1857 का स्वतंत्रता संग्राम, जिसमें लगभग तीन लाख भारतीय शहीद हुए। फ्रांस की क्रांति में बास्तिल नाम की बस एक जेल तोडी गई थी, जबकि भारत में 10 मई को अकेले मेरठ में ही दो जेल तोडी गई।नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस (आधुनिक उत्तर प्रदेश) में 27 जेल तोड दी गई। पूरे भारत में 41 जेल तोड दी गई, भारत में सन् 1857 में एक लाख पचास हजार भारतीय सैनिक थे। 45 हजार अँग्रेज सिपाही थे, 70 हजार भारतीय सैनिकों ने क्रांति में भागीदारी की, लेकिन इन 70 हजार सैनिकों के साथ जब भारतीय जनता ने भागीदारी की तो इस क्रांति पर काबू पाने के लिए एक लाख बारह हजार सैनिक यूरोप से बुलाये गए, तीन लाख चालीस हजार सैनिक भारत से ही भर्ती किए गए। परंतु अंग्रेज अपने शासन को न्यायकारी ठहराने के लिए, इसे सैनिक विद्रोह ही कहते रहे। वे इसे क्रांति मानने से इंकार करते रहे और पिछले दरवाजे से स्वीकार भी करते रहे। इसका सबसे बड़ा सबूत था ब्रिटिश पार्लियामेंट के विपक्ष के नेता लार्ड डिजरैली का 27 जुलाई सन् 1857 को हाउस आँफ काँमंस में दिया तीन घंटे का लम्बा भाषण जिसे स्वंय कार्ल मार्क्स ने दर्शक दीर्घा में बैठकर सुना था। जिसमें डिजरैली ने 1857 के इस संघर्ष को भारत का राष्ट्रीय विद्रोह कहा था तथा इसका मूल कारण ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक और धार्मिक नीति को बताया था। डिजरैली ने अपने भाषण में जोर देकर पूछा था कि "क्या भारत में अशांति एक सैनिक विद्रोह की सूचक है या एक राष्ट्रीय विद्रोह की? क्या सैनिकों का व्यवहार किसी आकस्मिक जोश का परिणाम है या एक संगठित षडयंत्र का नतीजा है?"
ब्रिटिश की संसद ने ईस्ट इंडिया कंपनी को दोषी मानते हुए भारत की सत्ता लेकर रानी विक्टोरिया के हाथ में सौंप दी। ईस्ट इंडिया कंपनी को सत्ता से हटाना ही इस बात को बल देता है कि ब्रिटिश पार्लियामेंट ने यह मान लिया था कि कम्पनी के जनता विरोध में हैं।
अंग्रेजो ने अपने अधिकारी ए ओ ह्यूम के माध्यम से सन् 1885 में कांग्रेस का गठन किया। सन् 1886 में कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में ह्यूम ने 1857 के संघर्ष तथा हिंसा के मार्ग को पूरी तरह तिलांजलि देकर कांग्रेस का संवैधानिक मार्ग निर्धारित किया। कांग्रेस की सदस्यता के लिए उन्होंने केवल दो शर्तें रखी। प्रथम, सदस्य को अंग्रेजी आनी चाहिए तथा दूसरी, सदस्य की वफादारी सन्देह से परे होनी चाहिए।
सन् 1907 में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की अर्ध शताब्दी थी। लंदन में इसे अंग्रेजी शासन की जीत के रूप में मनाया जा रहा था तथा भारतीय क्रांतिकारियों को बदनाम किया जा रहा था।
इसकी प्रतिक्रिया में लंदन स्थित इंडिया हाउस में "अभिनव भारत" नामक संगठन के तत्वावधान में एक बैठक का आयोजन करके 10 मई 1907 को 1857 की क्रांति की अर्ध शताब्दी मनाने का संकल्प भारतीय नवयुवकों द्वारा लिया गया।
भारतीय युवा विनायक दामोदर सावरकर ने इंग्लैंड शाखा का गठन कर भारतीय छात्रों से सम्पर्क किया और उन्हें 1857 ई0 के स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में आयोजन करने का आग्रह किया। सभी ने निश्चय किया कि पूरे एक वर्ष तक तैयारियां करके मई 1908 में 1857 की क्रांति की अर्ध शताब्दी मनाई जाये। 10 मई 1908 को इंडिया हाउस के सभागार में आयोजित इस समारोह में पेरिस के सुविख्यात क्रांतिकारी सरदार सिंह राणा की अध्यक्षता में यह समारोह मनाया गया।
अब सावरकर ने निर्णय लिया कि वे लंदन के विशाल पुस्तकालय में बैठकर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समस्त उपलब्ध दस्तावेजों का अध्ययन कर एक ग्रंथ तैयार करेंगे। उन दिनों अभिनव भारत संगठन के एक सदस्य श्री मुखर्जी थे, उन्होंने अपनी अंग्रेज पत्नी से पुस्तकालय को आवेदन पत्र भिजवाया कि वह 1857 के भारतीय सिपाहियों के विद्रोह के बारे में शोध ग्रंथ लिखना चाहती है। स्वीकृति मिलने पर सावरकर को उनके सहायक के रूप में मनोनीत कर दिया गया। सावरकर प्रतिदिन कई माह तक ब्रिटिश पुस्तकालय जाते रहे तथा वहाँ संगृहीत दस्तावेजों के नोट्स लेते रहे। इन दस्तावेजों के आधार पर विनायक दामोदर सावरकर ने एक ग्रंथ की पांडुलिपि तैयार की तथा कार्बन कापी लगाकर इसकी दो प्रतियां बनाई और इस ग्रंथ का नाम The Indian War Of Independence रखा।
अंग्रेजों के प्रबल विरोध के कारण यह पुस्तक प्रकाशित होने से पूर्व ही प्रतिबंधित कर दी गई। यही कारण रहा कि अंग्रेजों की बनाई कांग्रेस के नेताओं ने भी सन् 1857 के स्वतंत्रता सेनानियों का समुचित सम्मान नहीं किया। महात्मा गांधी जी ने इसमें कभी रूचि नहीं ली। पं जवाहरलाल नेहरू ने उक्त सन्दर्भ में "discovery of India" में अपने विचार व्यक्त किए हैं, जिसमें उन्होंने इस क्रांति को "सामन्तो का विस्फोट" कहा है।
वस्तुतः यह स्थिति सन् 1957 तक रही। 1957 में 1857 की 100 वी वर्षगाँठ थी, भारत आजाद हो चुका था। परंतु कम्युनिस्ट इतिहासकार अब भी क्रांति मानने को तैयार नहीं थे परन्तु सन् 1953 में सोवियत संघ के नियंत्रक स्टालिन की मृत्यु हो गई। निकिता खुशचेव (1954-64)सोवियत संघ के नये अधिनायक बने। उन्होंने 1955 में भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने भारत में होने वाली 1857 की शताब्दी की सुगबुगाहट महसूस की। उन्होंने भारत की जनता की भावनाओं को महसूस करते हुए सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति से कार्ल मार्क्स के सम्बंधित लेखों का संग्रह प्रकाशित करने को कहा। परिणामस्वरूप 1959 में "The First War Of Independence 1857-59"के नाम से एक पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें छ:पृष्ठों की भूमिका जोड़ी गई। इसी भूमिका में सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम को आजादी की लड़ाई कहा गया।
आजादी के बाद से ही मेरठ में क्रांति दिवस (10 मई) को प्रत्येक वर्ष सरकारी व गैरसरकारी संस्थाए कार्यक्रम करती आ रही थी है।परंतु मेरठ से इस क्रांति का प्रारंभ किसने किया, उसका कोई प्रचार प्रसार आम जनमानस में नहीं था। मेरठ के आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में यह प्रचलित था और अफसोस भी था कि उनके बुजुर्गों ने क्रांति में बढचढ कर हिस्सा लिया था, जिस कारण अंग्रेजों ने उनके गांव के गांव बरबाद कर दिए थे, सैकड़ों लोगों को बिना न्याय प्रक्रिया के पालन के शहीद कर दिया। परन्तु मेरठ के इन क्रांतिकारियों का कोई प्रचार आम जनमानस में नहीं था। क्योंकि मेरठ के गजट में जो सन् 1911 में अंग्रेज अधिकारी ने लिखा था, जनता के किसी क्रांतिकारी का नाम ही नहीं लिखा था। सन् 1965 में पुनः गजट लिखा गया। UTTAR PRADESH DISTRICT GAZETTEERS
MEERUT
(Shrimati) Esha Basanti Joshi
B.A.(Hons.),M.A.,L.T.,T.Dip.(London), I.A.S.
Commissioner -oum-State Editor
Published by the Government of Uttar Pradesh
(Department of District Gazetteers, U.P.,Lucknow)
and
Printed at the Government Press, Allahabad. U.P.
1965
इस गजट में सर्वप्रथम धन सिंह कोतवाल का नाम लिखा गया। (The Indian troops as well as the police including the kotwal, Dhanna Singh, made common cause against the British.)
जे. ए. बी. पामर ( J A B Palmer) ने 1966 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी अपनी पुस्तक “म्युटिनी आउटब्रेक एट मेरठ इन 1857” धन सिंह की भूमिका के विषय में लिखा था| नार्थ-वेस्टर्न प्राविन्सिस की मिलेट्री पुलिस के कमिश्नर मेजर विलयम्स द्वारा मेरठ के विद्रोह के विस्फोट में पुलिस की भूमिका की जांच की गई थी तथा इस विषय पर एक स्मरण पत्र (मैमोरेन्डम) तैयार किया गया था| जे. ए. बी. पामर ने धन सिंह कोतवाल की भूमिका के विषय में इस स्मरण पत्र का हवाला दिया हैं|
यतीन्द्र कुमार वर्मा ने मयराष्ट्र मानस ग्रन्थ में ‘स्वतंत्रता की प्रथम ज्योति’ नामक अपने लेख में 10 मई 1857 को मेरठ में हुए क्रांति के विस्फोट में धन सिंह कोतवाल की भूमिका के विषय में पृष्ठ संख्या 48 पर लिखा हैं,
गणपति सिंह ने वर्ष 1986 में फरीदाबाद से प्रकाशित ‘गुर्जर वीर वीरांगनाए” नामक अपनी पुस्तक में धन सिंह कोतवाल के इतिहास पर ‘धन सिंह गूजर कोतवाल” के नाम से तीन पृष्ठ का एक पूरा लेख लिखा हैं|
हाकिम मोहम्मद सईद (Hakim Mohmmad Said) वर्ष 1990 में छपी अपनी पुस्तक ‘रोड टू पाकिस्तान’ के पृष्ट संख्या 545 में लिखते हैं “The state of confusion that ensued was worsened when the riff-raffs from the town started plundering and the Gujars who had come in numbers because theacting Kotwal, Dhanna Singh, belonged to that tribe, joined them. “
स्वामी वासुदेवानंद तीर्थ ने वर्ष 1991 में मेरठ (बागपत) से प्रकशित अपनी पुस्तक ‘आर्य समाज एवं स्वतंत्रता सेनानी’ धन सिंह कोतवाल की भूमिका को रेखांकित करते हुए ‘राव कदम सिंह व चौ. धन सिंह’ नामक एक दो पृष्ठ का पूरा अध्याय लिखा हैं|
वेदानंद आर्य ने वर्ष 1993 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “1857 का मुक्ति संग्राम तथा उसका ऐतिहासिक स्वरुप” में पृष्ट संख्या 98 पर लिखते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने देहाती अंचलो से आये क्रांतिकारियों के एक दल का नेतृत्व किया|
आचार्य दीपांकर ने वर्ष 1993 में मेरठ से प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘स्वाधीनता संग्राम और मेरठ’ में पृष्ठ 143 पर धन सिंह कोतवाल के विषय में लिखा है।
डा देवेंद्र सिंह ने वर्ष 1995 में एक लेख में धन सिंह कोतवाल के विषय में लिखा हैं जोकि अमर उजाला समाचार पत्र मेरठ में छपा था|
परन्तु सन् 1997 तक इस नाम पर सरकारी या गैर सरकारी संस्था का ध्यान ही नहीं गया।
सन् 1997 की बात है कि मेरे (अशोक चौधरी) निवास 108 /1 नेहरू नगर गढ रोड मेरठ के पास एक सामाजिक कार्यकर्ता जिनका नाम राजबल सिंह था और वह गढ़ रोड पर स्थित लोदी पुर छबका गांव जो अब हापुड़ जिले में है, के मूल निवासी थे, रहते थे। वो मेरे पास आये, उनके साथ जिला पंचायत मेरठ में कार्यरत कर्मचारी जयकुमार सिंह भी थे। उन्होंने एक कार्यक्रम की सूचना मुझे दी और कहा कि देहात मोर्चा नामक संगठन के बैनर तले मेरठ के आईएमए हाँल में 10 मई को एक कार्यक्रम मेरठ से क्रांति का प्रारंभ करने वाले शहीद धनसिंह कोतवाल की स्मृति में हो रहा है, आप आए। में कार्यक्रम में पहुंचा, उस कार्यक्रम में मेरठ कालेज के इतिहास के एक प्रवक्ता आए हुए थे।लेकिन प्रवक्ता जी ने अपना भाषण गांधी जी पर दिया। शायद धन सिंह कोतवाल पर उनका अध्ययन नहीं था।
मैं वापस आकर अपने दैनिक कार्यों मे लग गया। कुछ दिन पश्चात् मेरठ आर्य समाज सूरज कुंड से एक पत्रक जो हर वर्ष निकलता था, आर्य समाज के मंत्री डाँ आर पी सिंह चौधरी फूलबाग निवासी ने मुझे दिया। पत्रक में "10 मई -धन सिंह कोतवाल बलिदान दिवस" छपा था। मैंने चौधरी साहब से लिखे हेडिंग का आधार पूछा। उन्होंने कहा कि यह तो पहले से ही छपता आ रहा है। इससे ज्यादा मुझे मालूम नहीं है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता रमेश चंद्र नागर जो मेरी गली में ही रहते थे, मेरे अच्छे मित्र थे। उनके पास उनकी बहन के बेटे डॉ सुशील भाटी जो इतिहास के छात्र थे मुझे मिले। मेने धन सिंह कोतवाल जी के बारे में उनसे चर्चा की। तब उन्होंने बताया की मेरठ गजेटियर में सब घटना लिखी है। भाटी जी ने मेरठ विश्वविद्यालय से गजट की फोटो स्टेट कापी लाकर मुझे दे दी, जिसमें 10 मई 1857 की घटना का उल्लेख तथा धन सिंह कोतवाल का नाम था।
अब मेरे मन में इस विस्मृत शहीद के लिए कुछ प्रचार प्रसार करने की इच्छा जगी। मेरठ के पास गगोल तीर्थ नाम का स्थान है, वहां पर गगोल के रहने वाले एक सेवानिवृत्त इंजीनियर सतपाल सिंह "जन सेवा पंचायत" के नाम से संगठन चलाते थे। 31 अक्टूबर सन् 1997 को में इस संगठन की बैठक में पहुँचा। उनसे विचार विमर्श कर मैंने अपनी इच्छा प्रकट की। योजना बनी कि धन सिंह कोतवाल के गांव पांचली में 10 मई सन् 1998 को एक कार्यक्रम किया जाय। उसी संगठन में पांचली की प्रधान के पति स्व भूले सिंह चेयरमैन के छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह भी आते थे। गुमी गांव के कार्यकर्ता कर्मवीर व विजय पाल भी आते थे। मेरठ से मेरे साथ रमेश चंद्र नागर, देशपाल सिंह व सुभाष गुर्जर, इं सुरेंद्र सिंह पल्लव पुरम मेरठ, काजीपुर के सुरेंद्र सिंह भडाना, बक्सर के प्रताप सिंह, बेगमबाग से पार्षद सुशील गुर्जर थे।
अब विचार यह बना कि धन सिंह कोतवाल जी का चित्र बने। पांचली के बुजुर्गों से विचार विमर्श कर धन सिंह कोतवाल का चित्र मेरठ के घंटाघर के पास लाला के बाजार में स्थित भारद्वाज पेंटर से बनवाया गया तथा 10 मई सन् 1998 को गांव पांचली में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें उपरोक्त साथियों के साथ पांचली गांव के निवासियों ने बढ-चढ कर भाग लिया। कार्यक्रम में पूर्व विधायक श्री रामकृष्ण वर्मा जी बतौर मुख्य अतिथि रहे। पांचली मेन रोड पर ही शहीदों के स्मारक के लिए पांच ईंटे रख दी गई। तत्कालीन जिलाधिकारी श्री संजय अग्रवाल ने ग्राम पंचायत पांचली को 25000/-रू शहीद स्मारक के लिए दिए। जिसमें शहीद स्मारक का चबूतरा व थोड़ा सा पिलर बन गया। उसके पश्चात 27 फरवरी सन् 1999 को चैम्बर आँफ कामर्स मेरठ में पूर्व ग्रह राज्य मंत्री श्री राजेश पायलट जी क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में आये। इस कार्यक्रम में मेरठ के वर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष कुलविंदर सिंह के पिता श्री मुखिया गुर्जर व प्रमुख समाज सेवी नेपाल सिंह कसाना भी सम्मिलित हुए। श्री पायलट जी के करकमलो से एक पोस्टर का विमोचन किया गया, जिसमें सरदार पटेल, विजय सिंह पथिक व धन सिंह कोतवाल के चित्र थे तथा नीचे कार्यक्रम को करने वाले कार्यकर्ताओं के नाम लिखे थे। 10मई सन् 1999 को चैम्बर आँफ कामर्स में मेरे (अशोक चौधरी) साथ गांव जुररानपुर के सुनील भडाना आदि के द्वारा तथा चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के सुभाष चन्द्र बोस सभागार में देहात मोर्चा के द्वारा क्रांति दिवस पर शहीद धन सिंह कोतवाल की याद में कार्यक्रम किये गये। इन दोनों कार्यक्रमों में पूर्व उप मुख्यमंत्री श्री रामचन्द्र विकल तथा तत्कालीन यूपी के राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार चौधरी जयपाल सिंह ने सहभागिता की। 10 मई की पूर्व संध्या 9 मई को भी एक कार्यक्रम शहीद स्मारक पर किया गया।
धन सिंह कोतवाल का चित्र पूरे देश में पहुंचे, इसके लिए अखिल भारतीय गुर्जर महा सभा, जिसका आफिस दिल्ली में है, के तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सर रामशरण भाटी व सुधीर बैसला के सहयोग से शहीद धन सिंह कोतवाल के चित्र के साथ अन्य भारतीय महापुरुषों के चित्र से सुशोभित कलेंडर बनवा कर 12 प्रदेशों में 100-100 की संख्या में लगातार चार वर्षों तक पहुंचाया गया।
अब धन सिंह कोतवाल जी का चित्र पूरे भारत में था।
डा सुशील भाटी ने वर्ष 2000 में “1857 की क्रांति के जनक धन सिंह कोतवाल” नामक शोध पत्र लिखा जिसमे कोतवाल धन सिंह को पहली बार ‘1857 की क्रांति का जनक’ कहा गया और उसे क्रांति की शुरुआत करने का श्रेय दिया गया|
तत्कालीन मंत्री चौधरी जयपाल सिंह की सिफारिश से प्रदेश के सांस्कृतिक मंत्री रमेश पोखरियाल जी के द्वारा धन सिंह कोतवाल की आदमकद प्रतिमा बनकर मेरठ पहुँची, जिसे दो अक्टूबर सन् 2002 में मवाना स्टेंड मेरठ के पास स्थापित कर अनावरण कर दिया गया। अनावरण कार्यक्रम में यूपी के तत्कालीन केबिनेट मंत्री बाबू हुकुम सिंह जी मुख्य अतिथि तथा पूर्व मंत्री चौधरी जयपाल सिंह जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस प्रतिमा स्थापना के लिए स्थान दिलवाने में मेरठ नगर निगम के तत्कालीन डिप्टी मेयर श्री सुशील गुर्जर व ग्राम काजीपुर के तत्कालीन पार्षद राजकुमार का सहयोग रहा। डॉ सुशील भाटी द्वारा धन सिंह कोतवाल पर लिखित शोध पत्र का विमोचन किया गया। धन सिंह कोतवाल की मवाना स्टेंड पर मूर्ति लगवाने में समाज सेवी श्री नेपाल सिंह कसाना जी का विशेष सहयोग रहा।
मेरे (अशोक चौधरी) द्वारा "1857 का स्वतंत्रता संग्राम और कोतवाल धन सिंह" नामक लघु पुस्तिका जनवरी 2008 में प्रकाशित की गई।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के तत्कालीन वीसी श्री रमेश चंद्रा द्वारा विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन महामंत्री श्री जयवीर सिंह राणा के प्रस्ताव पर धन सिंह कोतवाल सामुदायिक केंद्र के नाम से एक भवन का नामकरण किया गया। सन् 2015 में श्री सुनील भडाना के द्वारा अपने गांव जुररानपुर में शहीद धन सिंह कोतवाल हाईस्कूल विद्यालय का निर्माण कराया गया। पांचली गांव के तत्कालीन प्रधान श्री भोपाल सिंह तथा होमगार्ड के इंस्पेक्टर श्री वेदपाल चपराणा के प्रयास से तत्कालीन केबिनेट मंत्री, होमगार्डस एवं प्रान्तीय रक्षा दल उत्तर प्रदेश सरकार श्री वेदराम भाटी के द्वारा मार्च 2010 में शहीद धन सिंह कोतवाल मण्डलीय प्रशिक्षण केन्द्र होमगार्ड का शिलान्यास कर दिया गया। जिसका लोकार्पण मई 2016 में हुआ। पांचली में अधूरे शहीद स्मारक को तत्कालीन विधायक श्री विनोद हरित की विधायक निधि के सहयोग से पूर्ण कर दिया गया। सुभारती विश्वविद्यालय के एक गेट का नाम शहीद धन सिंह कोतवाल के नाम पर रख दिया गया है।
धन सिंह कोतवाल मेरठ की सदर कोतवाली के कोतवाल थे। हम सब साथियों की इच्छा थी कि उनकी प्रतिमा सदर थाने में होनी चाहिए। सन् 2012 में सतवीर सिंह गुर्जर जो वर्तमान में हापुड़ जिला के बिरसंगपुर गांव के निवासी हैं तथा गांव के प्रधान भी रहे हैं के साथ जाकर सदर थाने के एसएचओ को धन सिंह कोतवाल का एक बड़ा चित्र भेंट किया।सतवीर गुर्जर के साथ धन सिंह कोतवाल जी के मेरठ में प्रचार में सेवानिवृत्त उत्तर प्रदेश पुलिस उपाधीक्षक श्री ओमप्रकाश वर्मा जो मेरठ में गढ रोड पर त क्षशीला कालोनी में रहते थे, का भी सहयोग रहा। उसके पश्चात प्रत्येक 10 मई को तत्कालीन विधायक श्री रविन्द्र भडाना और मे (अशोक चौधरी) इस चित्र पर माल्यार्पण करने के लिए प्रत्येक वर्ष जाते रहे हैं।
इस वर्ष 10 मई 2018 को पूर्व विधायक रविन्द्र भडाना जी और मे (अशोक चौधरी)सदर थाने में चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद मवाना स्टेंड पर लगी धन सिंह कोतवाल की प्रतिमा पर पहुंचे। इत्तेफाक से उसी समय मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री राजेश कुमार पाण्डेय भी पहुंच गए। वहां पर कर्मवीर गुमी व जगदीश पूठा ने अपने साथियों के साथ मंच, माईक व जलपान की व्यवस्था कर रखी थी। पाण्डेय जी के मन में शहीदों के प्रति जितना सम्मान मैने देखा, वह बिरले लोगों में ही मिलता है। सन् 1947 से आज तक लगातार अधिकारी मेरठ में आते जाते रहे हैं। परन्तु उन सब ने 10 मई क्रांति दिवस पर प्रतिमाओं पर माल्यार्पण का फर्ज निभाया और अपने काम से काम रखते रहे। लेकिन पाण्डेय जी ने वही पर अपने सम्बोधन में कहा कि जिस शहीद ने अपने लहू से सैनिक विद्रोह को क्रांति में बदल दिया, उसकी प्रतिमा सदर थाने में लगेगी। जिसमें वह कोतवाल रहे हैं। अपनी कथनी को करनी में बदलते हुए, तीन जुलाई सन् 2018 को प्रतिमा का अनावरण पाण्डेय जी के अथक प्रयास के कारण उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक श्री ओपी सिंह के के कर कमलों से सदर थाने में कर दिया गया।
12 जुलाई सन् 2018 को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ में कोतवाल धन सिंह की प्रतिमा का अनावरण विश्वविद्यालय के वीसी प्रोफेसर नरेंद्र कुमार तनेजा के प्रयास से उतर प्रदेश के राज्यपाल श्री रामनाईक व उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा के कर कमलों द्वारा कर दिया गया है।
शहीद धनसिंह कोतवाल पब्लिक स्कूल, नर्सरी से कक्षा आठ तक,संचालक श्री इन्द्रकुमार, नंगला जमालपुर जिला मेरठ (उ0 प्र0)। 3 जुलाई सन् 2019, अंदावली ब्लाक दौराला जिला मेरठ, सेवानिवृत्त कैप्टन श्री ॠषिपाल सिंह के प्रयास से, गांव प्रधान शिवकुमार जी के प्रस्ताव पर, कर्मवीर सिंह गुमी व जगदीश पूठा जी की आर्थिक सहायता से सन् 1857 की क्रांति के नायक धनसिंह कोतवाल की प्रतिमा व 1971 के शहीद प्रितम सिंह के नाम का शिलापट लगवाया गया।
23फरवरी सन् 2020को मेरठ जिले के किला-परिक्षतगढ के निकट पूठी गांव में कोतवाल धन सिंह जी की प्रतिमा का अनावरण राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार उत्तर प्रदेश श्री अशोक कटारिया जी के द्वारा किया गया।
23 मार्च सन् 2021 को मेरठ के मवाना में नवजीवन किसान इंटर कालेज (गुर्जर कालेज) में धन सिंह कोतवाल जी की एक मूर्ति की स्थापना की गई।इस अवसर पर समाजवादी पार्टी के नेता अतुल प्रधान के द्वारा एक विशाल रैली की गई तथा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने इस रैली में शामिल होकर कोतवाल धन सिंह गुर्जर की मूर्ति का अनावरण किया।
13 नवंबर सन् 2021 को धन सिंह कोतवाल जी के पेतृक गांव पांचली खुर्द मे स्थित गुरुकुल सर्वोदय इंटर कॉलेज का नाम बदल कर "क्रांतिनायक धन सिंह कोतवाल इंटर कालेज" कर दिया गया है।
10 मई सन् 2022 को उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री आदित्य नाथ/योगी जी क्रांति दिवस के अवसर पर मेरठ पधारे तथा सन् 1857 के क्रांतिकारियों को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए,मवाना स्टेंड मेरठ के पास कोतवाल धन सिंह गुर्जर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर शहीदों के प्रति अपना आदर प्रकट किया।
मेरठ में स्थित पुलिस ट्रेनिंग सेंटर जो तेजगढी से हापुड़ रोड की ओर जाते समय एल ब्लाक से काजीपुर गांव जाने वाली सड़क पर है,का नाम कोतवाल धन सिंह गुर्जर पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र कर दिया गया है।
धन सिंह कोतवाल के वंशज वीर महेंद्र सिंह, श्रीमती सुशीला सिंह व श्री धर्मेन्द्र सिंह राणा का माला पहनाकर सम्मान किया।
माननीय योगी जी उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री है जिन्होंने 10 मई को मेरठ पहुंच कर सन् 1857 के क्रांतिकारियों के प्रति अपना आदर प्रकट किया है।
11 मार्च सन् 2023 को मेरठ में शहीद धन सिंह कोतवाल पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में कोतवाल धन सिंह गुर्जर की मूर्ति का अनावरण भारत के उपराष्ट्रपति माननीय श्री जगदीप धनकड के करकमलों द्वारा किया गया।इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदरणीय श्री योगी आदित्यनाथ जी व उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आदरणीया आनंदी बेन पटेल की गरिमा मयी उपस्थित भी रही।
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