शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

डा अशोक कुमार चौधरी एक जीवन यात्रा

मेरा जन्म एक किसान परिवार में 23 सितंबर सन् 1965 को हुआ, लेकिन सरकारी कागजों में मेरी जन्म तिथि 31 मार्च सन् 1964 है। मेरे पिता श्री श्री समय सिंह जी जिला मुज्जफर नगर के खतौली ब्लॉग के भटौडा गांव के निवासी थे,मेरे दादा जी का नाम श्री जिले सिंह था।मेरे बाबाजी ने हमें बताया था कि हम आज के उत्तराखण्ड में गुरूकुल -नारसन रोड पर स्थित टिकोला गांव के गुर्जर समाज के पताह गोत्र के है जो किसी कारण वश आज अपने गांव भटौडा मे आ गये थे।मेरी दादी जी हमारे वर्तमान गांव के पास स्थित दाहखेडी गांव की सरोहा गोत्र की थी।मेरी माता जी गढ़ रोड पर स्थित हसनपुर कलां गांव की खटाना गोत्र की थी,मेरी नानी जी किठौर के पास स्थित भडौली गांव की कसाना गोत्र की थी।मेरी धर्मपत्नी मेरठ हरिद्वार रोड पर स्थित दादरी गांव की मोतला गोत्र की थी।मेरी बहन कृष्णा की शादी बागपत रोड पर स्थित नगला जमालपुर गांव में बैसला गोत्र मे हुई तथा भाई महेश की पत्नी बीना मेरठ गढ़ रोड पर स्थित हिरनपुरा गांव की तंवर गोत्र की है।


मेरे पिताजी श्री समय सिंह पुत्र स्व श्री जिले सिंह एक सीधे- साधे ईश्वर मे विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे।उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के खतोली ब्लाक के भटौडा नाम के गांव में 11-05- 1942 में हुआ था।वो एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे।हमारी माता स्व श्रीमती श्याम कली देवी जो जिला मेरठ की मवाना तहसील के माछरा ब्लाक के अन्तर्गत गढ़ रोड पर स्थित हसनपुर कलां गांव के स्व श्री रामचन्द्र जी की पुत्री थी।हम अपनी माता-पिता के तीन संतान है।
मेरी बडी बहन कृष्णा, में (अशोक चौधरी/कुमार) और मेरा छोटा भाई महेश कुमार।
हमारे मामा जी का परिवार पढा लिखा परिवार था,हमारे मामा जी श्री निर्भय सिंह व श्री सिब्बू सिंह सरकारी अधिकारी थे तथा शहर में निवास करते थे।ऊनकी जीवन शैली से प्रभावित होकर हमारी माता जी के अथक प्रयास तथा नाना व नानी जी के अथक सहयोग से हम भी सन् 1977 में मेरठ की नेहरू नगर कालोनी की गली नंबर एक मे अपना मकान बनाकर रहने लगे थे तथा शहरी नागरिक बन गये थे।
ग्रामीण से शहरी नागरिक बनने का सफर काफी दिलचस्प व संघर्ष भरा था। मेरे नाना जी का परिवार यूं तो एक किसान परिवार था, परंतु वह किसानों में अगडे थे।मेरे नाना जी के मकान का दरवाजा लखोरी ईंटों का बना हुआ था,जिसे देखकर यह प्रभाव पडता था कि यह पुराना सम्पन्न परिवार है।
मेरै नाना जी के यहां सन् 1972-73 के आसपास घर पर शौचालय बना हुआ था,जो उस समय एक किसान के यहां होना, परिवार की अग्रणिय स्थिति की ओर संकेत करता था।मेरी नानी जी जिनका नाम प्रहलादो देवी था,माछरा ब्लाक के भडोली गांव के निवासी श्री बहादर सिंह कसाना की पुत्री थी।जैसा मेरी नानी जी बताती थी कि उनके पिताजी पशुओं (गाय,भैस) की बीमारी दूर करने की देशी दवाई के जानकार थे।उनके द्वारा ही मेरी नानी जी को भी यह तकनीक ज्ञात थी।मेनै स्वयं देखा कि मेरी नानीजी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त पशुओं को कान व पूंछ की नस बींधकर तथा देशी दवाई की दो तीन खुराक मे ही ठीक कर देती थी,इस कारण नानीजी का आसपास के कई गांवों में बड़ा आदर था।नानी जी कोई डिग्री प्राप्त डाक्टर नही थी, परंतु उनकी दवाई डिग्री प्राप्त डाक्टरों पर भारी पडती थी।इस कारण नानीजी उस पुराने समय में एक आर्थिक रुप से सशक्त महिला थी।
यही कारण रहा कि मेरे नानाजी एक माध्यम दर्जे के किसान होने के बावजूद भी अपने आसपास के बड़े किसानों से बहतर थे। हमारे मेरठ में स्थापित होने मे हमारी नानी जी का बहुत बड़ा योगदान था। हमारे पिताजी और दादाजी शहर में रहने के पक्षधर नही थे,वो गांव में ही अपनी खेती किसानी बढाना चाहते थे। परंतु हमारी माताजी शहरी जीवन की पक्षधर थी।इस स्थिति में शहर में सम्पत्ति खरीदने में मेरे पिताजी की कोई रुचि नहीं थी। सन् 1972 में मेरी माता जी ने अपने बल पर मेरठ में 200 वर्ग गज का एक प्लाट गढ़ रोड पर स्थित नेहरू नगर कालोनी में खरीद लिया,जिसके लिए सब धन की व्यवस्था मेरी माता जी ने की थी।मेरी माता जी का कोई व्यवसाय नही था। अतः किसी ना किसी रुप में यह धन मेरे नाना जी व नानी जी की कृपा से प्राप्त था। सन् 1974 में इस प्लाट की नींव भरी गई। उसमें आधा सहयोग हमारे पिताजी ने दिया था, सन् 1976 में इस प्लाट पर बिल्डिंग बनी, जिसमें 20% रुपये पिताजी की ओर से 80% रुपयों का सहयोग मेरी माता जी का रहा था। सन् 1978 में मकान की फिनिशिंग हुई, इसमें पूरा खर्च मेरे पिताजी ने दिया था,इस प्रकार हम शहरी नागरिक बन मेरठ में रहने लगे थे।
मेंने सातवीं कक्षा में रामसहाय इंटर कालेज में एडमिशन ले लिया था,मेरी बडी बहन कृष्णा हाई स्कूल का प्राइवेट फार्म फर दिया था,छोटा भाई महेश प्रथम कक्षा मे पढने लगा था। मैंने सन् 1980 में राम सहाय इंटर कालेज से हाई स्कूल पास कर लिया था, ग्यारहवीं कक्षा बीएबी इंटर कालेज से पास की तथा सन् 1982 में डीएन इंटर कॉलेज मे बारहवीं कक्षा में एडमिशन ले लिया था।
सन् 1983 में मेरी बडी बहन कृष्णा की शादी बागपत रोड पर स्थित नगला जमालपुर गांव में रहने वाले श्री मनबीर सिंह जी से सम्पन्न हो गई।श्री मनबीर सिंह जी आज एडवोकेट है।
बहन कृष्णा के एक पुत्री शालिनी व एक पुत्र विशाल तथा अब विशाल के एक बेटा है।
 
लेकिन कुछ परिवारिक समस्या के कारण मेरी बारहवीं कक्षा की से पढाई छूट गई। मुझे पिताजी के सहयोग के लिए गांव में कृषि कार्य करने के लिए जाना पड़ा। 5 जुलाई सन् 1987 को मेरी शादी मेरठ से हरिद्वार रोड पर स्थित दादरी गांव के जुनियर हाई स्कूल के अध्यापक श्री जबर सिंह की पुत्री ऊषा देवी से हो गई थी।श्री जबर सिंह सन् 1986 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हुए थे।
मेरे दादाजी भी स्वर्गवासी हो गये थे,अब हमारा पूरा परिवार एक साथ मेरठ ही रहने लगा था।
इंसान कितना भी पढ लिख ले, परंतु समाज के नियम उसे प्रभावित अवश्य करते हैं।मेरे मामाजी भी समाज की प्रथा से प्रभावित हो गये थे। क्योंकि वह उनको लाभ पहुंचाने वाली थी। भारतीय समाज में उस समय बेटी को पराया धन समझा जाता था। माता-पिता अपनी बेटी की शादी करना ही अपनी जिम्मेदारी समझते थे। परंतु जमाना बदल रहा था।मेरे नाना जी व नानी जी इस बदलाव से प्रभावित होकर बेटी को पराया धन ना मानकर बराबर का अधिकार दे रहे थे। परन्तु इस बदलाव को मेरे मामाजी स्वीकार नही कर रहे थे। अतः परिवार में तनाव बन गया था। जिसमें मेरे नाना जी व नानी जी तथा माता जी एक ओर थे तथा मेरे दोनों मामा जी एक ओर।आपसी मनमुटाव इतना बढ़ा कि हमारी शादियों में भात की रस्म मे भी परेशानियां बनी। परंतु समय के मरहम ने सब ठीक कर दिया था।हम तीनों भाई बहन तथा हमारे मामा जी के बीच रिश्ते सहज ही थे।
जब सन् 1977 में हम गांव से मेरठ में आ गये।तब मेरे पिताजी को गांव में ही रहकर खेती करानी पडी, क्योंकि मेरे दादाजी शहर में रहने के पक्षधर नही थे। उन्होंने मेरठ में रहने के लिए साफ मना कर दिया था।इस कारण मेरे पिताजी को सात-आठ वर्ष तक गांव में ही दादाजी के पास रुकना पडा।मेरी छोटी बुआ जी श्रीमती शिमला देवी का इस समयावधि में बहुत सहयोग रहा।बुआ जी वर्ष में करीब छः महीने पिताजी और दादाजी के पास गांव में रह जाती थी।कभी कभी कोई आपदा भी रास्ता आसान कर देती है।मेरा गांव मेन रोड से बहुत अंदर था, वहां बाजार से कुछ भी लेने की कोई व्यवस्था नहीं थी।नमक या माचिस जैसी चीजें लेने के लिए भी गांव से सात किलोमीटर दूर मंसूरपुर या तीन किलोमीटर दूर सिखेड़ा आना पडता था।ऐसी परिस्थिति में पिताजी और बाबाजी के खाना बनाने की व्यवस्था कैसे बनें।यह एक गंभीर प्रश्न था। कुटुम्ब के लोग सहयोगी थे परंतु लगातार सहयोग बने रहना सम्भव नहीं था।मेरी छोटी बुआ जी कुछ क्रोधी स्वभाव की थी।उनकी जहां शादी हुई (वर्तमान में उत्तराखंड में रूड़की के पास देवपुर गांव) वहां उनकी सासूजी भी क्रोधी स्वभाव की थी।मेरी बुआ जी के दो संतान एक बेटा व एक बेटी पैदा हो गई थी। लेकिन तभी मेरे फूफाजी का देहांत हो गया था। परिस्थिति ऐसी बनी कि मेरी बुआ जी और उनकी सासूजी के मध्य जो टकराव हो जाता था तो कोई शांत करने वाला नही था। बुआ जी के ससुर फूफाजी की मृत्यु के कुछ माह बाद ही स्वर्ग वासी हो गये थे।इन परिस्थितियों में मेरी बुआ जी वर्ष भर करीब आठ महिने पिताजी के पास गांव अपने बच्चों सहित आ जाती थी,वो छ महीने रहती फिर दो महिने को अपनी ससुराल चली जाती थी। वहां मुश्किल से दो महिने रह पाती थी फिर पिताजी के पास आ जाती थी। क्योंकि गांव में मेरी माताजी भी नही थी, इसलिए वहां उनका किसी से कोई टकराव नही होता था।इस प्रकार मेरे दादा जी की मृत्यु तक यही क्रम बना रहा।मेरी बुआ जी के बच्चे भी बडे हो गये थे,उनकी सासूजी की भी मृत्यु हो गई थी।समय की शक्ति ने सब सामान्य कर दिया था तथा दोनों परिवारों की समस्या का समाधान भी कर दिया था।
मे सन् 1992 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाने लगा था,जो भरत शाखा के नाम से सूरजकुंड के पार्क में लगती थी,वही से मे राजनीतिक दल भाजपा से जुड गया था तथा सन् 1994 में भाजपा युवा मोर्चा के वार्ड नंबर 27 का अध्यक्ष बन गया था।
सन् 1997-98 में में भाजपा किसान मोर्चा मेरठ महानगर का अध्यक्ष बन गया था। 
 16-10-1998 को उत्तर प्रदेश सरकार मे पिछड़ा वित्त एवं विकास निगम में जिला मेरठ में सदस्य नामित हुआ।
सन् 2003-4 में में राम मंदिर आंदोलन में तीन दिन तक विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में चल रहे राम मंदिर आंदोलन में मेरठ कारागार में रहा।
सन् 2003 में में मेरठ जिला मे भाजपा जिला मिडिया प्रभारी के पद पर रहा। सन् 2009 में मे मेरठ दक्षिण विधानसभा का भाजपा विधान सभा का प्रभारी बना। सन् 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से मेरठ दक्षिण विधानसभा का सह चुनाव संयोजक तथा 2014 के लोकसभा चुनाव में मेरठ दक्षिण विधानसभा का संयोजक तथा सन् 2012 के विधानसभा चुनाव व 2017 के विधानसभा चुनाव में मेरठ दक्षिण विधानसभा के भाजपा प्रत्याशी का सह संयोजिक रहा। सन् 2013-2016 तक भाजपा जिला मेरठ महानगर का महामंत्री रहा।
सन् 1998 से ही में सामाजिक कार्य के नाते अखिल भारतीय गुर्जर विकास मंच मे महासचिव, अखिल भारतीय गुर्जर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंच मे अध्यक्ष तथा प्रताप राव गुर्जर स्मृति समिति रजि मेरठ के अध्यक्ष पद पर विराजमान रह कर अपने लेखन व महापुरुषों के जन्म दिवस व बलिदान दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन कर समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभाता रहा हूं।

इसी भागदौड़ में 6 जुलाई सन् 2025 को डाक्टर की मानद उपाधि से विभूषित कर दिया गया।
जीवन चलता रहा।मेरी माता जी वृद्ध हो चली थी।उनका पैर फिसल गया तथा कूल्हा टूट गया।वो बैड पर आ गई। पिताजी ने इस समय माता जी को भरपूर सहारा दिया।वे माता जी के साथ एक परछाईं की तरह रहें।माता जी के नीजि देनिक कार्य में पिताजी ने भरपूर सहायता की।
5 दिसम्बर 2021(रविवार का दिन मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि ) प्रात: 9 बजे माता जी इस नश्वर संसार को छोड़कर चली गई।
मेरे पिताजी,माता जी की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए असहज से रहें। परंतु हमने पिताजी को अकेला नही छोडा। में और मेरा छोटा भाई महेश, कोई ना कोई उनके पास ही सोता था। लेकिन 12-02-24 की दिन शाम को दूध पीते समय पिताजी के गले में फंदा लग गया।उनको हास्पिटल में भर्ती करना पडा।वो वेंटिलेटर पर आ गए तथा 20 फरवरी 2024 को (माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि ) को अस्पताल में मृत्यु हो गई।वो इस नश्वर संसार को छोड़कर चले गए।
एक सीधे साधे सरल जीवन का अंत हो गया।
व्यक्ति अकेला जन्म लेता है और जब संसार से विदा होता है तब अकेला ही चला जाता है। संसार में आने और जाने के बीच के समय को ही जीवन कहा गया है।इसी बीच व्यक्ति संसार में रहने वाले अन्य जीवों और वस्तुओं से भी सम्बन्ध बनाता है।जो निर्जिव व संजीव दोनों तरह से होते हैं। अपने देश, अपना गांव इसमें प्रमुख हैं। संसार में सजीव/जींदा लोगों मे बना सम्बन्ध जिनमें भाई-बहन,माता पिता,यार दोस्त तथा पति-पत्नि का है।
मेरा भी विवाह-संस्कार के माध्यम से पत्नी के रुप में मेरठ- हरिद्वार रोड पर स्थित दादरी गांव के निवासी राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त अध्यापक श्री झब्बर सिंह की पुत्री ऊषा रानी ( जन्म 05-11-1970, मृत्यु 14-03-2024) सेे 5 जुलाई सन् 1987 को सम्बन्ध बना।ऊषा देवी के तीन छोटे भाई जोगेंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह व प्रमेंद्र सिह थे।मास्टर झबर सिंह तीन भाई थे,जिनमे मास्टर झबर सिंह व उनके बडे भाई जयपाल सिंह एक साथ रहते थे।हमारी सासू मा दो सगी बहनें इन दोनो सगे भाईयों की धर्मपत्नी थी, जयपाल सिंह निसंतान थे समय व्यतीत होता रहा, मुझको दो पुत्री पायल व कोमल के रुप में प्राप्त हुई।
मेरी पत्नी ऊषा मृदु भाषी और प्रसन्न दिखने वाली महिला थी।मेरी माता जी सख्त स्वभाव की थी।मेरी बडी बेटी पायल घर पर ही पैदा हुई थी।उसके जन्म लेते समय एक स्थिति ऐसी बनी कि अस्पताल ले जाने की जरूरत आन पडी थी। परंतु डीलिवरी घर पर ही हो गई।मेरी बडी बहन कृष्णा मेरी बडी बेटी के पैदा होने पर ऊषा के साथ रही।
जब दूसरी बेटी के जन्म का समय आया तो मैंने माता जी से कह दिया कि अब घर पर नही, अस्पताल में डिलिवरी होगी।मेरी माता जी इस बात से नाराज़ हो गई।जब मे ऊषा को लेकर सुशीला जसवंत राय अस्पताल ले जाने लगा तो माता जी ने मेरे साथ जाने के लिए मना कर दिया।मे अपनी दूर के रिश्ते की मौसी जो गढ़ रोड पर स्थित किठोर के पास सादुल्लापुर गांव की निवासी थी तथा जिनका नाम धनकौर था ,को ले गया।जब मेरी छोटी बेटी कोमल पैदा हो गई तब ऊषा की माता जी को लेकर आया। अस्पताल में ऊषा की माता जी साथ रही। 
समय गुजरता रहा मेरी बडी पुत्री पायल की सन् 2011 में शादी हो गई। 

सन् 2016 में दूसरी बेटी कोमल की शादी हो गई थी।इस बीच ऊषा को शूगर की बीमारी हो गई थी।पायल के एक पुत्री अराध्या जो पांचवी कक्षा में तथा कोमल के एक पुत्री प्रणवी जो तीसरी कक्षा में आज के समय में पढती है।

 महेश के बेटे लोकेंद्र की शादी हो चुकी है उसके एक बेटा है,एक बेटी शिवांगी है जो चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रही है।
बहन कृष्णा के एक पुत्र विशाल तथा विशाल के एक बेटा है,एक पुत्री शालिनी जो लंदन में रहती हैं।
31-01-2018 की रात्रि को ऊषा की तबियत खराब हो गयी,बेगमबाग मेरठ में डा अनिल मेहता को दिखाया गया तो पता चला कि निमोनिया हो गया है,ऊषा की जान खतरे में है।मेरे पड़ोस में रहने वाले सतीश वर्मा की पुत्री दिल्ली एम्स अस्पताल में कार्यरत थी, उसके माध्यम से 02-02-2018 को ऊषा को दिल्ली ले गए।जब सुबह में ऊषा को गाड़ी से दिल्ली लेकर चला।तब मेरी माताजी नीचे खडी रो रही थी। उनके मन में यह डर समा गया था कि ऊषा जिंदा वापस आये या ना आये।मेरी माताजी सख्त स्वभाव की महिला थी। परंतु अपनो से प्यार कोन नही करता?
मेरे साथ मेरे छोटे भाई की पत्नी बीना व मेरी बडी बेटी पायल के ससुर रिठानी निवासी डा ज्ञानचंद बैसला थे।ऊषा दिल्ली से ठीक होकर आ गई।
मार्च 2020 में ऊषा फिर बीमार हो गयी। उसके पैर सूजने लगे।16-03-2020 को ऊषा को डा प्रवीण पुंडीर को दिखाया।तब वह ठीक हुई।लेकिन निमोनिया ने ऊषा का जीवन कठिन बना दिया।

जब ठंड का मौसम आता और जाता था,वह कुछ दिन परेशान रहती थी।वह सामान्य आदमी की तरह सीधा लेट नही पाती थी।एक तरफ करवट लेकर तथा सर की ओर से कुछ ऊंचा होने पर ही लेट पाती थी।जीवन चलता रहा।कुछ समय बाद 10-08-2022 को ऊषा को पेरेलाईसिस/फालिस का एक हल्का आघात हुआ।
डाक्टर ने ऊषा को ताजी हवा में घूमने की सुबह के समय सलाह दी। पेरालिसिस होने की वजह से वह अकेले घूमने जाने मे सक्षम नही थी।मे चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के प्रांगण में ऊषा को शाम को घूमाने ले जाने लगा।जिस दिन मुझे काम लग जाता,उस दिन घूमना छूट जाता था।वह अपने आप घूमने लगे,इसकी व्यवस्था के लिए मेने मेरठ बाईपास पर स्थित सुशांत सिटी सेक्टर तीन के अंदर इरीश गार्डन में डी-02-04 नम्बर का एक फ्लैट खरीद लिया। मार्च 2023 से हम इस फ्लेट में रहने लगे।मेरे पिताजी भी साथ में थे।अब ऊषा और मेरे पिताजी आराम से अपने आप फ्लेट के प्रांगण में घूम लेते थे।बाहर का कोई वाहन नही आता था,गेट पर चौकीदार रहता था। अच्छी व्यवस्था थी।शूगर, निमोनिया तथा पेरालिसिस की दवाई ऊषा खाती थी, उसके पास जीवन कम ही बचा था।यह में जानता था। परंतु मेने कभी ऊषा का साहस नही गिरने दिया।मेने उसे भरोसा दिलाया कि वह ठीक है।खूब जीयेगी।एक दिन ऊषा कहने लगी कि यदि उसे कुछ हो गया तो मे कैसे करूंगा? क्योंकि मैं घर के काम में रूचि नही लेता था।कपडे धोना आदि से में हमेशा दूर रहा। लेकिन मेने चाय बनाना सीख लिया था।मे सुबह उठकर पिताजी,ऊषा व खुद को चाय पिलाकर घूमने जाता था।इतना कमजोर होने पर भी ऊषा को मेरी चिंता थी,अपनी नही।मैने मन ही मन सोचा शायद भारत में नारी को देवी इसलिए ही कहा गया है।जिसे अपनी सेहत के बारे में सोचना चाहिए था,वह इस हालत में मेरे बारे में सोच रही थी।जीवन मृत्यु तो ईश्वर के हाथ है,वह कब किसे अपने पास बुला ले,वह उसकी मर्जी। परंतु सामान्य तौर पर तो ऊषा ही कमजोर थी।मेरे पिताजी भी इस बात से चिंतित रहते थे कि कही ऊषा को उनसे पहले ही कुछ ना हो जाए।
में भी ईश्वर से यही चाहता था कि वह मुझसे पहले दुनिया से चली जाय।
जब ऊषा ने मुझसे यह सवाल किया कि मे उसके बाद कैसे रहूंगा।मेने कहा वो मेरी फिक्र ना करें। क्योंकि जिस सेवा व सहारे की उसको जरूरत थी,वह मेरे अलावा कोई दूसरा परिवार का सदस्य ऊषा को नही दे सकता था।
 समय गुजरने लगा।20 फरवरी सन् 2024 को मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई।29 फरवरी सन् 2024 को उनकी तेरहवीं थी।मेरे पिताजी की इच्छा पूरी हो गई।जब उनकी मृत्यु हुई ऊषा ठीक थी।
8 मार्च की रात्रि को ऊषा की तबियत खराब हो गई। में मेरी बेटी कोमल तथा मेरे एक मेडिकल लाइन के साथी श्री सुभाष घर पर ही थे,ऊषा ने अपनी बडी बेटी पायल को याद किया।पायल का ससुराल मेरे निवास से मुश्किल से चार किलोमीटर दूर था,मेने फोन कर उसे बुला लिया।अब हम सबने उसको आनंद नर्सिंग होम में भर्ती कर दिया ,मेने ऊषा के पिता जी को सूचित कर दिया,14 मार्च 2024 , फाल्गुन मास, शुक्ल पक्ष, पंचमी तिथि दिन गुरुवार को ऊषा इस नश्वर संसार को छोड़कर परलोक वासी हो गयी।
मेरी भी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी।वह मुझसे पहले इस संसार से चली गई।
वह वेंटिलेटर पर थी,जब बेहोश थी,उस समय ऊषा के पिता जी अस्पताल पहुंचे।दादरी से मेरठ 25 किलोमीटर दूर है।ऊषा के पिता जी को यह दूरी तय करने में पांच दिन लगे।
रक्त के सम्बन्ध इतने ढीले भी हो जाते हैं। मुझे पहली बार इसका अनुभव हुआ।
ऊषा ने अपने गृहस्थ जीवन मे सबकी सेवा की।मेरे माता-पिता की,मेरे जीजा श्री मनवीर सिंह का एक्सीडेंट हो गया था,उनका पैर टूट गया था,वह एक वर्ष बेड पर हमारे घर रहें।मेरी बहन उनकी सेवा में लगी रही।उनको देखने आने वालो की चाय पानी की सेवा ऊषा ने की।मेरे भाई की पत्नी बीना के तीन आप्रेशन हुए,एक बेटा होते समय,एक बेटी होते समय तथा एक एप्रेंडिस का।वह जब बेड पर थी उसकी सेवा भी जितना हो सकती थी ऊषा ने ही की।जब ऊषा को जरुरत पडी तो मेरी बहन,भाई की पत्नी बीना,मेरा भाई सब साथ खडे रहे।

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