों के क्षेत्र से गुजर रहा था। #मालव वीरों ने उसकी सेना को सावधान करके उस पर इतना जबरदस्त आक्रमण किया कि उन्होंने यूनानी सैनिकों की लाशों के ढेर लगा दिए। उन क्षत्रियों ने सिकंदर पर भी ऐसे तीखे तीरों से वार किये कि सिकंदर के दो अंग रक्षक योद्धाओं ने अपने प्राण देकर उसकी जान बचाई। फिर भी #मालव वीरों ने सिकंदर के कवच को भेद कर उसे बुरी तरह घायल करके बेहोश कर दिया। इसी घायल अवस्था से बीमार होकर सिकंदर जल्दी ही संसार से चल बसा।

    *शाखा वंश* - *राजर्षि वंश*। एक मालव वंशी राजा ने संन्यास लेकर ईश्वर की उपासना की और राजर्षि पद को प्राप्त किया। जिससे उस मालववंशी राजा के अगले पारिवारिक वंशज क्षत्रिय लोग राजर्षि वंशी कहे जाने लगे। उनके पारिवारिक वंशजों से अलग जो मालव क्षत्रिय थे, वे मालव ही कहे जाते रहे। मालव वंश में से विभिन्न शाखाएं निकली जिनमें से 7 शाखाएं इतिहासकार पहचान सके हैं।

    *प्रशाखा वंश - चौहान वंश* उपरोक्त राजर्षि वंशी शाखा में पांचवी सदी के उत्तरार्ध में "नगर" नामक राज्य (प्राचीन #मालव_नगर ) के राजा विरोचन हुए। ‌

    #मालव वंश की ही एक दूसरी शाखा #औलिकर वंश के मंदसौर-मालवा के राजा प्रकाश धर्मा के साथ अपनी सेना संयुक्त करके राजा विरोचन ने 515 ईस्वी में कश्मीर से आए हूण आक्रांता तोरमाण की सेना को मार भगा दिया। इस युद्ध में राजा विरोचन शहीद हो गए थे। यद्यपि युद्ध तो जीत ही लिया गया था।

    इन राजा #विरोचन के बलिदान के बाद इनके बड़े पुत्र #चाहमान राजा बने और छोटे पुत्र #धनंजय अपने भाई के प्रधान सेनापति बने।

    हूण तोरमाण की हार से त्रस्त कुछ समय बाद उसका पुत्र मिहिरकुल फिर एक बड़ी हूण सेना लेकर मालवा पर चढ आया तब राजा प्रकाश धर्मा के पुत्र सम्राट यशोधर्मन और राजा #चाहमान ने मिलकर मिहिरकुल को भी हार का मजा चखाया।

    #

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  9. भाई नागर,,,गुर्जर और धाकड़ दोनों में बड़ी संख्या में हैं

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