समाज में बुराई को मिटाने के लिए सदा ही संघर्ष होता रहा है।
हमारे विद्वानों ने कहा है कि-
सूरा सोई सराहिये, जो लडे हीन के हेत।
पुर्जा-पुर्जा हो गया, फिर भी ना छोड़े खेत।।
हमारे ग्रंथ रामायण में जटायू एक ऐसा ही पात्र हैं,जो यह जानते हुए भी कि वह रावण से शक्ति में निर्बल है फिर भी माता सीता को छुड़ाने के लिए लडकर मौत का वरण कर लेता है।
दूसरी घटना महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण की है, जिसमें पितामह भीष्म,गुरू द्रोण तथा विकर्ण विरोध तो करते हैं परंतु उनका विरोध वैचारिक था,वो रोकने के लिए संघर्ष नही करते। लेकिन श्रीकृष्ण जी ने उस चीरहरण को रोक दिया। इसलिए श्री कृष्ण जी भगवान की श्रेणी में आ गए।
इसी प्रकार दलित व कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए भारत मे भी लम्बे समय से संघर्ष चल रहा है, जिसमें कमजोर वर्गों के अधिकारो को हड़पने वाले भी पीछे नहीं रहें हैं,जिन महापुरुषों ने दलितों व पीड़ितों के कल्याण हेतु जीवन लगा दिया,उनके कार्यों का संक्षिप्त विवरण तथा भारतीय समाज के कल्याण व विकास की एक लम्बी यात्रा का विवरण, इस लेख के माध्यम से पाठकों को बताने का प्रयास किया गया है।
भारत में मुस्लिम सत्ता का क्षरण होने के साथ अंग्रेजों की सत्ता स्थापित होती चली गई। सन् 1764- 65 में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो की विजय के बाद बिहार, उड़ीसा और बंगाल के सीविल व प्रशासनिक अधिकार अंग्रेजों को मुगल बादशाह से संधि में प्राप्त हुए।जो जुडिशरी अधिकार थे वो मुगल बादशाह के पास ही रहें तथा शरियत के अनुसार चलते रहे। अंग्रेज व्यापार करने भारत में आये थे, ज्यादा से ज्यादा लोगों की क्रय शक्ति बढे, ताकि उनका सामान बिक सके,उसके लिए अंग्रेजों ने सीविल कानूनो में बदलाव प्रारंभ किया तथा साथ में जो क्रिमिनल लॉ ज्यादा कठोर थे, उनमे संशोधन भी किया। अंग्रेजों ने भारतियों के लिए नये कानून बनाये तो अपने लाभ के लिए ही थे, परंतु इन नये कानूनों से जाने और अनजाने में उन भारत के जाति समूहों को अपने आप ही लाभ मिल गया।जो सदियों से पशुवत जीवन व्यतीत कर रहे थे। अंग्रेजों ने जो नये कानून अपने शासन क्षेत्र में बनाए वो निम्न थे-
1- सन् 1773 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया, जिसमें सबको कानून के आधार पर न्याय की व्यवस्था की। क्योंकि भारत में न्याय हिन्दू धर्म में मनु स्मृति के अनुसार चल रहा था तथा मुस्लिम में शरीयत के आधार पर। सन् 1774 में सुप्रीम कोर्ट अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया।
(क)सन् 1786 में क्लर्क एवं एडमिशटरेशन में भारतीयों की जरूरत महसूस की गई। इसलिए भारतीय युवाओं के लिए आईसीएस की परिक्षा में बैठने की अनुमति दे दी गई,जिसका पेपर लंदन में तथा आयु 21 वर्ष रख दी गई।
2- अंग्रेजों ने सन् 1795 में अधिनियम 11 द्वारा उन भारतीय जन समूहों(अछूत व शुद्र व महिलाएं) को भी सम्पत्ति रखने का अधिकार दिया, जिनको पहले नही था।
3- सन् 1804 अधिनियम 3 द्वारा कन्या हत्या पर अंग्रेजों ने रोक लगाई।
4- सन् 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर सभी भारतियों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया।
5- सन् 1813 में दास प्रथा के अंत का कानून बनाया।
6- सन् 1817 में अपराध की सबको बराबर सजा का कानून बनाया।
7- सन 1819 में अधिनियम 7 द्वारा नारी शुद्धि करण प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी।
8-1829 में राजा राम मोहन राय के अनुरोध पर सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम बनाया गया।
9- सन् 1830 में नरबलि प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी।
10- सन् 1833 अधिनियम 87 द्वारा सब भारतीयों के लिए सरकारी नौकरी करने का अधिकार दिया।
11- सन् 1835 में प्रथम पुत्र को गंगा दान करने पर रोक लगा दी।
12- सन् 1835 में कानून बनाकर सबको कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
12- सन् 1835 में ही अंग्रजी भाषा को सरकारी कामकाज की भाषा फारसी के स्थान पर बना दिया।
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा फुले ने सन् 1848 में निर्बल वर्ग की लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला। यह इस तरह का देश में पहला विद्यालय था।
सन् 1850 में जातिय भेदभाव के विरोध में कास्ट डिसएक्टिविटीज एक्ट बना दिया गया।जब लार्ड डलहौजी भारत के गवर्नर जनरल थे।
सन् 1854 में प्राइमरी एजुकेशन के लिए एजुकेशन कमीशन बुड्स डिस्पेच के नाम से भारत आया।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के प्रयास से सन 1856 में अंग्रेजों ने हिंदू विडो मेरिज एक्ट बना दिया ।जिसके अन्तर्गत विधवा विवाह होने लगें।
सन् 1857 में अंग्रेजों द्वारा तीन यूनिवर्सिटी खोली गई, कलकत्ता, बोम्बे और मद्रास में।
सन् 1862 में कलकत्ता बोम्बे और मद्रास में हाई कोर्ट बनाये गये।
सन् 1872 में अंग्रेजों द्वारा भारत के राजकुमार और राजकुमारियों को पढ़ाने के लिए अजमेर और राजकोट में कालिज खोले गए।
निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा फुले ने 'सत्यशोधक समाज' की सन् 1873 मे स्थापना की ।
सन् 1878 में वायसराय द्वारा तीन कानून बनाये गये-
(क) आर्म्स एक्ट बना
(ख) वरनाकूल प्रेस एक्ट (प्रेस से पाबंदी समाप्त)
(ग) सिविल सर्विस में आयु 19 वर्ष की गई,सीविल सर्विस में 1/6 सीटें अमीर और राजा महाराजाओं के लिए आरक्षित की गई।
शायद यह पहला अवसर था जब भारत में कोई कोटा नौकरी में दिया गया।इस कानून से प्रेरित होकर 19-10-1882 को ज्योतिबा फुले ने इंग्लैंड की रानी को पत्र लिखकर सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग की। जिसमें कहा कि सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर होना चाहिए। अर्थात जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी।
इस प्रकार जहां दलित समाज के नेताओं द्वारा अपने को सम्भालने के प्रयास चल रहे थे,वही दूसरी ओर जो गैर दलित समाज सुधारक थे उनकेे द्वारा भी कमजोर वर्ग के हितों के लिए ककक निरंतर प्रयास जारी थे। सन् 1875 में स्वामी दयानंद जी ने आर्य समाज की स्थापना की,जिसका उद्देश्य भी जाति पाति के भेदभाव तथा पाखंड को हिंदू समाज से दूर करना था।
सन् 1881 में प्रथम फैक्ट्री एक्ट पास हुआ जिसमें बच्चों द्वारा मजदूरी करने पर रोक लगी।
सन् 1882 में लोकल सेल्फ गवर्मेंट एक्ट बना (पंचायत राज व्यवस्था)
सन् 1883 में इलबरड बिल पास हुआ, इसके अंतर्गत भारतीय जज अंग्रेजों को सजा सुना सकते थे।
अंग्रेजों के विरोध के कारण यह कानून वापस ले लिया गया।
ब्रिटिश सरकार द्वारा ज्योति बा फुले को सन् 1883 में स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" नामक उपाधि देकर गौरव प्रदान किया।
ज्योतिबाफुले की समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी गई।
सन् 1888 में तत्कालीन समय की त्रावनकोर रियासत की असेम्बली का राजा ने गठन किया, जिसे वर्तमान में केरल प्रदेश कहते हैं।
सन् 1891 में द्वितीय फैक्ट्री एक्ट पास हुआ, जिसमें मजदूर के काम का समय निर्धारित हुआ तथा सप्ताहिक छुट्टी निर्धारित हुई।
त्रावनकोर रियासत की असेम्बली में सन् 1912 में दलित समुदाय का पहला व्यक्ति जिनको संत अय्यंकालि के नाम से जाना जाता है, सदस्य नामित किए गए। इस संत ने दलितों को सड़क पर चलने पर लगे प्रतिबंध तथा दलित पुरूषों पर लगने वाला हेड टैक्स और महिलाओं पर लगने वाले ब्रा टैक्स के विरूद्ध एक सफल लडाई लडी।इन संत द्वारा ही 4 मार्च सन् 1912 को असेंबली में दलित हितों के लिए पहली आवाज उठाई गई।तब त्रावनकोर सरकार मुस्लिम बच्चों को पढ़ने मे सुविधा देती थी। लेकिन संत अय्यंकालि ने वैसी ही छूट दलित बच्चों के लिए मांगी।यह संत अय्यंकालि के प्रयासों का ही सुफल था कि त्रावनकोर मे जहा सवर्णों में 50% साक्षरता की बढ़ोत्तरी हुई वहा दलितों में 400-600 % की बढ़ोत्तरी हुई।
छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज कोल्हापुर रियासत के राजा शाहूजी महराज को आरक्षण के जनक के रूप में जाना जाता है। आज से करीब 118 वर्ष पूर्व यानी 26 जुलाई, 1902 में उन्होंने राजकाज के सभी क्षेत्रों में अगड़ी जातियों का एकछत्र वर्चस्व तोड़ने के लिए पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। यहां यह ध्यान देना जरूरी है कि पिछड़े वर्ग में मराठा, कुनबियों एवं अन्य समुदायों के साथ दलितों एवं आदिवासियों को भी उन्होंने शामिल किया था। उन्होंने इस संदर्भ में जो आदेश जारी किया था, उसमें साफ लिखा है कि पिछड़े वर्ग में ब्राह्मण, प्रभुु(कायस्थ), सैंधवी और पारसी को छोड़कर सभी शामिल हैं। साहू महाराज ने अपने सर्वे में पाया कि उनके राज्य में 71 सरकारी पोस्ट थी, जिनमें 62 पोस्ट पर इन चार जातियों के लोग थे,बाकि सभी जातियां 9 पोस्ट पर थी।साहू महाराज के निजी कार्य को देखने के लिए 52 कर्मचारी नियुक्त थे,जिनमे 45 कर्मचारी उन्ही चार जातियों के थे,बाकि सभी 7 पोस्ट पर सभी जाति के लोग थे।
सन् 1904 में इंडियन यूनिवर्सिटी एक्ट बना,इस कानून से पहले 10 वी पास करने के बाद ग्रेजुएशन कर लेते थे परन्तु इस कानून के बन जाने के बाद 12 वी पास करने के बाद ग्रेजुएशन हों गयी।
सन् 1905 में एग्रिकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट पूसा बना, दिल्ली करोलबाग के पास।
साहू महाराज द्वारा असमानता को खत्म करने एवं न्याय के लिए उठाए गए इस कदम का अनुसरण करते हुए 1918 में मैसूर राज्य ने, 1921 में मद्रास जस्टिस पार्टी ने और 1925 में बाम्बे प्रेसीडेंसी (अब मुंबई) ने आरक्षण लागू किया।
सन् 1916 में बालगंगाधर तिलक द्वारा बोम्बे मे तथा एनी बेसेंट द्वारा पूरे भारत में होम रूल के नाम से आंदोलन चलाया गया।इस आंदोलन के फलस्वरूप भारतीयों को सत्ता में हिस्सेदारी देने के लिए सन् 1919 में साऊथ ब्रो कमीशन लंदन से भारत आया।
साउथ ब्रो कमीशन को साहु महाराज के निर्देश पर अम्बेडकर जी ने दलितों के लिए तथा भास्कर जाधव ने ओबीसी के प्रतिनिधित्व के लिए ज्ञापन दिया।
भारतीय समाज में समानता व समरसता की स्थापना हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर सन् 1925 में विजयदशमी के दिन डॉ॰ केशव हेडगेवार द्वारा की गयी ।
भीमराव अम्बेडकर की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य केे रायगढ़ जिले के महाड़ स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए किया गया एक प्रभावी सत्याग्रह था।
डा अम्बेडकर जी ने 25 दिसम्बर सन् 1927 को मनु- स्मृति को जला कर भारतीय समाज को यह संदेश दिया कि भेदभाव को अब सहन नहीं किया जायेगा।
मंदिर में प्रवेश के लिए अम्बेडकर जी ने 2 मार्च सन् 1930 को काला राम मन्दिर आंदोलन शुरू किया।
फरवरी, 1931 में वीर सावरकर द्वारा किए गए प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था। 25 फरवरी 1931 को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की ।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में अम्बेडकर जी ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण को प्राप्त कर लिया।
भारतीय समाज में अलगाव ना पनपे,उसको रोकने के लिए समस्त भारत के हिंदुओं के प्रतिनिधियों की परिषद् 25 सिंतबर, 1932 को बंबई में पं. मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में हुई, उसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसका मुख्य अंश यह है - आज से हिंदुओं में कोई भी व्यक्ति अपने जन्म के कारण "अछूत" नहीं माना जाएगा और जो लोग अब तक अछूत माने जाते रहे हैं, वे सार्वजनिक कुओं, सड़कों और दूसरी सब संस्थाओं का उपयोग उसी प्रकार का कर सकेंगे, जिस प्रकार कि दूसरे हिंदू करते हैं। अवसर मिलते ही, सबसे पहले इस अधिकार के बारे में कानून बना दिया जाएगा और यदि स्वतंत्रता प्राप्त होने से पहले ऐसा कानून न बनाया गया तो स्वराज्य संसद् पहला कानून इसी के बारे में बनाएगी।"अस्पृश्यता-विरोधी-मंडल" नाम की अखिल भारतीय संस्था, बाद में जिसका नाम बदलकर "हरिजनसेवक-संघ" रखा गया, बनाई गई। संघ का मूल संविधान गांधी जी ने स्वयं तैयार किया।
अम्बेडकर जी ने सन् 1935 में यह घोषणा की कि वो हिन्दू पैदा जरूर हुए हैं परन्तु हिन्दू मरेंगे नहीं।उनकी इस घोषणा के बाद सभी धार्मिक गुरूओ ने अम्बेडकर जी से सम्पर्क किया।उसी क्रम में ईसाई समाज ने 1 जनवरी सन् 1938 को महाराष्ट्र के सोलापुर में हो रहे आयोजन में अम्बेडकर जी को बुलाया। सम्मेलन में अपने विचार रखते हुए अम्बेडकर जी ने कहा कि मेने दुनिया के सभी धर्मों का अध्धयन किया, जिसमें मेरा यह मत बना कि बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म सबसे उत्तम है। परन्तु भारत में ईसाई बनने पर दलितों के लिए जो सरकार सुविधा मिल रही है वह समाप्त हो जायेगी, फिर इस धर्म में जाने का क्या लाभ ? इंसान के धर्म बदलने से उसकी आर्थिक स्थिति नही बदलती। अतः बौद्ध धर्म ही उपयुक्त है।
डा अम्बेडकर जी ने 30 दिसम्बर सन् 1939 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में दलित प्रजा परिषद की बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि जब तक ब्राह्मण्य समाप्त नही होगा तब तक समानता नही आ सकती। छत्रपति शिवाजी इसे समाप्त करने में नाकाम रहे, लेकिन छत्रपति साहू जी(मृत्यु सन् 1922) ने यह काम कर दिखाया।उनका यह कथन अम्बेडकर नामा के वोल्यूम 39 के चैप्टर 168 के पृष्ठ संख्या 267-270 तक लिखा है। क्योंकि मनु स्मृति जिसका एक अंग्रेज़ अधिकारी विलियम जोन्स ने अंग्रेजी में अनुवाद करवाया,में शुद्र कौन होगा, इसको परिभाषित चैप्टर 8, श्लोक नम्बर 415 में किया गया है।शुद्र की सात पहचान बताई गई है जो निम्न हैं-
1- जो व्यक्ति युद्ध के मैदान से पीठ दिखाकर भाग गया हो।
2- युद्ध में जो बंदी बना लिया गया हो।
3- वो व्यक्ति जो ब्राह्मणों की पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा करता आ रहा हो।
4- ऐसा व्यक्ति जिसके पिता का पता ना हो, अर्थात वैष्या का पुत्र।
5- जो व्यक्ति पैसा देकर खरीदा गया हो अर्थात गुलाम।
6- जो व्यक्ति पैसा लेकर बैचा गया हो।
7- वह व्यक्ति जो पीढ़ी दर पीढ़ी किसी की सेवा करता आ रहा हो।
मनुु स्मृति में शुद्र कौन हो, उसमें पीढ़ी दर पीढ़ी ब्राह्मणों की सेवा करनेवाला भी था,शायद इसलिए ही अम्बेडकर जी ने अपने भाषण में ब्राहमण्य से बचने की बात कही थी।
15 अप्रैल 1948 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने डॉ. शारदा कबीर से दूसरी शादी की थी। उस समय डॉ.अम्बेडकर की उमर 57 साल की थी तो डॉ. शारदा की उमर 45 साल थी। यानी डॉ. अम्बेडकर अपनी दूसरी पत्नी से 12 साल बड़े थे। डॉ. शारदा कबीर चिकित्सक थीं। वे महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। डॉ. शारदा कबीर का मुम्बई में क्लीनिक था जहां इलाज के दौरान डॉ. अम्बेडकर से उनका परिचय हुआ था। अम्बेडकर जी ने यह शादी सन् 1873 के स्पेशल मेरिज एक्ट के अंतर्गत की, जिसके अन्तर्गत इंटर कास्ट और इंटर रिलिजन शादी की जा सकती थी आज यह सन् 1954 के एक्ट के नाम से चल रहा है।
26 जनवरी सन् 1950 को भारत का संविधान लागू हो गया, संविधान की धारा 340 में ओबीसी को भी आरक्षण का प्रावधान देने की व्यवस्था कर दी गई।
आजादी की लड़ाई में अगड़, पिछड़े, महिला, अनुसूचित जाति व जनजाति सहित सभी लोग शामिल थे। किसानों का आजादी से मतलब था जमींदारो से आजादी,इस कारण राज्य को आर्थिक समानता की कोशिश करनी थी। लेकिन सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार था।धारा 14-18 तक समानता का अधिकार है, जिसमें धारा 15 के अंदर शिक्षा की समानता का अधिकार है।भाग 4 की धारा 46 में राज्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक व आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए प्रयास कर सकता है।
भूमि सुधार में चकबंदी तथा जमींदारी प्रथा का उन्मूलन होना प्रमुख कार्य था, किसान का सीधा संबंध राज्य से हो, कोई बीच में ना हो।धारा 39ए व बी आर्थिक समानता तय करती है।कई राज्यों ने शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण दे दिया जिसमें मद्रास प्रमुख था।
इन सुधारों के विरोध में लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए।
सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा में आरक्षण व सम्पत्ति से किसी को बेदखल नहीं किया जा सकता।
नेहरू समाजवादी मानसिकता के थे, सन् 1951 में पहला संविधान संशोधन किया गया धारा 31 में ए और बी क्लाज जोड दी गई।
ए मे यह लिखा गया कि यदि भूमि सुधार के लिए कोई कानून आता है तो धारा 31(1) लागू नही होगी।
बी के तहत 9 वी अनुसूची बनाई गई। कोई भी कानून यदि 9 वी अनुसूची में डाल दिया गया तो सुप्रिम कोर्ट या हाई कोर्ट उसका संज्ञान नही लेगा।
धारा 15 में जो तीन क्लाज थी, उसमें 4 वी क्लाज जोडी गई कि यदि कोई राज्य एस सी,एस टी या अन्य कमजोर वर्ग के लिए कोई लाभ देता है तो उसके विरुद्ध कोई कोर्ट नही जा सकता।
29 जनवरी सन् 1953 को ओबीसी जातियों की पहचान के लिए काका कालेलकर आयोग भारत सरकार ने बनाया,काका कालेलकर आयोग ने भारत में 2018 जातियों को ओबीसी में रखने की संतुति की। परन्तु भारत सरकार ने इस आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया, ओबीसी आरक्षण नही दिया।
सन् 1955-56 में हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में संसद से पास कराकर एक्ट बना दिया।
1- हिन्दू मेरिज एक्ट, सन् 1955 में
बाकि तीनो सन् 1956 में
2- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम एक्ट
3- हिन्दू अव्यस्क तथा संरक्षता एक्ट
4- हिन्दू एडोप्शन एवं मेंटिनेंस एक्ट
इन सब एक्ट में सबसे पहले हिन्दू कौन है इसकी परिभाषा लिखी। मुस्लिम, ईसाई, यहूदी,पारसी को छोड़कर जो भी है सब हिन्दू है।यानि सिक्ख,जैन, बौद्ध, आर्य समाज, ब्रह्मा समाज, प्रार्थना समाज,वीर शैव सब हिन्दू है।
15 अक्टूबर, 1956 को आंबेडकर ने बौद्ध धर्मं में 'लौटने' पर अपने अनुयायियों के लिए निर्धारित की 22 प्रतिज्ञाओं में से दो प्रतिज्ञा ऐसी है जिन्हें समझने के लिए बहुत गहराई से सोचना पडता है वे है-
8- मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा।
19 - मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ।
अम्बेडकर जी ने सन् 1938 में कहा था कि जब तक ब्राहमणत्व का नाश नही होगा, समानता नही आयेगी, परन्तु सन् 1948 में ब्राह्मण कन्या से शादी कर ली तथा सन् 1956 में बौद्ध धर्म ग्रहण करते समय आठवी प्रतिज्ञा में वही बात कही जो 1938 में कही थी, अम्बेडकर जी का ऐसा करना उस बात को दर्शाता है जिसमें कहा जाता है कि पाप से बचो,पापी से नहीं।
अम्बेडकर जी ने सन् 1935 में कहा था कि वह हिंदू धर्म त्याग देंगे। सन् 1939 के अपने सम्बोधन में उन्होंने बौद्ध धर्म की ओर इशारा भी कर दिया था, परन्तु जब आजाद भारत में हिन्दू मैरिज एक्ट पास हो गया, उसमें हिन्दू की परिभाषा में बौद्ध धर्म भी आ गया। लेकिन न तो अम्बेडकर जी ने इस व्याख्या का विरोध किया और बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तथा अपनी 19 वी प्रतिज्ञा में यह भी लिख दिया कि हिन्दू धर्म मानवता के विरुद्ध है।इससे साफ स्पष्ट होता है कि अम्बेडकर जी उस हिंदू धर्म को नहीं लिख रहें जिसका संदर्भ संविधान में है
26 नवम्बर सन् 1957 को तमिलनाडु के पेरियार ने अपने 3000 कार्यकर्ताओं के साथ संविधान की धारा 25-28 के विरोध में संविधान की प्रतिया जलायी और भारत की संसद से यह मांग की कि सन् 1931 तक के सैंसस में जब अनटचेबल व टचेबल डिप्रेस क्लास को हिंदू से अलग रखा गया है तो अब भी अलग ही रखा जाय।इस आंदोलन में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया। लोगों ने संविधान को जलाना स्वीकार किया। बहुत से कार्यकर्ताओं को 6 माह से लेकर 3 वर्ष तक की सजा हुई।16 कार्यकर्ता की मृत्यु हो गई।
सन् 1967 में पंजाब के जालंधर के गोलक नाथ ने संविधान के 17 वें संशोधन के विरूद्ध केस सुप्रिम कोर्ट में डाल दिया।ये दो भाई थे इनके पास 500 एकड़ जमीन थी,17 वे संशोधन के कारण एक भाई सिर्फ 30 एकड जमीन रख सकता था।सुप्रिम कोर्ट की 11 जजों की बेंच बेठी।6-5 के बहुमत से फैसला किया गया और कहा गया कि अनुच्छेद 368,13 से बाहर नही है। अतः संसद संशोधन करके भी सम्पत्ति का मूल अधिकार नही छीन सकती। अब तक के हुए कार्यों के लिए जो जमीन ली गई थी, उसके लिए कहा गया कि जो अब तक हुआ,उस पर यह फैसला नही लागू होगा।इस प्रकार फिर से गरीबों के आरक्षण पर संकट खड़ा हो गया।
जहां कमजोर वर्ग के लिए भारत के नेता लगातार प्रयास कर रहे थे,वही दूसरी ओर कुछ शक्ति ऐसी भी थी जो इन प्रयासों में रोड़े अटका रही थी, अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण के तहत जो सरकार नौकरी मिल रही थी,उनको हड़पने के लिए धूर्त लोगों ने एक नया तरीका स्तेमाल करना शुरू कर दिया था, संविदा पर जो नौकरी निकलती थी उन पर आरक्षण लागू नही होता था,इसी का लाभ लेते हुए आरक्षित वर्ग के लोगों के स्थान पर अनारक्षित वर्ग के लोगों को तीन या पांच वर्ष के लिए संविदा पर नौकरी में रखा जाने लगा। हटाएं जाने पर ये लोग कोर्ट चले जाते थे तथा कोर्ट से परमानेंट नियुक्ति का आदेश ले आते थे।इसको रोकने के लिए सन् 1967 का एससी-एसटी के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि संविदा पर 45 दिन से अधिक की यदि कोई नियुक्त सरकार करेगी तो उसमें अनुसूचित जाति तथा के लिए आरक्षण होगा।
सन् 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी को 352 सीट मिली।प्रधानमंत्री बनते ही इंदिरा गांधी ने 25 साल के लिए सोवियत संघ रूस से संधि कर ली तथा दिसम्बर 1971 में बंगलादेश बना दिया।
अब इंदिरा गांधी ने संविधान में 6 संशोधन (24से29) किये।24 वे संशोधन में धारा 13 व धारा 368 को एक दूसरे से अलग कर दिया।25 वे संशोधन में आर्थिक समानता के लिए धारा 14 के अंतर्गत कोर्ट में चैलेंज नही कर सकते।26 वे संशोधन में रियासत के राजाओं की पैंशन समाप्त कर दिए।29 वे संशोधन में केरल का लैंड रिफार्म एक्ट 9 वी अनुसूची में डाल दिया।
इस प्रकार इंदिरा गांधी जी ने आरक्षण की तकरार ही समाप्त कर दी।
सन् 1977 में जनता पार्टी ने अपने चुनाव के घोषणा पत्र में जनता से यह वादा किया कि यदि जनता पार्टी की सरकार बनी तो देश में काका कालेलकर आयोग की संस्तुति के आधार पर ओबीसी को आरक्षण दे दिया जायेगा। मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने।जब ओबीसी का प्रतिनिधि मंडल देसाई जी से मिला तो उन्होंने कहा कि काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट पुरानी हो चुकी है, अतः एक जनवरी सन् 1979 को मंडल आयोग का गठन कर दिया गया। सन् 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट दे दी, जिसमें 3743 जातियां थी।13 अगस्त सन् 1990 को देश के प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने ओबीसी के आरक्षण को लागू करने की घोषणा कर दी।
दलितो के शोषण की सूचना देश में चारों ओर से लगातार आ रही थी,अत भारत सरकार ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में एससी एसटी एक्ट 1 सितम्बर 1989 को संसद द्वारा पारित किया । एससी एसटी एक्ट को भारत सरकार ने देश के प्रधानमंत्री वीपी सिंह के द्वारा 30 जनवरी 1990 को लागू कर दिया गया।
सन् 2006 में मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार अर्जुन सिंह ने ओबीसी के लिए हायर एजुकेशन में आरक्षण लागू कर दिया।
सन् 2018 का ओबीसी के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि संविदा पर 45 दिन से अधिक की यदि कोई नियुक्त सरकार करेगी तो उसमें पिछडी जाति के लिए आरक्षण होगा।
एससी/एसटी एक्ट बदलाव करते हुए 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।
एससी/एसटी कानून में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध पूरे देश में हुआ। 1 अप्रैल 2018 को देशभर में कई संगठनों ने बंद बुलाया था। जगह-जगह आगजनी की गई। इस विरोध प्रदर्शन में कई लोगों की जान भी गई । सार्वजनिक सम्पत्ति में आग लगा दी गई थी।
दबाव में आकर सरकार पहले अध्यादेश लेकर आई। बाद में सरकार की ओर से मॉनसून सत्र में SC/ST संशोधन विधेयक पेश किया। कांग्रेस समेत ज़्यादातर विपक्षी दलों ने इस बिल का समर्थन किया था। संशोधित बिल में सरकार इस तरह के अपराध में FIR दर्ज करने के प्रावधान को वापस लेकर आई थी। सरकार ने माना कि केस दर्ज करने से पहले जांच जरूरी नहीं और ना ही गिरफ्तारी से पहले किसी की इजाजत लेनी होगी। अग्रिम जमानत का भी प्रावधान खत्म हो गया। मोदी सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला बदल लिया।
मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाबत 123वें संशोधन विधेयक को प्रस्तुत कर दिया और इसे संसद को दोनों सदनों में पारित कर दिया गया। इसके बाद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 14 अगस्त, 2018 को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिसूचित कर दिया और इसकी अधिसूचना गजट ऑफ इंडिया के माध्यम से सार्वजनिक कर दिया गया। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 की जगह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 2018 प्रभावी हो गया है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल गया है और इसे अनुसूचित जाति आयोग को प्रदत शक्तियों के समकक्ष शक्तियां प्रदान कर दी गयी हैं।
मई 2021 के मराठा आरक्षण के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 102वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को बरकरार रखने के बाद नवीनतम संशोधन की आवश्यकता पैदा हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की सिफारिशों पर, राष्ट्रपति यह निर्धारित करेंगे कि राज्य OBC सूची में किन समुदायों को शामिल किया जाएगा।
केंद्र सरकार ने 9 अगस्त, 2021 को लोकसभा में 127वां संविधान (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया। यह विधेयक राज्य की अपनी ओबीसी सूची बनाने की शक्ति को बहाल करने का प्रयास करता है।
मुख्य बिंदु
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने यह विधेयक पेश किया।
इसे 102वें संविधान संशोधन विधेयक के कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिए संसद में पेश किया गया था, जिसमें पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए राज्यों की शक्ति को बहाल किया गया था।
संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (4), 15 (5), और 16 (4) राज्य सरकार को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची घोषित करने और उनकी पहचान करने की शक्ति प्रदान करते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें एक अभ्यास के रूप में अलग-अलग ओबीसी सूची तैयार करती हैं।
127वां संविधान संशोधन विधेयक अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन करेगा।
यह एक नया खंड 3 पेश करेगा।
यह अनुच्छेद 366 (26c) और 338B में भी संशोधन करेगा।
इस विधेयक को यह स्पष्ट करने के लिए तैयार किया गया है कि राज्य सरकारें ओबीसी की राज्य सूची बनाए रख सकती हैं।
संशोधन के तहत नवीनतम ‘राज्य सूची’ को पूरी तरह से राष्ट्रपति के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा और इसे राज्य विधानसभा द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।
मोदी सरकार की कमजोर वर्ग के हितों को प्राथमिकता में रखकर उनकी दशा सुधारने के लिए ये कार्य जिस तत्परता से किये गये है,वो सराहनीय है।
संदर्भ ग्रंथ
1- अम्बेडकर नामा अयंकाली
https://youtu.be/apY_ATzWby8
2- आरक्षण का विरोध
https://youtu.be/VG-6ptXvXHg
3- अम्बेडकर नामा प्रो रतन लाल,वोल्यूम 39, चैप्टर 114, पृष्ठ संख्या 66-67
https://youtu.be/utmAUPQe56I
4- प्रोफेसर रतन लाल
https://youtu.be/Gvu2KlxtbsA
5- हिन्दू और ओबीसी
https://youtu.be/0crDw2qbfkk
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