औरंगजेब सम्राट बनने से पहले ही गेर मुस्लिम धर्म के पूजा स्थलों से नफरत करता था,जब वह गुजरात में तैनात था तब भी उसका व्यवहार पुजा स्थलो के प्रति अच्छा नहीं था, सम्राट बनने के बाद वह ओर उग्र हो गया। तत्कालीन मुगल सल्तनत के विस्तार के लिए अकबर ने जिस कार्यप्रणाली को अमल में लाकर समझोते की निति के द्वारा जो सल्तनत का विस्तार किया था तथा भारत के आम जनमानस में जो सम्मान अर्जित किया था,उस कार्यप्रणाली को औरंगजेब उचित नहीं मानता था और मानता भी क्यो? क्योंकि किसी वस्तु की कीमत तब ही पता चलती है जब वह पास से चली जाती है। औरंगजेब का मानना था कि उसकी सेना सत्ता चलाने के लिए काफी है, उसमें भारतीयों का सहयोग हो या ना हो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए औरंगजेब ने अपने राज्य को इस्लामिक राज्य घोषित कर दिया।गेर मुस्लिमो पर जजिया कर लगा दिया तथा इस्लाम के कानून के अनुसार बुत खानो (मंदिरों)को तोड़ने के फरमान जारी कर दिए।ब्रज क्षेत्र में तों उसने यह कार्य सन् 1666से ही प्रारंभ कर दिया था। परंतु 9अप्रेल सन् 1669को लिखित में यह सरकारी आदेश जारी कर दिया कि मुगल सल्तनत में कोई मंदिर ना बचे। मथुरा-वृंदावन में जब इस आदेश की सूचना पहुची तब मंदिर के पुजारी अधिकतर मूर्तियों को लेकर वर्तमान राजस्थान के राजाओं की शरण में पहुंचे। जोधपुर के राठौड़ व आमेर के कछवाहे राजपरिवार सीधे मुगल राजपरिवार के रिश्तेदार थे, अतः उन्हें यह विश्वास था कि उनका सम्मान मुगल सल्तनत द्वारा रखा जायेगा। मेवाड़ के राज परिवार को भी यह विश्वास था कि मुगल बादशाह उनके साथ ज्यादा सख्त कार्रवाई नहीं कर पायेगा। इन बातों को ध्यान में रखकर इन राजपरिवारों ने अपने यहां मूर्तियां स्थापित कर मंदिर बनवा दिए, मेवाड़ के तत्तकालीन राणा राज सिंह ने पुजारियों को यह विश्वास दिलाया कि वो बेफिक्र रहें, मेवाड़ के एक लाख सिपाहियों के सर काटे बिना यहां कोई इन मंदिरों को क्षति नहीं पहुचा सकता। औरंगजेब को जैसे ही यह सूचना मिली कि मथुरा-वृंदावन से हटकर मंदिर इन राज्यों में स्थानांतरित हो गये है, उसने तुरन्त अपनी निगाह गडा दी। सन् 1680मे औरंगजेब ने दक्षिण में मराठों व शिया मुसलमानों की रियासत निजाम शाही व कुतुब शाही को समाप्त करने के लिए जाने की तैयारी शुरू कर दी। अतः जाते हुए 24जनवरी सन् 1680को मेवाड़ की राजधानी उदय पुर का रुख किया और अपने सेनानायक हसन अली खान को उदयपुर में बने मंदिरों को तोड़ने के लिए भेज दिया। मेवाड़ के महाराणा ने विशाल मुगल सेना का सामना करने में अपने आप को असमर्थ पाया।इस परिस्थिति में राणा अपनी सेना लेकर जंगलों में चले गए।29जनवरी सन् 1680को हसन अली खान ने औरंगजेब को सूचित किया कि उदयपुर के 172मंदिर तोड दिए गए हैं। औरंगजेब ने मेवाड़ के राणा से दो परगने जजिया कर के रुप में छीन लिए। मुगल राजपरिवार के रिश्तेदार आमेर राज्य के मंदिर भी तोड़ दिए गए। जून 1680को अबूत राव नामक सैनिक अधिकारी ने औरंगजेब को सूचित किया कि आमेर में बने 66मंदिर तोड़ दिए गए हैं।राजा जसवंत सिंह राठौड़ की मृत्यु के बाद जोधपुर रियासत को औरंगजेब ने जब्त कर लिया था, जसवंत सिंह राठौड़ के बेटे अजीत सिंह राठौड़ को बचाने के लिए वीर दुर्गादास राठौड़ मारे-मारे फिर रहे थे।
उपरोक्त सूचना देने की आवश्यकता इसलिए हैं कि औरंगजेब ने अपने इन कृत्यों से भारतीय जनमानस को यह संदेश दिया कि मुगल सत्ता को किसी भारतीय राजा की मदद की आवश्यकता नहीं है।जिनको भारत के लोग अपने राजा मानते हैं वो उनका सम्मान व सम्पत्ति बचाने की सामर्थ्य नहीं रखते।
अब औरंगजेब अपने साथ भारी-भरकम सेना लेकर दक्षिण को चला गया। उत्तरी भारत में दोयम दर्जे की सेना मौजूद थी। वर्तमान राजस्थान के राजा यदि चाहते तो शिवाजी की तरह मुगल सत्ता को छिन्न-भिन्न कर सकते थे, परंतु वह ऐसा करने का साहस ना जुटा सके तथा उदासीन हो गये। आमेर के कछवाहे तथा बूंदी के चौहान अब भी मुगल सत्ता के हमदर्द बने हुए थे और सम्राट औरंगजेब की नजरों में चढ़ने का कोई अवसर प्राप्त हो जाये,इसी ताक में लगे हुए थे।
मुगल सेना ने लगान के नाम पर लूट मचा रखी थी।जिसका विरोध किसान पहले ही गोकुला के नेतृत्व में कर चुके थे। अब किसानों के नेता सिनसनी गांव के ब्रजराज सिंह व उसका छोटा भाई भज्जा सिंह थे। किसान हित के लिए ब्रजराज सिंह ने सन् 1682मे मुगल सेना से संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दे दिया था। ब्रजराज सिंह की मृत्यु के पश्चात उनके एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम बदन सिंह था,इन बदन सिंह के पुत्र राजा सूरजमल थे।भज्जा सिंह सीधे सादे व्यक्ति थे, उनके दो पुत्र थे, जिनमें बड़े पुत्र का नाम राजाराम था तथा छोटे पुत्र का नाम चूडामण था।इन परिस्थितियों में किसानों का नेतृत्व राजाराम के हाथ में आ गया।
सिनसिनी से उत्तर की ओर, आऊ नामक एक समृद्ध गाँव था। यहाँ मुगलों का सैन्य दल नियुक्त था। लगभग 2,00,000 रुपये सालाना मालगुज़ारी वाले इस क्षेत्र में व्यवस्था बनाने के लिए एक चौकी बनाई गयी थी। इस चौकी अधिकारी का नाम लालबेग था। एक दिन एक अहीर जाति का किसान अपनी पत्नी के साथ गाँव के कुएँ पर विश्राम के लिए रुका। लालबेग के एक कर्मचारी ने इस दम्पत्ति को देखा तथा इसकी सूचना लालबेग को दी। लालबेग नेअपने सिपाही भेजकर अहीर पति और पत्नी को जबरन अपनी चौकी पर बुला लिया। लालबेग के सिपाहियो ने पति को तो छोड़ दिया ।लेकिन पत्नी को लालबेग के निवास में भेज दिया।
यह खबर आग की तरह आम जनमानस में फैल गई तथा किसानों के नेता राजाराम के कानों में पड़ी। किसानों ने राजाराम के साथ तय किया कि मुग़ल थानेदार को सबक सिखाया जाएगा । राजाराम ने अपने सैन्य को युद्ध के लिए तैयार किया और लालबेग को मारने की यॊजना बनाई। यॊजना के अंतर्गत राजाराम अपने सिपाहियों के साथ गोवर्धन में वार्षिक मेले में जानेवाली घास की बैल गाड़ियों में छुप कर वहां पहुंच गया जहां वो अपनी योजना के अनुसार जाना चाहते थे। लालबेग को अंदाज़ा भी नहीं था की राजाराम और उसके सिपाही घास के अंदर छुपे हुए हैं , लालबेग ने गाड़ियों को अंदर जाने की अनुमति दे दी। चौकी को पार करते ही राजाराम और उसके सिपाहियों ने गाड़ियों में आग लगा दी। उसके बाद भयंकर युद्ध हुआ , जिसमें लालबेग मारा गया।
इस युद्ध के बाद राजाराम ने अपनी सुव्यवस्थित सेना बनानी प्रारम्भ कर दी। अस्त्र-शस्त्रों से युक्त उसकी सेना अपने नायकों की आज्ञा मानने को हमेशा तैयार रहती थी। राजाराम ने अपने क्षेत्र के सुरक्षित जंगलों में छोटी-छोटी क़िले नुमा गढ़ियाँ बनवादी। इन पर गारे की (मिट्टी की) परतें चढ़ाकर मज़बूत बनाया गया जिन पर तोप-गोलों का असर भी ना के बराबर होता था।
अब राजाराम ने आगरा के सूबेदार पर भी हमला कर दिया। राजाराम ने अपने आसपास के क्षेत्र में मुगल व्यवस्था तहस नहस कर दी।इन परिस्थितियों में मुगल शासक ने राजाराम को दिल्ली बुलाया।शासन ने राजाराम को मथुरा की सरदारी व 575गांव की जागीर दी। मुगल शासक ने यह समझा कि राजाराम इस जागीर को लेकर मुगल सत्ता का वफादार हो जायेगा। लेकिन राजाराम ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए खुद को शक्तिशाली बना लिया, उसने अपने सहयोगियों के साथ एक मजबूत सेना खडी कर ली तथा अपने क्षेत्र में सभी मुगल सरकारी आदेश ठप कर दिए। मुगल सरकारी खजाना छीन लिया।
इन परिस्थितियों में मुगल शासन ने शफी खां को आगरा का सूबेदार बनाकर राजाराम की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए तेनात किया। राजाराम को जैसे ही शफी खां के आने की सूचना मिली। इससे पहले कि शफी खां राजाराम के विरुद्ध कोई कार्रवाई करता, उससे पहले ही राजाराम ने आगरा के किले में स्थित शफी खां पर हमला कर दिया। शफी खां इस अप्रत्याशित हमले से हक्का-बक्का रह गया।वह डर कर किले के अंदर घुस गया, मुगल शासन की मुहिम असफल हो गई। शफी खां की असफलता के बाद मुगलों की ओर से केवलदास जफर जंग को भेजा गया,जफर जंग का हाल भी शफी खां जैसा ही हुआ।
अब राजाराम के विरुद्ध निर्णायक लडाई के लिए मुगल शासन ने औरंगजेब के पोते बेदार बख्त के नेतृत्व में सन् 1687मे एक बड़ी सेना को भेजा। जब राजाराम को मुगलों की इस मुहिम का पता चला तो उसने भी अपनी तैयारी प्रारंभ कर दी। राजाराम ने सिनसिनवार जाटों व रामकी चाहर की अध्यक्षता में, सोगरिया जाटों के साथ जिनके पास सोगर का किला था, को अपने सहयोग मे ले लिया।गूजरो के सैनिक दस्ते, जिन्हें मुगल परस्त डाकूओं के गिरोह बताते फिरते थे,भी राजाराम के साथ आ मिले।मार्च सन् 1688के अन्तिम सप्ताह में बेदार बख्त की सेना के पहुंचने से पहले ही राजाराम ने मुगल ठिकानों पर हमला कर दिया। राजाराम ने मुगल समर्थक गांव व खुर्जा परगना की सरकारी सम्पत्ति को छीन लिया।पलवल के मुगल थानेदार को गिरफ्तार कर लिया।अंत में आगरा में सिकंदरा में स्थित अकबर के मकबरे पर हमला कर दिया। राजाराम ने मकबरे की छत में लगे सोने चांदी को उतरवा लिया तथा मकबरे में लगे कांसे के दरवाजो को उखाड़ लिया। मकबरे में बनी कब्र से निकाल कर अकबर की हड्डीयो को जला दिया।
राजाराम ने अकबर की हड्डियों को जलाकर मुगल शासन को यह संदेश दे दिया कि यदि सत्ता भारतीयों की धार्मिक आस्थाओं व भावनाओं का सम्मान नहीं करती तो हम भारतीय भी उनकी किसी भावना का सम्मान नहीं करेंगे। अकबर की हड्डियों के जलने के साथ ही मुगल शासकों द्वारा स्थापित हिन्दू मुस्लिम भाई चारा भी औरंगजेब के कारण जल कर राख हो गया था।बेदार बख्त के असफल होने के बाद मुगल शासन ने आमेर के कछवाहे राजा बिशन सिंह से सम्पर्क साधा तथा उसे राजाराम पर कार्रवाई करने के लिए मुगलों की ओर से अधिकृत किया।बिशन सिंह तो ऐसे किसी
अवसर की ताक में था ताकि औरंगजेब की नजरों में अपनी अहमियत दिखा सके। आमेर नरेश बिशन सिंह के साथ चार जुलाई सन् 1688को बिजल नामक स्थान पर आमने-सामने के युद्ध में राजाराम शहीद हो गया। राजाराम का साथी रामहि चाहर गिरफ्तार कर लिया गया।राजा बिशन सिंह ने राजाराम का सर काट कर दिल्ली मुगल दरबार में भेज दिया। गिरफ्तार रामहि चाहर का सर काट कर आगरा के किले के सामने लटका दिया गया।
दिल्ली की मुगल सरकार ने राजा बिशन सिंह को राजाराम के सहयोगियों के पूर्ण दमन करने का आदेश दिया,मुगल शासन के आदेश का पालन करते हुए राजा बिशन सिंह ने राजाराम के हजारों सहयोगियों को मार डाला।
भारत में एक कहावत है कि जिस कूंए से पानी निकाला जाता रहता है उसमें पानी समाप्त नहीं होता। राजाराम की शहादत के बाद कुर्बानी की राह विरान नहीं हुई, राजाराम के छोटे भाई चूडामन किसानों के संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए उपस्थित था।(समाप्त)
संदर्भ ग्रंथ
1-डा आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव-मध्य भारत का इतिहास।
2-डा मोहन लाल गुप्ता-लाल किले की दर्द भरी दास्तां (51)
3-डा मोहन लाल गुप्ता-लाल किले की दर्द भरी दास्तां (87)
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