मंगलवार, 30 जनवरी 2024

1857 के महान क्रांतिकारी अमर शहीद चौधरी तोता सिंह कसाना - लेखक अशोक चौधरी मेरठ।

भारतियों ने अपनी भूमि को माता के समान माना है। अतः जब- जब भी भूमि को बचाने के लिए बलिदान देने की जरूरत पडी तो भारतियों ने अतुलनीय बलिदान दिये है।ऐसा ही संघर्ष सन् 1857 की क्रांति में चौधरी तोता सिंह कसाना का है।1857 में अंग्रेजों की भारतिय सैना बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सिपाहियों के साथ भारत के वो राजा/जागीरदार जो अंग्रेजों के शोषण का शिकार हो गये थे तथा उन रियासत व जागीरों में निवास करने वाली जनता ने एक साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का एक बडा प्रयास किया था। इस संघर्ष में लाखों की संख्या में भारतियों का बलिदान हुआ था, अंग्रेजों की ओर से भी  उनके अधिकारी, सैनिक व परिवार के स्त्री-बच्चे मारे गए थे।इस कारण भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ से निकल कर सीधा ब्रिटिश क्राउन के हाथ में चला गया था।भारतियों द्वारा दिए गये बलिदान से वो फल तो प्राप्त नही हुआ जो भारतिय चाहते थे, परंतु बहुत कुछ प्राप्त हो गया था। यह अंग्रेजों की समझ में आ गया था कि भारतियों को वो पूर्ण रूप से गुलाम नहीं  बना सकते, यदि उनको यहां शासक बन कर रहना है तो भारतियों की बात और भावना की कद्र करनी ही पड़ेगी।
भारतियों के अस्तित्व व अस्मिता को बचाने के इस संघर्ष में जिन असंख्य लोगों ने बलिदान दिया। उनमें बहुत बडी संख्या उन लोगों की थी, जो न तो किसी जागीर या रियासत के जागीर दार थे और नाहि क्रांति कारी सेना/बंगाल नेटिव इन्फैंट्री का हिस्सा थे बल्कि एक साधारण किसान परिवार से थे। चौधरी तोता सिंह कसाना उन्ही आम आदमी का एक चेहरा है।वो असंख्य लोग जिनका कोई नाम रिकार्ड में नही आया, सिर्फ अंग्रेजों के द्वारा संख्या लिख दी गई,कि इस जगह इतने लोग मारे गए,चौधरी तोता सिंह कसाना उन सभी अमर क्रांतिकारियों का एक मान बिन्दु है।
चौधरी तोता सिंह कसाना एक जगह जरुर भाग्यशाली रहें हैं कि उनके वंशजों ने अपनी स्मृति में उनकी याद सजोये रखी तथा वे उनका स्मरण समय समय पर करते रहे हैं।
क्रांति के इस किरदार पर मेरे द्वारा किया गया यह लेखन चौधरी तोता सिंह कसाना तथा उन सभी अज्ञात क्रांतिकारियों को एक छोटी सी श्रंद्धाजलि के रूप में पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है।-
चौधरी तोता सिंह कसाना जी की वीरता को जानने से पहले हमें उस समय की समाज रचना को समझना होगा। जिसके प्रभाव के कारण एक सामान्य किसान क्रांतिकारी योद्धा के रूप में प्रकट हो गया।
भारत के उत्तर में तथा दक्षिण में जो समाज की व्यवस्था रही है, उसमें कुछ अंतर रहा है। दक्षिण भारत में जाति प्रथा रही है तथा उत्तर भारत में यजमान प्रथा रही है।
जाति प्रथा के अनुसार किसी भी गांव में जो शासक जाति होती थी यानि जिसके पास जमीन होती थी,उस गांव में बसी सभी जातियां किसान जाति के साथ एक श्रमिक के रूप में जुडी रहती थी।यानि एक तरह से यदि किसी गांव में बसी ब्राह्मण जाति किसान जाति है तो जो अन्य श्रमिक जातियां सम्पूर्ण गांव की ब्राह्मण जाति की श्रमिक मानी जाती थी।
लेकिन उत्तर भारत में ऐसा नहीं था खासतौर से हरियाणा पंजाब पश्चिम उत्तर प्रदेश या जहां जाट गूजर अहीर बाहुल्य में थे, उनके गांव में यजमान प्रथा थी।इस प्रथा में यदि एक गुर्जर जाति का गांव है, उसमें सभी जमीन गुर्जर जाति के व्यक्तियों के पास है,उस गांव में बसी श्रमिक जातियां गुर्जर जाति की श्रमिक जाति न होकर,एक परिवार के कृषक के साथ एक परिवार की ही श्रमिक जाति जुडी होती थी। जैसे एक किसान परिवार के साथ एक नाई परिवार,एक कुम्हार परिवार,एक धोबी परिवार,एक भंगी/बाल्मिकी परिवार, एक चमार परिवार,एक धींवर परिवार तथा पुरोहित के रुप में एक ब्राह्मण परिवार जुडा रहता था।इस व्यवस्था के कारण एक दूसरे के सुख दुख का जुडाव बना हुआ था। कार्य के रुप में शोषण भी श्रमिक जाति का कम था,क्यौकि एक परिवार पर एक परिवार की ही जिम्मेदारी थी,अन्य उससे काम नही लेता था।
लडने की पहली शर्त यही है कि जो लडना चाहते हैं उनमें समानता हो,इस यजमान प्रथा के कारण उत्तर भारत के समाज में काफी हद तक समानता थी,मानव अधिकारों का हनन बहुत ही कम था, मुसीबत आने पर किसान व श्रमिक जातियां एक साथ मिलकर अपने शत्रु से संघर्ष कर जाती थी। इसलिए भारत के इतिहास ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं जिनमें श्रमिक जाति के लोगों ने अपने किसान जाति के लोगों पर आयी मुसीबतों का कंधे से कंधा मिलाकर विरोध किया है तथा बलिदान दिये है।
गुर्जर प्रतिहार सम्राटों के द्वारा जातिय आधार पर जो जागीर दी गई थी,उनकी रचना इस तरह की बन गई थी कि प्रत्येक जाति की बसावट एक छावनी के रुप में हो गई थी।12,24,60,84,360 गांव की संख्या की जागीर के गांव थे जो एक ही जाति तथा एक ही गोत्र के लोगों के पास थे।ऐसी मान्यता है कि दिल्ली के पास  पृथ्वीराज चौहान के ताऊ सम्राट बिसल देव चौहान के द्वारा 360 गांव की जागीर भाटी गुर्जरों को दी गई थी।इन 360 गांव में भाटी गुर्जर सिर्फ 80 गांव में थै बाकि गांव इन भाटी गुर्जरों ने अपने रिश्तेदारों को दे दिए थे, जिनमें 12-12 गांव कसाना और बेसला गुर्जरों को लोनी के आसपास दिए गए,लोनी मे बना किला एक सैनिक छावनी के रुप में था,लोनी के पास बसा जावली गांव इन चौबीस गांव का हैडक्वार्टर था।इसी प्रकार बुलंदशहर में राजगढ़ में बना किला सैनिक छावनी के रुप में था, दुजाना व दादरी के पास बसा कटेहडा गांव क्षैत्र का हेडक्वार्टर था।उस समय समाज का प्रत्येक वर्ग एक सेनिक की तरह हथियार बंद और प्रशिक्षित रहता था,राजा की सेना हार जाने के बाद भी आम आदमी इतना संगठित व सशक्त था कि वह छोटी-मोटी सेना का मुकाबला करने मे सक्षम था, दुश्मन का दबाव बनने पर उसे पलायन कर कहा चले जाना है वह भली-भांति जानता था, मुसीबत टलने पर फिर अपनी जगह लौट आता था।ऐसी व्यवस्था लोगों ने बना रखी थी। सन् 1398 में तैमूर लंग के हमले के समय तुगलक की सेना के हार जाने के बाद भी इस क्षेत्र के लोगों ने तैमूर की सेना का जमकर मुकाबला किया था तथा तैमूर के बेटे को मारकर लोनी के किलेदार करतार सिंह ने उसका शव किले दीवार पर टांग दिया था।
सन् 1773 में राज गढ किलै के किलेदार चंद्र भान सिंह गुर्जर/चंदू गुर्जर ने भरतपुर के राजा नवल सिंह के सेनापति के रूप में मुगल सेना से लडते हुए बलिदान दिया था। कहने का तात्पर्य यह कि सन् 1857 के समय भी इस क्षेत्र बसे किसान जाति समूह हथियार बंद थे तथा आवश्यकता पड़ने पर सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की स्थिति में थे।इसी संरचना के कारण चौधरी तोता सिंह कसाना एक क्रांतिकारी सिपाही के रूप में सन् 1857 की क्रांति में अपने स्थानीय सेनापतियो क्रमशः रोशन सिंह भाटी, उमराव सिंह भाटी व राव कदम सिंह व चौधरी शाहमल सिंह के साथ सम्मिलित हो गये। ंं
श्री तोता सिंह कसाना जी का जन्म प्रातः 5 बजे सन् 1802,दिन बृहस्पतिवार को चौधरी रणजीत सिंह कसाना व माता श्रीमती महकारो देवी के यहां लोनी तहसील के गांव महमूद पुर जो वर्तमान में जिला गाजियाबाद मे आता है, में हुआ था।
सन् 1857 की क्रांति के समय तोता सिंह कसाना की आयु 52 वर्ष थी।एक अच्छै मिलनसार परिवार में पैदा होने के कारण अपने आसपास कै गांवों में उनका बडा सम्मान था।
10 मई सन् 1857 को जब मेरठ से क्रांति की शुरुआत हुई तथा दिल्ली के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को भारत का सम्राट घोषित कर दिया गया।तब क्षेत्र की व्यवस्था बनाने के लिए बहादुर शाह जफर ने 26 मई को यमुना के पास के क्षेत्र बडोत-बागपत का सूबेदार बडोत के पास स्थित बिजरोल गांव के चौधरी शाहमल सिंह को बना दिया था। यमुना नदी पर नावों का पुल बना हुआ था। अंग्रेजों की मदद के लिए अम्बाला छावनी से सैनिक मदद इसी पुल से आई तथा हिंडन के तट पर भारतीयों और अंग्रेजों के मध्य 30- 31 मई सन् 1857  को घमासान युद्ध हुआ।इस युद्ध में बुलंदशहर और अलीगढ़ के  सूबेदार माला गढ़ के वलीदाद खां के साथ गुठावली के इंद्र सिंह राठी व कटहडा दादरी के राव रोशन सिंह भाटी अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों से लड़ें।
दादरी के राव रोशन सिंह भाटी के युद्ध में सहभागी हो जाने कै कारण इस क्षेत्र के आसपास बसे गुर्जर जाति के किसान भी अपने नेता कै साथ सम्मिलित हो गये। जिनमें एक तोता सिंह कसाना भी थे।राव रोशन सिंह व उनके छोटे भाई भगवान सिंह इस युद्ध में उन हजारों भारतियों के साथ शहीद हो गए,ऐसा अनुमान है। क्योकि इस तारिख के बाद राव रोशन सिंह व भगवान सिंह की गतिविधी का कही कोई जिक्र नहीं आता। परंतु राव रोशन सिंह के भतीजे राव उमराव सिंह भाटी ने 31 मई को सिकंदराबाद के अंग्रेज परस्त व्यक्तियों पर, करीब 20000 साथियों के साथ हमला कर दिया था।इस हमले में सैकड़ों अंग्रेज  परस्त मारे गए थे।
श्री तोता सिंह कसाना भी हिंडन नदी के किनारे हुए इस युद्ध में बलिदान हो गये।
उनके बलिदान के बाद जब शांति स्थापित हुई,तभी से श्री तोता सिंह कसाना जी के वंशज,उनको स्मरण करते आ रहे हैं।आज के समय में जब उनके वंशज गांव महमूद पुर से निकल कर बाहर शहर में निवास करने लगे हैं। लेकिन श्री तोता सिंह कसाना जी का स्मरण वो करते रहे हैं।
श्री तोता सिंह कसाना के एक वंशज श्री नेपाल सिंह कसाना जी मेरे (अशोक चौधरी) भी सम्पर्क में हैं।भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय की ओर से सन् 1857 से लेकर सन् 1947 तक के सभी बलिदानियों को स्मरण करने के लिए उनके गांवों में कार्यक्रम करने की योजना बनी।उसी योजना के अंतर्गत मेरठ प्रांत के अंदर कार्यक्रम करने के लिए क्रांति तीर्थ समिति के नाम से एक टोली का गठन हुआ। जिसमें मेरठ के गढ़ रोड पर स्थित गांव माछरा के अश्वनी त्यागी जी इस समिति के संयोजक बने। में इस समिति के संरक्षक मंडल में था। आईआईएमटी कालेज मेरठ के मैनेजर श्री मयंक अग्रवाल जी बुलंदशहर व गोतम बुद्ध नगर के संयोजक बने।इस टोली के द्वारा मेरठ प्रांत में विभिन्न क्रांतिकारियों के गांवो में कार्यक्रम कर, बलिदानियों के वंशजों को सम्मानित किया गया।
नोएडा में श्री तोता सिंह कसाना के वंशज श्री नेपाल सिंह कसाना जी निवास करते हैं। अतः श्री तोता सिंह कसाना जी की स्मृति में एक कार्यक्रम 26 अगस्त सन् 2023 को नोएडा में किया गया, जिसमें पूर्व मंत्री श्री नबाब सिंह नागर जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहें तथा मुझे मुख्य वक्ता के रूप में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। समिति की ओर से श्री नेपाल सिंह कसाना तथा अन्य वंशजों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
समाप्त।





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