जब मनुष्य का विकास प्रारम्भ हुआ तथा अपनी रक्षा व दुनिया के संसाधनों पर अधिकार के लिए संघर्ष प्रारम्भ हुआ तो मनुष्य संगठित होना शुरू हुआ। सबसे पहला संगठन खून के रिश्ते का था, एक माँ व उसके बच्चे, जिसमें माँ मुखिया होती थी। परन्तु जब ज्यादा शक्ति की जरूरत महसूस हुई तो इस दायरे में रिश्तेदार भी शामिल हो गए। जैसे पिता, बहनोई, पत्नी के भाई, मामा आदि। इसी बढोत्तरी ने आगे चलकर जाति का रूप ले लिया। जगह की ज्यादा जरूरत महसूस हुई तो गांव, शहर व देश बन गए। सुरक्षा के लिए राजा, सेना आदि की व्यवस्था हो गई। पहले संघर्ष परिवार नामक संगठन के नेतृत्व में हुआ होगा, दूसरा पडाव जाति (रक्त सम्बंध) का बना। तीसरा पडाव धर्म का बना। अतः पहले शासन जाति के आधार पर दिखता है जैसे मौर्य, गुप्त, हूण, कुषाण, गुर्जर, जाट, राजपूत, मराठा,मुगल, पठान आदि। जब धर्म आधार बना तो सबसे पहला संघर्ष इस्लाम के झंडे के नीचे प्रारम्भ हुआ। इसकी प्रतिक्रिया में ईसाईयों ने क्रूसेड (धर्म युद्ध) तथा भारत में खालसा पंथ की स्थापना हुई। जहां जिस साम्प्रदाय के मानने वालों का शासन स्थापित हुआ, वहां पर शासक साम्प्रदाय ने अपने विस्तार के प्रयास किए। इससे भारत भी अछूता नहीं रहा। यहां पर इस्लाम व ईसाई साम्प्रदाय के मानने वालों के शासन काल में भारत के लोगों ने भी आदर व लाभ के अवसर की प्राप्ति के लिए मुस्लिम व ईसाई साम्प्रदाय अपनाया तथा भारत का बहुत बड़ा तबका अपना मूल साम्प्रदाय छोड़कर मुस्लिम व ईसाई बन गया। लेकिन जब भारत सन् 1947 में आजाद हुआ तो साम्प्रदाय के आधार पर देश का बंटवारा हो गया। मुस्लिम साम्प्रदाय के अनुयायियों ने सबके साथ रहने से इंकार कर दिया और पाकिस्तान के रूप में अलग देश अस्तित्व में आ गया। इस बंटवारे में लाखों लोगों की मौत हो गई, करीब डेढ़ करोड़ लोगों का पलायन बहुमत सम्प्रदाय के देश में आने के लिए दोनों ओर से हुआ। क्योंकि इस्लाम के नाम पर सर्वप्रथम युद्ध प्रारम्भ हुआ था और इस्लाम के अनुयायी ही दारूल हरब से दारूल इस्लाम के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं, इसलिए सम्पूर्ण विश्व में इनके विरोध में माहोल बन रहा है,11 सितम्बर सन् 2001 को अलकायदा के 19 आतंकवादियों ने चार हवाई जहाजों का अपहरण कर अमेरिका के न्यूयार्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर्स पर दो हवाई जहाज की टक्कर मार दी, एक जहाज से वाशिंग्टन डी0 सी0 के बाहर अररलिंगटन वर्जीनिया में पेंटागन में टकरा दिया तथा एक जहाज ग्रामीण पेंसिलवेनिय में शेक्सविले के पास एक खेत में गिर गया। इस हमले में लगभग 3000 लोगों की हत्या करने के कारण पूरा विश्व इनके विरोध में आक्रामक हो गया है। भारत में पाकिस्तान बनने के बाद सन् 1971 में बंग्लादेश के बनने के समय भी लाखों शरणार्थी बंग्लादेश से कलकत्ता (भारत) आ गये जो हिंदू थे जबकि संघर्ष मुस्लिमों के बीच था। सन् 1990 में इस्लाम के अनुयायियों ने भारत के एक राज्य जम्मू-कश्मीर से मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी से कई लाख हिंदूओ को भगा दिया।13 दिसंबर सन् 2001 को लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मोहम्मद के 5 आतंकवादियों ने संसद भवन पर हमला कर दिया, जिसमें 9 भारतीय सिपाही शहीद हो गए। 26 नवंबर सन् 2008 को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला कर दिया, जिसमें 164 निर्दोष नागरिक मारे गए। 14 फरवरी सन् 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य के पुलवामा जिले के अवंतिपोरा क्षेत्र में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी ने सीआरपीएफ के 45 सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी। उपरोक्त कारण से भारत में ऐसा माहोल बन गया कि भारत में भी मुस्लिमों से अधिकांश लोगों के मन में चिढ सी हो गई है, भारत एक लोकतांत्रिक देश है, आज हालात ऐसे हैं कि मुसलमानों का जरा सा भी फेवर करने वाले राजनैतिक दल को वोट मिलने बंद हो गये हैं।
भारत में रहने वाले अधिकतर लोगों के पूर्वज हिंदू ही है।
गुर्जरों में गुर्जर प्रतिहार राजा नागभटट् प्रथम व नागभटट् द्वितीय तथा मिहिर भोज, तैमूर लंग से लड़ने वाले जोगराज सिंह, पृथ्वीराज चौहान, छत्रपति शिवाजी के सेनापति प्रताप राव गुर्जर, 1822 में अंग्रेजों से लड़ने वाले विजय सिंह -कल्याण सिंह, सन् 1857 में अंग्रेजों से लड़ने वाले कोतवाल धनसिंह गुर्जर, राव कदम सिंह, उमराव सिंह भाटी, सूबा देवहंस,विजय सिंह पथिक व सरदार पटेल आदि।
जाटों में तैमूर लंग से लड़ने वाले हरबीरसिंह गुलिया, औरंगजेब से लड़ने वाले मथुरा के गोकुल, राजाराम, सूरजमल, जवाहर सिंह, अंग्रेजों से लड़ने वाले शाहमल सिंह व नाहर सिंह,चौधरी चरण सिंह आदि।
राजपूतों में राणा कुम्भा, राणा सांगा व राणा प्रताप, अंग्रेजों से लड़ने वाले बाबू कुवंर सिंह व ठाकुर नरपत सिंह आदि हमारे सभी महापुरुष हिन्दू ही है।
परन्तु जाट, गुर्जर व राजपूत काफी संख्या में मुस्लिम भी है। हमारे भारत में यह प्रचलन है कि किसी मनुष्य द्वारा किया गया यश का कार्य उसके खुद के साथ उसके परिवार व जाति का भी यश बढाता है। परन्तु दूसरी ओर उसके द्वारा किए गए गलत कार्य से उसका परिवार व जाति अपयश की भागीदार भी बन जाती है। उदाहरणार्थ जब शेरशाह सूरी के हाथी पाली -पलवल के स्वतन्त्रता सेनानियों ने छीन लिए तो बादशाह ने यह कानून पास किया कि दंड हाथी छीनने वाले की पूरी जाति को दिया जाएगा। इस कानून को ही आधार बनाकर अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत में 190 जातियों को क्रिमिनल एक्ट में अपराधिक जातियों की सूची में डाला। जब भारत आजाद हुआ और पाकिस्तान बना, तो दंगे के शिकार वे हिंदू और मुसलमान भी हुए, जो देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार नहीं थे, उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वो उस धर्म के अनुयायी थे। जब सन् 1948 में महात्मा गांधी की हत्या महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण नाथूराम गोडसे ने कर दी तो जनता ने आक्रोश में हजारों की संख्या में महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों को मार डाला। प्रसिद्ध क्रांतिकारी वीर सावरकर के भाई, जो खुद भी स्वतंत्रता सेनानी थे, इस दंगे में मारे गए। जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके सुरक्षा कर्मियों ने कर दी, क्योंकि वे सुरक्षा कर्मी सिक्ख सम्प्रदाय के थे। इंदिरा गांधी जी की हत्या से आक्रोशित लोगों ने हजारों की संख्या में उन निर्दोष सिक्खों को मार डाला जिनका कोई दोष नहीं था।
उपरोक्त घटनाओं का विवेचन करने के पश्चात यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता कि जिस प्रकार का आचरण मुस्लिम आतंकवादियों का है, उस कारण से भारत में यदि आक्रोश फूट कर बाहर आ गया तो उन मुस्लिमों को भारी हानि हो सकती है जिसका कोई अपराध नहीं है। उसका अपराध बस इतना है कि वह उस साम्प्रदाय के है जिसमें कुछ लोग आतंकवादी बन कर दूसरे साम्प्रदाय के निर्दोष लोगों को मार रहे हैं। इस मुसीबत से बचने के लिए एक रास्ता यह भी है कि जो भाई अपने मूल साम्प्रदाय में, जिसे वह किसी कारणवश छोड़कर मुस्लिम बने थे, वापस अपने मूल साम्प्रदाय (हिन्दू) में आ सकते हैं।
समाप्त।
बुधवार, 17 जुलाई 2019
क्या जरूरी है घर वापसी -लेखक अशोक चौधरी मेरठ।
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