सन् 1192मे मोहम्मद गोरी से पृथ्वी राज चौहान की पराजय के बाद दिल्ली में विदेशी व विधर्मी शासन स्थापित हो गया था,इस शासन का उद्देश्य भारतीय समाज का उत्थान करना नहीं था,बल्कि बल पूर्वक शोषण कर धन संग्रह करके अपना शासन बनाये रखना था। मोहम्मद गोरी से लेकर अकबर के शासन काल के प्रारंभ (सन् 1556)तक ये विधर्मी भारतीयों के साथ कोई विशेष तालमेल न बना सके। वर्तमान राजस्थान (तत्कालीन समय के गुर्जर देश) में गुर्जर प्रतिहार राजाओं के पतन के बाद सन् 1100 मे वर्तमान मध्य प्रदेश के नरवर से गये कछवाहे तथा सन् 1194 मे कन्नोज के राजा जयचंद गाहड़वाल को गोरी द्वारा मार डालने के बाद, बदायूं के राय सिहा के नेतृत्व में राठौड़ राजस्थान में जाकर बस गए, कछवाहो ने मीणाओ से आमेर को छीनकर अपना राज्य स्थापित कर लिया।इन दोनों (कछवाहो व राठौड़) से ही अकबर ने वेवाहिक संधि कर भारतीयों को इनके नेतृत्व में मुगल सत्ता में साझिदार बनाया।
मुगल सम्राटो ने भारी-भरकम मुगल सेना तथा अपने ठाट-बाट के लिए धन की आपूर्ति के लिए ,अपने भारतीय सहयोगियों के माध्यम से भारत के आम आदमी का शोषण करवाना प्रारंभ कर दिया।जो सत्ता में सहयोगी थे उन्होंने अपने आप को बचाकर, बाकि बचे भारतीय किसानों के धन साधन को अपने निशाने पर ले लिया।इस कारण जो संघर्ष मुगल+राजपूत (कछवाह+राठौड़) के साथ गेर राजपूत किसानों के बीच प्रारंभ हुआ, उसे भारतीय इतिहासकारों ने जाटों का विद्रोह कहा। मुगल सत्ता के साथ इस संघर्ष का नेतृत्व जाट किसानों ने किया, गुर्जर अहीर मेव मीणा आदि इस संघर्ष में जाट किसान नेताओं के नेतृत्व में कंधे से कंधा मिलाकर मुगलों से लड़ें।
आज के उत्तर भारत के दिल्ली, भरतपुर,धोलपुर, बीकानेर,चुरू, झुंझुनूं,आगरा, मथुरा,मेवात,मेरठ, पलवल, फरीदाबाद, अलीगढ़ तथा दक्षिण में चम्बल नदी के तट के पास गोहद तक का क्षेत्र जाट किसानों की बहुलता के कारण जटवाड़ा कहलाता था।इस क्षेत्र में पलवल, गुड़गांव के पास अहीर, मेव, गुर्जर किसानों की आबादी भी थी तथा मेरठ,लोनी, दादरी-सिकंदराबाद में गुर्जर किसान बडी संख्या में आबाद थे।
जाट किसानों की संख्या अधिक होने के कारण जाट मुगल शासकों के निशाने पर आ गए। मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने शासन काल में जाटों को घोड़े की सवारी करने, बंदूक रखने व दुर्ग बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
सन् 1636 मे ब्रज मंडल के जाटों को कुचलने के लिए शाहजहां ने मुर्शीदकुली खा तुर्कमान को कामापहाडी, मथुरा व महावन परगनो का फौजदार नियुक्त किया। मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी का मेला बड़ी धूमधाम से लगता था।इस मेले में आसपास की जनता बडे उत्साह से भाग लेती थी।मुगल फौजदार ने हिंदू भेष बनाकर अपने सिपाही साथ लेकर मेले में भाग लिया तथा मेले में आयी सुन्दर हिन्दू युवतियों का बलात अपहरण कर, नावों में बेठाकर अनजान जगह भेज दिया।जो कभी नहीं मिली। इस नीच कार्य से जनता में आक्रोश पैदा हो गया। साधारण जनता तो कुछ न कर सकी । परन्तु सन् 1638 मे सम्भल के निकट स्थित जटवाड़ा नामक स्थान के निकट जाटों ने इस मुगल फौजदार का वध कर, उसे उसकी नीचता की सजा दे दी।मुगल अधिकारी की इस हत्या से सरकार व जाटों के बीच ठन गई।
अब शाहजहां ने आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को अपने सम्मान की लडाई लड रहे किसानों के दमन के लिए नियुक्त किया। जैसा ऊपर बता दिया गया है कि आमेर के कछवाहे मूल रूप से आमेर के रहने वाले नहीं थे, इसलिए कछवाहो का सत्ता लाभ के अतिरिक्त यहां के समाज से कोई सारोकार नहीं था। अतः मिर्जा राजा जयसिंह ने न्याय-अन्याय का भान न रखते हुए बडी संख्या में जाटों, गुर्जरों व मेवों को मार डाला तथा अपने जाति भाईयों को जाटों, गुर्जरों व मेवों की जमीन पर बसा दिया।
यह संघर्ष चलता रहा। औरंगजेब सम्राट बन गया। औरंगजेब ने पहले से अधिक सख्ती बरती। औरंगजेब ने मथुरा व वर्तमान राजस्थान में स्थित मंदिरों को तोड़ने के आदेश भी सन् 1666 मे ही देने प्रारंभ कर दिए थे।मुगल सेना के अत्याचार से तंग आकर सन 1666 मे तिलपत गांव के जमींदार गोकुला जाट के नेतृत्व में गेर राजपूत किसान पुनः संगठित हो गये। मुगल सेना के अत्याचार व बढते दबाव के कारण गोकुला तिलपत छोड़कर महावन आ गया।अब गोकुला ने जाट,मेव,मीणा, गुर्जर, अहीर, पंवार जाति के किसानों का सम्मेलन कर मुगल शासक को लगान ना देने के लिए सहमत कर लिया। औरंगजेब को जब यह सूचना प्राप्त हुई तब सम्राट ने मुगल सेना नायक अब्दुल नवी खां को गोकुला के विरुद्ध कार्रवाई के लिए भेजा।मुगल सेनानायक ने सहुर गांव में ठहरे गोकुला पर हमला कर दिया।गोकुला के साथ हुए इस युद्ध में मुगल सेनानायक अब्दुल नवी खां मारा गया।मुगल सेनानायक को मारने के बाद गोकुला की किसान सेना ने मुगल समर्थित सादाबाद गांव को नेस्तनाबूद कर जला डाला।
ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने के कारण औरंगजेब खुद मोर्चे पर आ गया। उसने गोकुला की सेना को घेर लिया।गोकुला की सेना शाही सेना से संख्या बल में काफी कम थी। ऐसी स्थिति में घिर जाने के कारण महिलाओं ने अपने सम्मान को बचाने के लिए जौहर कर लिया तथा गोकुला के हजारों किसान सैनिक इस युद्ध में शहीद हो गए।गोकुला को गिरफ्तार कर लिया गया तथा सम्राट के सामने पेश किया गया। औरंगजेब ने गोकुला को मुसलमान बन जाने पर माफी कर देने की शर्त रखी, जिसे गोकुला ने अस्वीकार कर दिया।एक जनवरी सन् 1670को आगरा में लाल किले में स्थित कोतवाली के सामने गोकुला को टुकड़े टुकड़े कर के मार डाला गया।
गोकुला पराजय पीड़ा और कष्ट का विष पीकर अपनी आजादी को बनाए रखने के लिए तिल तिल कर प्राण गंवा कर शहीद हो गया तथा आने वाले वाले समय में होने वाले संघर्ष के लिए कुर्बानी की आधारशिला रख गया।(समाप्त)
संदर्भ ग्रंथ
1-डा आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव-मध्य भारत का इतिहास।
2-डा मोहन लाल गुप्ता-लाल किले की दर्द भरी दास्तां (65)
https://youtu.be/2Ena-Pzvqlw
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