अर्ध पोराणिक कथा है,यानि पोराणिक कथा के साथ एतिहासिक घटना का मिश्रण हो गया है। पुराणों में सावस्ती के एक राजा सुहिस्त्र देव का वर्णन किया गया है। सम्भवतः इसी राजा की कथा के आधार पर अब्दुल रहमान चिश्ती ने राजा सुहेल देव की कहानी बना दी है। अंग्रेजी शासन में विभिन्न क्षेत्रों के गजट तैयार किए गए,एक ब्रिटिश गजट में राजा सुहेल देव का उल्लेख हुआ है तथा उसे राजपूत राजा बताया गया है। सन् 1940 में बहराइच के स्कूली शिक्षक ने एक लम्बी कविता की रचना की , जिसमें सुहेलदेव को जैन राजा तथा हिंदू संस्कृति के रक्षक के रूप में चित्रित किया है, आर्य समाज और हिंदू महासभा ने सन् 1950 में राजा सुहेल देव के नाम से एक मेला लगाने की योजना बनाई,सालार मसूद दरगाह की कमेटी ने मेले का विरोध किया, सरकार ने मेले पर प्रतिबंध लगा दिया।जनता के आंदोलन करने पर सरकार ने मेला लगाने की अनुमति दे दी। राजा सुहेल देव का एक मंदिर बनाया गया,1950-60 के दशक में राजा सुहेल देव को पासी बताया जानें लगा।मिराज-ए-मसूदी के अनुसार राजा सुहेल देव भर थारू जाति का राजा था, आधुनिक युग के इतिहास कारों ने राजा सुहेल देव को,भर राजपूत,थारू,राजभर और जैन राजपूत के रूप में वर्णित किया है।
सन् 1351 में फिरोज शाह तुगलक बादशाह बना,तब उसके समय में सालार मसूद गाजी की दरगाह बनाईं गई।
मिरात-ए-मसूदी के लेखक अब्दुल रहमान चिश्ती ने सन् 1603-25 के मध्य फारसी भाषा में यह ग्रंथ लिखा, यह घटना सन् 1034 की है।
https://youtu.be/WWAQGXC5_S0
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