बुधवार, 1 जुलाई 2020

धन सिंह कोतवाल और पांचली का बलिदान (4 जुलाई सन् 1857) - लेखक अशोक चौधरी मेरठ।

  10 मई 1857 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार के शोषण के विरूद्ध भारतीयों ने जो संघर्ष प्रारंभ किया, उसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया है।इस संघर्ष का प्रारम्भ मेरठ से हुआ। 

बागपत रोड पर  पाचली खुर्द नामक गांव है, तत्तकालीन समय में इस गांव  के मुखिया सालगराम थे, सालगराम मुखिया के सात बेटे थे, जिनके नाम क्रमशः चैनसुख, नैनसुख, हरिसिंह, धनसिंह, मोहर सिंह, मैरूप सिंह व मेघराज सिंह थे, इनमें धनसिंह सालगराम मुखिया के चौथे पुत्र थे, धन सिंह का जन्म 27 नवम्बर सन् 1814 दिन रविवार (सम्वत् 1871 कार्तिक पूर्णिमा) को प्रात:करीब छ:बजे माता मनभरी के गर्भ से हुआ था। धन सिंह मेरठ की सदर कोतवाली में पुलिस में थे।क्रांति की तैयारी चल रही थी, गांव गांव रोटी और कमल का फूल लेकर प्रचार किया जा रहा था, नाना साहब पेशवा के प्रचारक साधुओं के भेष में भारतीय सेना व पुलिस के सिपाहियो, तथा जिन जागीरदार तथा रियासत के राजाओं से अंग्रेजों ने जागीर छीन ली थी, से सम्पर्क कर रहे थे। इन सब प्रयासों के कारण क्रांति की तिथि 31 मई निश्चित की गई थी, क्योंकि धनसिंह पुलिस में थे, वो जानते थे कि सब कार्य क्रांतिकारियों की योजना से होने मुश्किल है, अंग्रेजों का खुफिया तंत्र हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठा रहेगा, अतः धनसिंह ने अपने गांव के आसपास अपने सजातीय बंधुओं को यह समझा दिया था कि वह हर समय तैयार रहे, ताकि आवश्यकता पडने पर कम से कम समय में जहां जरूरत हो पहुंच सके।
मेरठ में 8 मई को उन सैनिकों को हथियार जब्त कर कैद कर लिया गया था,जिन्होंने गाय व सूअर की चर्बी लगे कारतूस लेने से इंकार कर दिया था। इन गिरफ्तार सिपाहियों को मेरठ डिवीजन के मेजर जनरल डब्ल्यू एच हेविट ने 10-10 वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड सुना दिया था। मेरठ में देशी सिपाहियों की केवल दो पैदल रेजिमेंट थी, जबकि यहां गोरे सिपाहियों की एक पूरी राइफल बटालियन तथा एक ड्रेगन रेजिमेंट थी, एक अच्छे तोपखाने पर भी अंग्रेजों का ही पूर्ण अधिकार था। इस स्थिति में अंग्रेज बेफिक्र थे। उन्हें भारतीय सिपाहियों से मेरठ में कोई खतरा दिखाई नहीं दे रहा था। 10 मई को चर्च के घंटे के साथ ही भारतीय सैनिकों की गतिविधियाँ प्रारंभ हो गई।शाम 6.30बजे भारतीय सैनिकों ने ग्यारहवीं रेजिमेंट के कमांडिंग आफिसर कर्नल फिनिश व कैप्टन मेक डोनाल्ड जो बीसवीं रेजिमेंट के शिक्षा विभाग के अधिकारी थे, को मार डाला तथा जेल तोडकर अपने 85 साथियों को छुड़ा लिया। सदर कोतवाली के कोतवाल धन सिंह गुर्जर तुरंत सक्रिय हो गए, उन्होंने तुरंत एक सिपाही अपने गांव पांचली जो कोतवाली से मात्र पांच किलोमीटर दूर था भेज दिया।तुरंत जो लोग संघर्ष करने लायक थे एकत्र हो गए और हजारों की संख्या में धनसिंह कोतवाल के भाईयों के साथ सदर कोतवाली में पहुंच गए। धनसिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वही रहने का आदेश दिया। आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पुलिसकर्मी क्रांतिकारी घटनाओं के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। दूसरी तरफ धनसिंह कोतवाल ने क्रांतिकारी योजनाओं से सहमत सिपाहियों को क्रांति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया। मेरठ के आसपास के गांवों में प्रचलित किवदंती के अनुसार इस क्रांतिकारी भीड़ ने धनसिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोडकर 839 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। मेरठ शहर व कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बंधित था उसे यह क्रांतिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। क्रांतिकारी भीड़ ने मेरठ में अंग्रेजों से सम्बन्धित सभी प्रतिष्ठान जला डाले थे, सूचना का आदान-प्रदान न हो, टेलिग्राफ की लाईन काट दी थी, मेरठ से अंग्रेजी शासन समाप्त हो चुका था, कोई अंग्रेज नहीं बचा था, अंग्रेज या तो मारे जा चुके थे या कहीं छिप गये थे।

परंतु 10 मई की क्रांति की घटनाओं के बाद से अंग्रेजों की गतिविधियों व भारतीयों की गतिविधियों में एक बड़ा अंतर रहा, जहां अंग्रेजों की गतिविधि अत्यधिक तेज थी वहीं भारतीयों की गतिविधियां मन्द गति से चल रही थी। उसका सबसे प्रमुख कारण अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक संचार प्रणाली का होना था। सन् 1853 में ही भारत में इलेक्ट्रॉनिक टेलिग्राफ का प्रवेश हो गया था। सन् 1857 तक अंग्रेजों ने भारत के सभी महत्वपूर्ण नगरों को टेलिग्राफ के द्वारा जोड़ दिया था।
 मेरठ के तत्कालीन कलेक्टर आरएच डनलप ने मेजर जनरल हैविट को 28 जून 1857 को पत्र लिखा कि यदि हमने शत्रुओं को सजा देने और अपने समर्थकों को मदद देने के लिए जोरदार कदम नहीं उठाए तो क्षेत्र कब्जे से बाहर निकल जायेगा।
तब अंग्रेजों ने खाकी रिसाला के नाम से मेरठ में एक फोर्स का गठन किया जिसमें 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। इनके अतिरिक्त 100 रायफल धारी तथा 60 कारबाईनो से लैस सिपाही थे। इस फोर्स को लेकर सबसे पहले क्रांतिकारियों के गढ़ धनसिंह कोतवाल के गांव पांचली, नगला, घाट गांव पर कार्रवाई करने की योजना बनी।
धनसिंह कोतवाल पुलिस में थे, अतः उनके पास भी अपना सूचना तंत्र था, धनसिंह को इस हमले की भनक लग गई।  तीन जुलाई की शाम को ही वह अपने गांव पहुंच गए। धनसिंह ने पांचली, नंगला व घाट के लोगों को हमले के बारे में बताया और तुरंत गांव से पलायन की सलाह दी। तीनों गांव के लोगों ने अपने परिवार की महिलाएं, बच्चों, वृद्धों को अपनी बैलगाड़ियो में बैठाकर रिश्तेदारों के यहाँ को रुखसत कर दिया। धनसिंह जब अपनी हबेली से बाहर निकले तो उन्होंने गांव की चौपाल पर अपने भाई बंधुओं को हथियारबंद बैठे देखा, ये वही लोग थे जो धनसिंह के बुलावे पर दस मई को मेरठ पहुंचे थे। धनसिंह ने उनसे वहां रूकने व एकत्र होने का कारण पूछा। जिस पर उन्होंने जबाब दिया कि हम अपने जिंदा रहते अपने गांव से नहीं जायेंगे, जो गांव से जाने थे वो जा चुके हैं। आप भी चले जाओ। धन सिंह परिस्थिती को समझ गए कि उनके भाई बंधु साका के मूड में आ गए हैं। जो लोग उनके बुलावे पर दुनिया की सबसे शक्तिशाली सत्ता से लड़ने मेरठ पहुंच गए थे, उन्हें आज मौत के मुंह में छोड़कर कैसे जाएं। धनसिंह ने अपना निर्णय ले लिया। उन्होंने अपने गाँव के क्रांतिकारियों को हमले का मुकाबला करने के लिए जितना हो सकता था मोर्चाबंद कर लिया।
चार जुलाई सन् 1857 को प्रात:ही खाकी रिसाले ने गांव पर हमला कर दिया। अँग्रेज अफसर ने जब गाँव में मुकाबले की तैयारी देखी तो वह हतप्रभ रह गया। वह इस लड़ाई को लम्बी नहीं खींचना चाहता था, क्योंकि लोगों के मन से अंग्रेजी शासन का भय निकल गया था, कहीं से भी रेवेन्यू नहीं मिल रहा था और उसका सबसे बड़ा कारण था धनसिंह कोतवाल व उसका गांव पांचली। अतः पूरे गांव को तोप के गोलो से उड़ा दिया गया, धनसिंह कोतवाल की कच्ची मिट्टी की हवेली धराशायी हो गई। भारी गोलीबारी की गई। सैकड़ों लोग शहीद हो गए, जो बच गए उनमें से 46 कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को फांसी दे दी गई। मृतकों की किसी ने शिनाख्त नहीं की। इस हमले के बाद धनसिंह कोतवाल की कहीं कोई गतिविधि नहीं मिली, सम्भवतः धनसिंह कोतवाल भी इसी गोलीबारी में अपने भाई बंधुओं के साथ शहीद हो गए। उनकी शहादत को शत् -शत् नमन।

संदर्भ ग्रन्थ

1- 1857 की जनक्रांति के जनक धनसिंह कोतवाल -डॉ सुशील भाटी।

2- 1857 के क्रांतिनायक शहीद धनसिंह कोतवाल का सामान्य जीवन परिचय -तस्वीर सिंह चपराणा(स्मारिका अमर शहीद धन सिंह कोतवाल ,3 जुलाई सन् 1918 मेरठ सदर थाना)

3- UTTAR PRADESH DISTRICT GAJETTEERS MEERUT -shrimati Esha Basanti JoshI

4- क्षेत्र में प्रचलित किवदंतियां।

5- दैनिक जागरण मेरठ 8 मई 2007 -वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई, धन सिंह गुर्जर: क्रांति के कर्मठ सिपाही।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें