गुरुवार, 20 मई 2021

समान नागरिक संहिता - लेखक अशोक चौधरी मेरठ।

समान नागरिक संहिता अर्थात यूनिफॉर्म सीविल काड एक ऐसा मामला है जो भारत में आजादी से पहले प्रकाश में रहा है।जब कोई शासन चलता है तो अपराध के कानूनों को दो हिस्सों में बांटता है जिसमें एक है - क्रिमिनल लॉ और दूसरा है सीविल ला। 
क्रिमिनल केस व्यक्ति बनाम राज्य होते हैं तथा सीविल केस व्यक्ति बनाम व्यक्ति होते हैं।
सीविल कानून के चार भाग है-
1- फैमिली मेटर अर्थात परिवार के विवाद जिनमें शादी,तलाक, बंटवारा, गुजारा भत्ता, गार्जियन शिप,गोद लेना,व्यस्क कब तक।
2- प्रोपर्टी
3- संविदा
4- टोड्स (मानहानि) असावधानी जैसे सात वर्ष तक की आयु का बच्चा यदि किसी को कोई हानि पहुचाता है तो उस पर कोई कानून लागू नही होता, असावधानी का मुकदमा उसके पेरेंट्स पर चलता है। उपरोक्त चारो कानूनो में सबसे अधिक विवाद फैमिली मेटर को लेकर है।
दूसरी ओर यहूदी, पारसी, मुस्लिम, हिंदू और जनजाति में जीवन जीने के अलग-अलग कानून है, अपने दायरे में रहते किसी नागरिक के फंडामेंटल राइट ना छिने,ऐसी व्यवस्था ही यूनिफॉर्म सीविल काड है।
भारत में जब भारतीयों का शासन था तब भारत की न्याय पद्धति मनुस्मृति के आधार पर चलती थी, भारत में कई मनुस्मृति है लेकिन एक अंग्रेज़ अधिकारी विलियम जोन्स ने एक मनुस्मृति का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया,वही अत्याधिक प्रसिद्ध है। मनुस्मृति में जो क्रिमिनल ला है वो भेदभाव पूर्ण है, ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के लिए एक ही अपराध की अलग-अलग सजाए है। सम्पत्ति का बंटवार  याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार होता था। याज्ञवल्क्य स्मृति में दो तरह के बंटवारे का कानून था,एक कानून जो बंगाल व आसाम को छोड़कर पूरे भारत में चलता था,इसके अंतर्गत पुत्र पैदा होते ही पिता की सम्पत्ति का हिस्सेदार हो जाता था,इसे मिताक्षरा विधि के नाम से जाना जाता था।  दूसरा कानून जिसे दायभाग के नाम से जाना जाता था,वह बंगाल और असम में ही चलता था, इसके अंतर्गत पुत्र पिता की मृत्यु के बाद ही उसकी सम्पत्ति मे हिस्सेदार होता था।
परन्तु जब भारत में सन् 1192 के बाद मुस्लिम सत्ता स्थापित हुई तो मुस्लिम शासक अपने साथ अपने धर्म की किताब के रूप में कुरान को लाये तथा शासन चलाने के लिए शरियत को लाये। इनके शासन में गैर मुस्लिमो से भेदभाव किया जाता था, दिल्ली सल्तनत के सुल्तान ग्यासुद्दीन तुगलक ने किसानों के लिए कानून बनाया, जिसके अन्तर्गत हिंदू किसानों को अपनी फसल का आधा अर्थात 50% कर के रूप में देना था तथा मुस्लिम किसानों को 10% या 15% कर देना था, इसके बाद फिरोज शाह तुगलक ने कर में परिवर्तन किया, फिरोज शाह तुगलक ने कई नहरें अपने राज्य में खुदवाई, फिरोज शाह तुगलक ने हिंदू किसानों पर नहर के पानी को प्रयोग कर खेती करने वालों पर फसल का 60% कर लगाया तथा मुस्लिम किसानों पर फसल का एक चौथाई अर्थात 25% कर लगाया। अकबर के शासनकाल में भारतीयों को सत्ता में हिस्सेदार बनाया, हिंदूओं पर लगे जजिया कर व तीर्थ कर को हटा दिया, किसानों पर कर भी समान कर दिया।
भारत की संस्कृति एक सहिष्णु संस्कृति रही है। भारत में वेलफेयर स्टेट/कल्याणकारी राज्य, ह्यूमन राईट/मानवाधिकार का बडा व्यापक प्रभाव रहा है। वसुधेव कुटुम्ब की भावना रही है जिसमें मानव तो क्या?पशु पक्षी भी समायोजित रहें हैं। धनाढ्य लोगों द्वारा कुएं खुदवाना, प्याऊ लगवाना, धर्मशालाएं बनवाना पुण्य का कार्य माना गया है।पशु पक्षी को भोजन कराना आम जनमानस में साधारण रूप से व्याप्त विचार रहा है। किसी भी बच्चे को गोद लेने के बाद उस बच्चे का बिल्कुल वैसा ही अधिकार, जैसा कि सगी संतान का होता है,वह भारतीय संस्कृति में ही रहा है,रामयण में सीता इसका उदाहरण है,राजा जनक को सीता हल चलाते समय मिली,जब राजा जनक ने विद्वानों ने पूछा कि इस बच्चे का गोत्र और वंश क्या होगा?तब विद्वानों ने कहा कि जो इस बालिका को अपनी पुत्री स्वीकार कर लेगा,वही इस बालिका का कुल होगा।
महाभारत काल में कुंती के 3, माद्री के 2 पुत्र थे, ये 5 पुत्र राजा पाण्डु द्वारा अपनाए हुए थे, परन्तु छठा पुत्र कर्ण अलग था,पितामह भीष्म और श्री कृष्ण जी इस बात को जानते थे।जब महाभारत का युद्ध आरम्भ हुआ तब कुंती पितामह भीष्म के पास जाकर अपने पुत्रों की रक्षा का वचन मांगती है,तब पितामह भीष्म बिल्कुल स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि राजा पाण्डु ने जिन पुत्रों को अपना मान लिया है वही कुरूवंश के है। इतना मानव अधिकार वाला समाज विश्व में नही है, भारतीय संस्कृति से अलग या आज भारत के संविधान के अनुसार गैर हिन्दू समाज में कोई गार्जियन/संरक्षक तो हो सकता है, परन्तु अपना नहीं सकता।एक ही परिवार में अपनी इच्छानुसार व्यक्ति अपने ईष्ट देव की पूजा कर एक साथ भारतीय समाज में ही रह सकता है,यहा गाय को माता मानने वाले तथा पशु बलि देकर काली माता को प्रसन्न करने वाले एक ही समाज के अंग है।किसी को अपना इष्ट देव ना मानने वाले नास्तिक भी इसी समाज में एक साथ आराम से रह रहते आए हैं।
 16 वी सदी में मुगल सल्तनत मे अकबर नाम का एक सम्राट हुआ। जिसने महसूस किया कि उसके राज्य में निवास करने वाले 95% गैर मुस्लिम लोगों के सहयोग के बिना शासन को स्थायित्व देना असम्भव है। इसलिए अकबर ने भारतियों को सत्ता में अपना कनिष्ठ सहयोगी बनाया।अकबर ने भारतिय राजाओं से वैवाहिक संधि की। परंतु इस्लाम में एक पुरुष की सिर्फ चार शादियां ही वैध मानी गई है। जबकि भारतीय समाज में राजा की चाहें कितनी भी रानियां हो सब वैध मानी गई है यहा संख्या का प्रतिबंध नही है। मुस्लिम समुदाय में चार शादी के बाद जो निकाह होता था,उसे मूता निकाह कहा गया है।मूता अरबी फारसी या जकताई भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है मजा/आनंद अर्थात मूता निकाह एक अवधि के लिए लडकी के पिता को निकाह से पहले धन देकर किया गया निकाह था,यह निकाह ईरान में शिया लोगों में प्रचलित था, सुन्नियों में नही।इस निकाह से जो संतान पैदा होती थी वह भी अवैध मानी जाती थी और मूता निकाह की अवधि समाप्त हो जाने के बाद महिला का भी कोई सम्बन्ध अपने पति से या उसकी सम्पत्ति से नही रहता था। अकबर ने आमेर की राजकुमारी से शादी करके जो आमेर रियासत से वैवाहिक संधि की थी, इस्लाम के अनुसार आमेर की राजकुमारी अकबर की छठी रानी थी, अतः यह शादी मूता निकाह की श्रेणी में आ गई थी। अकबर के अपनी पहली चार रानियो से कोई संतान नहीं थी, आमेर की राजकुमारी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ था जिसका नाम सलीम था। इस्लाम के कानून के अनुसार अकबर का यह पुत्र भी अवैध था अर्थात सत्ता का अधिकारी नही था।
ऐसी परिस्थिति में अकबर भारतीय राजाओं से वैवाहिक संधि करके कैसे सहायता प्राप्त कर सकता था,जब वह शादी ही अवैध थी।अत अकबर ने इस समस्या का हल तलाशने के लिए मुल्ला मौलवियों को अपने दरबार में बुलाया।एक तरह से अकबर को इस समय एक यूनिफॉर्म सीविल कानून की आवश्यकता महसूस हुई जो भारतीय हिन्दू तथा इस्लाम के बीच एक सम्मान जनक रास्ता बना सके।अकबर ने जब अपने सामने आयी इस समस्या को इस्लाम के विद्वानों के सामने रखा तो जो कट्टर पंथी थे वो तो टस से मस नहीं हुए परन्तु एक बदायूंनी नाम के विद्वान थे उन्होंने कहा कि बादशाह सलामत निकाह और मूता निकाह मे क्या फर्क है यह सिर्फ विद्वान लोग ही समझते हैं,आम मुस्लिम की नजर में तो दोनों ही निकाह है दोनों ही बादशाह की बेगम है। दोनों तरह के निकाह से पैदा होने वाली संतान का फर्क भी विद्वान ही समझते हैं,आम आदमी की नजर में तो दोनों ही संतान है।इस पर अकबर मुल्ला बदायूंनी से बडा प्रसन्न हुआ तथा अकबर ने सभी बेगमे जो बादशाह के साथ हरम में थी,सब बराबर की रानियां घोषित कर दी,उन रानियों से उत्पन्न संतान भी वैध घोषित कर दी गई।जिन कट्टर पंथी मुल्लाओं ने बादशाह के फैसले का विरोध किया उनका तबादला बहुत दूर कर दिया गया, उनसे महत्वपूर्ण ओहदे छिन लिए गए तथा कुछ को तो मरवा भी डाला।इस प्रकार बादशाह अकबर ने भारतियों और मुस्लिमो के बीच पहला यूनिफॉर्म सीविल कानून बनाया।
सन् 1582 में अकबर ने एक दरबार का आयोजन किया, जिसमें राज्य में गुलामी प्रथा को समाप्त कर दिया तथा सभी गुलामों को मुक्त कर दिया गया।गुलाम शब्द के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया।अब गुलाम के स्थान पर लोग चेला शब्द का प्रयोग करने लगे।
अकबर ने 12 वर्ष की कम आयु के बच्चों की शादी पर प्रतिबंध लगा दिया।
छोटे पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया।
सराय और अस्पताल सरकारी कोष से आम गरीब जनता के लिए बनवाने प्रारंभ किए।
अपने अधिकारियों पर किसी को भी मृत्यु दंड देने के अधिकार को छीन लिया। मृत्यु दण्ड देने के लिए बादशाह की स्वीकृति अनिवार्य कर दी गई।
सन् 1591 में अकबर ने जबरन सती प्रथा पर रोक लगा दी।गोने से पहले पति की मृत्यु हो जाने पर सती होने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
विधवा विवाह को स्वीकृति दे दी गई।
एक पत्नी प्रथा का कानून बना दिया गया। दूसरी शादी जभी होगी जब पहली पत्नी संतान पैदा करने योग्य ना हो।
सन् 1592 में शादी की उम्र 16 वर्ष कर दी गई।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार धर्म अपनाने की छूट दे दी गई।
हिंदू और मुसलमान किसानों पर लगान बराबर कर दिया गया।
सन् 1577 में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में एक टकसाल बनवाई। जिसमें अकबर ने अपने सिक्कों पर सीता राम का चित्र बनवाया।इन सिक्कों को सियाराम के सिक्के भी कहते थे।
 फिरोज शाह तुगलक के समय एक ब्राह्मण ने एक मुस्लिम महिला को हिंदू बना दिया था।जब फिरोज शाह तुगलक को यह बात पता चली तो बादशाह ने उस ब्राह्मण को दोपहर बाद की नमाज के समय बीच चौराहे पर जिंदा जलाकर मार डाला था। सिकंदर लोदी ने बोधन नाम के ब्राह्मण को सिर्फ इसलिए मृत्यु दंड दे दिया था कि बोधन ने सभी धर्मों को बराबर बता दिया था।
इस प्रकार अकबर ने अपने समय में हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच कुछ समानता लाने की कोशिश की थी अर्थात भारत में पहले यूनिफॉर्म सीविल कोड को बनाया था।
परन्तु औरंगजेब ने अपने शासनकाल में पुनः अपने शासन को इस्लामिक शासन बना दिया, पुनः जजिया कर और तीर्थंकर लागू कर दिए गए, मुस्लिम किसानों पर कर 25% कर दिया गया। हिन्दू किसानों पर 50% कर रहा।  मुस्लिम शासन शरियत के अनुसार चलता रहा, औरंगजेब  जिस शरियत से भारत में शासन चला रहा था,उसको लिपिबद्ध किया तथा उसको फतुआ आलमगीर नाम दिया।शरियत पूरे विश्व में चार प्रकार की है,जिस शरियत के अनुसार भारत में शासन चलता था उसे हनफी सम्प्रदाय की शरियत कहा जाता है।इस शरियत में दो तरह के अपराध है,एक वो अपराध है जो खुदा के विरोध में बताये गये है, जैसे जिन्ना (व्याभिचार), चोरी, डकैती है,इन अपराधों को हुदुद कहा गया है। इन अपराधों में बडी सख्त सजा है, कोई छूट नहीं है।
दूसरे आपसी हिंसा के अपराध है,इन अपराधों में वह व्यक्ति जिसके साथ अपराध हुआ है, अपराध करने वाले को माफ कर सकता है,इन अपराधों को किसास कहते हैं।
तिसरे वो अपराध है जिसमें अपराध करने वाले ने अपराध करने का प्रयास किया परन्तु वह सफल नहीं हुआ जैसे किसी ने किसी का अपहरण करने का प्रयास किया परंतु अपहरण हुआ नही,इन अपराधों को ताजिर कहते हैं।
सन् 1757 से अंग्रेजों का दखल भारतीय शासन में प्रारंभ हुआ, सन् 1764 के बक्सर के युद्ध में विजय के बाद अंग्रेजों को बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सीविल अधिकार मुगल बादशाह से प्राप्त हो गये थे, सन् 1803 में दिल्ली तथा सन् 1818 में पेशवा राज्य पर कब्जा होने के बाद सम्पूर्ण भारत का सीविल सैक्टर अंग्रेजों के हाथ में आ गया। क्रिमिनल केस शरियत के अनुसार तय होते रहें तथा सीविल केस में अंग्रेजों ने हिंदुओं को हिंदू ला अर्थात मनुस्मृति, मुस्लिमो को मुस्लिम ला अर्थात शरीयत और बाकि अन्य को अंग्रेजों ने अपने कानून के हिसाब से चलाना प्रारंभ कर दिया।
भारत में चल रही शरीयत के अनुसार जो मुस्लिमो के सीविल कानून थे उनमें भी हिंदुओं के कानूनों से अलग प्रावधान थे, जैसे सम्पत्ति के बंटवारे के लिए जो मुस्लिम कानून था उसे सूफा नाम दिया गया था।इसके अंतर्गत यदि चार भाई एक जगह रह रहें हैं, उनमें से एक भाई यदि अपना हिस्सा किसी को बेच देता है तो उसके भाई उस पर सूफा कानून के अन्तर्गत यह दावा कर सकते हैं कि वो उसके पहले हकदार हैं यानि जितने धन मे किसी बाहर वाले को बेच दिया है वह धन देकर अपने भाई का हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं।दूसरा महिला को पिता की सम्पत्ति मे 1/3 भाग का पूर्ण अधिकार है। कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी सम्पत्ति मे से 1/3 भाग की ही वसीयत कर सकता है।
संविधान की धारा 14 में इक्वलिटी बी फार ला (प्रत्येक व्यक्ति को कानून का संरक्षण मिले)
संविधान की धारा 15 (1) राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ सेक्स,कास्ट, रिलीजन व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।
लेकिन वही राज्य 15(3)के अंतर्गत महिलाओं और बच्चों के पक्ष में कानून बना सकता है।
यहां भी ज्यादा भेदभाव फैमिली मेटर को लेकर ही है, मुस्लिम समुदाय में शादी एक समझौता है जो कभी भी रद्द किया जा सकता है, जिसमें तलाक एक माध्यम है,निकाह के समय मेहर तय होता है, जिसमें तलाक देने पर तीन महीने तक,जिसे इद्दत की अवधि कहा गया है, पुरुष महिला का खर्च देगा, यदि कोई बच्चा है तो बच्चे की आयु दो वर्ष पूरी होने तक बच्चे का खर्च देगा।
तलाक भी दो तरह का है,एक तलाक- ए- सुन्नत,दूसरा तलाक- ए- इद्दत।
तलाक- ए- सुन्नत मोहम्मद साहब द्वारा बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पूरे जीवन में तीन बार तलाक कह देता है तब तलाक माना जाता है। जैसे किसी व्यक्ति अपनी पत्नी को अपनी तीस वर्ष की आयु में तलाक कह दिया, फिर दस वर्ष बाद कोई बात हुई,फिर तलाक बोल दिया,उसके 15 वर्ष बाद फिर तलाक बोल दिया,अब आकर तलाक हुआ 55 वर्ष की आयु में,दूसरा यदि एक महिने में एक बार तलाक बोल,इस तरह तीन महीने में तलाक हो गया।
दुसरी तरह का तलाक मुस्लिम विद्वानों द्वारा बाद में स्थापित किया गया है। मुस्लिम ला के अनुसार विवाद के फैसले काजी करता है जो कुरान और हदीस की रोशनी में किये जाते हैं, कुरान में वह लिखा है जो मोहम्मद साहब को दिव्य दृष्टि प्राप्त होने पर मिले ज्ञान पर आधारित है,हदीस में मोहम्मद साहब के उपदेश (विचार) और उनकेे कर्म (लिए गए निर्णय) लिखें हैं। लेकिन ऐसे बहुत से विवाद है जो मोहम्मद साहब के जीवन में सामने नही आये,वो हदीस में नही है,इस तरह के विवाद जब सामने आते हैं तब काजी मुफ्ती से सलाह करता है,मुफ्ती उस विवाद से सम्बंधित कानून की व्याख्या करता है,उसे फतुआ कहते हैं। यदि मुफ्ती की भी समझ में ना आएं तो उलेमा विचार करते, और विद्वान विचार करते हैं,तब कानून की व्याख्या कर फतुआ दिया जाता है।तलाक- ए- इद्दत इसी प्रकार बनाया गया कानून है, इसमें कोई व्यक्ति लगातार तीन बार तलाक बोल देता है और तलाक हो जाता है, आज के आधुनिक युग में वाट्स एप,स्पीड पोस्ट से लिखकर भी तलाक दे दिया जाता है, भारत में तलाक ए इद्दत ही चल रहा था।शिया मुस्लिम तलाक - ए - इद्दत को नहीं मानते।
मुस्लिम यहूदी पारसी ईसाई धर्म में बच्चे को गोद नही लिया जाता, वहां संरक्षक बना जा सकता है। यदि कोई बच्चा छोटा है, उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई है तो कोई रिश्तेदार उसका संरक्षक बन सकता है,जब बच्चा व्यस्क हो जायेगा तब संरक्षक की जिम्मेदारी समाप्त।बच्चा संरक्षक की सम्पत्ति मे हिस्सेदार नही होता। लेकिन हिन्दू धर्म में जिसे गोद लेना कहते हैं, उसके अंतर्गत बच्चे को वो सभी अधिकार मिल जाते हैं जो एक माता-पिता की ओर से उनके सगे बच्चों को मिलते है।
जब अंग्रेजों का भारत पर शासन स्थापित हो गया तो भारत के सीविल कानून मे उनकी दखलंदाजी शुरू हुई।इस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने सन् 1772 में भारत में एक जुडिशल प्लान पेश किया।वारेन हेस्टिंग्स सन् 1781 तक रहें।वो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले गवर्नर जनरल थे। सन् 1781 से लेकर सन् 1810 तक क्रिमिनल लॉ जो शरियत के अनुसार चल रहा था, में भी अंग्रेजों ने दखल देना शुरू कर दिया था, क्योंकि शरीयत के कानून बहुत कठोर थे। सन् 1828 में वैटिंग भारत के पहले गवर्नर जनरल बने।
अंग्रेज एक विकसित समाज से थे, राजा राम मोहन राय ने वैटिंग के साथ समन्वय बना लिया था।इसलिए सन् 1829 में राजा राम मोहन राय के अनुरोध पर सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम बनाया गया।लडकी के पैदा होते ही हत्या कर दी जाती थी,इस प्रकार की हत्या के विरोध में भी कानून बना दिया गया। सन् 1833 के चार्टर एक्ट के बाद सन् 1834 में अंग्रेजों ने भारत में पहला विधि आयोग अर्थात ला कमिशन बनाया, लार्ड मैकाले इसके अध्यक्ष थे। कौन सा कानून बनाना है उसका ड्राफ्ट बनाकर सुझाव के रूप में सरकार को देना ला कमिशन का काम था। लार्ड मैकाले ने पूरे भारत में एक आईपीसी हो इसका ड्राफ्ट लिखा।
सन् 1848 में लार्ड डलहौजी भारत के गवर्नर जनरल बन कर आये।
लार्ड डलहौजी के साथ ईश्वर चंद्र विद्यासागर का अच्छा समन्वय था। अतः सन् 1850 में छूआछूत के विरोध में कास्ट डिसएक्टिविटीज एक्ट बना दिया गया।
सन् 1853 में दूसरा चार्टर एक्ट आया,  भारत में दूसरा ला कमिशन बना,सर जान रोमेली नाम के अंग्रेज अधिकारी इसके अध्यक्ष बने। इन्होंने सीपीसी, सीआरपीसी, आईपीसी को तैयार किया। 
सन 1856 में हिंदू विडो मेरिज एक्ट बना दिया गया।अब तिसरा ला कमिशन बना,सर हेनरी मेन जो ला के प्रोफेसर थे, इसके अध्यक्ष बने।
इसी समय सन् 1857 का संघर्ष भारत में हो गया।
इस संघर्ष के बाद भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ से निकल ब्रिटिश क्राउन के हाथ में चला गया।अब भारत में गवर्नर जनरल का स्थान वायसराय नाम के पद ने ले लिया जो भारत में ब्रिटिश क्राउन का प्रतिनिधि था।
अतः सन् 1861 में आईपीसी एक्ट लागू हो गया।अब क्रिमिनल लॉ शरियत के आधार से हट गया तथा क्रिमिनल लॉ में यूनिफॉर्म क्रिमिनल एक्ट बन गया।
सन् 1871 में इंडियन एविडेंस एक्ट।
सन् 1872 में कांट्रेक्ट एक्ट।
 सन् 1873 में आथ एक्ट जो अब सन् 1969 का एक्ट कहा जाता है।
 सन् 1873 में ही स्पेशल मेरिज एक्ट लागू हो गया, जिसके अन्तर्गत इंटर कास्ट और इंटर रिलिजन शादी की जा सकती थी आज यह सन् 1954 के एक्ट के नाम से चल रहा है।
सन् 1874 में विवाहित महिला एक्ट बना जिसके अन्तर्गत स्त्री धन को महिलाओं की सम्पत्ति माना गया, इस एक्ट के अनुसार लिमिटेड राइट दिये गये।  स्त्री धन में शादी के समय ससुराल और मायके पक्ष की ओर से मिले उपहार (गहने) आते थे। क्योंकि हिन्दू धर्म में महिलाओं को सम्पत्ति मे अधिकार नहीं था, इसलिए यह एक छोटा सा कदम उठाया गया था।
शादी की उम्र के लिए सन् 1891 से लेकर सन् 1929-30 तक अनेक कदम उठाए गए।
सन् 1891 में लडकी की शादी की उम्र 12 वर्ष तथा लडके की उम्र 14 वर्ष की गई,इस एक्ट का नाम ऐज आफ कंसेंट एक्ट रखा गया।
 सन् 1929-30 में लड़की की शादी की आयु 14 वर्ष तथा लडके की उम्र 18 वर्ष की गई।आज सन् 1978 का एक्ट लागू है जिसमें लड़की की आयु 18 वर्ष तथा लडके की आयु 21 वर्ष है।
सन् 1937 में हिंदू (देशमुख एक्ट)वोमेंस राइट टू प्रोपर्टीज एक्ट बना, जिसमें कहा गया कि स्त्री धन पर महिला का पूर्ण अधिकार होगा,बाकी सम्पत्ति पर लिमिटेड राइट होगा।
हिन्दू विधवा को अपने पति की सम्पत्ति मिलेगी, परन्तु उस पर उसका लिमिटेड राइट होगा।
जब ये सुधार के कार्यक्रम हिन्दू धर्म में चल रहे थे, कानून बन रहें थे,ऐसा देख मुस्लिमो ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया कि मुस्लिमो के कानूनों में कोई छेड़छाड़ न की जाए, लेकिन अंग्रेजों ने सन् 1937 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बना दिया, सन् 1939 में सन् 1937 के पर्सनल लॉ के 5 वें सेक्शन को हटा कर उसमें यह जोड दिया कि यदि मुस्लिम महिला चाहे तो तलाक के लिए कोर्ट जा सकती है।
सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए एक कानून हो,इसके लिए हिन्दू कोड बिल की डिवेट शुरू हो गई थी। अतः सन् 1941 में एक आइसीएस अधिकारी बीएनराव के नेतृत्व में हिंदू ला कमेटी बनाई गई,इस कमेटी में राव सहित चार सदस्य थे। इस कमेटी ने सन् 1944 में मसौदा बना लिया, लेकिन सरकार ने श्री बीएन राव को इस मसौदे पर दोबारा और अच्छी तरह बनाने का आग्रह किया। सन् 1947 में देश आजाद हो गया, सन् 1949 में बीएन राव ने यह मसौदा तैयार कर भारतीय संसद को सोप दिया। भारत की संसद ने इस मसौदे की समीक्षा के लिए संसद की एक स्टेंडिंग कमेटी बनाई, जिसके अध्यक्ष डा भीमराव अम्बेडकर बने, जो कि भारत सरकार में ला मिनिस्टर भी थे। हिन्दू कोड बिल में आठ खंड थे, मेरिज मे पहली बार तलाक का प्रावधान था,एक पत्नी विवाह का प्रावधान था। हिन्दू, यहूदी और कैथोलिक ईसाई मे शादी एक संस्कार माना जाता है,इनमे विवाह विच्छेद नही होता था, पुरूष अनेक विवाह कर सकता था,वह अपनी पत्नी का परित्याग कर सकता था। परंतु महिला पुरुष का परित्याग नही कर सकती थी।इस बिल का खूब विरोध हुआ।डा राजेन्द्र प्रसाद, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुरूषोत्तम दास टंडन, हिन्दू महासभा के नेता डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिन्दू कोड बिल के खुल कर विरोध में आ गए,सबका कहना था कि इस समय भारत में कोई जनता की चुनी हुई सरकार नही है, इसलिए देश की 80% आबादी के विषय में कानून बनाना उचित नहीं है।देश के प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने 26 सितंबर सन् 1950 को संसद से यह बिल वापस ले लिया,27 सितंबर सन् 1950 को खिन्न होकर डा अम्बेडकर जी ने ला मिनिस्टर के पद से त्यागपत्र दे दिया।
नेहरू जी ने सन् 1952 का पहला चुनाव लडा, हिन्दू कोड बिल के मुद्दे को कांग्रेस के घोषणा पत्र में डाला। कांग्रेस की जोरदार विजय हुई। नेहरू जी को 400 में से 381 लोकसभा सीट मिली। सन् 1954 में स्पेशल मेरिज एक्ट पास कर दिया गया,इस एक्ट के अंतर्गत इंटर रिलिजन शादी होती है।
अब परिस्थिति बदल चुकी थी,डा राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति बन गए थे, पुरूषोत्तम दास टंडन अध्यक्ष के पद से हट गए थे,अत सन् 1955-56 में हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में संसद से पास कराकर एक्ट बना दिया।
1- हिन्दू मेरिज एक्ट, सन् 1955 में
बाकि तीनो सन् 1956 में
2- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम एक्ट
3- हिन्दू अव्यस्क तथा संरक्षता एक्ट
4- हिन्दू एडोप्शन एवं मेंटिनेंस एक्ट
इन सब एक्ट में सबसे पहले हिन्दू कौन है इसकी परिभाषा लिखी। मुस्लिम, ईसाई, यहूदी,पारसी को छोड़कर जो भी है सब हिन्दू है।यानि सिक्ख,जैन, बौद्ध, आर्य समाज, ब्रह्मा समाज, प्रार्थना समाज,वीर शैव सब हिन्दू है। सन् 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं को कृषि भूमि को छोड़कर बाकी सम्पत्ति मे पूरा हिस्सा मिलने का प्रावधान हो गया।
सन् 1995 में सरला मुद्गगल केस में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया। इससे पहले हिन्दू व्यक्ति मुस्लिम बनकर दूसरी शादी कर लेता था, परंतु इस केस में यह निर्णय दिया गया कि शादी करते समय जो धर्म व्यक्ति का होगा,उस पर वही मेरिज एक्ट लागू होगा।
सन् 2005 में हिंदू सक्शेसन एमेंडमेंट एक्ट लागू हो गया है जिसमें अब पुत्री को पुत्र की तरह ही सम्पत्ति मे हिस्सा मिलता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ की तरह भारत में कुछ जनजातियों के लिए भी अलग से कानून हैं। संविधान की धारा 371(A)(F) व 244(5-6) में इन जनजातियों के लिए अलग से प्रावधान है।केरल,गोवा में कैथोलिक ईसाई हैं, नागालैंड और मिजोरम में 80% ईसाई है।
इंडियन डायवर्स एक्ट - 1869 में एमेंडमेंट कर सन् 2001 में दूसरो जैसा ही कर दिया गया
गार्जियंस एंड वार्ड्स एक्ट - 1890
इंडियन सक्शेसन एक्ट - 1925
क्रिश्चियन सीविल ला व क्रिश्चियन मेरिज एक्ट - 1872
कहने का तात्पर्य यह है कि यहूदी, ईसाई और पारसी के कानून यूनिफॉर्म सीविल काड के दायरें में आ गए हैं।
जब वैष्णो देवी मंदिर को सरकार ने अपने हाथ में ले लिया तो सरकार ने मंदिर के पुजारी की नौकरी की राशि नियत कर दी,इस पर माता वैष्णो देवी का पुजारी कोर्ट चला गया, उसने कहा कि मंदिर का पुजारी चढ़ावे का 25% लेता था,यह धर्म का मामला है सरकार इसमें नौकरी कैसे निश्चित कर सकती हैं, कोर्ट ने कहा कि पुजारी हो यह धर्म का मामला है परन्तु उसको कितनी राशि मिले यह धर्म का सेकुलर मामला है इसमें सरकार को हस्तक्षेप करने का अधिकार है। जो नौकरी सरकार दे रही है वही ठीक है।
जगन्नाथ मंदिर में वंशानुगत पुजारी होता रहा है, वहां पुजारी बदल दिया गया,जो वंशानुगत पुजारी चले आ रहे थे, उन्होंने कोर्ट में अपील की कि उनको गलत हटाया गया है, कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और कहा कि मंदिर में पुजारी होना चाहिए,वह किस वंश से हो इसका आरक्षण नही हो सकता।
केरल के मंदिर में गैर ब्राह्मण पुजारी बन गया, ब्राह्मणों ने कोर्ट में अपील की कि पुजारी तो ब्राह्मण ही होना चाहिए, कोर्ट ने यह अपील भी खारीज कर दी और कहा कि हिन्दू धर्म का मंदिर है इसलिए पुजारी हिंदू धर्म का होना चाहिए,उसकी जाति आरक्षित नही हो सकती।
बिल्कुल इसी तरह अजान लगाना धर्म का मामला है परंतु माइक से अजान लगाना धर्म का मामला नही है इस पर रोक लग सकती है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, इसलिए धर्म राज्य के अधीन स्वतंत्रता ले सकता है,राज्य का कानून सर्वोपरि है।
सन् 1964 में पं जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने दहेज के विरूद्ध भी एक कानून बना दिया।
सन् 1829 से लेकर सन् 1964 तक हिंदुओं के सुधार के लिए अनेक कानून बने, परन्तु मुस्लिमो के लिए कोई कानून नहीं बना। नेताओं के एक पक्ष का कहना था कि जब मुस्लिमो की ओर से कोई सुधार के लिए आगे आया ही नहीं तो कैसे करते,दूसरा पक्ष यह कहता रहा है कि यह मुस्लिम तुष्टिकरण है।
सन् 1975 में शाहबानो नाम की एक महिला का केस कोर्ट के सामने आया। इंदौर में अहमद खां नाम के एक मशहूर वकील थे, शाहबानो इनकी पत्नी थी, शाहबानो की शादी को हुए 16 वर्ष हो गए थे,इनके पांच बच्चे थे।इस परिस्थिति में अहमद खां ने दूसरी शादी कर ली, शादी के चालीस साल तक शाहबानो अपने पति के साथ ही रही, परन्तु सन् 1975 में घर छोड कर चली गई।अहमद खां ने अलग रह रही शाहबानो को सन् 1978 तक 200 रुपए प्रति माह गुजारा भत्ता दिया। लेकिन बाद में यह राशि देना बंद कर दिया और शाहबानो को तलाक दे दिया। अहमद खां ने तीन महीने इद्दत के हो जाने पर मेहर तथा बाकि रकम जो 5400 रूपये थी शाहबानो को दे दिया। शाहबानो कोर्ट चली गई। इंदौर के कोर्ट ने आदेश दिया कि अहमद खां 25 रुपए प्रतिमाह शाहबानो को गुजारा भत्ता देंगे।
परन्तु अहमद खां ने कोर्ट के फैसले को अपने धर्म में हस्तक्षेप मानते हुए इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, सन् 1980 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि 25 रुपए कम है अतः अहमद खां 189 रुपए प्रति माह शाहबानो को गुजारा भत्ता देंगे।अब अहमद खां सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, पांच जजों की बेंच ने इस मुकदमे को सुना तथा सन् 1985 में यह फैसला दिया कि हाईकोर्ट का फैसला ठीक है अहमद खां 189 रूपए प्रति माह गुजारा भत्ता देंगे तथा 10000 रूपए शाहबानो को ओर देंगे जो उसके कानूनी लडाई में खर्च हुए हैं।
इस समय राजीव गांधी की सरकार थी, सन् 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने एक एक्ट पास किया जिसका नाम था   The Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act 1986 (मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986) , जिसमें कहा गया कि मुस्लिमो पर डीवोरस में मुस्लिम पर्सनल लॉ ही लागू होगा।इस कानून में मेहर इद्दत और बच्चे दो शब्दों के लिए इतना जोड़ दिया कि फेयर एंड रिजनेबिल एमाउंट होना चाहिए।यह एमाउंट महिला का पति देगा, यदि वह सक्षम नही है तो महिला का पिता देगा, यदि वो दोनों भी नहीं है तो वक्फ बोर्ड देगा। सन् 1985 से लेकर 1997 तक पर्सनल लॉ के मामले में कोर्ट चुप रही। सन् 1997 में नोवल खा खातून का मामला कोर्ट के सामने आया, कोर्ट ने फेयर एंड रिजनेबिल एमाउंट की व्याख्या करते हुए कहा कि बच्चे जब तक व्यस्क नही हो जाते तब तक खर्चा देना होगा। सन् 2001 में डेनियल लतिफी जो शाहबानो के वकील थे ने सुप्रीम कोर्ट में फेयर एंड रिजनेबिल एमाउंट की व्याख्या क्या हो? यह पूछने के लिए केस डाल दिया। कोर्ट ने कहा कि जो महिला का स्टेंडर्ड आफ लिविंग पति के साथ रहते हुए था उसका हर महिने होने वाले खर्च को महिला की बची हुई जिंदगी की उम्र से केलकुलेट  करके जितने रुपये बैठेंगे वो तीन महीने इद्दत के पूरे होने पर देने होंगे। यदि पति इतनी रकम एक साथ देने में असमर्थ हैं तो उसकी किस्त बाधी जा सकती है।इस प्रकार मुस्लिम महिलाओं को मेंटिनेंस के मामले में न्याय मिल गया।
भारत में तलाक के 6 तरीके है।
1 - तलाक, इसमें पुरुष को विशेष अधिकार है।
 2- खुला , इसमें महिला तलाक दे सकती है पुरुष की रजामंदी से, इसमें पुरुष को मेहर नही देनी पडती।
3- मुबारत,इसका मतलब पिंड छुड़ाना।
4- तजबीब, कमेंट मेंट यानि वचन, विवाह के आसपास दिया वचन पूरा करना होता है।
5- लियान,पति द्वारा पत्नी पर,या पत्नी द्वारा पति पर व्याभिचार का आरोप लगाया गया हो और दोनों मे से कोई भी सिद्ध ना कर पाया हो।
6- खियार,यदि किसी लडकी का विवाह व्यस्क होने से पहले हुआ हो तो व्यस्क होने पर वह अपने निकाह को खारिज कर सकती हैं।
सन् 1939 में यदि मुस्लिम महिला चाहे तो कोर्ट से भी तलाक ले सकती है।
सायराबानो नाम की एक लड़की जो उत्तराखंड की रहने वाली थी,उसकी शादी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में रीजवान अहमद के साथ हो गई।इनकी आपस में कुछ अनबन हो गई, सायरा बानो अपने पिता के घर चली आई, रिजवान अहमद ने स्पीड पोस्ट से तलाक भेज दिया।इस पर सायरा बानो संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट चली गई इन्होंने तीन तलाक,निकाह हलाला और चार पत्नियों के मुस्लिम पर्सनल लॉ के कानून को मुस्लिम महिलाओं के गरिमामय जीवन के विरूद्ध माना। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर सुनवाई को स्वीकार किया। रिजवान अहमद मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के पास गए, अदालत ने इस पर विचार किया कि क्या ट्रीपल तलाक धर्म का अनिवार्य हिस्सा है?या धर्म में बाद में जोडा गया हिस्सा है।इस विषय पर पांच जजों की बेंच बैठी तथा इस बेंच ने दिसम्बर सन् 2017 में फैसला दिया कि ट्रीपल तलाक असंवैधानिक है तथा भारत सरकार को निर्देशित किया कि संसद इस विषय पर कानून बनाये। सन् 2019 में संसद में लोकसभा और राज्यसभा दोनों से ट्रिपल तलाक के विरोध में कानून बन गया,अब भारत में किसी भी तरह का तलाक गैर कानूनी है।
शबाना हाशमी नामक महिला ने एक बच्चे को पाला था,वह उसे अपना बच्चा मानकर पाल रही थी, उसे अपने धर्म के मुस्लिम कानून का ज्ञान नहीं था, जिसमें किसी बच्चे की गार्जियन शिप तो ली जा सकती है परन्तु गोद नही लिया जा सकता।जब वह बच्ची व्यस्क हुई तब वह बात शबाना को पता लगी, ईसाई धर्म के लिए जुबेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन चिल्ड्रेन एक्ट- सन् 2000 से बच्चा गोद ले लेते हैं। शबाना हाशमी मामले में सन् 2014 में यह स्पष्ट हुआ कि अब कोई भी धर्म का आदमी बच्चा गोद ले सकता है।
जनजाति समुदाय जो हजारों साल से अलग थलग जी रहा था उसके लिए धारा 371(A) के तहत कुछ राज्यों में व्यवस्था की गई है। नागालैंड और मिजोरम में संविधान की धारा 371(F) के तहत संसद का कोई भी कानून वहा जभी लागू होगा जब वहा कि विधानसभा एक प्रस्ताव देगी।कस्टमी ला,सीवील ला और क्रिमिनल लॉ में से कुछ कानून वहा के अलग है। संविधान के 244(5,6) भाग में भारत में 10 ट्राईबल एरिया है, ट्राईबल एरिया 244(6) में आते हैं। मेघालय में 3, मिजोरम में 3,असम में 3, त्रिपुरा मे 1 ट्राईबल एरिया है।इनको डिस्ट्रिक ओटोमस कोंसिल का दर्जा मिला हुआ है।
मुस्लिमो के निकाह हलाला और चार पत्नियों के मुस्लिम पर्सनल लॉ के कानून के विरोध में सन् 2020 में कोर्ट ने केस स्वीकार कर लिया है,कोराना महामारी के कारण सुनवाई नही हो सकी है,इन दोनों पर कानून बनते ही पूरे भारत में सबके लिए यूनिफॉर्म सीविल काड बन जायेगा।निकाह हलाला पूरे इस्लाम जगत में बंद हैं अफगानिस्तान सहित।
समाप्त
संदर्भ ग्रंथ
डा विकास दिव्य कीर्ति
1- समान नागरिक संहिता, अर्थ, इतिहास और हिंदू कोड बिल 
https://youtu.be/xiVAIcDVYew
2- मुस्लिम पर्सनल लॉ, अल्पसंख्यक व जनजातिय कानून तथा समान नागरिक संहिता  https://youtu.be/MlBHGQB3Hr0


मंगलवार, 11 मई 2021

लेटरल एंट्री (पार्श्व नियुक्ति) - लेखक अशोक चौधरी मेरठ।

किसी पद पर प्रोपर चैनल के अनुसार कोई काबिल व्यक्ति ना मिल पाये,तब सरकार किसी दूसरे स्थान से किसी काबिल व्यक्ति की नियुक्ति कर दे,तो उसे लेटरल एंट्री या पार्श्व नियुक्ति कहते हैं।आज भारत में उच्च पदो पर लेटरल एंट्री एक बडा मुद्दा बना हुआ है।सिनियर ब्यूरोक्रेसी के पद पर जो भारत सरकार लेटरल एंट्री कर रही है यह तत्कालीन विवाद है परमानेंट नही।
जो लोग आइएएस की परिक्षा देकर आइएएस नही बने,उन लोगों की उच्च पदो पर नियुक्ति,जहा आइएएस की नियुक्ति होती थी, भारत सरकार द्वारा की जा रही है जो एक विवाद का कारण बन गई है।भारत सरकार ने फरवरी 2018-19 में जोइंट सेक्रेटरी की 10 वेकेंसी निकली थी, जिसमें 7 लेटरल एंट्री के माध्यम से ले लिए थे, सन् 2021 में 30   वेकेंसी निकाली, जिनमें 27 डायरेक्टर,3 जोइंट सेक्रेटरी है। डायरेक्टर के पद पर वही आइएएस जाता है,जो 13 वर्ष की नौकरी कर लेता है। जोइंट सेक्रेटरी के लिए 16-18 वर्ष नोकरी करने के बाद कोई आइएएस उपयुक्त माना जाता है।इन नौकरियों के लिए कोई भी ऐसा व्यक्ति जो योग्य हो, प्रोत्साहित करने वाला हो, भारतीय नागरिक हो तथा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में भागेदारी करना चाहता हो,वो फार्म भर सकता है।
अब क्या भारत में ऐसा पहली बार हो रहा है,तब हम देखते हैं कि पहले भी सरकारें काबिल व्यक्तियों को लेती रही है, जैसे मनमोहन सिंह व डा अबुल कलाम दोनों आइएएस नही थे, परन्तु वे सीधे ले लिए गए थे। 
मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्लानिंग कमीशन के डिप्टी चेयरमैन रहें, फाइनेंस मिनिस्ट्री में सलाहकार रहे।
अबुल कलाम जी सैक्रेटरी लेविल की पोस्ट पर रहे।
दूसरे कई लोग भी ऐसे ही उच्च पदों पर रहे हैं।
क्योंकि वो अपने क्षेत्रों के एक्सपर्ट थे। अमेरिका और चीन में तो यह सिस्टम सरकार मे है, अमेरिका का राष्ट्रपति अपनी इच्छा के अनुसार उच्च ब्यूरोक्रेसी में चार हजार पदों पर नियुक्ति कर सकता है। लेकिन भारत में सरकार का सिस्टम इंग्लैंड के आधार पर है, इसलिए यहा सरकारी व्यक्ति को तटस्थ रहना होता है।ये उच्च ब्यूरोक्रेसी के पद तीन या पांच साल के लिए संविदा पर होते हैं। यदि कोई व्यक्ति इस पद पर नियुक्त होकर नौकरी छोडना चाहें तो वह तीन महीने पहले नोटिस देगा, यदि सरकार किसी को हटाना चाहें तो वह भी तीन महीने पहले नोटिस देगी।
जब भारत सरकार पहले से ही लेती रही है तो अब शोर क्यो मच रहा है।
इन पदो पर नियुक्ति निकालने के दो कारण भारत सरकार ने बताये,पहला तो यही कि उच्च पदो को सम्भालने के लिए काबिल व्यक्ति चाहिए, दूसरा ये कि भारत में आइएएस अधिकारी कम है।आज भारत को 6500 आइएएस अधिकारी चाहिए, जबकि आज भारत के पास कुल पांच हजार आईएएस अधिकारी है।
सन् 2001 में निती आयोग ने सिफारिश की कि हायर सिविल सर्विस में लेटरल एंट्री को लाना चाहिए। सन् 2018-2021 में कुछ हद तक लेटरल एंट्री को नियम व्यवस्था के तहत लाया गया। नियुक्ति प्रक्रिया यूपीएससी के माध्यम से कर दी गई।
जब सन् 1991 में आर्थिक सुधार प्रारंभ हुए तब से आइएएस की वैकेंसी भारत सरकार ने कम निकालनी शुरू कर दी थी, सरकार का मानना था कि जब प्राईवेट सैक्टर बढेगा तो आइएएस अधिकारियों की आवश्यकता कम होगी। सन् 1996- 1997 से सन् 2003 तक आते-आते 55 आइएएस की हर साल वैकेंसी भारत सरकार की ओर से निकाली जाने लगी, जो सन् 2012 तक ऐसे ही निकलती रही, जबकि प्रत्येक वर्ष 200 वैकेंसी निकालनी चाहिए थी,इसका असर यह हुआ कि सन् 2012 तक आते-आते आइएएस अधिकारी कम पड गये। सन् 2012 के बाद से भारत सरकार 180 आइएएस की वैकेंसी हर वर्ष निकाल रही है।
मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 39 आइएएस अधिकारी काम करने की लापरवाही के कारण हटा दिए, जिससे और कमी आ गई।
सन् 1967 का एससी-एसटी के लिए व सन् 2018 का ओबीसी के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि संविदा पर 45 दिन से अधिक की यदि कोई नियुक्त सरकार करेगी तो उसमें अनुसूचित जाति तथा पिछडी जाति के लिए आरक्षण होगा।
आइएएस के लिए जनरल की अधिकतम आयु 32 वर्ष, ओबीसी के लिए 35 वर्ष, एससी एसटी के लिए 37 वर्ष है, सेवानिवृत्ति आयु सबके लिए 60 वर्ष है।
जोइंट सेक्रेटरी बनने के लिए आइएएस अधिकारी की सर्विस 18 वर्ष, एडिशनल सेक्रेटरी के लिए 20 वर्ष, सेक्रेटरी के लिए 25-30 वर्ष होनी चाहिए। क्योंकि एससी-एसटी और ओबीसी की आयु 37 व 35 वर्ष हैं और सेवानिवृत्ति की आयु सबकी 60 वर्ष है, इसलिए एससी-एसटी को 23 वर्ष तथा ओबीसी को 25 वर्ष नौकरी के मिलते हैं,इस कारण एससी-एसटी और ओबीसी के लोग सेक्रेटरी जैसे पदो पर नही पहुंच पाते। क्योंकि
सेक्रेटरी बनने के लिए कम से कम 4 वर्ष की सर्विस बची हुई होनी चाहिए। आइएएस का इंटरव्यू 275 नम्बर का होता है। इंटरव्यू में आठ बोर्ड होते हैं। इनमें कुछ बोर्ड ऐसे होते है जो 170 से कम नम्बर नही दे सकते, कुछ ऐसे होते हैं जो 170 से ऊपर नम्बर नही दे सकते।इस कारण भी कुछ प्रतिभावान लोग भी इंटरव्यू में बाहर हो जाते हैं। क्योंकि कितना भी बुद्धिमान व्यक्ति का इंटरव्यू उस ग्रुप में पड गया जो 170 नम्बर से ऊपर दे ही नही सकता तो क्या करें?
समाप्त
संदर्भ ग्रंथ
लेटरल एंट्री- डा विकास दिव्य कीर्ति
https://youtu.be/1u0LZHCy6Ww

शुक्रवार, 7 मई 2021

गणतंत्र भारत- लेखक अशोक चौधरी।

आज भारत एक गणतंत्र है,जिसे अंग्रेजी में रिपब्लिक इंडिया कहते हैं।भारत एक वेलफेयर स्टेट है। स्टेट दो प्रकार की होती है,एक पुलिस स्टेट तथा दूसरी वेलफेयर स्टेट।
पुलिस स्टेट उसे कहते हैं जहां कानून का कड़ाई से पालन होता है,किसी कमजोर के लिए कानून मे कोई छूट नहीं होती।इसे निगेटिव डिस्क्रिमिनेशन अर्थात नकारात्मक भेदभाव भी कहा जाता है। लेकिन जो वेलफेयर स्टेट होता है,उस राज्य में ऐसे प्रावधान होते हैं जिसमें कमजोर के लिए कुछ छूट होती है,इसे पोजेटिव डिस्क्रिमिनेशन कहते हैं अर्थात सकारात्मक भेदभाव।
जैसे यदि किसी सामान्य परिवार में माता-पिता के दो बच्चे हैं,वो इन दोनों को एक-एक किलो दूध पीने के लिए रोज देता है, परंतु उन बच्चों में से एक बच्चा बीमार हो जाता है और डाक्टर यह सलाह देता है कि इस बीमार बच्चे को एक किलो दूध जो इसे मिल रहा है, से अधिक की आवश्यकता है। माता-पिता के पास इतना बजट नही है कि वो दोनों बच्चों को दो-दो किलो दूध की व्यवस्था कर सके।वह तो एक-एक किलो की ही पूर्ति मुश्किल से कर पा रहा है।तो वह यह व्यवस्था बनाता है कि जो स्वस्थ बच्चा है उसके एक किलो दूध में से आधा किलो दूध बीमार बच्चे को और देने लगता है।इस प्रक्रिया को सकारात्मक भेदभाव कहा गया है।इस नियम को अपनाने वाले स्टेट को वेलफेयर स्टेट कहते है।
वेलफेयर स्टेट भारत का मूल चरित्र रहा है, इसलिए हमारे यहा वसुदेव कुटुम्ब की धारणा रही है। परन्तु सन् 1192 से लेकर जो विदेशी शासन भारत में स्थापित हुआ, उसने पुलिस स्टेट को स्थापित कर दिया। लेकिन सन् 1815 से अंग्रेजों मे पुलिस स्टेट के स्थान पर वेलफेयर स्टेट के प्रयास प्रारंभ हुए, उस कारण अंग्रेजों ने भारत में भी इस ओर कदम बढाये तथा सन् 1829 से भारत में सुधार करने चालू किए।राजा राम मोहन राय की सिफारिश पर उस समय के गवर्नर जनरल ने सती प्रथा जैसी कुरिति को बंद करने के लिए कानून बनाये, सन् 1850 में लार्ड डलहौजी ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर की सिफारिश पर अस्पृश्यता के निषेध का कानून बनाया। सन् 1857 की क्रांति के बाद और अधिक इस विषय में काम हुआ तथा सन् 1947 में भारत आजाद हुआ। 
15 अगस्त सन् 1947 से पहले भारत ब्रिटिश राज्य की एक कालोनी था,जिसे उपनिवेश कहते हैं। लेकिन 18 जुलाई सन् 1947 को लंदन की संसद ने यह प्रस्ताव पास कर दिया कि 15 अगस्त सन् 1947 को भारत को आजाद कर दिया जायेगा। तथा ब्रिटिश इंडिया को भारत और पाकिस्तान के रुप में दो डोमेनियन स्टेट में विभक्त कर दिया जायेगा।जिसे द इंडियन इंडिपेंडेंट एक्ट कहते हैं।इसी दिन वायसराय के स्थान पर गवर्नर जनरल का पद अस्तित्व में आ गया।अब भारत व पाकिस्तान की अंतरिम सरकार की कैबिनेट के निर्देश पर दोनों देशों के गवर्नर जनरल ब्रिटिश क्राउन के हस्ताक्षर से बनने थे, अतः भारत की कैबिनेट के निर्देश पर वायसराय माउंट बेटन को भारत का तथा मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का गवर्नर जनरल नामित कर दिया गया। दोनों देशों के संविधान बनने तक सन् 1935 के संविधान के अनुसार ही शासन चलना था।26 नवम्बर सन् 1949 को भारत का संविधान बनकर डा राजेन्द्र प्रसाद जी को सोप दिया गया, भारत के संविधान को बनाने में डा भीमराव अम्बेडकर तथा बीएन राव का विशेष योगदान रहा।26 नवम्बर सन् 1949 को ही संविधान के चार अनुच्छेद लागू हो गये, जिसमें एक भारत की नागरिकता,दूसरा चुनाव आयोग आदि थे।भारत के संविधान में आधे से अधिक सन् 1935 के संविधान से ही लिया गया है।
भारत का संविधान 26 जनवरी सन् 1950 को लागू हो गया।31 दिसम्बर सन् 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पं जवाहरलाल लाल नेहरू ने यह घोषणा की थी कि भारत एक सम्प्रभु राष्ट्र बनेगा तथा 26 जनवरी सन् 1930 से कांग्रेस प्रत्येक 26 जनवरी को भारत की आज़ादी का उत्सव मनाती आ रही थी, इसलिए भारत के संविधान को लागू करने तथा भारत को ब्रिटेन के डोमिनियन स्टेट के स्थान पर एक गणतंत्र देश बनाने की घोषणा कर दी गई। भारतीय संविधान की धारा 395 के अंतर्गत मिले अधिकार से ब्रिटिश सरकार के दोनों एक्ट -
( 1) इंडियन इंडिपेंडेंट एक्ट 1947
(2) गवर्मेंट एक्ट 1935
 को समाप्त कर दिया।
भारत के राष्ट्रपति के पद पर डा राजेन्द्र प्रसाद को नामित कर दिया गया था।अब भारत एक रिपब्लिक देश बन गया था।
आज की दुनिया में
सऊदी अरब, नार्थ कोरिया,वेटेकन सिटी राजतंत्र से चल रहे हैं। राजतंत्र में सम्पूर्ण शक्ति राजा के पास होती है।
जारडन, ओमान निश्चित राजतंत्र से चल रहे हैं। निश्चित राजतंत्र में कुछ शक्ति राजा के पास होती है कुछ कैबिनेट के पास होती है।
इंग्लैंड, नार्वे,स्वीडन, डेनमार्क, भूटान, थाईलैंड, जापान संवैधानिक राजतंत्र से चल रहे हैं। संवैधानिक राजतंत्र में राजा सिर्फ नाममात्र का होता है, सम्पूर्ण कार्य जनता के द्वारा चुनी हुई कैबिनेट देखती है।
ग्रीस, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड,कनाडा आज भी ब्रिटेन के डोमेनियन स्टेट है।
भारत, अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी,इटली, स्वीटजरलैंड, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका सभी रिपब्लिकन देश है।
समाप्त
संदर्भ ग्रंथ
https://youtu.be/clGbdD6SxGo