24 अप्रैल सन् 1993 को पंचायती राज्य भारत में लागू किया गया।यह दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय है जो 24 अप्रैल के दिन को महत्वपूर्ण बनाता है।
संविधान के भाग 3 में मूल अधिकार राज्य द्वारा दिए गए हैं,जो धारा 12-35 तक है।
संविधान के भाग 4 में निति निदेशक तत्व शामिल हैं जो धारा 36-51 तक है।
संविधान के भाग 20 की धारा 368 में संविधान संशोधन की शक्ति निहित है।
भाग 3 की धारा 13 व 32 के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति का मूल अधिकार प्रभावित होता है तो वह सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
आजादी की लड़ाई में अगड़, पिछड़े, महिला, अनुसूचित जाति व जनजाति सहित सभी लोग शामिल थे। किसानों का आजादी से मतलब था जमींदारो से आजादी,इस कारण राज्य को आर्थिक समानता की कोशिश करनी थी। लेकिन सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार था।धारा 14-18 तक समानता का अधिकार है, जिसमें धारा 15 के अंदर शिक्षा की समानता का अधिकार है।भाग 4 की धारा 46 में राज्य प्रयास करेगा कि कमजोर वर्गों के शैक्षिक व आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए।धारा 25 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है।धारा 44 के अंतर्गत यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए राज्य प्रयास करेगा।
भूमि सुधार में चकबंदी तथा जमींदारी प्रथा का उन्मूलन होना प्रमुख कार्य था, किसान का सीधा संबंध राज्य से हो, कोई बीच में ना हो।धारा 39ए व बी आर्थिक समानता तय करती है।कई राज्यों ने शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण दे दिया जिसमें मद्रास प्रमुख था।
इन सुधारों के विरोध में लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए।
सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा में आरक्षण व सम्पत्ति से किसी को बेदखल नहीं किया जा सकता।
नेहरू समाजवादी मानसिकता के थे, सन् 1951 में पहला संविधान संशोधन किया गया धारा 31 में ए और बी क्लाज जोड दी गई,
ए मे यह लिखा गया कि यदि भूमि सुधार के लिए कोई कानून आता है तो धारा 31(1) लागू नही होगी।
बी के तहत 9 वी अनुसूची बनाई गई। कोई भी कानून यदि 9 वी अनुसूची में डाल दिया गया तो सुप्रिम कोर्ट या हाई कोर्ट उसका संज्ञान नही लेगा।
धारा 15 में जो तीन क्लाज थी, उसमें 4 वी क्लाज जोडी गई कि यदि कोई राज्य एस सी,एस टी या अन्य कमजोर वर्ग के लिए कोई लाभ देता है तो उसके विरुद्ध कोई कोर्ट नही जा सकता।
इन सुधारों के विरोध में शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ का एक केस सन् 1951 में सुप्रिम कोर्ट में आया। जिसके अन्तर्गत धारा 13 व धारा 368 के आपस में क्या सम्बन्ध है? पर बहस हुई।
धारा 13 की क्लाज 2 व 3 है,2 में लिखा है कि राज्य कोई ऐसा कानून नहीं बनायेंगे जो फंडामेंटल राइट्स के विरुद्ध हों, यदि कोई राज्य कोई कानून बनाता है तो सुप्रिम कोर्ट उस कानून को उतना ही खारिज कर देगा,जितना वह फंडामेंटल राइट्स को प्रभावित करता है।3 में लिखा है कि यह अधिकार एक्ट, अध्यादेश, आर्डर, नोटिफिकेशन,रूल,बायलाज,रेगूलेशन,कस्टम जिसमें कानून की फार्म हो पर लागू है। परंतु इसमें यह नही लिखा कि संविधान संशोधन पर भी सुप्रिम कोर्ट का अधिकार लागू है।
इसलिए शंकरी प्रसाद केस में यह कहा गया कि धारा 368 भी धारा 13 के अंदर समाहित है, परंतु दोनों अलग-अलग है, संविधान बनने के बाद हुआ संशोधन पर धारा 13 का अधिकार लागू नही होता।इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फेवर में फैसला दिया।
सन् 1955 में 4 वा संशोधन कर बंगाल के एक जमीन के कानून को 9 वी अनुसूची में डाल दिया गया।
सन् 1964 में 17 वा संशोधन किया गया उसमें राजस्थान और पंजाब की भूमि में संशोधन किया गया। सन् 1965 में सज्जन सिंह नाम के व्यक्ति इन संशोधन के विरूद्ध सुप्रिम कोर्ट गये। परंतु इस केस को शंकरी प्रसाद केस के समतुल्य भान खारिज कर दिया गया।
सन् 1967 में पंजाब के जालंधर के गोलक नाथ ने संविधान के 17 वें संशोधन के विरूद्ध केस सुप्रिम कोर्ट में डाल दिया।ये दो भाई थे इनके पास 500 एकड़ जमीन थी,17 वे संशोधन के कारण एक भाई सिर्फ 30 एकड जमीन रख सकता था।सुप्रिम कोर्ट की 11 जजों की बेंच बेठी।6-5 के बहुमत से फैसला किया गया और कहा गया कि अनुच्छेद 368,13 से बाहर नही है। अतः संसद संशोधन करके भी सम्पत्ति का मूल अधिकार नही छीन सकती। अब तक के हुए कार्यों के लिए जो जमीन ली गई थी, उसके लिए कहा गया कि जो अब तक हुआ,उस पर यह फैसला नही लागू होगा।
मोरारजी देसाई सन् 1928-30 में गुजरात के गोधरा में डिप्टी कलेक्टर के पद पर रहे थे,गोधरा में इनके कार्यकाल में साम्प्रदायिक दंगें हो गये थे, जिनमें मोरारजी देसाई भी आरोपित हो गये थे।इस कारण सन् 1930 में मोरारजी देसाई स्तिफा देकर गांधी जी के साथ आजादी की लड़ाई में सम्मिलित हो गये थे।बाद में बोम्बे के मुख्यमंत्री रहें तथा जवाहर लाल नेहरू के साथ वित्त मंत्री रहें।
जब के कामराज जो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहें थे कांग्रेस के अध्यक्ष थे।पं जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु हो गई।गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया। कामराज ने मोरारजी देसाई का नम्बर काट कर लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बना दिया।
कुछ समय बाद लाल बहादुर शास्त्री की भी मृत्यु हो गई,अब मोरारजी देसाई ने फिर अपनी दावेदारी पेश की, परन्तु कामराज ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए पेश कर दिया। मोरारजी देसाई व इंदिरा गांधी के मध्य कांग्रेस में चुनाव हुआ, जिसमें इंदिरा गांधी जीत गई।
सन् 1967 में लोकसभा का चुनाव हुआ, इंदिरा गांधी साधारण बहुमत से जीत गई। मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी जी की सरकार में उप-प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री बने। लेकिन इस चुनाव में 6- राज्य कांग्रेस से निकल गये।
इंदिरा गांधी जी ने दस सूत्रीय कार्यक्रम घोषित किए-
1- बैंको का राष्ट्रीय करण
2- इंश्योरेंस कंपनी का सरकारी करण
3- अरबन लैंड सिलिंग
4- पीवी पर्स (राजाओं की टैंशन) की समाप्ति
आदि थे।
सन् 1969 में इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण बिना वित्त मंत्री की सलाह के इंदिरा गांधी जी ने कर दिया।
सन् 1969 में ही भारत के राष्ट्रपति डा जाकिर हुसैन की मृत्यु हो गई। उप-राष्ट्रपति वी वी गिरि राष्ट्रपति बन गए। कांग्रेस ने राष्ट्रपति के पद के लिए निलम संजिवारेड्डी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। परन्तु इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति वीवी गिरी से पद से इस्तीफा दिलवाकर उन्हें भी राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना कर खडा कर दिया। कांग्रेस के अध्यक्ष ने अपने उम्मीदवार निलम संजिवारेड्डी को मत देने के लिए व्हीप जारी कर दिया, इंदिरा गांधी ने कहा कि राष्ट्रपति का पद पूरे देश का है इसलिए मतदाता अपने अंतरात्मा की आवाज पर मत देने का आव्हान किया।इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी निलम संजिवारेड्डी चुनाव हार गए। अतः 12 नवंबर सन् 1969 को कांग्रेस के अध्यक्ष कामराज ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से बाहर निकाल दिया।
कांग्रेस के अंदर फिर चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस दो फाड हो गई, इंदिरा गांधी की सरकार अल्पमत में आ गई जिसे करूणानिधि ने समर्थन दे कर बचा लिया।
इंदिरा गांधी जी ने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण का अध्यादेश जारी कर दिया।
इस निर्णय कै विरोध में एक शख्स आर सी कूपर,जिनका सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया तथा बैंक ऑफ बड़ौदा में हिस्सा था,सुप्रिम कोर्ट चले गए।11 जजों की बैंच ने इस अध्यादेश को 10-1 के बहुमत से खारिज कर दिया।जो जज इस अध्यादेश को खारिज करने के एक मात्र विरोध में थे वो थे जस्टिस एएम रे। सन् 1970 में प्रीवी पर्स को भी अध्यादेश के माध्यम से समाप्त कर दिया गया,माधव राव सिंधिया जो इस समय चैम्बर ऑफ प्रिंसिस थे,सुप्रिम कोर्ट चले गए, सुप्रीम कोर्ट ने यह अध्यादेश भी खारिज कर दिया।
अब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से निवेदन कर सन् 1971 में ही चुनाव करवा दिए जो सन् 1972 में होने थे। सन् 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी को 352 सीट मिली तथा दूसरी कांग्रेस को 16 सीट मिली।
प्रधानमंत्री बनते ही इंदिरा गांधी ने 25 साल के लिए सोवियत संघ रूस से संधि कर ली तथा दिसम्बर 1971 में बंगलादेश बना दिया।
अब इंदिरा गांधी ने संविधान में 6 संशोधन (24से29) किये।24 वे संशोधन में धारा 13व धारा 368 को एक दूसरे से अलग कर दिया।25 वे संशोधन में आर्थिक समानता के लिए धारा 14 के अंतर्गत चैलेंज कोर्ट में नही कर सकते।26 वे संशोधन में रियासत के राजा समाप्त कर दिए।29 वे संशोधन में केरल का लैंड रिफार्म एक्ट 9 वी अनुसूची में डाल दिया।इस 29 वे संशोधन के विरूद्ध केरल के शंकराचार्य केशवानंद भारती कोर्ट चले गए।13 जजो की बैंच बैठी।7-6 के बहुमत से निर्णय हुआ। कोर्ट ने कहा कि (1)24,25,26 तीनों संशोधन सही है।
(2)संसद के पास कही भी संशोधन की शक्ति है, लेकिन संविधान में संशोधन की शक्ति है, संविधान को बनानें की शक्ति नही है। संविधान का मूल ढांचा अर्थात बेसिक स्टरक्चर संसद नही बदल सकती।
कोर्ट ने कहा कि कोर्ट किसी भी संशोधन की जांच कर सकती हैं जो बेसिक स्टरक्चर को प्रभावित करता हो। लेकिन 24 अप्रैल सन् 1973 के पहले के किसी निर्णय की नही, जैसे डेमोक्रेसी, धर्मनिरपेक्षता।
यह केशवानंद भारती का फैसला 24 अप्रैल सन् 1973 को आया।
सन् 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि सिनियर मोस्ट जज ही चीफ जस्टिस बनेगा।
संदर्भ
1- संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर और केशवानंद भारती केस, डा विकास दिव्य कीर्ति
https://youtu.be/uIZik791zRA
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