सभी भारत वासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
26 जनवरी पर विशेष
-अशोक चौधरी मेरठ
आज 26 जनवरी है, भारत का गणतंत्र दिवस, आज के दिन भारत में भारतीयों द्वारा लिखित संविधान लागू हुआ था,26 जनवरी सन् 1950 से पहले भारत में अंग्रेजो द्वारा लागू सन् 1935 के संविधान से देश चल रहा था।26 नवम्बर सन् 1949 को डॉ आंबेडकर जी ने भारत का संविधान लिख कर डा राजेन्द्र प्रसाद जी को सौंपा था, भारत में संविधान के सभी प्रावधान तो 26 जनवरी सन् 1950 से लागू हुए, परन्तु भारत के नागरिक कोन होंगे, यह 26 नवम्बर सन् 1949 को ही तय हो गया।
जिसके अन्तर्गत
1. भारत में जो भी पैदा हो गया।
2. जिसके मा बाप भारत में पैदा हुए हो।
3. जो 5 वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो।
अर्थात सन् 1944 से जो भारत में रह रहा था वह और उसके बाद उसके बाद26 नवम्बर सन् 1949 तक जो भारत में पैदा हुआ वह भारत का नागरिक बन गया।
इसके बाद
कानून बना सन् 1955 में। परन्तु धारा 370 लागू होने के कारण 35A का प्रयोग कर कश्मीर में उन शरणार्थियों को कश्मीर राज्य का नागरिक नहीं बनने दिया जो 1947 के बटवारा में पाकिस्तान से भारत आए थे।
26 जनवरी सन् 1950 को जब संविधान लागू हुआ तब भारतीयों के लिए संविधान की भावना यह थी कि देश में राजनेतिक समानता, सामाजिक समानता व आर्थिक समानता के लिए प्रयास किए जाएंगे।
राजनेतिक समानता तो तभी अा गई, तब एक वोट, एक आदमी व एक कीमत हो गई। देश के अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए भी लोकसभा व विधान सभा में आरक्षण के माध्यम से राजनेतिक हिस्से दारी मिल गई। परन्तु शिक्षा व सरकारी नोकरी में सभी वर्गो की भागेदारी में समय लगना था।
इन सब कार्यों को करने के लिए तथा भारतीय समाज की वास्तविक स्थिति की जानकारी के लिए प्रत्येक दस वर्ष में सेंसस देश की आजादी से पहले सन् 1872 से चला आ रहा था।
सेंसस कराने का उद्ददेश्य सोशल इजीनियरिंग रहा है। सेंसस प्रत्येक दस वर्ष बाद लगातार होता रहा है तथा समय समय पर आवश्यकता अनुसार देश की नागरिकता में भी बदलाव के नियम भारतीय सांसद बनाती रही हैं। जो निम्न है-
1. वो आदमी जो 26 जनवरी सन् 1950 के बाद व 1 जुलाई सन् 1987 के बीच भारत में पैदा हुआ हो।
2. जो आदमी 1 जुलाई सन् 1987 से 3 दिसम्बर 2004 के बीच भारत में पैदा हुआ हो तथा उसके मा बाप में से एक भारत का नागरिक हो।
3.3 दिसम्बर 2004 के बाद पैदा हुआ हो, दोनों के मा बाप भारतीय नागरिक हो, दोनों में से एक भारतीय नागरिक हो तथा दूसरा विधिवत नागरिक हो।
आसाम के लिए यह तारीख 24 मार्च 1971 की है।
एनपीआर व एनआरसी व सेंसस
सेंसस 1948 के कानून के अंतर्गत होता है, यह ग्रह मंत्रालय के अधीन आता है।
सन् 1872 से सेंसस चालू है। सेंसस करने का उद्देश्य सोशल इंजीनियरिंग है।
सन् 1881 का सेंसस ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य व शूद्र के आधार पर हुआ।
सन् 1891 का सेंसस जातीय आधार पर हुआ, जिसने काम के आधार पर भारतीय समाज को 21 भागो में बांटा गया। इसमें ही मार्शल रेस का सिद्धांत आया। इसमें 646 जातियों की पहचान कर गणना की गई।
सन् 1931 के सेंसस में 4147 जातियों की पहचान कर गणना की गई।300 ईसाई जातियां व 500 मुस्लिम जातियां मिली।
इसी सेंसस के आधार पर ओबीसी का रिजर्वेशन सन् 1990 में दिया गया तथा पाकिस्तान के क्षेत्र के लिए मुस्लिम बहुल इलाकों की जान कारी मिली।
सेंसस के नियम सन् 1990 में बनाए गए। परन्तु सन् 1990 के सेंसस के नियम में एन पी आर का जिक्र नहीं है।
एनपीआर को सन् 2003 में कानून बना कर जोड़ा गया। सन् 2011 के सेंसस में इसका पालन हुआ।
जब देश में लोकतंत्र नहीं था, राजतंत्र से शासन चल रहा था, इस समय जो शासन तंत्र था उसकी बनावट ऐसी थी कि वह अपनी आबादी के प्रत्येक हिस्से को छूता था। जैसे शासन चलाने के लिए दो अंग सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जिसमें एक सेना तथा दूसरा वित्तीय प्रबन्धन। समाज की बनावट में राजा, किसान व पशुपालक लोग जनता में थे। आज जैसे उद्योग नहीं थे, अत कर (tex) किसान से लगान के रूप में वसूला जाता था, कहने का मतलब यह है कि किसान शासन के वित्तीय प्रबन्धन की रीढ़ था, सेना में सैनिक भी किसानों के बेटे थे, आज जैसे आवागमन के साधन नहीं थे, आवागमन का आधार पशु थे। जैसे हाथी, घोड़ा, बेल आदि। ये सब साधन पशुपालक समाज से आते थे। अत पूंजी प्रत्येक वर्ग में घूम रही थी। चारों तरफ खुशहाली थी।
अंग्रेजो के भारत आने के बाद उद्योग बड़ी तेजी से पनपे। आवागमन के साधन पशु से हटकर मोटर, कार, मोटरसाईकिल बन गए। सेना में हाथी, घोड़े व बेलो की जगह लोहे से बने टेंको व गाडियों ने ले ली। शासन का वित्तीय प्रबन्धन भी किसान से हट कर व्यापारी पर चला गया। किसान को भी खेती करने के लिए पशु के स्थान पर ट्रेक्टर मिल गया। इस नए तरीके ने सम्पूर्ण पूंजी का बहाव पशुपालक समाज से हटकर कृषि यंत्र व मोटर कार मोटरसाईकिल बनाने वाली कंपनी की ओर कर दिया । जब शासन चलाने के लिए पैसा व्यापारी से टैक्स के रूप में आने लगा तो किसान हित से सरकार का ध्यान हट गया। वहा गरीबी व भुखमरी फैलने लगी। समाज में शिक्षा की जरूरत महसूस होने लगी।
सन्1848 में सावत्रि बाई फूले ने महाराष्ट्र में लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रयास करना प्रारंभ कर दिया था। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम ने देश के पौरुष को झकझोर दिया था।सन् 1875 को स्वामी दयानंद जी ने आर्य समाज की स्थापना कर देश में जन जागरण के माध्यम से समाज के परिवेश को बदलने की कोशिश प्रारम्भ कर दी थी, सन् 1885 को कोंग्रेस की स्थापना हो गई थी। भारत की आजादी के लिए प्रयास पुन चलने लगे थे, किसान पर संकट दिखने लगा था, इसी कारण सन् 1916 में राजस्थान के बिजौलिया में किसान नेता विजय सिंह पथिक द्वारा आंदोलन किया गया, सन 1918 में गुजरात के खेड़ा में तथा 1928 में बारडोली में सरदार पटेल द्वारा किसान आंदोलन किया गया। सन् 1925 में आरएसएस के संस्थापक आदरणीय हेडगेवार जी ने छोटे छोटे बच्चों को एकत्रित कर शाखा के माध्यम से देश के लिए कार्य करने की भावना का परिवेश देश में बने, उसके लिए कार्य प्रारम्भ कर दिया था।
15 अगस्त सन् 1947 को देश आजाद हुआ और 26 जनवरी सन् 1950 को हमारा संविधान लागू हो गया। अब से पहले भारतीय समाज का परिवेश एक नियत खांचे में था, जिसमें राजा जमींदार, किसान और मजदूर थे जो हजारों जातियों में विभक्त थे। देश की मजदूर जातियां किसान के साथ बंधी थी, अंग्रेजो के आने से जो ओद्यौगिक यूनिट लगी थी लोग उसमे भी मजदूरी करने लगे थे।
अब जो परिवर्तन हुआ, उसमे सबसे अहम था कि भारत के प्रत्येक नागरिक को मताधिकार मिल गया। एक वोट, एक आदमी, एक कीमत। समाज में आर्थिक व सामाजिक बराबरी के लिए शासन, प्रशाशन व शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिनिधित्व/आरक्षण की व्यवस्था की गई। ऐसा होने के कारण भारतीय समाज का निश्चित परिवेश जो सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा था, उसमे परिवर्तन हुआ। मजदूर जातियों के लोग जब शासन के उच्च पदों पर आसीन हुए तथा शिक्षा का प्रसार उनके परिवारों में हुआ, तो जो उच्च पारिवारिक परिवेश पहले एक सीमित दायरे में था उसका विस्तार हो गया, परन्तु किसान व पशुपालक मजदूर गरीबी के गर्थ में चला गया। सन 1960 में हरित क्रांति के कारण किसान को लाभ हुआ। सन् 1970 में श्वेत क्रांति (दुग्ध) का प्रारम्भ हो गया। जिसका प्रभाव पशुपालक समाज के लिए लाभकारी रहा। परन्तु देश में जैसे जैसे अमीरों की संख्या बढ़ी, उससे ज्यादा तेजी से गरीबों की संख्या बढ़ती गई। सन् 1995 से लेकर 2011 तक करीब तीन लाख किसानों ने आत्म हत्या कर ली है। जो आज तक जारी है। मजदूर वर्ग का पलायन शहर की ओर को बढ़ गया। शहर में झुग्गी झोपड़ी की बस्तियां बढ़ गई।
इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार ने समय समय पर आयोग बनाए, जिसमें सन 2006 में स्वामी नाथन आयोग ने किसानों के विषय में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कहा, किसानों के कर्ज भी माफ हुए। सन् 2006 में ही सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में बताया कि देश में मुस्लिमो की स्थिति दलितों से भी खराब बताई गई है। सन् 2006 में ही 6 व 7 पे कमिशन की रिपोर्ट भी अा गई। सरकारी कर्मचारियों के लिए पे कमिशन की रिपोर्ट तो लागू हो गई, परन्तु किसान हित के लिए स्वामी नाथन आयोग की रिपोर्ट आज तक लागू ना हो सकी।
अर्जुन सेन गुप्ता कमिशन ने अप्रैल 2009 में अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश की 75% आबादी भूखमरी के कगार पर है। इससे निबटने के लिए भारत सरकार ने मनरेगा योजना का प्रारम्भ किया।
जवाहलाल नेहरू विश्ववद्यालय (जे एन यू), सावित्री बाई फुले युनिवर्सटी , भारतीय दलित अध्ययन संस्थान द्वारा दो साल तक किए गए अध्ययन में सामने आया कि
देश की कुल संपत्ति का
41% हिन्दू उच्च जातियों के पास है जिसकी भारत में आबादी 22.3% है।
3.7% सम्पत्ति अनुसूचित जनजाति के पास है जिसकी आबादी भारत में 7.8% है।
30% हिन्दू ओबीसी के पास जिसकी आबादी भारत का 50% है।
9% अन्य के पास है।
8% मुस्लिमो के पास है जिनकी आबादी 16% है।
7.6% अनुसूचित जाति के पास है।
10 जुलाई सन् 2019 के टीएमसी के सांसद के द्वारा पूछे गए आंकड़ों के अनुसार।
भारत की सेक्रेट्रिएट में
89 सेक्रेट्री, एससी 1 , एस टी 3 , ओबीसी 0।
93। एडिशनल सेक्रेट्री, एस सी 6, एस टी 5,ओबीसी 0।
275 ज्वाइंट सेक्रेटरी, एस सी 13, एस टी 9, ओबीसी 19।
सन् 2015 से अब तक 150 लोग नोकरी पर नहीं रखे, क्योंकि वो ओबीसी के थे तथा मेरिट के हिसाब से क्रीमीलेयर में आ गए
थे।
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी की 1997 जातियों में से 2.6% सरकारी नौकरी में है।994 जातियां ऐसी है जिनमे से एक भी आदमी सेंट्रल गवर्मेंट की नोकरी में नहीं है।
भारत के तमाम हिंदू राजनीतिक दलों का मुसलमानों से धोखा इस नाते माना जा सकता है कि सबने मुस्लिम प्रजा को आधुनिक बनाने के लिए वैसी जोर जबरदस्ती नहीं की जैसे हिंदू को हिंदू कोड जैसे सुधारों से आधुनिक बनाया। सर्वाधिक मदरसे या इस्लामी कट्टरपन बंगाल और केरल में ही पसरा हुआ है। क्यों मुस्लिम लीग केरल में मुसलमानों की अधिकृत पार्टी बनी?
यह आजाद भारत का गंभीर सत्य है। इस बात की हर मुसलमान, हर सत्यवादी पुष्टि करेगा कि बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम औरतें एक वक्त उसी पहनावे में रहती थी जैसी हिंदू महिलाएं रहती थीं। यह सब बदलना शुरू हुआ सत्तर के दशक से। मदरसों का फैलाव भी तभी से हुआ। पहले पूरे इलाके में एक मस्जिद हुआ करती थी। फिर रेला ऐसा बना कि गांव-गांव और सड़कों के किनारे मस्जिद और मजार बनने लगे।
पंडित नेहरू, उनके शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद, हुमायूं कबीर, एमसी छागला, या शास्त्री और इंदिरा गांधी और उनके शिक्षा मंत्री फखरूद्दीन अली अहमद और डॉ. नुरूल हसन ।कथित प्रगतिशील, आधुनिक शासन व्यवस्था में हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई की साझा विरासत में ज्ञान-बुद्धि-पढ़ाई का इमरजेंसी से पहले तक का बड़ा वक्त मुस्लिम शिक्षाविदों के पास था। उस वक्त कोई 25 साल पूरे भारत की शिक्षा का दारोमदार मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों पर था। ऐसा था तो क्या मुसलमानों के मानसिक विकास, उनकी आधुनिक शिक्षा का जिहाद नहीं चलना था? क्या यह सेकुलरों का धर्म, कर्तव्य नहीं होना चाहिए था? जान लें कि इंदिरा गांधी के वक्त शिक्षा मंत्री प्रो. नुरूल हसन घोर वामपंथी थे और उनके सलाहकारों में प्रो. मुनीस रजा, इम्तियाज खान, इरफान हबीब आदि सत्ता में हर तरह से निर्णायक थे लेकिन इन सबने सेकुलर आइडिया ऑफ इंडिया को हिंदुओं के गले उतारने पर तो जोर जबरदस्ती की, उस माफिक इतिहास, पाठ्य पुस्तकें रचीं लेकिन मुसलमानों के लिए कुरान पढ़ने की मदरसा व्यवस्था कुकरमुत्तों की तरह फैलने दी।
तभी अब इस मोड़ पर, इस बिंदु पर यह सत्य उद्घाटित होता है कि गांधी, पटेल, नेहरू ने धोखा नहीं दिया, बल्कि मौलाना आजाद, हुमायूं कबीर, प्रो नुरूल हसन, शेख अब्दुल्ला, मुफ्ती मोहम्मद आदि मुसलमानों ने हिंदुओं को धोखा दिया जो सब कुछ होते हुए, पूरी आजादी, पूरे मान-सम्मान (शिक्षा-आधुनिकता का दारोमदार मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों पर छोड़ने से ले कर अनुच्छेद-370 की कृपा, निजी जीवन में कॉमन सिविल कोड़ को न आने देने आदि) के बावजूद अपने आपको वैसा पढ़ा-लिखा, आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष नहीं बनाया, जैसे मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया में या तुर्की में आधुनिक आबोहवा से मुसलमान बना हुआ है।
दिसम्बर 2019 में सी ए ए (सिटीजन अमेंडमेंट act) जो भारत सरकार ने लागू किया है, उसमे पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान में रहने वाले गेर मुस्लिम समूह जो वहा की इस्लामिक सत्ता में प्रताड़ित होकर भारत आ गए है को, जो दिसंबर सन् 2014 तक, पांच साल से भारत में रह रहे है, को भारत की नागरिकता मिल जाएगी। इस कानून के लागू होने से भारत का मुस्लिम समुदाय आंदोलित हो गया, सभी विपक्षी दल उनकी वोट के लालच में हा में हा मिला रहे है। भारत की राजनीति को धर्म निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में धकेला गया है, वह जग जाहिर है। इस राजनीति के तहत ही रोजा ई फ्ती यारी जैसे धार्मिक कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में कराए गए। कश्मीर में धारा 370 जो अस्थाई रूप से लगाई गई थी, उसे हटाने के लिए 70 वर्ष लगे। अपने ही देश में कश्मीर के हिन्दू शरणार्थी बन गए।
उस घटिया राजनीति का ही ये परिणाम है। वर्तमान की भारत सरकार ने जो मजबूत फैसले लेकर देशवासियों को राहत दी है, इसके लिए वह इस गणतंत्र दिवस पर बधाई की हकदार है। भारत माता की जय।
समाप्त
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