रविवार, 19 दिसंबर 2021

मेरी मां मेरे परिवार की नेता- अशोक चौधरी मेरठ

यू तो प्रकृति ने नेतृत्व का अधिकार माता को ही दिया है, परंतु मानव ने अपने शक्ति को आधार बनाकर उससे यह अधिकार छीनने का असफल प्रयास किया तथा यह अवधारणा स्थापित करने की कोशिश की कि एक नारी बचपन में पिता के,उसके बाद भाई के,उसके बाद पति के और वृद्ध अवस्था में पुत्र के संरक्षण में रहेगी।जिस प्रकार एक राजा की सुरक्षा उसके सेना नायक करते हैं,उसी प्रकार परिवार की नारी की सुरक्षा भी उसका पिता, पुत्र,पति और भाई करते हैं।इस सुरक्षा चक्र के कारण कभी कभी ऐसा आभास समाज को हुआ कि ये सुरक्षा करने वाले सेनापति ही मानव समाज के नेतृत्व कर्ता है, परंतु ऐसा है नही।
यदि पृथ्वी से सम्पूर्ण मातृशक्ति की हत्या कर दी जाय तो पुरुष मे इतनी सामर्थ्य नही कि वो अपने वंश को चला सके। लेकिन यदि पृथ्वी से सम्पूर्ण पुरुषों की हत्या कर दी जाय,तब भी नारी में वंश को चलाने की शक्ति बची रहती है। क्योंकि कुछ महिलाएं गर्भवती अवश्य बचेगी,जिनसे उत्पन्न संतान पुनः आने वाली पीढ़ी के रूप में प्राप्त हो जायेगी। इसलिए भयानक संकट उत्पन्न होने पर पुरूष ने अपने को समाप्त करके भी अपनी महिलाओं को बचाने का प्रयास किया है।
मेरे परिवार में  भी मेरी माता श्रीमती श्यामकली देवी ही मेरे परिवार की नेता थी।हम तीन भाई बहन तथा मेरे पिता मुज्जफर नगर जिले के खतोली ब्लाक के भटौडा नाम के एक छोटे से गांव से सम्बंध रखते हैं, लेकिन मेरी माता ने सन् 1972 में मेरठ की नेहरू नगर कालोनी में एक प्लाट खरीद कर हमे एक ग्रामीण से शहरी नागरिक के रूप में स्थापित करने का साहसिक कदम उठाया।माता जी के इस प्रयास में उनके पिता अर्थात मेरे नानाजी श्री रामचन्द्र जी और नानी श्रीमती प्रह्लादो (ग्राम भडोली) जो गढ रोड पर स्थित हसनपुर कलां गांव के निवासी थे,का भरपूर सहयोग और संरक्षण रहा।
माता जी के अथक प्रयासों तथा हमारे पिताजी, नानाजी व नानाजी के सहयोग के कारण हम तीनों भाई बहन अपनी माता जी सहित सन् 1977 में मेरठ में निवास करने के लिए गांव से शहर में आ गए।
माता जी एक साहसी और कठीन परिश्रम करने वाली उच्च नेतिक आदर्शों का पालन करने वाली तथा स्वभाव से कठोर महिला थी।हम तीनों भाई बहिन बड़े होते गए, शादी शुदा हो गये, हमारे भी बच्चे बडे हो गये,मेरे बच्चे (बेटी पायल और कोमल) और मेरी बडी बहन कृष्णा कुमारी के बच्चे (शालिनी और विशाल) भी शादी शुदा होने के बाद और एक-एक संतान के पिता भी हो गये, मेरे छोटे भाई महेश के दोनों बच्चे (लोकेंद्र और शिवांगी) अभी अविवाहित है,कि 5 दिसम्बर सन् 2021(रविवार का दिन  मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि ) प्रात: 9 बजे माता जी इस नश्वर संसार को छोड़कर चली गई।
माता जी की जीवटता,उनका अपने जीवन के अंत तक परिश्रम करने का प्रयास सदा मन में समाया रहेगा।
हम सब भाई बहन जब भी अपने को एक जागरूक शहरी व सभ्य नागरिक के रूप में पायेंगे या समाज के लोग हमको ऐसा मानेंगे तो उसमें हमारा कुछ नहीं, वह हमारी माता जी का प्रतिबिंब और परिश्रम की ही झलक मात्र है।
भगवान उन्हें अपने चरणों में स्थान दे।

रविवार, 10 अक्टूबर 2021

संवाद गुर्जर और राजपूत विषय सम्राट मिहिरभोज

गुर्जर- भीलवाड़ा स्थान का नाम है, क्योंकि वहा भील जाति के लोग बहुतायत में हैं, राजपूताना स्थान का नाम था क्योंकि राजपूत जाति वहां बहुतायत मे थी, बुंदेलखंड स्थान का नाम है क्योंकि बुंदेला जाति के लोग बहुतायत में हैं, जटवाड़ा(उत्तर भारत के दिल्ली, भरतपुर,धोलपुर, बीकानेर,चुरू, झुंझुनूं,आगरा, मथुरा,मेवात,मेरठ, पलवल, फरीदाबाद, अलीगढ़ तथा दक्षिण में चम्बल नदी के तट के पास गोहद तक का क्षेत्र जाट किसानों की बहुलता के कारण जटवाड़ा कहलाता था) स्थान का नाम रहा है क्योंकि जाट जाति के लोग बहुतायत में थे,एक गुर्जर देश भी था, क्योंकि  गुर्जर/गूजर जाति के लोग बहुतायत में थे।
राजपूत-  ...ना ना ना ना ये तो स्थान वाचक है, इससे गुर्जर जाति का क्या लेना देना। बाकी सब ठीक है, परन्तु ये नही।
राजपूत- नागौद रियासत के राजा सम्राट मिहिरभोज के समय के प्रतिहार है,वो आज अपने को पडियार/परिहार कहते हैं।
 गुर्जर - उस समय का गुर्जर,  आज अपने आपको गुर्जर/ गूजर/गुज्जर/गुजर अलग-अलग स्थानों पर कहता है।
राजपूत-...ना ना ना , गुर्जर का गूजर/गुज्जर/गुजर से क्या नाता एक मे र ऊपर है।
गुर्जर- नागौद का वारिस अपने आप को हरिश्चंद्र प्रतिहार का वंशज बता रहा है जो मंडौर के प्रतिहार थे, राजौर गढ/अलवर के प्रतिहार बडगूजर थे, उज्जैन के प्रतिहार गुर्जर प्रतिहार थे जो उज्जैन से जालौर, जालौर से मेड़ता तथा मेड़ता से कन्नौज चले गए। नागौद का राजा अपने को मंडौर का प्रतिहार बता रहा है,जो गुर्जर प्रतिहार नही है।
राजपूत-   क्या बात है? अजी प्रतिहार तो है भले ही पडिहार/परिहार हो, चाहें उज्जैन की जगह मंडौर के ही हो।कैसे तो गुर्जर प्रतिहार बनें।
गुर्जर-सम्राट मिहिरभोज की यदि सभी उपाधि नाम से पहले लगा दी जाय तो उनका नाम   रघुवंश तिलक रघुग्रामिणी  रघुवंश मुकुट मणि आदिवराह प्रभास क्षत्रिय गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज हो जाता है। इसमें कही राजपूत तो है ही नहीं।
राजपूत-  क्षत्रिय तो लिखा है। 
गुर्जर- क्षत्रिय तो एक वर्ग है जिसमें कई जातियां समाहित है। किसी भी विद्वान से पूछ लो। राजपूत अकेले का क्षत्रिय से क्या मतलब?
राजपूत- अजी  राजपूत और क्षत्रिय एक ही बात है, इसमें विद्वान क्या करेगा?जब हम कह रहे हैं। गुर्जर- राजपूत तो सन् 1200 तक कही इतिहास में पाता ही नहीं।
राजपूत-  कोई बात नहीं क्षत्रिय तो मिल जाता है,इसी से काम चला लेंगे।
गुर्जर- अजी तो राजपूत नाम जब किसी काम का ही नही तो राजपूत रेजीमेंट का नाम क्षत्रिय रेजिमेंट करवा दो,हम गुर्जर और अहीर दोनों रेजिमेंट की मांग केंसिल कर देंगे, क्षत्रिय रेजिमेंट में ही गुजारा कर लेंगे तीनों।
राजपूत- अरे क्या बेकार की बात कर दी? दूसरे के बाप को अपना बाप बनाते घूम रहे हो।
गुर्जर- अजी मान सिंह कछवाहे ने अकबर को अपना बाप बना लिया, अकबर का फरजंद/पुत्र बन गया, जबकि उसका बाप भारमल जिंदा था,राजा जय सिंह कछवाह जो मान सिंह कछवाह का पोत्र व जगत सिंह कछवाह का पुत्र था, वो शाहजहां का सन् 1639 में मिर्जा/भाई बन गया, उसने शाहजहां के बाप जहांगीर को अपना बाप बना लिया।इनके बारे में आपके क्या विचार है?
राजपूत-  अरे कोई ढंग की बात नहीं रही करने को।भैंस चोर कही के।दुखी करके रख दिया।

शनिवार, 2 अक्टूबर 2021

प्रार्थना पत्र ग्वालियर

सेवा में
श्री आशीष सक्सेना संभागायुक्त
कक्ष क्रमांक - 209, कार्यालय श्री अनिल बनबारिया अनुविभागीय दंडाधिकारी लश्कर  कलेक्ट्रेट उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर।
विषय -  गुर्जर सम्राट मिहिरभोज के नाम के प्रमाण हेतु प्रेषित तथ्य।
मान्यवर भारत को अरब हमलावरों से करीब 300 वर्षों तक बचाने वाले गुर्जर प्रतिहार वंश के सम्राट को उनकेे समकालीन ग्रंथों, शिलालेखो व ताम्रपत्रों में जिन उपाधियो से विभूषित किया गया है वही उनके नाम के आगे लग सकता है,लगता रहा है।उन उपाधियों का वर्णन निम्न है -
प्रतिहार-   
 तत्तकालीन समय में 6 जगह के प्रतिहार प्रसिद्ध हुए हैं,जो निम्न है -
1- मंडोर (वर्तमान राजस्थान में जोधपुर)
2-मेडता
3-राजौर गढ़/राजगढ़ (अलवर)
4-जालौर
5-उज्जैन
6-कन्नौज
इनमें उज्जैन और कन्नौज के प्रतिहार एक ही है।इनको ही गुर्जर प्रतिहार कहा गया है।  
गुर्जर- 
 ताम्रपत्र - 
निम्न मे गुर्जर कहा है-
1 - सज्जन ताम्र पत्र
2 - बड़ौदा ताम्र पत्र
3 - माने ताम्र पत्र
शिलालेख - 
निम्न में गुर्जर कहा है -

(क) राष्ट्रकूट अभिलेखों में-

1-नीलकुण्ड,

2-राधनपुर,

3-देवली

,4-करहड

(ख)राजौर के अभिलेखों में उज्जैन/कन्नौज के प्रतिहार वंश को गुर्जर कहा है।

(ग) ऐहोल, नवसारी शिलालेखो में इन्है गुर्जरेश्वर कहा है।

(घ) चंदेल शिलालेखो में गुर्जर प्रतिहार कहा है।

ग्रंथ -

(1) जिनसेन सूरि का हरिवंश पुराण

( 2) उद्योतन सूरि(सन् 778) का कुवलय माला (3) कल्हण की राजतरंगिणी(बारहवीं शताब्दी) (4) जयानक की पृथ्वीराज विजय(बारहवीं शताब्दी) में गुर्जर राज और मरू गुर्जर कहा है।

(5) पम्पा द्वारा लिखित विक्रमार्जुन विजय में तत्तकालीन गुर्जर प्रतिहार सम्राट महिपाल (सन् 912-944) को गुर्जर राजा कहा है।

(6) अरब यात्री अलमसूदी अपनी भारत यात्रा के दौरान सम्राट महिपाल के दरबार में रहा। उसने एक ग्रंथ जिसका नाम मजरुल- जुहाब तथा अंग्रेजी नाम मिडोज आफ गोल्ड है,को लिखा है। जिसमें महिपाल को वोरा और इस वंश को अल गुर्जर कहा है।

लक्ष्मण से सम्बंध- 
सम्राट मिहिर भोज (सन् 836-885) की ग्वालियर प्रशस्ती में प्रतिहार वंश के राजाओं को राम जी के भाई लक्ष्मण का वंशज बताया गया है।
रघुग्रामणी व रघुवंश तिलक -
सम्राट मिहिर भोज के दरबारी विद्वान राजशेखर जो मिहिरभोज के पुत्र महेन्द्र पाल (सन् 885-910) के गुरू थे, ने महेंद्र पाल को रघुग्रामिणी और रघुवंश तिलक कहा है।

रघुवंश मुकुट मणि - 
राजशेखर ने ही महेंद्र पाल के पुत्र महीपाल को रघुवंश मुकुट मणि कहा है।
क्षत्रिय- भगवान राम क्षत्रिय वंश के थे। लक्ष्मण से सम्बंध मानने के कारण इनको क्षत्रिय माना गया।
सम्राट मिहिर भोज की दो उपाधियां और थी,एक आदि वराह  (ग्वालियर प्रशस्ती) ,दूसरी प्रभास(दौलतपुर अभिलेख जोधपुर)।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर सम्राट मिहिरभोज का नाम यदि तय किया जाय तो वह निम्न हो जाता है-
रघुवंश तिलक रघुग्रामिणी  रघुवंश मुकुट मणि आदिवराह प्रभास क्षत्रिय गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज
भारत में भिन्न-भिन्न विचारों के लोग बसते हैं। सम्राट या शासक किसी एक का नही होता वह सम्पूर्ण समाज का होता है। उपरोक्त तथ्यों में सम्राट मिहिरभोज के वंश के लिए सर्वाधिक शब्द गुर्जर 18 (ताम्रपत्रों,शिलालेखो, ग्रंथों में) बार प्रयोग मे आया है। इसलिए गुर्जर सम्राट मिहिरभोज  सबसे न्यायकारी नाम है।
लेकिन सभी भारतीयों को इस नाम पर आपत्ति हो तो अपने समाज व क्षेत्र की सुविधा अनुसार गुर्जर सम्राट मिहिरभोज, प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज, क्षत्रिय सम्राट मिहिरभोज,  रघुवंश तिलक रघुग्रामिणी, रघुवंश मुकुट मणि सम्राट मिहिरभोज, आदिवराह सम्राट मिहिरभोज नाम का प्रयोग किया जा सकता है।
आपसे निवेदन है कि आप इस विषय को सुलझाने के लिए मेरे द्वारा दिए गए तथ्यों व सुझाव पर गम्भीरता पूर्वक विचार कर जल्द निर्णय देंगे।ताकि समाज में आपसी भाईचारा स्थापित हो सके।
संलग्न तथ्य -
1- डा कनक सिंह राव- गुर्जर प्रतिहार वंश
https://youtu.be/G7SA9aA-yHg
2- कुछ लिखित तथ्य

                भवदीय 

  अशोक चौधरी/अशोक कुमार

स्वतंत्र लेखक एवं विचारक

108/1 नेहरू नगर गढ रोड मेरठ (उत्तर प्रदेश)

मो - 9837856146



      

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शनिवार, 11 सितंबर 2021

भारत की न्याय व्यवस्था कल और आज - अशोक चौधरी मेरठ।

दुनिया में राज्य व्यवस्था की आवश्यकता के दो ही कारण दिखाई देते हैं।पहला सुरक्षा और दूसरा कमजोर के लिए न्याय।जब मानव समूह के रूप में रहने लगा तथा अपनी अपनी रूचि से कार्य करके उदर पूर्ति करने लगा तो उन परिस्थितियों में कुछ मानव इस मानसिकता के भी मिलने लगें जो स्वयं तो कोई कार्य करने से बचते थे लेकिन उदर पूर्ति तथा अपनी मानसिक संतुष्टि के लिए दूसरो पर आघात करने लगे थे।इनसे बचने के लिए एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता हुई जो अपने कार्य में लगे लोगों को सुरक्षा तथा यदि आपस में मतभेद के कारण किसी प्रकार का संघर्ष हो जाय तो उसका निर्णय कर सके।इस जरूरत की पूर्ति के लिए एक राजा,उसकी सेना तथा न्यायालय बने।
भारत में यह व्यवस्था पंचायत के रूप में पनपी तथा इसकेे नियम कानून के रूप में मनु स्मृति नामक ग्रंथ में है जिसका जिक्र आज भी हो जाता है।जब इस्लाम के मानने वालों का शासन दुनिया में आया तो शरियत के रूप में एक किताब का जिक्र आता है जिसमें समाज के क्रिमिनल और सीविल दोनों तरह के मसलों का हल तथा उसकी न्याय व्यवस्था दी गई है।
लेकिन आधुनिक भारत में जो यूरोपियन के आगमन से माना जाता है,का भारत की न्यायपालिका पर विशेष प्रभाव है।
इसको दो समयांतराल में विभाजित किया जा सकता है।एक सन् 1764 से लेकर आजाद भारत के संविधान लागू होने तक (26 जनवरी सन् 1950) तथा दूसरा सन् 1950 से लेकर आज तक।
आज भारत में कोलेजियम की व्यवस्था के अनुसार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजो की नियुक्ति होती है।इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को सन् 1764 से लेकर आज तक की आधुनिक भारत की न्यायिक यात्रा से परिचित कराने का प्रयास करेंगे।
सन् 1764 में अंग्रेजों और मुगलों के बीच हुए बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो की विजय के पश्चात मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के मध्य हुए समझौते के अनुसार बंगाल प्रांत (वर्तमान का बिहार बंगाल और उड़ीसा) के वित्त एवं प्रशासनिक कार्य अंग्रेजों के हाथ में आ गए तथा क्रिमिनल  के फैसले शरियत के अनुसार ही होते रहें। 
सन् 1773 में रेगुलेटिंग एक्ट नाम का कानून अंग्रेजो द्वारा भारत में लागू किया गया।अब बंगाल की जुडिशरी भी अंग्रेजों के हाथ में आ गई। 
सन् 1774 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कलकत्ता में अंग्रेजों द्वारा की गई, जिसमें 4 जज थे।यह आधुनिक भारत में अंग्रेजों द्वारा न्यायालय व न्यायिक व्यवस्था हेतु उठाया गया पहला कदम था।
 सन् 1834 में फर्स्ट ला कमिशन आफ ब्रिटिश इंडिया बनाया गया जिसके अध्यक्ष लार्ड मैकाले बनाये गये।
 सन् 1835 में लार्ड मैकाले की सलाह पर अंग्रेजी भाषा को भारत की आफिशियल भाषा बना दिया गया।
सन् 1862 में कलकत्ता बोम्बे और मद्रास में हाई कोर्ट बनाये गये।
इस प्रकार भारत में अंग्रेजों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों की स्थापना हो गई। सन् 1935 में भारत में एक संविधान अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया, आजाद भारत के अपने संविधान लागू होने तक अर्थात 26 जनवरी सन् 1950 तक सन् 1935 के संविधान से ही भारत का शासन चलता रहा।
 आजाद भारत के संविधान के अनुसार भारत के न्यायालयों (सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट) में जजो की नियुक्ति करने के लिए संविधान की धारा 124 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय के गठन की प्रक्रिया दी गई है। जिसमें कहा गया है कि भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो 7 से अधिक जजों से मिलकर बनेगा अर्थात एक मुख्य न्यायाधीश तथा 7 न्यायाधीश होंगे। यदि न्यायाधीशों की संख्या बढानी हो तो उसका अधिकार भारत की संसद को होगा।आज भारत के सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या 34(1+33) है।
जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जायेगी। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करेंगे। राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जजों से परामर्श करेंगे, परन्तु राष्ट्रपति उनका परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है। अतः एक तरह से भारत की कार्यपालिका राष्ट्रपति के माध्यम से भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करेंगी।
सुप्रीम कोर्ट के अन्य जज भी भारत के राष्ट्रपति ही नियुक्त करेंगे। अन्य जजों की नियुक्ति के लिए भारत के राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश से अनिवार्य परामर्श करेंगे, राष्ट्रपति चाहें तो अन्य न्यायधीशों से भी परामर्श कर सकते हैं। परंतु वह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं होगे। अतः भारत का संविधान सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति का अधिकार भारत की संसद को देता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह परम्परा डाली की भारत का मुख्य न्यायाधीश वरिष्ठता के क्रम से बनते थे, जवाहर लाल नेहरू के सम्पूर्ण कार्यकाल में सिर्फ एक बार ऐसी परिस्थिति बनी, जिसमें वरिष्ठ जज के स्थान पर उनसे नीचे के नम्बर के जज भारत के मुख्य न्यायाधीश बनें। सन् 1964 में जफर इमाम नाम के एक जज का मुख्य न्यायाधीश बनने का नम्बर था, परन्तु वह बहुत लम्बे समय से बीमार थे,उनके स्वास्थ्य के कारण उनके स्थान पर दूसरे जज को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
भारत में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में विवादो में घिर गई। इंदिरा गांधी जी ने सन् 1973 में भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता क्रम को तोड दिया, जिसमें नियुक्त का आधार राजनीतिक बताया गया। हुआ यह कि 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी को 352 सीट मिली । इंदिरा गांधी ने संविधान में 6 संशोधन (24से29) किये। जिस कारण पूरे देश में ऐसा संदेश जाने लगा कि इंदिरा गांधी पूरे संविधान को ही बदलना चाहती है। ऐसे अवसर पर 24 अप्रैल सन् 1973 में केशवानंद भारती केस का फैसला आया,इस केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की बेंच कर रही थी। फैसला 7-6 के बहुमत से आया। फैसले में कहा गया कि भारत की संसद को संविधान में संशोधन का अधिकार है, परंतु संसद संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन नही कर सकती।मूल ढांचे में क्या आता है या मूल ढांचे का जिक्र भारत के संविधान में नही है।जब माननीय सुप्रीम कोर्ट से यह पूछा गया कि मूल ढांचा क्या है?इसमे क्या आता है? तब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब भी कोई ऐसा अवसर आयेगा, सुप्रीम कोर्ट मूल ढांचे को बताता रहेगा।
इस फैसले से कार्यपालिका की संविधान संशोधन की शक्ति पर एक विराम तो लगा ही।इस फैसले के आने के अगले ही दिन 25 अप्रैल सन् 1973 को भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की गई।जिनका नाम ए.एन.रे था।इस नियुक्ति से बनाये गये मुख्य न्यायाधीश, वरिष्ठता के क्रम में चौथे नम्बर पर थे,जब इस फैसले की समीक्षा भारत के बुद्धिजीवी वर्ग ने की तो पाया कि वरिष्ठता के क्रम में ऊपर के तीन जज केशवानंद भारती के फैसले में उन 7 जजों मे शामिल थे, जिन्होंने मूल ढांचे के फेवर में फैसला दिया था, मुख्य न्यायाधीश बनने वाले जज उन 6 जजों मे थे जो मूल ढांचे को नही चाहतें थे। श्रीमती इंदिरा गांधी की पूरे भारत के बौद्धिक जगत में इस फैसले की निंदा की गई तथा इस नियुक्ति को भारत की न्यायपालिका में एक राजनैतिक हस्तक्षेप के रुप में देखा गया।
दूसरा केस ए डी एम जबलपुर के नाम से सन् 1976 में आया,यह एक रिट है, जो संविधान की धारा 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में तथा धारा 226 के अंतर्गत हाईकोर्ट में डाली जाती है। यदि किसी व्यक्ति को गैर कानूनी तरीके से बंदी बना लिया जाय तो वह व्यक्ति या उसको आधार बनाकर कोई भी अन्य व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। क्योंकि भारत के संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मौलिक अधिकार मे आता है।25 जून सन् 1975 को भारत में आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी। बहुत से नागरिक जेल में बंद कर दिए गए थे।उनके लिए ही यह रिट डाली गई थी।इस केस में 5 जजों की बैंच बैठी। जिसमें 4-1 से यह फैसला हुआ कि सुप्रीम कोर्ट इन गिरफ्तारियों को रोकने या बिना किसी चार्ज के बंदी बनाये गये लोगों को छोड़ने का कोई आदेश नहीं देगा। सन् 1977 में पुनः मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होनी थी।इस समय एच आर खन्ना वरिष्ठता के क्रम में सबसे ऊपर थे। परन्तु खन्ना जी के स्थान पर बैग नाम के कनिष्ठ जज को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया। क्योंकि खन्ना जी वो एक जज थे जिनका यह कहना था कि आपातकाल के समय बिना चार्ज के गिरफ्तार किए गए नागरिकों को छोड़ने का आदेश सुप्रीम कोर्ट को देना चाहिए।इस नियुक्ति की भी निंदा हुई। क्योंकि खन्ना जी को राजनीति के तहत पद से वंचित कर दिया गया था।
उपरोक्त सन् 1973 और सन् 1977 की मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के कारण सन् 1973 में वरिष्ठ तीन जज तथा 1977 में वरिष्ठ एक जज को स्तीफा देकर अपने पद और वरिष्ठता की गरिमा की रक्षा करनी पडी थी।
अतः सन् 1981 में एस पी गुप्ता बनाम भारत सरकार के नाम से एक केस सुप्रीम कोर्ट मे आया।इस केस में पूछा गया कि संविधान की धारा 124 में जो परामर्श शब्द है क्या उसका अर्थ सहमति के रुप में लिया जा सकता है। क्योंकि यदि परामर्श का अर्थ सहमति माने तो राष्ट्रपति न्यायाधीश के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है।इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परामर्श का अर्थ सहमति नही है। अतः राष्ट्रपति न्यायाधीश के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है।इसको फस्ट जजी केस के नाम से भी जाना जाता है।
इसके बाद सन् 1993 में जब पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत सरकार के नाम से फिर सुप्रीम कोर्ट में एक केस डाला गया जिसमें फिर यही पूछा गया कि क्या परामर्श का अर्थ सहमति है।अब इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने सन् 1981 के फैसले से यू टर्न ले लिया और कहा कि परामर्श का अर्थ सम्मति है। अतः राष्ट्रपति न्यायाधीश से जो परामर्श लेंगे, उसे मानने के लिए बाध्य है।यही से कोलेजियम प्रणाली की शुरुआत हो गई।इस फैसले में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति तो राष्ट्रपति ही करेंगे, परन्तु मंत्री परिषद की सलाह पर नही बल्कि मुख्य न्यायाधीश तथा दो वरिष्ठतम न्यायाधीश के परामर्श पर करेंगे तथा जब इस प्रकार का परामर्श दिया जायेगा तो फैसला प्राईमेशी प्रिंसिपल के आधार पर होगा।यानि मुख्य न्यायाधीश की राय ही न्यायपालिका की राय मानी जायेगी। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर की जायेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से जो आजादी के बाद से वरिष्ठता एक प्रथा थी,अब वह एक कानून बन गया।इस प्रकार सन् 1993 से कार्यपालिका जजों की नियुक्ति से अलग हो गई तथा जजों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश के हाथ में आ गई।
आगे चलकर सन् 1998 में प्रेसिडेंट रेफरेंस एक्ट-143 के तहत जिसमें भारत का राष्ट्रपति न्यायालय से परामर्श मांग सकता है।
इस समय भारत के राष्ट्रपति के आर नारायणन थे। सन् 1998 में भारत के प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल तथा अटल बिहारी वाजपेई रहे थे। राष्ट्रपति जी ने न्यायपालिका से पूछा कि परामर्श का अर्थ सहमति की व्याख्या ने व्यवहारिक असंतुलन पैदा कर दिया है। यदि परामर्श का अर्थ सब जगह सहमति हो गया तो कोई किसी से परामर्श ही नहीं करेगा।क्या हमारा संविधान इसकी इजाजत देता है कि एक ही व्यक्ति जजों की नियुक्ति करें जो खुद भी एक जज ही है।इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि परामर्श का अर्थ सहमति ही है और कोलेजियम व्यवस्था सही है। परन्तु अब सुप्रीम कोर्ट ने इस व्यवस्था का विस्तार कर दिया।कहा गया कि अब
1- जजों की नियुक्ति की कमेटी 5 सदस्य की होगी। जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश होंगे।
2- यदि आगे बनने वाला मुख्य न्यायाधीश इन चार जजो में नही है तो वह भी इसका एक सदस्य होगा।सम्यक प्रक्रिया का पालन करते हुए यह कमेटी किसी नाम की सिफारिश करेगी तो राष्ट्रपति जी उसका पालन करने के लिए बाध्य होंगे।
सम्यक प्रक्रिया
1- मुख्य न्यायाधीश की सहमति के बिना कोई भी नाम सुप्रीम कोर्ट में जज बनने के लिए प्रस्तावित नही किया जायेगा।
2- कोलेजियम सर्व सम्मति से निर्णय लेगा। यदि सहमति नही बनी तो बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।जो मुख्य न्यायाधीश+2 होंगे। मुख्य न्यायाधीश की सहमति अनिवार्य होगी।
3- जब किसी व्यक्ति का नाम सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पेश किया जाएगा तो उसके केंद्र में मैरिट होगी। वरिष्ठता का पर्याप्त ध्यान रखा जायेगा। परंतु मैरिट बनाम वरिष्ठता में से यदि किसी एक का चयन करना हो तो मैरिट को वरियता दी जाएगी।
4- यदि हाई कोर्ट के जज को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया जा रहा हो तथा उसी प्रदेश का जज पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में हो तो उसकी सलाह भी ली जायेगी।
इसे थर्ड जजी केस कहा गया।इस केस में सुप्रीम कोर्ट में जजो की नियुक्ति और पारदर्शी हो गई।
कोलेजियम व्यवस्था की आलोचना भी खूब हुई। इसके विषय में कहा गया-
1- यह संविधान की बेतुकी व्याख्या है। क्योंकि परामर्श का अर्थ सहमति लेना नही हो सकता। यदि यह मान लिया जाए तो कोई किसी से परामर्श ही नहीं लेगा। परन्तु धारा 132 के अंतर्गत भारत का सर्वोच्च न्यायालय संविधान का सर्वोच्च व्याख्याकार है।इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता।
2- कोलेजियम की व्यवस्था पूरे विश्व में नही है।एपोइंटमेंट पावर हमेशा प्रशासनिक शक्ति है।जिसका प्रयोग कार्यपालिका के द्वारा होना चाहिए। ब्रिटेन और अमेरिका में भी ऐसा नहीं है।कही भी जजों की नियुक्ति जज नही करतें। ब्रिटेन में जजों की नियुक्ति एक संस्था जिसका नाम जुडिशरी एपाइंटमेंट कमीशन है कि सिफारिश पर ब्रिटेन का सम्राट करता है।इस संस्था मे 15 सदस्य होते हैं।केवल 3 सदस्य न्यायपालिका के होते हैं।
अमेरिका में राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति करता है। फिर वह नाम सिनेट (राज्यसभा) में जाते हैं।सिनेट में एक नियुक्ति समिति होती है।जिसे एपोइंटमेंट कमीशन कहा जाता है।वह नामो पर विचार कर सीनेट को भेज देती है।अब सीनेट 2/3 के बहुमत से पास कर देता है।
यह भी कहा जाता है कि कोलेजियम भाई भतीजावाद तथा भ्रष्टाचार को बढ़ाव
 देता है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में 52% जज आपस में रिश्तेदार है।
यह प्रक्रिया संविधान की धारा 50 के भी विरूद्ध है। जिसमें कहा गया है कि प्रशासनिक व न्याय की नियुक्ति अलग अलग होनी चाहिए।
परन्तु सन् 1998 में एक तरह से कोलोजियम व्यवस्था भारत में लागू हो गई। सन् 2014 में मोदी जी की पूर्ण बहुमत की सरकार आयी।मोदी जी की सरकार ने कोलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने के लिए 99 वे संशोधन के माध्यम से प्रयास किया ताकि जजों की नियुक्ति कार्यपालिका के माध्यम से हो सकें।
संविधान में धारा 124A,124B,124C के द्वारा NGAC आयोग नाम की एक व्यवस्था दी गई।इस व्यवस्था के अनुसार एक 6 सदस्यों की संस्था होगी। जिसमें एक अध्यक्ष तथा 5 सदस्य होंगे। अध्यक्ष भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा।दो सदस्य सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज होंगे।एक सदस्य भारत का कानून मंत्री होगा।2 ख्याति प्राप्त सदस्य होंगे।
दो ख्याति प्राप्त सदस्यों की नियुक्ति मनोनयन के द्वारा होगी।इनकी नियुक्ति एक तीन सदस्य समिति करेगी।इस नियुक्ति समिति में एक भारत के मुख्य न्यायाधीश,एक देश के प्रधानमंत्री तथा एक विपक्ष का नेता अथवा सबसे बडे विपक्षी दल का नेता होगा। ये तीनों लोग दो ख्याति प्राप्त सदस्यों को नामित करेंगे,इन दो सदस्यों में से एक सदस्य एससी-एसटी ओबीसी महिला अथवा अल्पसंख्यक समुदाय से होगा।जब यह समिति जजों के नाम प्रस्तावित करेंगी, यदि दो या अधिक सदस्य असहमत है तो नाम प्रस्तावित नही होगा।यानि 6 में से 5 व्यक्ति सहमत होने चाहिए। प्रस्तावित नाम राष्ट्रपति जी के लिए मानने के लिए बाध्य कारी होगा।
इस क़ानून को संसद के विशेष बहुमत के साथ पास किया गया तथा आधे से अधिक राज्यों से पास करवाकर राष्ट्रपति महोदय को भेज दिया गया।
लेकिन कानून लागू होने से पूर्व ही इस कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई।
इसे ही फोर्थ जजी केस कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत सरकार-2015
सुप्रीम कोर्ट ने इस संशोधन को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। जिसमें तर्क दिए गए कि
1- भारत का संविधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है। परन्तु यह कानून स्वतंत्रता को कम कर रहा है।
2- दो ख्याति प्राप्त व्यक्ति व कानून मंत्री की कोई शैक्षिक योग्यता तय नही है। फिर वो कैसे सलाह देंगे की कौन न्यायाधीश किस मैरिट का है। कौन जज बने।
इस प्रकार 99 वा संविधान संशोधन रद्द हो गया। वर्तमान समय में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में कोलेजियम व्यवस्था है।जो पांच सदस्यीय है।
हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति धारा 217 के अन्तर्गत भारत का राष्ट्रपति करेगा।
भारत का राष्ट्रपति तीन लोगों से सलाह करेगा।एक भारत का न्यायाधीश,दूसरा प्रदेश का राज्यपाल,तिसरा हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश
लेकिन सन् 1993 व 1998 से नियुक्त कोलोजियम से होने लगी है। इसलिए अब भारत का मुख्य न्यायाधीश व दो सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज आपस में परामर्श कर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए नाम राष्ट्रपति जी को प्रस्तावित करेंगे। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की राय हाई कोर्ट के जज की नियुक्ति के लिए महत्वपूर्ण होगी।
संविधान की धारा 222 के अंतर्गत हाईकोर्ट के जज का स्थानांतरण भी कोलेजियम के माध्यम से होगा।चीफ जस्टिस आफ इंडिया+4 तथा दोनों हाई कोर्ट (जिस कोर्ट से जिस कोर्ट में) के चीफ जस्टिस के परामर्श से करेगा।
संदर्भ ग्रंथ-
भारतीय न्यायपालिका और कोलेजियम प्रणाली - डा मुकेश कुमार
https://youtu.be/WiyC2vyV2yo

बुधवार, 4 अगस्त 2021

आधुनिक भारत के कुछ महत्वपूर्ण कानून (सन् 1498-1947)- संकलन कर्ता अशोक चौधरी मेरठ।

यूरोपियन वास्कोडिगामा पुर्तगाली
1- 17 मई सन् 1498 को कालिकट/ कोचिकोट (केरल) में एक गुजरात के व्यापारी अब्दुल मजीद की सहायता से पहुंचा।
2- सन् 1502 में पुर्तगालियों ने सबसे पहली फैक्ट्री कोचीन/कोची में लगाई तथा कोचीन को ही अपना केंद्र बनाया।
3- सन् 1510 में  विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय की सहायता से बीजापुर के सुल्तान से गोवा को छीन लिया।
4- सन् 1530 में  अपना केंद्र कोचीन से बदल कर गोवा कर लिया।जब गोवा पर पुर्तगालियों का राज्य हो गया,तब यहां पर सती प्रथा को बंद कर दिया गया।
5- सन् 1535 में दीप व सन् 1559 में दमन पर पुर्तगालियों ने कब्जा कर लिया।उस समय बोम्बे दमन के अन्तर्गत आता था।
6- सन् 1582 में ब्रिटेन से एक अंग्रेज़ अधिकारी भारत में सम्राट अकबर के दरबार में आया,इस अधिकारी का भारत आने का उद्देश्य यह जानकारी प्राप्त करना था कि भारत में ब्रिटेन के व्यापार करने पर लाभ की क्या सम्भावनायें है?
7- ब्रिटिश अधिकारी की सकारात्मक रिपोर्ट प्राप्त होने पर सन् 1599 में ब्रिटिश क्वीन एलिजाबेथ प्रथम ने एक कानून रायल चार्टर के नाम से पास किया, जिसके परिणामस्वरूप सन् 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
8- सन् 1602 में डच (नीदरलैंड,हांलेंड) ईस्ट इंडिया कंपनी भारत पहुच गई।इस कम्पनी पर धन की कमी होने के कारण आम आदमी को अपने व्यापार में साझेदार बनाकर व्यापार किया,यह दुनिया की पहली कम्पनी थी जिसने दुनिया को शेयर बाजार अर्थात (आईपीओ)का कंसेप्ट दिया।
9- सन् 1605 में डच ने सबसे पहली फैक्ट्री मसूलीपटनम/मछली पटनम (आंध्र प्रदेश) में लगाई।डच ने अपना केंद्र पुलिकट (तमिलनाडु)को बनाया।
10- सन 1609  में ब्रिटेन से अंग्रेज़ भी भारत के सूरत में हैक्टर नामक पानी के जहाज से भारत पहुंचे तथा भारत में व्यापार करने की आज्ञा लेने के लिए एक अंग्रेज़ अधिकारी जिसका नाम कैप्टन विलियम हांकिंस था मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में सन् 1611 तक प्रयास रत रहा। लेकिन आज्ञा नही मिली।
11- सन् 1612 में कैप्टन मिडिलटन सम्राट जहांगीर के दरबार में पुनः पहुंचे तथा भारत में फैक्ट्री लगाने की आज्ञा प्राप्त कर ली।अब अंग्रेजों ने भारत में तीन फैक्ट्री लगाने की आज्ञा प्राप्त कर ली।
12- सन् 1613 में वेस्ट में सूरत (गुजरात) में एक फैक्ट्री लगाई।
13- सन् 1616 में डेनिस (डेनमार्क) ईस्ट इंडिया कंपनी भी भारत आ गई। इन्होंने अपनी फैक्ट्री सीरामपुर (बंगाल) में लगाई तथा अपना केंद्र टरोंकेबार (तमिलनाडु) में बनाया।
14- सन् 1631 में साऊथ में मसूलीपटनम(आंध्र प्रदेश) में दूसरी फैक्ट्री लगाई।
15- सन् 1633 में हरिहर पुर (बालासोर उड़ीसा) में ईस्ट मे तिसरी फैक्ट्री लगाई।
ब्रिटिश अधिकारियों ने जो टैक्स भारत सरकार को देना था उसका दस गुना टैक्स सरकार को दिया।जिस कारण सरकार की नजरों में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एक विशेष स्थान बन गया।
16- सन् 1637 में मद्रास  जो उस समय बंजर पडा हुआ था, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत सरकार से लीज पर ले लिया तथा वेयर हाउस बनाने के बहाने से मद्रास में सन् 1639 में एक किले का निर्माण कर लिया। जिसमें ब्रिटेन से चोरी-छुपे हथियार एकत्रित करने प्रारंभ कर दिए।
17- बोम्बे में बंदरगाह था जो पुर्तगाल के अधिकार मे था, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बोम्बे बंदरगाह को प्रयोग में लिये जाने के बदलें मे 10 किलोग्राम सोना प्रति वर्ष टैक्स के रूप में पुर्तगाल को देना पडता था। लेकिन सन् 1661 में ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वीतिय ने पुर्तगाल के राजा की बहन से शादी कर बोम्बे को दहेज में प्राप्त कर लिया तथा सन् 1668 में भी एक किले का निर्माण कर लिया।
18- सन् 1664 में फ्रेंच भारत आ गये। फ़्रेंच ने अपनी फैक्ट्रियां वही लगाई जहा ब्रिटेन ने लगा रखी थी। फ़्रेंच ने सन् 1668 में सूरत में, सन् 1669 में मसूलीपटनम (आंध्र प्रदेश) में तथा सन् 1673 में पांडिचेरी पर कब्जा कर,यही पर अपना केंद्र बना लिया।
19- ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी की नजर शुरू से ही बंगाल के उपजाऊ मैदान पर थी, अंग्रेज नील, अफीम तथा चाय की खेती करके विश्व बाजार में भारी लाभ कमाना चाहते थे, परन्तु उनको बंगाल में घुसने का अवसर नही मिल रहा था। परंतु संयोग वश मुगल बादशाह औरंगजेब ने ब्रिटिशर्स को आदेश दिया कि वो बंगाल में भी अपनी फैक्ट्री लगाये। अंग्रेजों की बिन मांगे ही मुराद पूरी हो गई। सन् 1690 में अंग्रेजों ने सूटानूटी गांव में एक मैं अपनी फैक्ट्री लगाई।सूटानूटी गांव के पास ही कालीकटा तथा गोविन्द पुर दो गांव थे। फैक्ट्री लगने के कारण ये तीनों गांव आपस में मिल गये। अंग्रेजों ने कालीकटा को अपना केंद्र बनाया तथा सन् 1698 में कालीकटा (कलकत्ता) में एक किले का निर्माण कर लिया। मुगल बादशाह औरंगजेब इस समय दक्षिण में मराठाओं से संघर्ष में उलझा हुआ था। सन् 1707 में मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हो गई।नये सम्राट के लिए मुगलों मे गृहयुद्ध शुरू हो गया। अंग्रेजों ने इस अवसर का भरपूर फायदा उठाया तथा सम्राट को टैक्स देना बंद कर दिया।
20- सन् 1717 में मुगल बादशाह फरुखशियर से अंग्रेजों ने पूरे भारत में बिना किसी टेक्स दिये फ्री ट्रेड करने का आदेश प्राप्त कर लिया।
यह वह समय था जब मुगल सत्ता डगमगाने लगी थी। मुगलों के बड़े सामंत धीरे धीरे अलग होते जा रहे थे।
(क)चिनकुलिज खां (निजामुल मुल्क) हैदराबाद को लेकर अलग हो गया।
(ख) मुर्शीद कुली खां बंगाल को लेकर अलग हो गया।
(ग)सद्दत खां अवध (लखनऊ) को लेकर अलग हो गया।
मुगल बादशाह नाम का ही बादशाह था।
21- सन् 1746-48 तक इंग्लैंड और फ्रांस के बीच प्रथम युद्ध हुआ।
22- सन् 1749-54 में दूसरा युद्ध इंग्लैंड और फ्रांस के बीच हुआ,इसका कोई परिणाम नहीं आया। पांडिचेरी की संधि हो गई।
23- सन् 1756-63 के बीच इंग्लैंड और फ्रांस के बीच तिसरा युद्ध हुआ जिसमें इंग्लैंड जीत गया।
24- सन् 1756 में बंगाल के नबाब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों पर कलकत्ता में हमला कर दिया तथा 100 अंग्रेज सिपाहियो को मार डाला।
25- अब सन् 1757 मे प्लासी का युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों ने बंगाल के नबाब सिराजुद्दौला के रिश्तेदार मीर जाफर को रिश्वत व बंगाल की नबाबी का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया।मीर जाफर युद्ध के मैदान में सेना लेकर अंग्रेजों की ओर हो गया,यह युद्ध कुल डेढ़ घंटा चला और अंग्रेजों ने युद्ध जीत लिया। अंग्रेजों की ओर से राबर्ट क्लाइव इस युद्ध का नेतृत्व कर रहे थे।
26- सन् 1759 में डच और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ।इस युद्ध में डच हार गए। संधि हो गई जिसमें यह तय हुआ कि मलेशिया और इंडोनेशिया मे डच व्यापार करेंगे। श्रीलंका और भारत इंग्लैंड पर रहेगा।
27- सन् 1763 में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच पेरिस में समझौता हुआ कि पांडिचेरी फ्रांस की ही रहेगी, लेकिन पांडिचेरी से बाहर बाकी भारत से फ्रांस का कोई मतलब नहीं।
28- मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय इस समय अवध में रह रहा था, अतः बंगाल के मीर कासिम,अवध के नवाब शुजाऊद्दोला ने मिलकर अंग्रेजों से बक्सर नामक स्थान पर युद्ध किया। इसमें भी अंग्रेज विजयी हुए। मुगल बादशाह और अंग्रेजों की बीच इलाहबाद की संधि हुई। जिसमें बंगाल (बिहार उड़ीसा व पूर्वी तथा पश्चिमी बंगाल) का वित्त (फाइनैंस),शासन (एडमिस्टरेशन) अंग्रेजों के हाथ आ गया, जुडिशली मुगल बादशाह के पास ही रही।
29- ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से बंगाल का शासन सम्भालने के लिए गवर्नर जनरल आफ बंगाल का पद सृजित हुआ तथा इस पद पर वारेन हेस्टिंग्स नाम के अंग्रेज अफसर को नियुक्त किया गया।
30- सन् 1767-69 में अंग्रेजों ने अपने साथ हैदराबाद के निजाम और मराठाओं को लेकर मैसूर पर हमला किया, परन्तु मैसूर के शासक हैदर अली ने मराठाओं को अपनी ओर मिला लिया। इसमें अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा और हैदर अली के साथ मद्रास समझोता हुआ।
31- सन् 1773 में रेगुलेटिंग एक्ट नाम का कानून अंग्रेजो द्वारा भारत में लागू किया गया।अब बंगाल की जुडिशरी भी अंग्रेजों के हाथ में आ गई। अंग्रेज बंगाल के सम्पूर्ण स्वामी हो गय।
32- सन् 1774 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कलकत्ता में अंग्रेजों द्वारा की गई। जिसमें 4 जज थे।
33- सन् 1775-82 में प्रथम अंग्रेज और मराठा युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेज हार गए,सलवाई की संधि हुई।
34- सन् 1780 में भारत में पहला अखबार प्रारंभ हुआ,जिसे बंगाल गजट कहते हैं। अंग्रेज जेम्स हिक्की द्वारा।
35- सन् 1780-84 में द्वीतिय मैसूर युद्ध हुआ, जिसमें हैदर अली मारा गया। परन्तु हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। सन् 1782 में बैंगलुरू की संधि हुई।
36- सन् 1784 में अंग्रेज अधिकारी विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल बनाई। जिसमें भारत के साहित्य का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। चार्ल्स विलिकिंस ने गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया। गीता और उपनिषद का फारसी में अनुवाद औरंगजेब का बडा भाई दारा शिकोह पहले ही कर चुका था।
37- सन् 1784 में ही लंदन में पिट्स इंडिया एक्ट के नाम से एक कानून पास किया गया, जिसमें यह निश्चित कर दिया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश सरकार की भारत में एक प्रतिनिधि है, भारत का ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जो शासन बनाया गया है वह ब्रिटिश सरकार का है ईस्ट इंडिया कंपनी का नही।
38- सन् 1785 में वारेन हेस्टिंग्स रिश्वत लेते पकड़े गए।इनको गवर्नर जनरल के पद से हटा दिया गया।
अगले गवर्नर जनरल आफ बंगाल लार्ड कार्नवालिस आयेे
39- सन् 1786 में क्लर्क एवं एडमिशटरेशन में भारतीयों की जरूरत महसूस की गई। इसलिए भारतीय युवाओं के लिए आईसीएस की परिक्षा में बैठने की अनुमति दे दी गई,जिसका पेपर लंदन में तथा आयु 21 वर्ष रख दी गई।
40- सन् 1789-92 तक तृतीय मैसूर युद्ध हुआ, जिसमें टीपू सुल्तान को श्रीरंगपटनम में घेर लिया गया।इस युद्ध में संधि हो गई, मैसूर का 50% हिस्सा अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान से छीन लिया।
41- सन् 1793 में अंग्रेजों ने किसानों से टैक्स वसूली के लिए परमानेंट सैटलमेंट सिस्टम का कंसेप्ट दिया, जिसके अन्तर्गत राजा या जमींदार टैक्स की वसूली करेगा तथा जो टैक्स मिलेगा उसके 11 हिस्से होगे, जिनमें 10 हिस्से अंग्रेजों को मिलेंगे तथा एक हिस्सा जमींदार या राजा को।यह तरिका बंगाल बिहार उड़ीसा तथा वाराणसी में प्रयोग मे लाया गया।
अब लार्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बन कर आये। ये नेपोलियन बोनापार्ट को हराकर आये थे।
42- सन् 1798 में कानून बनाकर प्रेस पर बेन लगा दिया गया।
43- सन् 1798 में ही हैदराबाद के निजाम के साथ अंग्रेजों ने संधि की।
44- सन् 1799 में चतुर्थ मैसूर युद्ध हुआ जिसमें टीपू सुल्तान मारा गया तथा पूरे मैसूर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
45- सन् 1802 में पूना में युद्ध हुआ जिसमें मराठा शक्ति आपस में ही लड गई ,भसीन की संधि हुई बाला बाजीराव द्वितीय पेशवा बन गए।
46- सन् 1803-05 में अंग्रेजों और मराठाओं में द्वितीय युद्ध हुआ।
जार्ज बरलो गवर्नर जनरल बन कर आये।
47- सन् 1806 में बैल्लौर में ड्रेस कोड के विवाद में भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। गवर्नर जनरल जार्ज बरलो हटा दिए गए।
अब लार्ड मिंटो प्रथम गवर्नर जनरल बन कर आये।
48- सन् 1809 में महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि हुई, जिसमें महाराजा रणजीत सिंह ने कोहिनूर हीरा अंग्रेजों को उपहार स्वरूप दिया।
49- सन् 1813 में चार्टर एक्ट पास हुआ, ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में व्यापार की मोनो पोली समाप्त कर दी गई।अब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में चाय और अफीम तथा चीन में व्यापार कर सकती थी,बाकि अन्य व्यापार में दूसरी कम्पनी भी व्यापार कर सकती थी।
50- सन् 1814-16 में चीन में जाने के लिए नेपाल के रास्ते के प्रयोग को लेकर अंग्रेजों और नेपाल में युद्ध हुआ, जिसमें गोरखो ने बडी बहादुरी दिखाई, संगोली की संधि हुई तथा नेपाल का 1/3 भाग अंग्रेजों ने कब्ज़ा लिया।
51- सन् 1816-19 में तिसरा मराठा युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेजों ने मराठा शक्ति को हरा दिया।
अब लार्ड हैस्टिंग्स गवर्नर जनरल बन कर आये।
52- सन् 1820 में लार्ड मुनरो के द्वारा प्रस्तुत की गई निती के आधार पर किसानों से टैक्स वसूली की निती बनाई गई।इस निती के अंतर्गत किसानों से असिंचित भूमि से 50% और सिंचित भूमि से 60% टैक्स लिया गया।इसे रैयत वाडी सिस्टम कहा गया।यह निती मद्रास, बोम्बे,आसाम और कुर्ग में के किसानों पर अपनाई गई।
अब लार्ड एमरेस्ट गवर्नर जनरल बनकर आए।
52- सन् 1824-26 प्रथम बर्मा और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ। अंग्रेजों ने बर्मा से आसाम, मणिपुर और अराकांज नामक क्षेत्र छीन लिए।यंडावो की संधि हुई।
अब लार्ड विलियम बेलेरिक गवर्नर जनरल आये।
53- सन् 1829 में सती प्रथा पर पूरे भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया।
54- सन् 1830 में ठगी को रोकने के लिए संप्रेषण आफ ठग नाम का कानून बनाया गया।
55- सन् 1833 में किसानों से टैक्स वसूलने के लिए महलवाडी सिस्टम अपनाया गया, ग्राम स्तर पर किसानों से टैक्स वसूलने के लिए व्यक्ति नियुक्त किए गए,इस व्यक्ति के अधिकार में आने वाले क्षेत्र को महल कहा गया।यह सिस्टम पंजाब,अवध (लखनऊ), आगरा और मध्य प्रदेश में लागू किया गया।
सन् 1833 में एक और चार्टर एक्ट पास हुआ, जिसके अन्तर्गत ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार पर से आधिपत्य समाप्त कर दिया गया। सन् 1833 में ही गवर्नर जनरल आफ बंगाल का पद समाप्त कर गवर्नर जनरल आफ इंडिया का पद सृजित कर दिया गया।
56- सन् 1834 में फर्स्ट ला कमिशन आफ ब्रिटिश इंडिया बनाया गया जिसके अध्यक्ष लार्ड मैकाले बनाये गये।
57- सन् 1835 में लार्ड मैकाले की सलाह पर अंग्रेजी भाषा को भारत की आफिशियल भाषा बना दिया गया।
अब चार्ल्स मेडकाल भारत के गवर्नर जनरल बन कर आये।
58- सन् 1836 में वरनाचुअल प्रेस एक्ट पास कर प्रेस पर से प्रतिबंध हटा दिया गया।
इन गवर्नर जनरल को वापस बुला लिया गया।
अगले गवर्नर जनरल लार्ड आकलैंड बन कर आये।
59- सन् 1839-42 के बीच अफगान और अंग्रेजों के मध्य युद्ध हुआ,इस युद्ध में अंग्रेज हार गए,इस युद्ध को आकलैंड फाली भी कहा जाता है।
अगले गवर्नर जनरल हैनरी हार्डिंग बनकर आए।
60- सन् 1845-46 में पहला अंग्रेज सिक्ख युद्ध हुआ, लाहौर की संधि हुई,आधा क्षेत्र अंग्रेजों ने कब्ज़ा लिया।
अगले गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी बन कर आये।
61- सन् 1848 में रियासत हड़पने की निती के अंतर्गत सतारा, जैतापुर,सम्भल पुर, उदयपुर, झांसी, नागपुर को हडप लिया गया तथा अवध को कमजोर प्रशासन का बहाना करके हडप लिया गया।
62- सन् 1849 में द्वितीय अंग्रेज़ सिक्ख युद्ध हुआ,अब सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
63- सन् 1852-53 में द्वितीय बर्मा युद्ध हुआ जिसमें लोअर बर्मा पर अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर लिया।
64- सन् 1853 में पहली रेल गाड़ी चली, जिसे साहिब,सिंध और सुल्तान नाम के तीन इंजनों ने खींचा। बोम्बे से थाणा। सन् 1853 में ही पहली टेलीग्राम लाइन बिछाई गई कलकत्ता से आगरा के बीच।
65-(क) सन् 1854 में पहली पोस्टल सर्विस की शुरुआत हुई।
(ख) सन् 1854 में PWD डिपार्टमेंट की शुरुआत हुई।
(ग) सन् 1854 में भारत की दूसरी राजधानी शिमला बनाई गई।
(घ) सन् 1854 में प्राइमरी एजुकेशन के लिए एजुकेशन कमीशन बुड्स डिस्पेच के नाम से भारत आया।
66- सन् 1856 में वीडो मेरिज एक्ट पास किया गया।
अब लार्ड कैनिंग भारत आए
67- (क)सन् 1857 में तीन यूनिवर्सिटी खोली गई, कलकत्ता, बोम्बे और मद्रास में।
(ख) सन् 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ।
68- सन् 1858 में लंदन में गवर्मेंट आफ इंडिया एक्ट 1858 पास हुआ, भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त होकर सीधा ब्रिटिश ताज के हाथों मे।
भारत का गवर्नर जनरल अब वायसराय हो गया।
69- सन् 1859 में पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में दो किसान भाई दिगम्बर विश्वास और विष्णु चरण विश्वास के नेतृत्व में नील का विद्रोह हुआ।
70-(क) सन् 1860 में IPC (इंडियन पेनल कोड) बना।
(ख) सन् 1860 में भारत में पहली बार बजट पेश हुआ,इस बजट को जेम्स विल्सन नाम के अर्थ शास्त्री ने पेश किया।
अब वायसराय लार्ड एल्गिन आये
71- सन् 1862 में कलकत्ता बोम्बे और मद्रास में हाई कोर्ट बनाये गये।
अब वायसराय लॉर्ड मांओं
72- सन् 1871-72 में भारत में सैंसस की शुरूआत हुई।
73-(क) सन् 1872 में भारत के राजकुमार और राजकुमारियों को पढ़ाने के लिए अजमेर और राजकोट में कालिज खोले गए।
(ख) सन् 1872 में काला पानी की जेल का निरीक्षण करने गए वायसराय लॉर्ड मांओं का शेर अफरिदी नामक कैदी ने कत्ल कर दिया।
अब लार्ड लिटन वायसराय आये
74- सन् 1876 में सूखा पड़ा, भारत में सूखा आयोग का गठन,लगान माफ किया गया रिचर्ड स्टेच अधिकारी द्वारा।
75- सन् 1878 में तीन कानून बनाये गये-
(क) आर्म्स एक्ट बना
(ख) वरनाकूल प्रेस एक्ट (प्रेस से पाबंदी समाप्त)
(ग) सिविल सर्विस में आयु 19 वर्ष की गई,सीविल सर्विस में 1/6 सीटें अमीर और राजा महाराजाओं के लिए आरक्षित की गई।
अब लार्ड रिपोन वायसराय बन कर आये
76- सन् 1881 में प्रथम फैक्ट्री एक्ट पास हुआ जिसमें बच्चों द्वारा मजदूरी करने पर रोक लगी।
77- सन् 1882 में लोकल सेल्फ गवर्मेंट एक्ट बना (पंचायत राज व्यवस्था)
78- सन् 1883 में इलबरड बिल पास हुआ, इसके अंतर्गत भारतीय जज अंग्रेजों को सजा सुना सकते थे।
अंग्रेजों के विरोध के कारण यह कानून वापस ले लिया गया।
79- (क) सन् 1885 में तिसरा बर्मा युद्ध हुआ और सम्पूर्ण बर्मा पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
(ख) सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई जिसमें एओ हृयूम, दादाभाई नौरोजी और दिनशो वाचा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
अब लार्ड लैंसडाउन वायसराय आये
80- सन् 1891 में द्वितीय फैक्ट्री एक्ट पास हुआ, जिसमें मजदूर के काम का समय निर्धारित हुआ तथा सप्ताहिक छुट्टी निर्धारित हुई।
81- सन् 1893 में डूरांड कमीशन द्वारा ब्रिटिश इंडिया और अफगानिस्तान के मध्य एक विभाजक रेखा खींच दी गई।
82- सन् 1894 में पहला इंडियन बैंक पंजाब नेशनल बैंक के नाम से लाहौर में खुला तथा इस बैंक में पहला खाता लाला लाजपत राय जी का खुला।
अब लार्ड कर्जन वायसराय आये
83- सन् 1899 में ब्रिटिश क्वीन की मृत्यु हो गई तथा जार्ज पंचम किंग बने।
84- सन् 1901 में रानी विक्टोरिया की याद में कलकत्ता में विक्टोरिया मेमोरियल बनाया गया।
85- सन् 1904 में इंडियन यूनिवर्सिटी एक्ट बना,इस कानून से पहले 10 वी पास करने के बाद ग्रेजुएशन कर लेते थे परन्तु इस कानून के बन जाने के बाद 12 वी पास करने के बाद ग्रेजुएशन हों गयी।
86-(क) सन् 1905 में प्राचीन इमारतों के रखरखाव के लिए एशियाटिक मेमोरियल एक्ट बना।
(ख) 16-10-1905 को बंगाल का विभाजन हुआ। जिसमें एक भाग में वेस्ट बंगाल, बिहार उड़ीसा, दूसरे भाग में पूर्व
 बंगाल और आसाम था।
(ग) सन् 1905 में एग्रिकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट पूसा बना, दिल्ली करोलबाग के पास
(घ) सन् 1905 में लाल बाल पाल के द्वारा स्वदेशी आंदोलन का प्रारंभ, वंदेमातरम आंदोलन, बंगाल विभाजन के विरोध में।
87- सन् 1906 में आल इंडिया मुस्लिम लीग का गठन नबाब समीउल्लाह खां के द्वारा किया गया तथा मुस्लिमो के लिए आरक्षण की मांग की गई।
88- सन् 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस नरम दल (गोपाल कृष्ण गोखले) व गरम दल (बाल गंगाधर तिलक) मे बंट गई,इस समय कांग्रेस के अध्यक्ष रास बिहारी घोष थे।
89- सन् 1908 में खुदीराम बोस ने मात्र 13 वर्ष की आयु में मुज्जफर पुर के अंग्रेज़ अधिकारी के काफिले पर बम फैंक दिया,खुदी राम बोस को 18 वर्ष की आयु में फांसी हो गई।
90- सन् 1909 में मार्ल
 मिंटो रिफार्म पास हो गया जिसे इंडिया काउंसिल एक्ट के नाम से जाना जाता है। इसमें कम्यूनल इलेक्ट्रो स्टेट के तहत मुस्लिमों को आरक्षण दिया गया।
अब लार्ड हार्डिंग वायसराय आये
91-(क) सन् 1911 में किंग जॉर्ज पंचम ने अपना राज्याभिषेक भारत में करने की इच्छा जताई। इसके लिए ग्रांड दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। जार्ज पंचम के आने की याद में गेट वे ऑफ इंडिया बनवाया गया।
(ख) सन् 1911 में ही कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में जार्ज पंचम की उपस्थिति में पहली बार जन गण मन गाया गया।
(ग) सन् 1911 में बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया।
(घ) सन् 1911 में ही अंग्रेजो ने भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ट्रांसफर कर दी गई।
92- सन् 1912 में लार्ड हार्डिंग पर दिल्ली में रास बिहारी बोस के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने बम फैंक दिया।
93- सन् 1915 में गांधी जी भारत आये गोपाल कृष्ण गोखले व चार्ल्स फीदर एंडस्टा ने गांधी जी को भारत भ्रमण करने की सलाह दी, जनवरी से दिसम्बर तक गांधी जी ने भारत भ्रमण किया।
94- सन् 1915 में हिंदू महासभा का गठन मदन मोहन मालवीय द्वारा किया गया।
95- सन् 1916 में साबरमती आश्रम अहमदाबाद में बनवाया गया।
96- सन् 1916 में कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ जिसमें लखनऊ पेक्ट (कांग्रेस+ मुस्लिम लीग) हुआ।
97- सन् 1916 में बालगंगाधर तिलक द्वारा बोम्बे मे तथा एनी बेसेंट द्वारा पूरे भारत में होम रूल के नाम से आंदोलन चलाया गया।
लार्ड चेम्सफोर्ड वायसराय आये
98- सन् 1917 में चम्पारण सत्याग्रह में गांधी जी ने भागेदारी की।
99- सन् 1918 में खेडा सत्याग्रह तथा अहमदाबाद में मिल स्टाइक में गांधी जी ने भागेदारी की।
100- सन् 1919 में रोलेक्ट एक्ट का कानून अंग्रेजो द्वारा बनाया गया। जिसके विरोध में 13 अप्रैल सन् 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने 1581 नागरिको को मार डाला।
101- सन् 1919-1921 के मध्य खिलाफत आन्दोलन हुआ।
102- सन् 1920 को गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन शुरू किया गया।
अब लार्ड रीडिंग वायसराय आये
103- सन् 1921 में मोपला विद्रोह हुआ मुस्लिम किसानों द्वारा केवल में।
104- चार फरवरी सन् 1922 को चोराचोरी कांड में 22 पुलिस कर्मी मारे गए। असहयोग आंदोलन स्थगित।
105- (क)सन् 1924 बालसेविक केस हुआ, जिसमें कम्युनिस्ट नेता एम एन राय,एस ए डांगे,सैयद उस्मानी पकड़ गए।
(ख) सन् 1924 में असहयोग आंदोलन समाप्त होने पर एच आर ए (हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन)का गठन किया, जिसमें एस एन सान्याल, चंद्र शेखर आजाद आदि थे।
106-  09-08- 1925 को चंद्रशेखर आजाद,रोशन सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां ने लखनऊ के निकट काकोरी में ट्रेन को लूट लिया, जिसमें 325000 की राशि लूट ली गई।
107-(क) सन् 1928 में एच आर ए के स्थान पर एच एस आर ए (हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन)का गठन भगत सिंह द्वारा किया गया।
(ख) साईमन कमिशन के विरोध में लाला लाजपतराय की मौत हो गई।भगत सिंह ने लाहौर में पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या कर दी।
108- सन् 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पं जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की मांग रखी।
109- गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की,जिसे नमक सत्याग्रह भी कहते हैं। साबरमती से दांडी अर्थात 450 किलोमीटर पैदल यात्रा की।
110-(क) सन् 1930-31-32 में गोलमेज सम्मेलन हुआ, जिसमें तीनों सम्मेलन में अम्बेडकर जी ने भाग लिया तथा दूसरे सम्मेलन में गांधी जी और सरोजिनी नायडू ने भी भाग लिया।
(ख) सन् 1932 में गांधी जी और अम्बेडकर जी के बीच पूना पैक्ट हुआ।
111- सन् 1940 में लाहौर में मुस्लिम लीग ने अपने अधिवेशन में पाकिस्तान की मांग रखी।
112- (क)सन् 1942 में क्रिप्स इंडिया मिशन भारत आया, जिसने भारत के नेताओं से द्वीतिय विश्व युद्ध में इंग्लैंड की सहायता करने के लिए कहा, बदलें मे भारत की आज़ादी का वादा किया।
(ख) सन् 1942 गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ किया तथा करो या मरो का नारा दिया।इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप चिंटू पांडे ने बलिया में,वाई वी चव्हाण ने सतारा में समानांतर सरकार का गठन किया। आजाद हिंद फौज का गठन केप्टन मोहन सिंह द्वारा किया गया
113- सन् 1943 में सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिल्ली चलो का नारा दिया गया तथा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।नारा देकर अंग्रेजों से संघर्ष किया गया।
114- सन् 1945 में भालू भाई देसाई एडवोकेट द्वारा आजाद हिंद फौज के सिपाहियों का केस लडा गया।
115- सन् 1947 भारत की आज़ादी
संदर्भ ग्रंथ-
Modern Indian history(1498-1947)
https://youtu.be/MB57uCq4gcI

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

भारत में कमजोर और दलित वर्गों के लिए संघर्ष- लेखक अशोक चौधरी मेरठ।

समाज में बुराई को मिटाने के लिए सदा ही संघर्ष होता रहा है।
हमारे विद्वानों ने कहा है कि-
सूरा सोई सराहिये, जो लडे हीन के हेत।
पुर्जा-पुर्जा हो गया, फिर भी ना छोड़े खेत।।
हमारे ग्रंथ रामायण में जटायू एक ऐसा ही पात्र हैं,जो यह जानते हुए भी कि वह रावण से शक्ति में निर्बल है फिर भी माता सीता को छुड़ाने के लिए लडकर मौत का वरण कर लेता है।
दूसरी घटना महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण की है, जिसमें पितामह भीष्म,गुरू द्रोण तथा विकर्ण विरोध तो करते हैं परंतु उनका विरोध वैचारिक था,वो रोकने के लिए संघर्ष नही करते। लेकिन श्रीकृष्ण जी ने उस चीरहरण को रोक दिया। इसलिए श्री कृष्ण जी भगवान की श्रेणी में आ गए।
इसी प्रकार दलित व कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए भारत मे भी लम्बे समय से संघर्ष चल रहा है, जिसमें कमजोर वर्गों के अधिकारो को हड़पने वाले भी पीछे नहीं रहें हैं,जिन महापुरुषों ने दलितों व पीड़ितों के कल्याण हेतु जीवन लगा दिया,उनके कार्यों का संक्षिप्त विवरण तथा भारतीय समाज के कल्याण व विकास की एक लम्बी यात्रा का विवरण, इस लेख के माध्यम से  पाठकों को बताने का प्रयास किया गया है।
भारत में मुस्लिम सत्ता का क्षरण होने के साथ अंग्रेजों की सत्ता स्थापित होती चली गई। सन् 1764- 65 में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो की विजय के बाद बिहार, उड़ीसा और बंगाल के सीविल व प्रशासनिक अधिकार अंग्रेजों को मुगल बादशाह से संधि में प्राप्त हुए।जो जुडिशरी अधिकार थे  वो मुगल बादशाह के पास ही रहें तथा शरियत के अनुसार चलते रहे। अंग्रेज व्यापार करने भारत में आये थे, ज्यादा से ज्यादा लोगों की क्रय शक्ति बढे, ताकि उनका सामान बिक सके,उसके लिए अंग्रेजों ने सीविल कानूनो में बदलाव प्रारंभ किया तथा साथ में जो क्रिमिनल लॉ ज्यादा कठोर थे, उनमे  संशोधन भी किया। अंग्रेजों ने भारतियों के लिए नये कानून बनाये तो अपने लाभ के लिए ही थे, परंतु इन नये कानूनों से जाने और अनजाने में उन भारत के जाति समूहों को अपने आप ही लाभ मिल गया।जो सदियों से पशुवत जीवन व्यतीत कर रहे थे। अंग्रेजों ने जो नये कानून अपने शासन क्षेत्र में बनाए वो निम्न थे-
1- सन् 1773 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया, जिसमें सबको कानून के आधार पर न्याय की व्यवस्था की। क्योंकि भारत में न्याय हिन्दू धर्म में मनु स्मृति के अनुसार चल रहा था तथा मुस्लिम में शरीयत के आधार पर। सन् 1774 में सुप्रीम कोर्ट अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया।
(क)सन् 1786 में क्लर्क एवं एडमिशटरेशन में भारतीयों की जरूरत महसूस की गई। इसलिए भारतीय युवाओं के लिए आईसीएस की परिक्षा में बैठने की अनुमति दे दी गई,जिसका पेपर लंदन में तथा आयु 21 वर्ष रख दी गई।
2- अंग्रेजों ने सन् 1795 में अधिनियम 11 द्वारा उन भारतीय जन समूहों(अछूत व शुद्र व महिलाएं) को भी सम्पत्ति रखने का अधिकार दिया, जिनको पहले नही था।
3- सन् 1804 अधिनियम 3 द्वारा कन्या हत्या पर  अंग्रेजों ने रोक लगाई।
4- सन् 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर सभी भारतियों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया।
5- सन् 1813 में दास प्रथा के अंत का कानून बनाया।
6- सन् 1817 में अपराध की सबको बराबर सजा का कानून बनाया।
7- सन 1819 में अधिनियम 7 द्वारा नारी शुद्धि करण प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी।
8-1829 में राजा राम मोहन राय के अनुरोध पर सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम बनाया गया।
9- सन् 1830 में नरबलि प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी।
10- सन् 1833 अधिनियम 87 द्वारा सब भारतीयों के लिए सरकारी नौकरी करने का अधिकार दिया।
11- सन् 1835 में प्रथम पुत्र को गंगा दान करने पर रोक लगा दी।
12- सन् 1835 में कानून बनाकर सबको कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
12- सन् 1835 में ही अंग्रजी भाषा को सरकारी कामकाज की भाषा फारसी के स्थान पर बना दिया।
 स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा फुले ने सन् 1848 में निर्बल वर्ग की लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला। यह इस तरह का देश में पहला विद्यालय था। 
सन् 1850 में जातिय भेदभाव के विरोध में कास्ट डिसएक्टिविटीज एक्ट बना दिया गया।जब लार्ड डलहौजी भारत के गवर्नर जनरल थे।
सन् 1854 में प्राइमरी एजुकेशन के लिए एजुकेशन कमीशन बुड्स डिस्पेच के नाम से भारत आया।
 ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के प्रयास से सन 1856 में अंग्रेजों ने हिंदू विडो मेरिज एक्ट बना दिया ।जिसके अन्तर्गत विधवा विवाह होने लगें।
सन् 1857 में अंग्रेजों द्वारा तीन यूनिवर्सिटी खोली गई, कलकत्ता, बोम्बे और मद्रास में।
सन् 1862 में कलकत्ता बोम्बे और मद्रास में हाई कोर्ट बनाये गये।
सन् 1872 में अंग्रेजों द्वारा भारत के राजकुमार और राजकुमारियों को पढ़ाने के लिए अजमेर और राजकोट में कालिज खोले गए।
निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा फुले ने 'सत्यशोधक समाज' की सन् 1873 मे स्थापना की । 
 सन् 1878 में  वायसराय द्वारा तीन कानून बनाये गये-
(क) आर्म्स एक्ट बना
(ख) वरनाकूल प्रेस एक्ट (प्रेस से पाबंदी समाप्त)
(ग) सिविल सर्विस में आयु 19 वर्ष की गई,सीविल सर्विस में 1/6 सीटें अमीर और राजा महाराजाओं के लिए आरक्षित की गई।
शायद यह पहला अवसर था जब भारत में कोई कोटा नौकरी में दिया गया।इस कानून से प्रेरित होकर 19-10-1882 को ज्योतिबा फुले ने इंग्लैंड की रानी को पत्र लिखकर सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग की। जिसमें कहा कि सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर होना चाहिए। अर्थात जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी।
इस प्रकार जहां दलित समाज के नेताओं द्वारा अपने को सम्भालने के प्रयास चल रहे थे,वही दूसरी ओर जो गैर दलित समाज सुधारक थे उनकेे द्वारा भी कमजोर वर्ग के हितों के लिए ककक निरंतर प्रयास जारी थे। सन् 1875 में स्वामी दयानंद जी ने आर्य समाज की स्थापना की,जिसका उद्देश्य भी जाति पाति के भेदभाव तथा पाखंड को हिंदू समाज से दूर करना था।
सन् 1881 में प्रथम फैक्ट्री एक्ट पास हुआ जिसमें बच्चों द्वारा मजदूरी करने पर रोक लगी।
 सन् 1882 में लोकल सेल्फ गवर्मेंट एक्ट बना (पंचायत राज व्यवस्था)
सन् 1883 में इलबरड बिल पास हुआ, इसके अंतर्गत भारतीय जज अंग्रेजों को सजा सुना सकते थे।
अंग्रेजों के विरोध के कारण यह कानून वापस ले लिया गया।
 ब्रिटिश सरकार द्वारा ज्योति बा फुले को सन् 1883 में स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" नामक उपाधि देकर  गौरव प्रदान किया।
ज्योतिबाफुले की समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी गई।
सन् 1888 में तत्कालीन समय की त्रावनकोर रियासत की असेम्बली का राजा ने गठन किया, जिसे वर्तमान में केरल प्रदेश कहते हैं।
 सन् 1891 में द्वितीय फैक्ट्री एक्ट पास हुआ, जिसमें मजदूर के काम का समय निर्धारित हुआ तथा सप्ताहिक छुट्टी निर्धारित हुई।
त्रावनकोर रियासत की असेम्बली में सन् 1912 में दलित समुदाय का पहला व्यक्ति जिनको संत अय्यंकालि के नाम से जाना जाता है, सदस्य नामित किए गए। इस संत ने दलितों को सड़क पर चलने पर लगे प्रतिबंध तथा दलित पुरूषों पर लगने वाला हेड टैक्स और महिलाओं पर लगने वाले ब्रा टैक्स के विरूद्ध एक सफल लडाई लडी।इन संत द्वारा ही 4 मार्च सन् 1912 को असेंबली में दलित हितों के लिए पहली आवाज उठाई गई।तब त्रावनकोर सरकार मुस्लिम बच्चों को पढ़ने मे सुविधा देती थी। लेकिन संत अय्यंकालि ने वैसी ही छूट दलित बच्चों के लिए मांगी।यह संत अय्यंकालि के प्रयासों का ही सुफल था कि त्रावनकोर मे जहा सवर्णों में 50% साक्षरता की बढ़ोत्तरी हुई वहा दलितों में 400-600 % की बढ़ोत्तरी हुई।
 छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज कोल्हापुर रियासत के राजा  शाहूजी महराज को आरक्षण के जनक के रूप में जाना जाता है। आज से करीब 118 वर्ष पूर्व यानी 26 जुलाई, 1902 में उन्होंने राजकाज के सभी क्षेत्रों में अगड़ी जातियों का एकछत्र वर्चस्व तोड़ने के लिए पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। यहां यह ध्यान देना जरूरी है कि पिछड़े वर्ग में मराठा, कुनबियों एवं अन्य समुदायों के साथ दलितों एवं आदिवासियों को भी उन्होंने शामिल किया था। उन्होंने इस संदर्भ में जो आदेश जारी किया था, उसमें साफ लिखा है कि पिछड़े वर्ग में ब्राह्मण, प्रभुु(कायस्थ), सैंधवी और पारसी को छोड़कर सभी शामिल हैं। साहू महाराज ने अपने सर्वे में पाया कि उनके राज्य में 71 सरकारी पोस्ट थी, जिनमें 62 पोस्ट पर इन चार जातियों के लोग थे,बाकि सभी जातियां 9 पोस्ट पर थी।साहू महाराज के निजी कार्य को देखने के लिए 52 कर्मचारी नियुक्त थे,जिनमे 45 कर्मचारी उन्ही चार जातियों के थे,बाकि सभी 7 पोस्ट पर सभी जाति के लोग थे।
सन् 1904 में इंडियन यूनिवर्सिटी एक्ट बना,इस कानून से पहले 10 वी पास करने के बाद ग्रेजुएशन कर लेते थे परन्तु इस कानून के बन जाने के बाद 12 वी पास करने के बाद ग्रेजुएशन हों गयी।
 सन् 1905 में एग्रिकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट पूसा बना, दिल्ली करोलबाग के पास।
साहू महाराज द्वारा असमानता को खत्म करने एवं न्याय के लिए उठाए गए इस कदम का अनुसरण करते हुए 1918 में मैसूर राज्य ने, 1921 में मद्रास जस्टिस पार्टी ने और 1925 में बाम्बे प्रेसीडेंसी (अब मुंबई) ने आरक्षण लागू किया।
सन् 1916 में बालगंगाधर तिलक द्वारा बोम्बे मे तथा एनी बेसेंट द्वारा पूरे भारत में होम रूल के नाम से आंदोलन चलाया गया।इस आंदोलन के फलस्वरूप भारतीयों को सत्ता में हिस्सेदारी देने के लिए सन् 1919 में साऊथ ब्रो कमीशन लंदन से भारत आया।

 साउथ ब्रो कमीशन को साहु महाराज के निर्देश पर अम्बेडकर जी ने दलितों के लिए तथा भास्कर जाधव ने ओबीसी के प्रतिनिधित्व के लिए ज्ञापन दिया।

भारतीय समाज में समानता व समरसता की स्थापना हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर सन् 1925 में विजयदशमी के दिन डॉ॰ केशव हेडगेवार द्वारा की गयी ।

भीमराव अम्बेडकर की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य केे रायगढ़ जिले के महाड़ स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए किया गया एक प्रभावी सत्याग्रह था।

डा अम्बेडकर जी ने 25 दिसम्बर सन् 1927 को मनु- स्मृति को जला कर भारतीय समाज को यह संदेश दिया कि भेदभाव को अब सहन नहीं किया जायेगा।

मंदिर में प्रवेश के लिए अम्बेडकर जी ने 2 मार्च सन् 1930 को काला राम मन्दिर आंदोलन शुरू किया।
 फरवरी, 1931 में वीर सावरकर द्वारा किए गए प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था। 25 फरवरी 1931 को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की ।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में अम्बेडकर जी ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण को प्राप्त कर लिया।
भारतीय समाज में अलगाव ना पनपे,उसको रोकने के लिए समस्त भारत के हिंदुओं के प्रतिनिधियों की  परिषद् 25 सिंतबर, 1932 को बंबई में पं. मदनमोहन मालवीय के सभापतित्व में हुई, उसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसका मुख्य अंश यह है - आज से हिंदुओं में कोई भी व्यक्ति अपने जन्म के कारण "अछूत" नहीं माना जाएगा और जो लोग अब तक अछूत माने जाते रहे हैं, वे सार्वजनिक कुओं, सड़कों और दूसरी सब संस्थाओं का उपयोग उसी प्रकार का कर सकेंगे, जिस प्रकार कि दूसरे हिंदू करते हैं। अवसर मिलते ही, सबसे पहले इस अधिकार के बारे में कानून बना दिया जाएगा और यदि स्वतंत्रता प्राप्त होने से पहले ऐसा कानून न बनाया गया तो स्वराज्य संसद् पहला कानून इसी के बारे में बनाएगी।"अस्पृश्यता-विरोधी-मंडल" नाम की अखिल भारतीय संस्था, बाद में जिसका नाम बदलकर "हरिजनसेवक-संघ" रखा गया, बनाई गई। संघ का मूल संविधान गांधी जी ने स्वयं तैयार किया।
अम्बेडकर जी ने सन् 1935 में यह घोषणा की कि वो हिन्दू पैदा जरूर हुए हैं परन्तु हिन्दू मरेंगे नहीं।उनकी इस घोषणा के बाद सभी धार्मिक गुरूओ ने अम्बेडकर जी से सम्पर्क किया।उसी क्रम में ईसाई समाज ने 1 जनवरी सन् 1938 को महाराष्ट्र के सोलापुर में हो रहे आयोजन में अम्बेडकर जी को बुलाया। सम्मेलन में अपने विचार रखते हुए अम्बेडकर जी ने कहा कि मेने दुनिया के सभी धर्मों का अध्धयन किया, जिसमें मेरा यह मत बना कि बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म सबसे उत्तम है। परन्तु भारत में ईसाई बनने पर दलितों के लिए जो सरकार सुविधा मिल रही है वह समाप्त हो जायेगी, फिर इस धर्म में जाने का क्या लाभ ? इंसान के धर्म बदलने से उसकी आर्थिक स्थिति नही बदलती। अतः बौद्ध धर्म ही उपयुक्त है।
डा अम्बेडकर जी ने 30 दिसम्बर सन् 1939 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में दलित प्रजा परिषद की बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि जब तक ब्राह्मण्य समाप्त नही होगा तब तक समानता नही आ सकती। छत्रपति शिवाजी इसे समाप्त करने में नाकाम रहे, लेकिन छत्रपति साहू जी(मृत्यु सन् 1922) ने यह काम कर दिखाया।उनका यह कथन अम्बेडकर नामा के वोल्यूम 39 के चैप्टर 168 के पृष्ठ संख्या 267-270 तक लिखा है। क्योंकि  मनु स्मृति जिसका एक अंग्रेज़ अधिकारी विलियम जोन्स ने अंग्रेजी में अनुवाद करवाया,में शुद्र कौन होगा, इसको परिभाषित चैप्टर 8, श्लोक नम्बर 415 में किया गया है।शुद्र की सात पहचान बताई गई है जो निम्न हैं-
1- जो व्यक्ति युद्ध के मैदान से पीठ दिखाकर भाग गया हो।
2- युद्ध में जो बंदी बना लिया गया हो।
3- वो व्यक्ति जो ब्राह्मणों की पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा करता आ रहा हो।
4- ऐसा व्यक्ति जिसके पिता का पता ना हो, अर्थात वैष्या का पुत्र।
5- जो व्यक्ति पैसा देकर खरीदा गया हो अर्थात गुलाम।
6- जो व्यक्ति पैसा लेकर बैचा गया हो।
7- वह व्यक्ति जो पीढ़ी दर पीढ़ी किसी की सेवा करता आ रहा हो।
मनुु स्मृति में शुद्र कौन हो, उसमें पीढ़ी दर पीढ़ी ब्राह्मणों की सेवा करनेवाला भी था,शायद इसलिए ही अम्बेडकर जी ने अपने भाषण में ब्राहमण्य से बचने की बात कही थी।
15 अप्रैल 1948 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने डॉ. शारदा कबीर से दूसरी शादी की थी। उस समय डॉ.अम्बेडकर की उमर 57 साल की थी तो डॉ. शारदा की उमर 45 साल थी। यानी डॉ. अम्बेडकर अपनी दूसरी पत्नी से 12 साल बड़े थे। डॉ. शारदा कबीर चिकित्सक थीं। वे महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। डॉ. शारदा कबीर का मुम्बई में क्लीनिक था जहां इलाज के दौरान डॉ. अम्बेडकर से उनका परिचय हुआ था। अम्बेडकर जी ने यह शादी सन् 1873 के स्पेशल मेरिज एक्ट के अंतर्गत की, जिसके अन्तर्गत इंटर कास्ट और इंटर रिलिजन शादी की जा सकती थी आज यह सन् 1954 के एक्ट के नाम से चल रहा है।
26 जनवरी सन् 1950 को भारत का संविधान लागू हो गया, संविधान की धारा 340 में ओबीसी को भी आरक्षण का प्रावधान देने की व्यवस्था कर दी गई।
आजादी की लड़ाई में अगड़, पिछड़े, महिला, अनुसूचित जाति व जनजाति सहित सभी लोग शामिल थे। किसानों का आजादी से मतलब था जमींदारो से आजादी,इस कारण राज्य को आर्थिक समानता की कोशिश करनी थी। लेकिन सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार था।धारा 14-18 तक समानता का अधिकार है, जिसमें धारा 15 के अंदर शिक्षा की समानता का अधिकार है।भाग 4 की धारा 46 में राज्य  कमजोर वर्गों के शैक्षिक व आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए प्रयास कर सकता है।
भूमि सुधार में चकबंदी तथा जमींदारी प्रथा का उन्मूलन होना प्रमुख कार्य था, किसान का सीधा संबंध राज्य से हो, कोई बीच में ना हो।धारा 39ए व बी आर्थिक समानता तय करती है।कई राज्यों ने शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण दे दिया जिसमें मद्रास प्रमुख था।
इन सुधारों के विरोध में लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए।
सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा में आरक्षण व सम्पत्ति से किसी को बेदखल नहीं किया जा सकता।
नेहरू समाजवादी मानसिकता के थे, सन् 1951 में पहला संविधान संशोधन किया गया धारा 31 में ए और बी क्लाज जोड दी गई।
ए मे यह लिखा गया कि यदि भूमि सुधार के लिए कोई कानून आता है तो धारा 31(1) लागू नही होगी।
बी के तहत 9 वी अनुसूची बनाई गई। कोई भी कानून यदि 9 वी अनुसूची में डाल दिया गया तो सुप्रिम कोर्ट या हाई कोर्ट उसका संज्ञान नही लेगा।
धारा 15 में जो तीन क्लाज थी, उसमें 4 वी क्लाज जोडी गई कि यदि कोई राज्य एस सी,एस टी या अन्य कमजोर वर्ग के लिए कोई लाभ देता है तो उसके विरुद्ध कोई कोर्ट नही जा सकता।
29 जनवरी सन् 1953 को ओबीसी जातियों की पहचान के लिए काका कालेलकर आयोग भारत सरकार ने बनाया,काका कालेलकर आयोग ने भारत में 2018 जातियों को ओबीसी में रखने की संतुति की। परन्तु भारत सरकार ने इस आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया, ओबीसी आरक्षण नही दिया।
 सन् 1955-56 में हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में संसद से पास कराकर एक्ट बना दिया।
1- हिन्दू मेरिज एक्ट, सन् 1955 में
बाकि तीनो सन् 1956 में
2- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम एक्ट
3- हिन्दू अव्यस्क तथा संरक्षता एक्ट
4- हिन्दू एडोप्शन एवं मेंटिनेंस एक्ट
इन सब एक्ट में सबसे पहले हिन्दू कौन है इसकी परिभाषा लिखी। मुस्लिम, ईसाई, यहूदी,पारसी को छोड़कर जो भी है सब हिन्दू है।यानि सिक्ख,जैन, बौद्ध, आर्य समाज, ब्रह्मा समाज, प्रार्थना समाज,वीर शैव सब हिन्दू है।
15 अक्टूबर, 1956 को आंबेडकर ने बौद्ध धर्मं में 'लौटने' पर अपने अनुयायियों के लिए निर्धारित की 22 प्रतिज्ञाओं में से दो प्रतिज्ञा ऐसी है जिन्हें समझने के लिए बहुत गहराई से सोचना पडता है वे है-
8- मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा।
19 - मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ।
अम्बेडकर जी ने सन् 1938 में कहा था कि जब तक ब्राहमणत्व का नाश नही होगा, समानता नही आयेगी, परन्तु सन् 1948 में ब्राह्मण कन्या से शादी कर ली तथा सन् 1956 में बौद्ध धर्म ग्रहण करते समय आठवी प्रतिज्ञा में वही बात कही जो 1938 में कही थी, अम्बेडकर जी का ऐसा करना उस बात को दर्शाता है जिसमें कहा जाता है कि पाप से बचो,पापी से नहीं।
अम्बेडकर जी ने सन् 1935 में कहा था कि वह हिंदू धर्म त्याग देंगे। सन् 1939 के अपने सम्बोधन में उन्होंने बौद्ध धर्म की ओर इशारा भी कर दिया था, परन्तु जब आजाद भारत में हिन्दू मैरिज एक्ट पास हो गया, उसमें हिन्दू की परिभाषा में बौद्ध धर्म भी आ गया। लेकिन न तो अम्बेडकर जी ने इस व्याख्या का विरोध किया और बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तथा अपनी 19 वी प्रतिज्ञा में यह भी लिख दिया कि हिन्दू धर्म मानवता के विरुद्ध है।इससे साफ स्पष्ट होता है कि अम्बेडकर जी उस हिंदू धर्म को नहीं लिख रहें जिसका संदर्भ संविधान में है
26 नवम्बर सन् 1957 को तमिलनाडु के पेरियार ने अपने 3000 कार्यकर्ताओं के साथ संविधान की धारा 25-28 के विरोध में संविधान की प्रतिया जलायी और भारत की संसद से यह मांग की कि सन् 1931 तक के सैंसस में जब अनटचेबल व टचेबल डिप्रेस क्लास को हिंदू से अलग रखा गया है तो अब भी अलग ही रखा जाय।इस आंदोलन में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया। लोगों ने संविधान को जलाना स्वीकार किया। बहुत से कार्यकर्ताओं को 6 माह से लेकर 3 वर्ष तक की सजा हुई।16 कार्यकर्ता की मृत्यु हो गई।
सन् 1967 में पंजाब के जालंधर के गोलक नाथ ने संविधान के 17 वें संशोधन के विरूद्ध केस सुप्रिम कोर्ट में डाल दिया।ये दो भाई थे इनके पास 500 एकड़ जमीन थी,17 वे संशोधन के कारण एक भाई सिर्फ 30 एकड जमीन रख सकता था।सुप्रिम कोर्ट की 11 जजों की बेंच बेठी।6-5 के बहुमत से फैसला किया गया और कहा गया कि अनुच्छेद 368,13 से बाहर नही है। अतः संसद संशोधन करके भी सम्पत्ति का मूल अधिकार नही छीन सकती। अब तक के हुए कार्यों के लिए जो जमीन ली गई थी, उसके लिए कहा गया कि जो अब तक हुआ,उस पर यह फैसला नही लागू होगा।इस प्रकार फिर से गरीबों के आरक्षण पर संकट खड़ा हो गया।
जहां कमजोर वर्ग के लिए भारत के नेता लगातार प्रयास कर रहे थे,वही दूसरी ओर कुछ शक्ति ऐसी भी थी जो इन प्रयासों में रोड़े अटका रही थी, अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण के तहत जो सरकार नौकरी मिल रही थी,उनको हड़पने के लिए धूर्त लोगों ने एक नया तरीका स्तेमाल करना शुरू कर दिया था, संविदा पर जो नौकरी निकलती थी उन पर आरक्षण लागू नही होता था,इसी का लाभ लेते हुए आरक्षित वर्ग के लोगों के स्थान पर अनारक्षित वर्ग के लोगों को तीन या पांच वर्ष के लिए संविदा पर नौकरी में रखा जाने लगा। हटाएं जाने पर ये लोग कोर्ट चले जाते थे तथा कोर्ट से परमानेंट नियुक्ति का आदेश ले आते थे।इसको रोकने के लिए सन् 1967 का एससी-एसटी के  लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि संविदा पर 45 दिन से अधिक की यदि कोई नियुक्त सरकार करेगी तो उसमें अनुसूचित जाति तथा  के लिए आरक्षण होगा।
सन् 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी को 352 सीट मिली।प्रधानमंत्री बनते ही इंदिरा गांधी ने 25 साल के लिए सोवियत संघ रूस से संधि कर ली तथा दिसम्बर 1971 में बंगलादेश बना दिया।
अब इंदिरा गांधी ने संविधान में 6 संशोधन (24से29) किये।24 वे संशोधन में धारा 13 व धारा 368 को एक दूसरे से अलग कर दिया।25 वे संशोधन में आर्थिक समानता के लिए धारा 14 के अंतर्गत  कोर्ट में चैलेंज नही कर सकते।26 वे संशोधन में रियासत के राजाओं की पैंशन समाप्त कर दिए।29 वे संशोधन में केरल का लैंड रिफार्म एक्ट 9 वी अनुसूची में डाल दिया।
इस प्रकार इंदिरा गांधी जी ने आरक्षण की तकरार ही समाप्त कर दी।
सन् 1977 में जनता पार्टी ने अपने चुनाव के घोषणा पत्र में जनता से यह वादा किया कि यदि जनता पार्टी की सरकार बनी तो देश में काका कालेलकर आयोग की संस्तुति के आधार पर ओबीसी को आरक्षण दे दिया जायेगा। मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने।जब ओबीसी का प्रतिनिधि मंडल देसाई जी से मिला तो उन्होंने कहा कि काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट पुरानी हो चुकी है, अतः एक जनवरी सन् 1979 को मंडल आयोग का गठन कर दिया गया। सन् 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट दे दी, जिसमें 3743 जातियां थी।13 अगस्त सन् 1990 को देश के प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने ओबीसी के आरक्षण को लागू करने की घोषणा कर दी।
दलितो के शोषण की सूचना देश में चारों ओर से लगातार आ रही थी,अत भारत सरकार ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में एससी एसटी एक्ट 1 सितम्बर 1989 को संसद द्वारा पारित किया । एससी एसटी एक्ट को भारत सरकार ने देश के प्रधानमंत्री वीपी सिंह के द्वारा 30 जनवरी 1990 को लागू कर दिया गया।
सन् 2006 में  मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार अर्जुन सिंह ने ओबीसी के लिए हायर एजुकेशन में आरक्षण लागू कर दिया।
 सन् 2018 का ओबीसी के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि संविदा पर 45 दिन से अधिक की यदि कोई नियुक्त सरकार करेगी तो उसमें पिछडी जाति के लिए आरक्षण होगा।
एससी/एसटी एक्ट बदलाव करते हुए 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।
एससी/एसटी कानून में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध पूरे देश में हुआ। 1 अप्रैल 2018 को देशभर में कई संगठनों ने बंद बुलाया था। जगह-जगह आगजनी की गई। इस विरोध प्रदर्शन में कई लोगों की जान भी गई । सार्वजनिक सम्पत्ति में आग लगा दी गई थी।
दबाव में आकर सरकार पहले अध्यादेश लेकर आई। बाद में सरकार की ओर से मॉनसून सत्र में SC/ST संशोधन विधेयक पेश किया। कांग्रेस समेत ज़्यादातर विपक्षी दलों ने इस बिल का समर्थन किया था। संशोधित बिल में सरकार इस तरह के अपराध में FIR दर्ज करने के प्रावधान को वापस लेकर आई थी। सरकार ने माना कि केस दर्ज करने से पहले जांच जरूरी नहीं और ना ही गिरफ्तारी से पहले किसी की इजाजत लेनी होगी। अग्रिम जमानत का भी प्रावधान खत्म हो गया। मोदी सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला बदल लिया।
मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाबत 123वें संशोधन विधेयक को प्रस्तुत कर दिया और इसे संसद को दोनों सदनों में पारित कर दिया गया। इसके बाद में राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 14 अगस्‍त, 2018 को राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिसूचित कर दिया और इसकी अधिसूचना गजट ऑफ इंडिया के माध्‍यम से सार्वजनिक कर दिया गया। राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 की जगह राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 2018 प्रभावी हो गया है। राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल गया है और इसे अनुसूचित जाति आयोग को प्रदत शक्तियों के समकक्ष शक्तियां प्रदान कर दी गयी हैं।
मई 2021 के मराठा आरक्षण के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 102वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को बरकरार रखने के बाद नवीनतम संशोधन की आवश्यकता पैदा हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की सिफारिशों पर, राष्ट्रपति यह निर्धारित करेंगे कि राज्य OBC सूची में किन समुदायों को शामिल किया जाएगा।
केंद्र सरकार ने 9 अगस्त, 2021 को लोकसभा में 127वां संविधान (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया। यह विधेयक राज्य की अपनी ओबीसी सूची बनाने की शक्ति को बहाल करने का प्रयास करता है।
मुख्य बिंदु 
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने यह विधेयक पेश किया।
इसे 102वें संविधान संशोधन विधेयक के कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिए संसद में पेश किया गया था, जिसमें पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए राज्यों की शक्ति को बहाल किया गया था।
संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (4), 15 (5), और 16 (4) राज्य सरकार को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची घोषित करने और उनकी पहचान करने की शक्ति प्रदान करते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें एक अभ्यास के रूप में अलग-अलग ओबीसी सूची तैयार करती हैं।
127वां संविधान संशोधन विधेयक अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन करेगा।
यह एक नया खंड 3 पेश करेगा।
यह अनुच्छेद 366 (26c) और 338B में भी संशोधन करेगा।
इस विधेयक को यह स्पष्ट करने के लिए तैयार किया गया है कि राज्य सरकारें ओबीसी की राज्य सूची बनाए रख सकती हैं।
संशोधन के तहत नवीनतम ‘राज्य सूची’ को पूरी तरह से राष्ट्रपति के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा और इसे राज्य विधानसभा द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।
मोदी सरकार की कमजोर वर्ग के हितों को प्राथमिकता में रखकर उनकी दशा सुधारने के लिए ये कार्य जिस तत्परता से किये गये है,वो सराहनीय है।
संदर्भ ग्रंथ
1- अम्बेडकर नामा अयंकाली
https://youtu.be/apY_ATzWby8
2- आरक्षण का विरोध
 https://youtu.be/VG-6ptXvXHg
3- अम्बेडकर नामा प्रो रतन लाल,वोल्यूम 39, चैप्टर 114, पृष्ठ संख्या 66-67
https://youtu.be/utmAUPQe56I
4- प्रोफेसर रतन लाल
https://youtu.be/Gvu2KlxtbsA
5- हिन्दू और ओबीसी
https://youtu.be/0crDw2qbfkk




मंगलवार, 13 जुलाई 2021

भारत के महापुरुषों का जीवन चरित्र स्कूल के पाठ्यक्रम में डालने हेतु

भारत के कुछ महानायकों का स्कूली पाठ्यक्रम में चरित्र चित्रण डालने हेतु सुझाव
1- धन सिंह कोतवाल- अंग्रेजों के विरुद्ध भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रारंभ 10 मई सन् 1857 को मेरठ (उत्तर प्रदेश) से हुआ था, जिसमें मेरठ की सदर कोतवाली के कोतवाल धन सिंह के नेतृत्व में मेरठ के आसपास की किसान जनता ने सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था।अमर सेनानी धन सिंह कोतवाल जी की स्मृति में मेरठ में प्रत्येक वर्ष कार्यक्रम होते हैं।  कोतवाल धन सिंह की याद में जो कार्य तथा उनकी जीवनी नेट पर उपलब्ध है,उसका लिंक साथ मे प्रेषित हैं।
(क)- मेरठ में धन सिंह कोतवाल की स्मृति में किये गये कार्य-http://pratapraogurjar.blogspot.com/2018/08/1857.html?m=1
(ख)- डा सुशील भाटी द्वारा धन सिंह कोतवाल पर लिखा गया लेख-http://janitihas.blogspot.com/2012/11/1857-dhan-singh-kotwal.html?m=1
(ग)- अशोक चौधरी द्वारा धन सिंह कोतवाल पर लिखा गया लेख-http://pratapraogurjar.blogspot.com/2018/08/10-1857.html?m=1
2- छत्रपति शिवाजी के सेनापति प्रताप राव गुर्जर- पृथ्वीराज चौहान की मोहम्मद गोरी पर सन् 1191 में तराईन के प्रथम युद्ध में विजय के 480 वर्ष बाद फरवरी सन् 1672 में सलहेर के युद्ध में छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति प्रताप राव गुर्जर के नेतृत्व में मराठा सेना ने औरंगजेब की सेना को आमने-सामने के युद्ध में परास्त कर दिया।शिवाजी के राज्याभिषेक  1674 से ठीक आठ वर्ष पहले तक प्रताप राव गुर्जर ही शिवाजी के प्रधान सेनापति रहे हैं।इस युद्ध की विजय के बाद सन्त रामदास ने शिवाजी को एक प्रसिद्ध पत्र लिखा। जिसमें गुरु रामदास ने अपने सम्बोधन में शिवाजी को गजपति, ह्रयपति (घुड़सवार सेना), गढ़पति और जलपति कहा है। इस युद्ध की विजय के बाद शिवाजी के छत्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया था। 
सेनापति प्रताप राव गुर्जर की स्मृति में सन् 2002 से प्रत्येक वर्ष मेरठ में कार्यक्रम किया जाता है।
प्रताप राव गुर्जर के जीवन पर लेख निम्न है-
(क) डा सुशील भाटी द्वारा लिखा गया लेख
http://janitihas.blogspot.com/2013/02/blog-post_674.html?m=1
(ख) अशोक चौधरी द्वारा लिखा गया लेख
http://pratapraogurjar.blogspot.com/2018/08/blog-post_8.html?m=1
3- गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज- भारत में सन् 725 में मोहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर पर हमला किया था, सन् 725 से लेकर सन् 1000 तक भारत में अरब हमलावरों को ना घुसने देने वाले गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने भारत की सीमाओं की रक्षा की,इस वंश मे सम्राट मिहिरभोज नाम के एक महा पराक्रमी सम्राट हुए हैं,जिनकी भारत के जनमानस में बडी ख्याति है। सम्राट मिहिरभोज पर लिखा लेख निम्न है-
(क) अशोक चौधरी द्वारा लिखा लेख-
http://pratapraogurjar.blogspot.com/2020/07/blog-post_15.html?m=1
4- क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक - पथिक जी एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत में सबसे लम्बा बिजौलियां किसान आंदोलन का संचालन किया वो भारत में किसान आंदोलन के जनक कहें जाते हैं, उत्तर प्रदेश के शामली जिले के केराना कस्बे में डिग्री कॉलेज विजय सिंह पथिक जी के नाम से बना हुआ है। उन पर लिखे लेख निम्न है-
1- डा सुशील भाटी द्वारा लिखा लेख
http://janitihas.blogspot.com/2012/10/bijolia-ke-gandhi-vijay-singh-pathik.html?m=1
2- अशोक चौधरी द्वारा लिखा लेख
http://pratapraogurjar.blogspot.com/2020/07/blog-post_26.html?m=1
5- पन्ना धाय - मेवाड़ की पन्ना धाय का त्याग भारत के इतिहास में एक विशेष स्थान रखता,एक महिला द्वारा एक अनाथ राजकुमार उदय सिंह की रक्षा जिस वीरता से की,उसकी मिसाल भारत के इतिहास में ढूंढ़े नही मिलती। पन्ना धाय पर लेख निम्न है-
(क) अशोक चौधरी द्वारा लिखा लेख
http://pratapraogurjar.blogspot.com/2019/01/blog-post_16.html?m=1
भवदीय
अशोक चौधरी स्वतंत्र लेखक एवं विचारक
अध्यक्ष प्रताप राव गुर्जर स्मृति समिति मेरठ
108/1 नेहरू नगर गढ रोड़ मेरठ।
मो- 9837856146

शुक्रवार, 4 जून 2021

राजा सुहेल देव

अर्ध पोराणिक कथा है,यानि पोराणिक कथा के साथ एतिहासिक घटना का मिश्रण हो गया है। पुराणों में सावस्ती के एक राजा सुहिस्त्र देव का वर्णन किया गया है। सम्भवतः इसी राजा की कथा के आधार पर अब्दुल रहमान चिश्ती ने राजा सुहेल देव की कहानी बना दी है। अंग्रेजी शासन में विभिन्न क्षेत्रों के गजट तैयार किए गए,एक ब्रिटिश गजट में राजा सुहेल देव का उल्लेख हुआ है तथा उसे राजपूत राजा बताया गया है। सन् 1940 में बहराइच के स्कूली शिक्षक ने एक लम्बी कविता की रचना की , जिसमें सुहेलदेव को जैन राजा तथा हिंदू संस्कृति के रक्षक के रूप में चित्रित किया है, आर्य समाज और हिंदू महासभा ने सन् 1950 में राजा सुहेल देव के नाम से एक मेला लगाने की योजना बनाई,सालार मसूद दरगाह की कमेटी ने मेले का विरोध किया, सरकार ने मेले पर प्रतिबंध लगा दिया।जनता के आंदोलन करने पर सरकार ने मेला लगाने की अनुमति दे दी। राजा सुहेल देव का एक मंदिर बनाया गया,1950-60 के दशक में राजा सुहेल देव को पासी बताया जानें लगा।मिराज-ए-मसूदी के अनुसार राजा सुहेल देव भर थारू जाति का राजा था, आधुनिक युग के इतिहास कारों ने राजा सुहेल देव को,भर राजपूत,थारू,राजभर और जैन राजपूत के रूप में वर्णित किया है।
सन् 1351 में फिरोज शाह तुगलक बादशाह बना,तब उसके समय में सालार मसूद गाजी की दरगाह बनाईं गई। 
मिरात-ए-मसूदी के लेखक अब्दुल रहमान चिश्ती ने सन् 1603-25 के मध्य फारसी भाषा में यह ग्रंथ लिखा, यह घटना सन् 1034 की है।
https://youtu.be/WWAQGXC5_S0

मंगलवार, 1 जून 2021

संविधान का बेसिक स्टरक्चर - अशोक चौधरी मेरठ

24 अप्रैल सन् 1973 का दिन एक मिल का पत्थर है, भारत के संविधान के बेसिक स्टरक्चर के लिए।
24 अप्रैल सन् 1993 को पंचायती राज्य भारत में लागू किया गया।यह दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय है जो 24 अप्रैल के दिन को महत्वपूर्ण बनाता है।
संविधान के भाग 3 में  मूल अधिकार राज्य द्वारा दिए गए हैं,जो धारा 12-35 तक है।
संविधान के भाग 4 में निति निदेशक तत्व शामिल हैं जो धारा 36-51 तक है।
संविधान के भाग 20 की धारा 368 में संविधान संशोधन की शक्ति निहित है।
भाग 3 की धारा 13 व 32 के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति का मूल अधिकार प्रभावित होता है तो वह सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
आजादी की लड़ाई में अगड़, पिछड़े, महिला, अनुसूचित जाति व जनजाति सहित सभी लोग शामिल थे। किसानों का आजादी से मतलब था जमींदारो से आजादी,इस कारण राज्य को आर्थिक समानता की कोशिश करनी थी। लेकिन सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार था।धारा 14-18 तक समानता का अधिकार है, जिसमें धारा 15 के अंदर शिक्षा की समानता का अधिकार है।भाग 4 की धारा 46 में राज्य प्रयास करेगा कि कमजोर वर्गों के शैक्षिक व आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए।धारा 25 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है।धारा 44 के अंतर्गत यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए राज्य प्रयास करेगा।
भूमि सुधार में चकबंदी तथा जमींदारी प्रथा का उन्मूलन होना प्रमुख कार्य था, किसान का सीधा संबंध राज्य से हो, कोई बीच में ना हो।धारा 39ए व बी आर्थिक समानता तय करती है।कई राज्यों ने शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण दे दिया जिसमें मद्रास प्रमुख था।
इन सुधारों के विरोध में लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए।
सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा में आरक्षण व सम्पत्ति से किसी को बेदखल नहीं किया जा सकता।
नेहरू समाजवादी मानसिकता के थे, सन् 1951 में पहला संविधान संशोधन किया गया धारा 31 में ए और बी क्लाज जोड दी गई,
ए मे यह लिखा गया कि यदि भूमि सुधार के लिए कोई कानून आता है तो धारा 31(1) लागू नही होगी।
बी के तहत 9 वी अनुसूची बनाई गई। कोई भी कानून यदि 9 वी अनुसूची में डाल दिया गया तो सुप्रिम कोर्ट या हाई कोर्ट उसका संज्ञान नही लेगा।
धारा 15 में जो तीन क्लाज थी, उसमें 4 वी क्लाज जोडी गई कि यदि कोई राज्य एस सी,एस टी या अन्य कमजोर वर्ग के लिए कोई लाभ देता है तो उसके विरुद्ध कोई कोर्ट नही जा सकता।
इन सुधारों के विरोध में शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ का एक केस सन् 1951 में सुप्रिम कोर्ट में आया। जिसके अन्तर्गत धारा 13 व धारा 368 के आपस में क्या सम्बन्ध है? पर बहस हुई।
धारा 13 की क्लाज 2 व 3 है,2 में लिखा है कि राज्य कोई ऐसा कानून नहीं बनायेंगे जो फंडामेंटल राइट्स के विरुद्ध हों, यदि कोई राज्य कोई कानून बनाता है तो सुप्रिम कोर्ट उस कानून को उतना ही खारिज कर देगा,जितना वह फंडामेंटल राइट्स को प्रभावित करता है।3 में लिखा है कि यह अधिकार एक्ट, अध्यादेश, आर्डर, नोटिफिकेशन,रूल,बायलाज,रेगूलेशन,कस्टम जिसमें कानून की फार्म हो पर लागू है। परंतु इसमें यह नही लिखा कि संविधान संशोधन पर भी सुप्रिम कोर्ट का अधिकार लागू है।
इसलिए शंकरी प्रसाद केस में यह कहा गया कि धारा 368 भी धारा 13 के अंदर समाहित है, परंतु दोनों अलग-अलग है, संविधान बनने के बाद हुआ संशोधन पर धारा 13 का अधिकार लागू नही होता।इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फेवर में फैसला दिया।
सन् 1955 में 4 वा संशोधन कर बंगाल के एक जमीन के कानून को 9 वी अनुसूची में डाल दिया गया।
सन् 1964 में 17 वा संशोधन किया गया उसमें राजस्थान और पंजाब की भूमि में संशोधन किया गया। सन् 1965 में सज्जन सिंह नाम के व्यक्ति इन संशोधन के विरूद्ध सुप्रिम कोर्ट गये। परंतु इस केस को शंकरी प्रसाद केस के समतुल्य भान खारिज कर दिया गया।
सन् 1967 में पंजाब के जालंधर के गोलक नाथ ने संविधान के 17 वें संशोधन के विरूद्ध केस सुप्रिम कोर्ट में डाल दिया।ये दो भाई थे इनके पास 500 एकड़ जमीन थी,17 वे संशोधन के कारण एक भाई सिर्फ 30 एकड जमीन रख सकता था।सुप्रिम कोर्ट की 11 जजों की बेंच बेठी।6-5 के बहुमत से फैसला किया गया और कहा गया कि अनुच्छेद 368,13 से बाहर नही है। अतः संसद संशोधन करके भी सम्पत्ति का मूल अधिकार नही छीन सकती। अब तक के हुए कार्यों के लिए जो जमीन ली गई थी, उसके लिए कहा गया कि जो अब तक हुआ,उस पर यह फैसला नही लागू होगा।
मोरारजी देसाई सन् 1928-30 में गुजरात के गोधरा में डिप्टी कलेक्टर के पद पर रहे थे,गोधरा में इनके कार्यकाल में साम्प्रदायिक दंगें हो गये थे, जिनमें मोरारजी देसाई भी आरोपित हो गये थे।इस कारण सन् 1930 में मोरारजी देसाई स्तिफा देकर गांधी जी के साथ आजादी की लड़ाई में सम्मिलित हो गये थे।बाद में बोम्बे के मुख्यमंत्री रहें तथा जवाहर लाल नेहरू के साथ वित्त मंत्री रहें।
जब के कामराज जो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहें थे कांग्रेस के अध्यक्ष थे।पं जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु हो गई।गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया। कामराज ने मोरारजी देसाई का नम्बर काट कर लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बना दिया।
कुछ समय बाद लाल बहादुर शास्त्री की भी मृत्यु हो गई,अब मोरारजी देसाई ने फिर अपनी दावेदारी पेश की, परन्तु कामराज ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए पेश कर दिया। मोरारजी देसाई व इंदिरा गांधी के मध्य कांग्रेस में चुनाव हुआ, जिसमें इंदिरा गांधी जीत गई।
सन् 1967 में लोकसभा का चुनाव हुआ, इंदिरा गांधी साधारण बहुमत से जीत गई। मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी जी की सरकार में उप-प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री बने। लेकिन इस चुनाव में 6- राज्य कांग्रेस से निकल गये।
इंदिरा गांधी जी ने दस सूत्रीय कार्यक्रम घोषित किए-
1- बैंको का राष्ट्रीय करण
2- इंश्योरेंस कंपनी का सरकारी करण
3- अरबन लैंड सिलिंग
4- पीवी पर्स (राजाओं की टैंशन) की समाप्ति
आदि थे।
सन् 1969 में इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण बिना वित्त मंत्री की सलाह के इंदिरा गांधी जी ने कर दिया।
सन् 1969 में ही भारत के राष्ट्रपति डा जाकिर हुसैन की मृत्यु हो गई। उप-राष्ट्रपति वी वी गिरि राष्ट्रपति बन गए। कांग्रेस ने राष्ट्रपति के पद के लिए निलम संजिवारेड्डी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। परन्तु इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति वीवी गिरी से पद से इस्तीफा दिलवाकर उन्हें भी राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना कर खडा कर दिया। कांग्रेस के अध्यक्ष ने अपने उम्मीदवार निलम संजिवारेड्डी को मत देने के लिए व्हीप जारी कर दिया, इंदिरा गांधी ने कहा कि राष्ट्रपति का पद पूरे देश का है इसलिए मतदाता अपने अंतरात्मा की आवाज पर मत देने का आव्हान किया।इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी निलम संजिवारेड्डी चुनाव हार गए। अतः 12 नवंबर सन् 1969 को कांग्रेस के अध्यक्ष कामराज ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से बाहर निकाल दिया।
कांग्रेस के अंदर फिर चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस दो फाड हो गई, इंदिरा गांधी की सरकार अल्पमत में आ गई जिसे करूणानिधि ने समर्थन दे कर बचा लिया।
इंदिरा गांधी जी ने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण का अध्यादेश जारी कर दिया।
इस निर्णय कै विरोध में एक शख्स आर सी कूपर,जिनका सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया तथा बैंक ऑफ बड़ौदा में हिस्सा था,सुप्रिम कोर्ट चले गए।11 जजों की बैंच ने इस अध्यादेश को 10-1 के बहुमत से खारिज कर दिया।जो जज इस अध्यादेश को खारिज करने के एक मात्र विरोध में थे वो थे जस्टिस एएम रे। सन् 1970 में प्रीवी पर्स को भी अध्यादेश के माध्यम से समाप्त कर दिया गया,माधव राव सिंधिया जो इस समय चैम्बर ऑफ प्रिंसिस थे,सुप्रिम कोर्ट चले गए, सुप्रीम कोर्ट ने यह अध्यादेश भी खारिज कर दिया।
अब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से निवेदन कर सन् 1971 में ही चुनाव करवा दिए जो सन् 1972 में होने थे। सन् 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी को 352 सीट मिली तथा दूसरी कांग्रेस को 16 सीट मिली।
प्रधानमंत्री बनते ही इंदिरा गांधी ने 25 साल के लिए सोवियत संघ रूस से संधि कर ली तथा दिसम्बर 1971 में बंगलादेश बना दिया।
अब इंदिरा गांधी ने संविधान में 6 संशोधन (24से29) किये।24 वे संशोधन में धारा 13व धारा 368 को एक दूसरे से अलग कर दिया।25 वे संशोधन में आर्थिक समानता के लिए धारा 14 के अंतर्गत चैलेंज कोर्ट में नही कर सकते।26 वे संशोधन में रियासत के राजा समाप्त कर दिए।29 वे संशोधन में केरल का लैंड रिफार्म एक्ट 9 वी अनुसूची में डाल दिया।इस 29 वे संशोधन के विरूद्ध केरल के शंकराचार्य केशवानंद भारती कोर्ट चले गए।13 जजो की बैंच बैठी।7-6 के बहुमत से निर्णय हुआ। कोर्ट ने कहा कि (1)24,25,26 तीनों संशोधन सही है।
(2)संसद के पास कही भी संशोधन की शक्ति है, लेकिन संविधान में संशोधन की शक्ति है, संविधान को बनानें की शक्ति नही है। संविधान का मूल ढांचा अर्थात बेसिक स्टरक्चर संसद नही बदल सकती।
कोर्ट ने कहा कि कोर्ट किसी भी संशोधन की जांच कर सकती हैं जो बेसिक स्टरक्चर को प्रभावित करता हो। लेकिन 24 अप्रैल सन् 1973 के पहले के किसी निर्णय की नही, जैसे डेमोक्रेसी, धर्मनिरपेक्षता।
यह केशवानंद भारती का फैसला 24 अप्रैल सन् 1973 को आया।
सन् 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि सिनियर मोस्ट जज ही चीफ जस्टिस बनेगा।
संदर्भ
1- संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर और केशवानंद भारती केस, डा विकास दिव्य कीर्ति
https://youtu.be/uIZik791zRA

आरक्षण क्या और क्यों - लेखक अशोक चौधरी मेरठ

आरक्षण के कारण भारत में एक अच्छा खासा विवाद बना हुआ है। जो आरक्षण के लाभार्थी है उनका कहना है कि आरक्षण देश में अति आवश्यक है।जो आरक्षण के दायरे में नहीं आते उनका कहना है कि आरक्षण देश को क्षति पहुचा रहा है।
यदि कोई भी व्यक्ति या समाज अपनी व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी व्यवस्था को अच्छा बताता है तथा कोई व्यक्तिगत हानि होने पर उस व्यवस्था को खराब बताता है तो दोनों ही देश भक्त नही है। इसलिए आरक्षण की समीक्षा लाभ हानि से अलग रहकर करने की आवश्यकता है। विश्व में दो तरह के शासन रहते आये है।एक शासन को पुलिस स्टेट कहते हैं जिसके अन्तर्गत जो कानून है उसका शत प्रतिशत पालन होता है, किसी को कोई छूट नहीं है।इसको नकारात्मक भेदभाव वाला शासन कहा गया है।
दूसरा शासन वेलफेयर स्टेट है जिसे कल्याणकारी राज्य कहा गया है।इस शासन के अनुसार किसी कमजोर वर्ग या समाज को कुछ सहूलियत देने का प्रावधान होता है इसको सकारात्मक भेदभाव कहा गया है।
भारत की संस्कृति सदा ही सकारात्मक भेदभाव की समर्थक रही है। कमजोर की रक्षा करना यहा पुण्य का कार्य माना गया है। इसलिए कहा है कि-
सूरा सोई सराहीये,जो लडे हीन के हेत।
पुर्जा-पुर्जा हो गये,ताऊ ना छोड़े खेत।।
भारत में इंसान तो क्या पशु पक्षी के हित के लिए भी आम जनमानस तत्पर रहा है, यहां लोग चींटी को आटा खिलाना पुण्य मानते हैं।इसी कारण वसुधेव कुटुम्ब की भावना रही है। अतः भारत में राजतंत्र में भी कल्याणकारी राज्य की ही प्रशंसा की गई है। लेकिन जब भारत में विदेशियों का कब्जा हो गया तो यह धारणा भी दब गई। लेकिन जब विदेशी भी पुलिस स्टेट से परेशान हुए तो घूम कर वेलफेयर स्टेट की ओर मुड़े, सन् 1815 से ब्रिटिश शासन करने वाले वेलफेयर स्टेट के हिमायती बन गए।
इस व्यवस्था में यह कहा गया है कि यदि कोई गरीब परिवार में को बच्चे हैं, दोनों बच्चों को एक-एक किलो दूध माता-पिता देते हैं। यदि उनमें से एक बच्चा बीमार पड जाये तो डाक्टर यह सलाह देता है कि बीमार बच्चे को एक की जगह 1.5 किलो दूध दिजिए।पैसा ना होने के कारण वह परिवार दोनों बच्चों के लिए एक किलो दूध की अतिरिक्त व्यवस्था नहीं कर सकता।तो वह यह व्यवस्था बनाता है कि स्वस्थ बच्चे के एक किलो दूध में से आधा किलो दूध बीमार बच्चे को देने लगता है और जिस कारण स्वस्थ बच्चे को आधा किलो दूध तथा बीमार बच्चे को 1.5 किलो दूध मिल जाता है।जब तक बीमार बच्चा स्वस्थ होता वह इसी प्रकार व्यवस्था बनाता है,जब बीमार बच्चा स्वस्थ हो जाता है तो फिर दोनों को एक-एक किलो दूध मिलने लगता है।इस बंटवारे को सकारात्मक भेदभाव कहा गया है।
इसी प्रकार यदि बास्केटबॉल के दो खिलाड़ी मे से एक खिलाड़ी 6 फुट लम्बा है,दूसरा 5 फुट लम्बा है, दोनों के लिए गैंद को डालने वाली बास्केट यदि समान दूरी पर बंधी हो,तो वह 5 फुट के खिलाड़ी के साथ गलत ही तो होगा।यही आरक्षण का आधार है। दुनिया में गोरो ने कालो के साथ, अमीरों ने गरीबों के साथ,ऊंची जातियों ने नीची जातियों के साथ, पुरूषों ने महिलाओं के साथ भेदभाव किया है।इस कारण आज के आधुनिक युग में जो भी वेलफेयर कंट्री है, उनमें आरक्षण किसी ना किसी रूप में है। अमेरिका और इंग्लैंड में यह प्रिफरेंस के आधार पर है,कई देशों में यह आरक्षण अर्थात कोटा के रूप में है। भारत में 90%आबादी भेदभाव का शिकार रही है। आरक्षण की दो श्रेणियां हैं जिसमें एक होरिजेंटल तथा दूसरी वर्टिकल। भारत में वर्टिकल और होरिजेंटल दोनों तरह का आरक्षण है। एससी-एसटी, ओबीसी तथा आर्थिक आधार पर वर्टिकल आरक्षण है, महिला और दिव्यांग को होरिजेंटल आरक्षण है। वर्टिकल आरक्षण उसे कहते हैं कि जैसे भारत में 50% आरक्षण है, यदि कोई आरक्षण वर्ग का केंडिडेट जनरल से ज्यादा नम्बर ले आये तो वह जनरल मे ही गिन लिया जायेगा। परन्तु यदि कोई महिला या दिव्यांग जनरल से अधिक नम्बर ले आये तो वह अपने आरक्षित वर्ग में मे ही गीना जायेग।इसे होरिजेंटल आरक्षण कहते हैं।
अमेरिका के 50 राज्यों में से 41 राज्यों में आरक्षण है।
केनेडा में भारत की तरह ही आरक्षण है। चीन में 8% , जापान में 5% आरक्षण है।
भारत में संविधान की धारा 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के लिए भी आरक्षण है।
संदर्भ
1- आरक्षण क्या है- डा विकास दिव्य कीर्ति
https://youtu.be/oOSuGZeLxFM


गुरुवार, 20 मई 2021

समान नागरिक संहिता - लेखक अशोक चौधरी मेरठ।

समान नागरिक संहिता अर्थात यूनिफॉर्म सीविल काड एक ऐसा मामला है जो भारत में आजादी से पहले प्रकाश में रहा है।जब कोई शासन चलता है तो अपराध के कानूनों को दो हिस्सों में बांटता है जिसमें एक है - क्रिमिनल लॉ और दूसरा है सीविल ला। 
क्रिमिनल केस व्यक्ति बनाम राज्य होते हैं तथा सीविल केस व्यक्ति बनाम व्यक्ति होते हैं।
सीविल कानून के चार भाग है-
1- फैमिली मेटर अर्थात परिवार के विवाद जिनमें शादी,तलाक, बंटवारा, गुजारा भत्ता, गार्जियन शिप,गोद लेना,व्यस्क कब तक।
2- प्रोपर्टी
3- संविदा
4- टोड्स (मानहानि) असावधानी जैसे सात वर्ष तक की आयु का बच्चा यदि किसी को कोई हानि पहुचाता है तो उस पर कोई कानून लागू नही होता, असावधानी का मुकदमा उसके पेरेंट्स पर चलता है। उपरोक्त चारो कानूनो में सबसे अधिक विवाद फैमिली मेटर को लेकर है।
दूसरी ओर यहूदी, पारसी, मुस्लिम, हिंदू और जनजाति में जीवन जीने के अलग-अलग कानून है, अपने दायरे में रहते किसी नागरिक के फंडामेंटल राइट ना छिने,ऐसी व्यवस्था ही यूनिफॉर्म सीविल काड है।
भारत में जब भारतीयों का शासन था तब भारत की न्याय पद्धति मनुस्मृति के आधार पर चलती थी, भारत में कई मनुस्मृति है लेकिन एक अंग्रेज़ अधिकारी विलियम जोन्स ने एक मनुस्मृति का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया,वही अत्याधिक प्रसिद्ध है। मनुस्मृति में जो क्रिमिनल ला है वो भेदभाव पूर्ण है, ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के लिए एक ही अपराध की अलग-अलग सजाए है। सम्पत्ति का बंटवार  याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार होता था। याज्ञवल्क्य स्मृति में दो तरह के बंटवारे का कानून था,एक कानून जो बंगाल व आसाम को छोड़कर पूरे भारत में चलता था,इसके अंतर्गत पुत्र पैदा होते ही पिता की सम्पत्ति का हिस्सेदार हो जाता था,इसे मिताक्षरा विधि के नाम से जाना जाता था।  दूसरा कानून जिसे दायभाग के नाम से जाना जाता था,वह बंगाल और असम में ही चलता था, इसके अंतर्गत पुत्र पिता की मृत्यु के बाद ही उसकी सम्पत्ति मे हिस्सेदार होता था।
परन्तु जब भारत में सन् 1192 के बाद मुस्लिम सत्ता स्थापित हुई तो मुस्लिम शासक अपने साथ अपने धर्म की किताब के रूप में कुरान को लाये तथा शासन चलाने के लिए शरियत को लाये। इनके शासन में गैर मुस्लिमो से भेदभाव किया जाता था, दिल्ली सल्तनत के सुल्तान ग्यासुद्दीन तुगलक ने किसानों के लिए कानून बनाया, जिसके अन्तर्गत हिंदू किसानों को अपनी फसल का आधा अर्थात 50% कर के रूप में देना था तथा मुस्लिम किसानों को 10% या 15% कर देना था, इसके बाद फिरोज शाह तुगलक ने कर में परिवर्तन किया, फिरोज शाह तुगलक ने कई नहरें अपने राज्य में खुदवाई, फिरोज शाह तुगलक ने हिंदू किसानों पर नहर के पानी को प्रयोग कर खेती करने वालों पर फसल का 60% कर लगाया तथा मुस्लिम किसानों पर फसल का एक चौथाई अर्थात 25% कर लगाया। अकबर के शासनकाल में भारतीयों को सत्ता में हिस्सेदार बनाया, हिंदूओं पर लगे जजिया कर व तीर्थ कर को हटा दिया, किसानों पर कर भी समान कर दिया।
भारत की संस्कृति एक सहिष्णु संस्कृति रही है। भारत में वेलफेयर स्टेट/कल्याणकारी राज्य, ह्यूमन राईट/मानवाधिकार का बडा व्यापक प्रभाव रहा है। वसुधेव कुटुम्ब की भावना रही है जिसमें मानव तो क्या?पशु पक्षी भी समायोजित रहें हैं। धनाढ्य लोगों द्वारा कुएं खुदवाना, प्याऊ लगवाना, धर्मशालाएं बनवाना पुण्य का कार्य माना गया है।पशु पक्षी को भोजन कराना आम जनमानस में साधारण रूप से व्याप्त विचार रहा है। किसी भी बच्चे को गोद लेने के बाद उस बच्चे का बिल्कुल वैसा ही अधिकार, जैसा कि सगी संतान का होता है,वह भारतीय संस्कृति में ही रहा है,रामयण में सीता इसका उदाहरण है,राजा जनक को सीता हल चलाते समय मिली,जब राजा जनक ने विद्वानों ने पूछा कि इस बच्चे का गोत्र और वंश क्या होगा?तब विद्वानों ने कहा कि जो इस बालिका को अपनी पुत्री स्वीकार कर लेगा,वही इस बालिका का कुल होगा।
महाभारत काल में कुंती के 3, माद्री के 2 पुत्र थे, ये 5 पुत्र राजा पाण्डु द्वारा अपनाए हुए थे, परन्तु छठा पुत्र कर्ण अलग था,पितामह भीष्म और श्री कृष्ण जी इस बात को जानते थे।जब महाभारत का युद्ध आरम्भ हुआ तब कुंती पितामह भीष्म के पास जाकर अपने पुत्रों की रक्षा का वचन मांगती है,तब पितामह भीष्म बिल्कुल स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि राजा पाण्डु ने जिन पुत्रों को अपना मान लिया है वही कुरूवंश के है। इतना मानव अधिकार वाला समाज विश्व में नही है, भारतीय संस्कृति से अलग या आज भारत के संविधान के अनुसार गैर हिन्दू समाज में कोई गार्जियन/संरक्षक तो हो सकता है, परन्तु अपना नहीं सकता।एक ही परिवार में अपनी इच्छानुसार व्यक्ति अपने ईष्ट देव की पूजा कर एक साथ भारतीय समाज में ही रह सकता है,यहा गाय को माता मानने वाले तथा पशु बलि देकर काली माता को प्रसन्न करने वाले एक ही समाज के अंग है।किसी को अपना इष्ट देव ना मानने वाले नास्तिक भी इसी समाज में एक साथ आराम से रह रहते आए हैं।
 16 वी सदी में मुगल सल्तनत मे अकबर नाम का एक सम्राट हुआ। जिसने महसूस किया कि उसके राज्य में निवास करने वाले 95% गैर मुस्लिम लोगों के सहयोग के बिना शासन को स्थायित्व देना असम्भव है। इसलिए अकबर ने भारतियों को सत्ता में अपना कनिष्ठ सहयोगी बनाया।अकबर ने भारतिय राजाओं से वैवाहिक संधि की। परंतु इस्लाम में एक पुरुष की सिर्फ चार शादियां ही वैध मानी गई है। जबकि भारतीय समाज में राजा की चाहें कितनी भी रानियां हो सब वैध मानी गई है यहा संख्या का प्रतिबंध नही है। मुस्लिम समुदाय में चार शादी के बाद जो निकाह होता था,उसे मूता निकाह कहा गया है।मूता अरबी फारसी या जकताई भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है मजा/आनंद अर्थात मूता निकाह एक अवधि के लिए लडकी के पिता को निकाह से पहले धन देकर किया गया निकाह था,यह निकाह ईरान में शिया लोगों में प्रचलित था, सुन्नियों में नही।इस निकाह से जो संतान पैदा होती थी वह भी अवैध मानी जाती थी और मूता निकाह की अवधि समाप्त हो जाने के बाद महिला का भी कोई सम्बन्ध अपने पति से या उसकी सम्पत्ति से नही रहता था। अकबर ने आमेर की राजकुमारी से शादी करके जो आमेर रियासत से वैवाहिक संधि की थी, इस्लाम के अनुसार आमेर की राजकुमारी अकबर की छठी रानी थी, अतः यह शादी मूता निकाह की श्रेणी में आ गई थी। अकबर के अपनी पहली चार रानियो से कोई संतान नहीं थी, आमेर की राजकुमारी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ था जिसका नाम सलीम था। इस्लाम के कानून के अनुसार अकबर का यह पुत्र भी अवैध था अर्थात सत्ता का अधिकारी नही था।
ऐसी परिस्थिति में अकबर भारतीय राजाओं से वैवाहिक संधि करके कैसे सहायता प्राप्त कर सकता था,जब वह शादी ही अवैध थी।अत अकबर ने इस समस्या का हल तलाशने के लिए मुल्ला मौलवियों को अपने दरबार में बुलाया।एक तरह से अकबर को इस समय एक यूनिफॉर्म सीविल कानून की आवश्यकता महसूस हुई जो भारतीय हिन्दू तथा इस्लाम के बीच एक सम्मान जनक रास्ता बना सके।अकबर ने जब अपने सामने आयी इस समस्या को इस्लाम के विद्वानों के सामने रखा तो जो कट्टर पंथी थे वो तो टस से मस नहीं हुए परन्तु एक बदायूंनी नाम के विद्वान थे उन्होंने कहा कि बादशाह सलामत निकाह और मूता निकाह मे क्या फर्क है यह सिर्फ विद्वान लोग ही समझते हैं,आम मुस्लिम की नजर में तो दोनों ही निकाह है दोनों ही बादशाह की बेगम है। दोनों तरह के निकाह से पैदा होने वाली संतान का फर्क भी विद्वान ही समझते हैं,आम आदमी की नजर में तो दोनों ही संतान है।इस पर अकबर मुल्ला बदायूंनी से बडा प्रसन्न हुआ तथा अकबर ने सभी बेगमे जो बादशाह के साथ हरम में थी,सब बराबर की रानियां घोषित कर दी,उन रानियों से उत्पन्न संतान भी वैध घोषित कर दी गई।जिन कट्टर पंथी मुल्लाओं ने बादशाह के फैसले का विरोध किया उनका तबादला बहुत दूर कर दिया गया, उनसे महत्वपूर्ण ओहदे छिन लिए गए तथा कुछ को तो मरवा भी डाला।इस प्रकार बादशाह अकबर ने भारतियों और मुस्लिमो के बीच पहला यूनिफॉर्म सीविल कानून बनाया।
सन् 1582 में अकबर ने एक दरबार का आयोजन किया, जिसमें राज्य में गुलामी प्रथा को समाप्त कर दिया तथा सभी गुलामों को मुक्त कर दिया गया।गुलाम शब्द के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया।अब गुलाम के स्थान पर लोग चेला शब्द का प्रयोग करने लगे।
अकबर ने 12 वर्ष की कम आयु के बच्चों की शादी पर प्रतिबंध लगा दिया।
छोटे पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया।
सराय और अस्पताल सरकारी कोष से आम गरीब जनता के लिए बनवाने प्रारंभ किए।
अपने अधिकारियों पर किसी को भी मृत्यु दंड देने के अधिकार को छीन लिया। मृत्यु दण्ड देने के लिए बादशाह की स्वीकृति अनिवार्य कर दी गई।
सन् 1591 में अकबर ने जबरन सती प्रथा पर रोक लगा दी।गोने से पहले पति की मृत्यु हो जाने पर सती होने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
विधवा विवाह को स्वीकृति दे दी गई।
एक पत्नी प्रथा का कानून बना दिया गया। दूसरी शादी जभी होगी जब पहली पत्नी संतान पैदा करने योग्य ना हो।
सन् 1592 में शादी की उम्र 16 वर्ष कर दी गई।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार धर्म अपनाने की छूट दे दी गई।
हिंदू और मुसलमान किसानों पर लगान बराबर कर दिया गया।
सन् 1577 में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में एक टकसाल बनवाई। जिसमें अकबर ने अपने सिक्कों पर सीता राम का चित्र बनवाया।इन सिक्कों को सियाराम के सिक्के भी कहते थे।
 फिरोज शाह तुगलक के समय एक ब्राह्मण ने एक मुस्लिम महिला को हिंदू बना दिया था।जब फिरोज शाह तुगलक को यह बात पता चली तो बादशाह ने उस ब्राह्मण को दोपहर बाद की नमाज के समय बीच चौराहे पर जिंदा जलाकर मार डाला था। सिकंदर लोदी ने बोधन नाम के ब्राह्मण को सिर्फ इसलिए मृत्यु दंड दे दिया था कि बोधन ने सभी धर्मों को बराबर बता दिया था।
इस प्रकार अकबर ने अपने समय में हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच कुछ समानता लाने की कोशिश की थी अर्थात भारत में पहले यूनिफॉर्म सीविल कोड को बनाया था।
परन्तु औरंगजेब ने अपने शासनकाल में पुनः अपने शासन को इस्लामिक शासन बना दिया, पुनः जजिया कर और तीर्थंकर लागू कर दिए गए, मुस्लिम किसानों पर कर 25% कर दिया गया। हिन्दू किसानों पर 50% कर रहा।  मुस्लिम शासन शरियत के अनुसार चलता रहा, औरंगजेब  जिस शरियत से भारत में शासन चला रहा था,उसको लिपिबद्ध किया तथा उसको फतुआ आलमगीर नाम दिया।शरियत पूरे विश्व में चार प्रकार की है,जिस शरियत के अनुसार भारत में शासन चलता था उसे हनफी सम्प्रदाय की शरियत कहा जाता है।इस शरियत में दो तरह के अपराध है,एक वो अपराध है जो खुदा के विरोध में बताये गये है, जैसे जिन्ना (व्याभिचार), चोरी, डकैती है,इन अपराधों को हुदुद कहा गया है। इन अपराधों में बडी सख्त सजा है, कोई छूट नहीं है।
दूसरे आपसी हिंसा के अपराध है,इन अपराधों में वह व्यक्ति जिसके साथ अपराध हुआ है, अपराध करने वाले को माफ कर सकता है,इन अपराधों को किसास कहते हैं।
तिसरे वो अपराध है जिसमें अपराध करने वाले ने अपराध करने का प्रयास किया परन्तु वह सफल नहीं हुआ जैसे किसी ने किसी का अपहरण करने का प्रयास किया परंतु अपहरण हुआ नही,इन अपराधों को ताजिर कहते हैं।
सन् 1757 से अंग्रेजों का दखल भारतीय शासन में प्रारंभ हुआ, सन् 1764 के बक्सर के युद्ध में विजय के बाद अंग्रेजों को बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सीविल अधिकार मुगल बादशाह से प्राप्त हो गये थे, सन् 1803 में दिल्ली तथा सन् 1818 में पेशवा राज्य पर कब्जा होने के बाद सम्पूर्ण भारत का सीविल सैक्टर अंग्रेजों के हाथ में आ गया। क्रिमिनल केस शरियत के अनुसार तय होते रहें तथा सीविल केस में अंग्रेजों ने हिंदुओं को हिंदू ला अर्थात मनुस्मृति, मुस्लिमो को मुस्लिम ला अर्थात शरीयत और बाकि अन्य को अंग्रेजों ने अपने कानून के हिसाब से चलाना प्रारंभ कर दिया।
भारत में चल रही शरीयत के अनुसार जो मुस्लिमो के सीविल कानून थे उनमें भी हिंदुओं के कानूनों से अलग प्रावधान थे, जैसे सम्पत्ति के बंटवारे के लिए जो मुस्लिम कानून था उसे सूफा नाम दिया गया था।इसके अंतर्गत यदि चार भाई एक जगह रह रहें हैं, उनमें से एक भाई यदि अपना हिस्सा किसी को बेच देता है तो उसके भाई उस पर सूफा कानून के अन्तर्गत यह दावा कर सकते हैं कि वो उसके पहले हकदार हैं यानि जितने धन मे किसी बाहर वाले को बेच दिया है वह धन देकर अपने भाई का हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं।दूसरा महिला को पिता की सम्पत्ति मे 1/3 भाग का पूर्ण अधिकार है। कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी सम्पत्ति मे से 1/3 भाग की ही वसीयत कर सकता है।
संविधान की धारा 14 में इक्वलिटी बी फार ला (प्रत्येक व्यक्ति को कानून का संरक्षण मिले)
संविधान की धारा 15 (1) राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ सेक्स,कास्ट, रिलीजन व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।
लेकिन वही राज्य 15(3)के अंतर्गत महिलाओं और बच्चों के पक्ष में कानून बना सकता है।
यहां भी ज्यादा भेदभाव फैमिली मेटर को लेकर ही है, मुस्लिम समुदाय में शादी एक समझौता है जो कभी भी रद्द किया जा सकता है, जिसमें तलाक एक माध्यम है,निकाह के समय मेहर तय होता है, जिसमें तलाक देने पर तीन महीने तक,जिसे इद्दत की अवधि कहा गया है, पुरुष महिला का खर्च देगा, यदि कोई बच्चा है तो बच्चे की आयु दो वर्ष पूरी होने तक बच्चे का खर्च देगा।
तलाक भी दो तरह का है,एक तलाक- ए- सुन्नत,दूसरा तलाक- ए- इद्दत।
तलाक- ए- सुन्नत मोहम्मद साहब द्वारा बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पूरे जीवन में तीन बार तलाक कह देता है तब तलाक माना जाता है। जैसे किसी व्यक्ति अपनी पत्नी को अपनी तीस वर्ष की आयु में तलाक कह दिया, फिर दस वर्ष बाद कोई बात हुई,फिर तलाक बोल दिया,उसके 15 वर्ष बाद फिर तलाक बोल दिया,अब आकर तलाक हुआ 55 वर्ष की आयु में,दूसरा यदि एक महिने में एक बार तलाक बोल,इस तरह तीन महीने में तलाक हो गया।
दुसरी तरह का तलाक मुस्लिम विद्वानों द्वारा बाद में स्थापित किया गया है। मुस्लिम ला के अनुसार विवाद के फैसले काजी करता है जो कुरान और हदीस की रोशनी में किये जाते हैं, कुरान में वह लिखा है जो मोहम्मद साहब को दिव्य दृष्टि प्राप्त होने पर मिले ज्ञान पर आधारित है,हदीस में मोहम्मद साहब के उपदेश (विचार) और उनकेे कर्म (लिए गए निर्णय) लिखें हैं। लेकिन ऐसे बहुत से विवाद है जो मोहम्मद साहब के जीवन में सामने नही आये,वो हदीस में नही है,इस तरह के विवाद जब सामने आते हैं तब काजी मुफ्ती से सलाह करता है,मुफ्ती उस विवाद से सम्बंधित कानून की व्याख्या करता है,उसे फतुआ कहते हैं। यदि मुफ्ती की भी समझ में ना आएं तो उलेमा विचार करते, और विद्वान विचार करते हैं,तब कानून की व्याख्या कर फतुआ दिया जाता है।तलाक- ए- इद्दत इसी प्रकार बनाया गया कानून है, इसमें कोई व्यक्ति लगातार तीन बार तलाक बोल देता है और तलाक हो जाता है, आज के आधुनिक युग में वाट्स एप,स्पीड पोस्ट से लिखकर भी तलाक दे दिया जाता है, भारत में तलाक ए इद्दत ही चल रहा था।शिया मुस्लिम तलाक - ए - इद्दत को नहीं मानते।
मुस्लिम यहूदी पारसी ईसाई धर्म में बच्चे को गोद नही लिया जाता, वहां संरक्षक बना जा सकता है। यदि कोई बच्चा छोटा है, उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई है तो कोई रिश्तेदार उसका संरक्षक बन सकता है,जब बच्चा व्यस्क हो जायेगा तब संरक्षक की जिम्मेदारी समाप्त।बच्चा संरक्षक की सम्पत्ति मे हिस्सेदार नही होता। लेकिन हिन्दू धर्म में जिसे गोद लेना कहते हैं, उसके अंतर्गत बच्चे को वो सभी अधिकार मिल जाते हैं जो एक माता-पिता की ओर से उनके सगे बच्चों को मिलते है।
जब अंग्रेजों का भारत पर शासन स्थापित हो गया तो भारत के सीविल कानून मे उनकी दखलंदाजी शुरू हुई।इस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने सन् 1772 में भारत में एक जुडिशल प्लान पेश किया।वारेन हेस्टिंग्स सन् 1781 तक रहें।वो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले गवर्नर जनरल थे। सन् 1781 से लेकर सन् 1810 तक क्रिमिनल लॉ जो शरियत के अनुसार चल रहा था, में भी अंग्रेजों ने दखल देना शुरू कर दिया था, क्योंकि शरीयत के कानून बहुत कठोर थे। सन् 1828 में वैटिंग भारत के पहले गवर्नर जनरल बने।
अंग्रेज एक विकसित समाज से थे, राजा राम मोहन राय ने वैटिंग के साथ समन्वय बना लिया था।इसलिए सन् 1829 में राजा राम मोहन राय के अनुरोध पर सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम बनाया गया।लडकी के पैदा होते ही हत्या कर दी जाती थी,इस प्रकार की हत्या के विरोध में भी कानून बना दिया गया। सन् 1833 के चार्टर एक्ट के बाद सन् 1834 में अंग्रेजों ने भारत में पहला विधि आयोग अर्थात ला कमिशन बनाया, लार्ड मैकाले इसके अध्यक्ष थे। कौन सा कानून बनाना है उसका ड्राफ्ट बनाकर सुझाव के रूप में सरकार को देना ला कमिशन का काम था। लार्ड मैकाले ने पूरे भारत में एक आईपीसी हो इसका ड्राफ्ट लिखा।
सन् 1848 में लार्ड डलहौजी भारत के गवर्नर जनरल बन कर आये।
लार्ड डलहौजी के साथ ईश्वर चंद्र विद्यासागर का अच्छा समन्वय था। अतः सन् 1850 में छूआछूत के विरोध में कास्ट डिसएक्टिविटीज एक्ट बना दिया गया।
सन् 1853 में दूसरा चार्टर एक्ट आया,  भारत में दूसरा ला कमिशन बना,सर जान रोमेली नाम के अंग्रेज अधिकारी इसके अध्यक्ष बने। इन्होंने सीपीसी, सीआरपीसी, आईपीसी को तैयार किया। 
सन 1856 में हिंदू विडो मेरिज एक्ट बना दिया गया।अब तिसरा ला कमिशन बना,सर हेनरी मेन जो ला के प्रोफेसर थे, इसके अध्यक्ष बने।
इसी समय सन् 1857 का संघर्ष भारत में हो गया।
इस संघर्ष के बाद भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ से निकल ब्रिटिश क्राउन के हाथ में चला गया।अब भारत में गवर्नर जनरल का स्थान वायसराय नाम के पद ने ले लिया जो भारत में ब्रिटिश क्राउन का प्रतिनिधि था।
अतः सन् 1861 में आईपीसी एक्ट लागू हो गया।अब क्रिमिनल लॉ शरियत के आधार से हट गया तथा क्रिमिनल लॉ में यूनिफॉर्म क्रिमिनल एक्ट बन गया।
सन् 1871 में इंडियन एविडेंस एक्ट।
सन् 1872 में कांट्रेक्ट एक्ट।
 सन् 1873 में आथ एक्ट जो अब सन् 1969 का एक्ट कहा जाता है।
 सन् 1873 में ही स्पेशल मेरिज एक्ट लागू हो गया, जिसके अन्तर्गत इंटर कास्ट और इंटर रिलिजन शादी की जा सकती थी आज यह सन् 1954 के एक्ट के नाम से चल रहा है।
सन् 1874 में विवाहित महिला एक्ट बना जिसके अन्तर्गत स्त्री धन को महिलाओं की सम्पत्ति माना गया, इस एक्ट के अनुसार लिमिटेड राइट दिये गये।  स्त्री धन में शादी के समय ससुराल और मायके पक्ष की ओर से मिले उपहार (गहने) आते थे। क्योंकि हिन्दू धर्म में महिलाओं को सम्पत्ति मे अधिकार नहीं था, इसलिए यह एक छोटा सा कदम उठाया गया था।
शादी की उम्र के लिए सन् 1891 से लेकर सन् 1929-30 तक अनेक कदम उठाए गए।
सन् 1891 में लडकी की शादी की उम्र 12 वर्ष तथा लडके की उम्र 14 वर्ष की गई,इस एक्ट का नाम ऐज आफ कंसेंट एक्ट रखा गया।
 सन् 1929-30 में लड़की की शादी की आयु 14 वर्ष तथा लडके की उम्र 18 वर्ष की गई।आज सन् 1978 का एक्ट लागू है जिसमें लड़की की आयु 18 वर्ष तथा लडके की आयु 21 वर्ष है।
सन् 1937 में हिंदू (देशमुख एक्ट)वोमेंस राइट टू प्रोपर्टीज एक्ट बना, जिसमें कहा गया कि स्त्री धन पर महिला का पूर्ण अधिकार होगा,बाकी सम्पत्ति पर लिमिटेड राइट होगा।
हिन्दू विधवा को अपने पति की सम्पत्ति मिलेगी, परन्तु उस पर उसका लिमिटेड राइट होगा।
जब ये सुधार के कार्यक्रम हिन्दू धर्म में चल रहे थे, कानून बन रहें थे,ऐसा देख मुस्लिमो ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया कि मुस्लिमो के कानूनों में कोई छेड़छाड़ न की जाए, लेकिन अंग्रेजों ने सन् 1937 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बना दिया, सन् 1939 में सन् 1937 के पर्सनल लॉ के 5 वें सेक्शन को हटा कर उसमें यह जोड दिया कि यदि मुस्लिम महिला चाहे तो तलाक के लिए कोर्ट जा सकती है।
सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए एक कानून हो,इसके लिए हिन्दू कोड बिल की डिवेट शुरू हो गई थी। अतः सन् 1941 में एक आइसीएस अधिकारी बीएनराव के नेतृत्व में हिंदू ला कमेटी बनाई गई,इस कमेटी में राव सहित चार सदस्य थे। इस कमेटी ने सन् 1944 में मसौदा बना लिया, लेकिन सरकार ने श्री बीएन राव को इस मसौदे पर दोबारा और अच्छी तरह बनाने का आग्रह किया। सन् 1947 में देश आजाद हो गया, सन् 1949 में बीएन राव ने यह मसौदा तैयार कर भारतीय संसद को सोप दिया। भारत की संसद ने इस मसौदे की समीक्षा के लिए संसद की एक स्टेंडिंग कमेटी बनाई, जिसके अध्यक्ष डा भीमराव अम्बेडकर बने, जो कि भारत सरकार में ला मिनिस्टर भी थे। हिन्दू कोड बिल में आठ खंड थे, मेरिज मे पहली बार तलाक का प्रावधान था,एक पत्नी विवाह का प्रावधान था। हिन्दू, यहूदी और कैथोलिक ईसाई मे शादी एक संस्कार माना जाता है,इनमे विवाह विच्छेद नही होता था, पुरूष अनेक विवाह कर सकता था,वह अपनी पत्नी का परित्याग कर सकता था। परंतु महिला पुरुष का परित्याग नही कर सकती थी।इस बिल का खूब विरोध हुआ।डा राजेन्द्र प्रसाद, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुरूषोत्तम दास टंडन, हिन्दू महासभा के नेता डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिन्दू कोड बिल के खुल कर विरोध में आ गए,सबका कहना था कि इस समय भारत में कोई जनता की चुनी हुई सरकार नही है, इसलिए देश की 80% आबादी के विषय में कानून बनाना उचित नहीं है।देश के प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने 26 सितंबर सन् 1950 को संसद से यह बिल वापस ले लिया,27 सितंबर सन् 1950 को खिन्न होकर डा अम्बेडकर जी ने ला मिनिस्टर के पद से त्यागपत्र दे दिया।
नेहरू जी ने सन् 1952 का पहला चुनाव लडा, हिन्दू कोड बिल के मुद्दे को कांग्रेस के घोषणा पत्र में डाला। कांग्रेस की जोरदार विजय हुई। नेहरू जी को 400 में से 381 लोकसभा सीट मिली। सन् 1954 में स्पेशल मेरिज एक्ट पास कर दिया गया,इस एक्ट के अंतर्गत इंटर रिलिजन शादी होती है।
अब परिस्थिति बदल चुकी थी,डा राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति बन गए थे, पुरूषोत्तम दास टंडन अध्यक्ष के पद से हट गए थे,अत सन् 1955-56 में हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में संसद से पास कराकर एक्ट बना दिया।
1- हिन्दू मेरिज एक्ट, सन् 1955 में
बाकि तीनो सन् 1956 में
2- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम एक्ट
3- हिन्दू अव्यस्क तथा संरक्षता एक्ट
4- हिन्दू एडोप्शन एवं मेंटिनेंस एक्ट
इन सब एक्ट में सबसे पहले हिन्दू कौन है इसकी परिभाषा लिखी। मुस्लिम, ईसाई, यहूदी,पारसी को छोड़कर जो भी है सब हिन्दू है।यानि सिक्ख,जैन, बौद्ध, आर्य समाज, ब्रह्मा समाज, प्रार्थना समाज,वीर शैव सब हिन्दू है। सन् 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं को कृषि भूमि को छोड़कर बाकी सम्पत्ति मे पूरा हिस्सा मिलने का प्रावधान हो गया।
सन् 1995 में सरला मुद्गगल केस में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया। इससे पहले हिन्दू व्यक्ति मुस्लिम बनकर दूसरी शादी कर लेता था, परंतु इस केस में यह निर्णय दिया गया कि शादी करते समय जो धर्म व्यक्ति का होगा,उस पर वही मेरिज एक्ट लागू होगा।
सन् 2005 में हिंदू सक्शेसन एमेंडमेंट एक्ट लागू हो गया है जिसमें अब पुत्री को पुत्र की तरह ही सम्पत्ति मे हिस्सा मिलता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ की तरह भारत में कुछ जनजातियों के लिए भी अलग से कानून हैं। संविधान की धारा 371(A)(F) व 244(5-6) में इन जनजातियों के लिए अलग से प्रावधान है।केरल,गोवा में कैथोलिक ईसाई हैं, नागालैंड और मिजोरम में 80% ईसाई है।
इंडियन डायवर्स एक्ट - 1869 में एमेंडमेंट कर सन् 2001 में दूसरो जैसा ही कर दिया गया
गार्जियंस एंड वार्ड्स एक्ट - 1890
इंडियन सक्शेसन एक्ट - 1925
क्रिश्चियन सीविल ला व क्रिश्चियन मेरिज एक्ट - 1872
कहने का तात्पर्य यह है कि यहूदी, ईसाई और पारसी के कानून यूनिफॉर्म सीविल काड के दायरें में आ गए हैं।
जब वैष्णो देवी मंदिर को सरकार ने अपने हाथ में ले लिया तो सरकार ने मंदिर के पुजारी की नौकरी की राशि नियत कर दी,इस पर माता वैष्णो देवी का पुजारी कोर्ट चला गया, उसने कहा कि मंदिर का पुजारी चढ़ावे का 25% लेता था,यह धर्म का मामला है सरकार इसमें नौकरी कैसे निश्चित कर सकती हैं, कोर्ट ने कहा कि पुजारी हो यह धर्म का मामला है परन्तु उसको कितनी राशि मिले यह धर्म का सेकुलर मामला है इसमें सरकार को हस्तक्षेप करने का अधिकार है। जो नौकरी सरकार दे रही है वही ठीक है।
जगन्नाथ मंदिर में वंशानुगत पुजारी होता रहा है, वहां पुजारी बदल दिया गया,जो वंशानुगत पुजारी चले आ रहे थे, उन्होंने कोर्ट में अपील की कि उनको गलत हटाया गया है, कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और कहा कि मंदिर में पुजारी होना चाहिए,वह किस वंश से हो इसका आरक्षण नही हो सकता।
केरल के मंदिर में गैर ब्राह्मण पुजारी बन गया, ब्राह्मणों ने कोर्ट में अपील की कि पुजारी तो ब्राह्मण ही होना चाहिए, कोर्ट ने यह अपील भी खारीज कर दी और कहा कि हिन्दू धर्म का मंदिर है इसलिए पुजारी हिंदू धर्म का होना चाहिए,उसकी जाति आरक्षित नही हो सकती।
बिल्कुल इसी तरह अजान लगाना धर्म का मामला है परंतु माइक से अजान लगाना धर्म का मामला नही है इस पर रोक लग सकती है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, इसलिए धर्म राज्य के अधीन स्वतंत्रता ले सकता है,राज्य का कानून सर्वोपरि है।
सन् 1964 में पं जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने दहेज के विरूद्ध भी एक कानून बना दिया।
सन् 1829 से लेकर सन् 1964 तक हिंदुओं के सुधार के लिए अनेक कानून बने, परन्तु मुस्लिमो के लिए कोई कानून नहीं बना। नेताओं के एक पक्ष का कहना था कि जब मुस्लिमो की ओर से कोई सुधार के लिए आगे आया ही नहीं तो कैसे करते,दूसरा पक्ष यह कहता रहा है कि यह मुस्लिम तुष्टिकरण है।
सन् 1975 में शाहबानो नाम की एक महिला का केस कोर्ट के सामने आया। इंदौर में अहमद खां नाम के एक मशहूर वकील थे, शाहबानो इनकी पत्नी थी, शाहबानो की शादी को हुए 16 वर्ष हो गए थे,इनके पांच बच्चे थे।इस परिस्थिति में अहमद खां ने दूसरी शादी कर ली, शादी के चालीस साल तक शाहबानो अपने पति के साथ ही रही, परन्तु सन् 1975 में घर छोड कर चली गई।अहमद खां ने अलग रह रही शाहबानो को सन् 1978 तक 200 रुपए प्रति माह गुजारा भत्ता दिया। लेकिन बाद में यह राशि देना बंद कर दिया और शाहबानो को तलाक दे दिया। अहमद खां ने तीन महीने इद्दत के हो जाने पर मेहर तथा बाकि रकम जो 5400 रूपये थी शाहबानो को दे दिया। शाहबानो कोर्ट चली गई। इंदौर के कोर्ट ने आदेश दिया कि अहमद खां 25 रुपए प्रतिमाह शाहबानो को गुजारा भत्ता देंगे।
परन्तु अहमद खां ने कोर्ट के फैसले को अपने धर्म में हस्तक्षेप मानते हुए इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, सन् 1980 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि 25 रुपए कम है अतः अहमद खां 189 रुपए प्रति माह शाहबानो को गुजारा भत्ता देंगे।अब अहमद खां सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, पांच जजों की बेंच ने इस मुकदमे को सुना तथा सन् 1985 में यह फैसला दिया कि हाईकोर्ट का फैसला ठीक है अहमद खां 189 रूपए प्रति माह गुजारा भत्ता देंगे तथा 10000 रूपए शाहबानो को ओर देंगे जो उसके कानूनी लडाई में खर्च हुए हैं।
इस समय राजीव गांधी की सरकार थी, सन् 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने एक एक्ट पास किया जिसका नाम था   The Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act 1986 (मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986) , जिसमें कहा गया कि मुस्लिमो पर डीवोरस में मुस्लिम पर्सनल लॉ ही लागू होगा।इस कानून में मेहर इद्दत और बच्चे दो शब्दों के लिए इतना जोड़ दिया कि फेयर एंड रिजनेबिल एमाउंट होना चाहिए।यह एमाउंट महिला का पति देगा, यदि वह सक्षम नही है तो महिला का पिता देगा, यदि वो दोनों भी नहीं है तो वक्फ बोर्ड देगा। सन् 1985 से लेकर 1997 तक पर्सनल लॉ के मामले में कोर्ट चुप रही। सन् 1997 में नोवल खा खातून का मामला कोर्ट के सामने आया, कोर्ट ने फेयर एंड रिजनेबिल एमाउंट की व्याख्या करते हुए कहा कि बच्चे जब तक व्यस्क नही हो जाते तब तक खर्चा देना होगा। सन् 2001 में डेनियल लतिफी जो शाहबानो के वकील थे ने सुप्रीम कोर्ट में फेयर एंड रिजनेबिल एमाउंट की व्याख्या क्या हो? यह पूछने के लिए केस डाल दिया। कोर्ट ने कहा कि जो महिला का स्टेंडर्ड आफ लिविंग पति के साथ रहते हुए था उसका हर महिने होने वाले खर्च को महिला की बची हुई जिंदगी की उम्र से केलकुलेट  करके जितने रुपये बैठेंगे वो तीन महीने इद्दत के पूरे होने पर देने होंगे। यदि पति इतनी रकम एक साथ देने में असमर्थ हैं तो उसकी किस्त बाधी जा सकती है।इस प्रकार मुस्लिम महिलाओं को मेंटिनेंस के मामले में न्याय मिल गया।
भारत में तलाक के 6 तरीके है।
1 - तलाक, इसमें पुरुष को विशेष अधिकार है।
 2- खुला , इसमें महिला तलाक दे सकती है पुरुष की रजामंदी से, इसमें पुरुष को मेहर नही देनी पडती।
3- मुबारत,इसका मतलब पिंड छुड़ाना।
4- तजबीब, कमेंट मेंट यानि वचन, विवाह के आसपास दिया वचन पूरा करना होता है।
5- लियान,पति द्वारा पत्नी पर,या पत्नी द्वारा पति पर व्याभिचार का आरोप लगाया गया हो और दोनों मे से कोई भी सिद्ध ना कर पाया हो।
6- खियार,यदि किसी लडकी का विवाह व्यस्क होने से पहले हुआ हो तो व्यस्क होने पर वह अपने निकाह को खारिज कर सकती हैं।
सन् 1939 में यदि मुस्लिम महिला चाहे तो कोर्ट से भी तलाक ले सकती है।
सायराबानो नाम की एक लड़की जो उत्तराखंड की रहने वाली थी,उसकी शादी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में रीजवान अहमद के साथ हो गई।इनकी आपस में कुछ अनबन हो गई, सायरा बानो अपने पिता के घर चली आई, रिजवान अहमद ने स्पीड पोस्ट से तलाक भेज दिया।इस पर सायरा बानो संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट चली गई इन्होंने तीन तलाक,निकाह हलाला और चार पत्नियों के मुस्लिम पर्सनल लॉ के कानून को मुस्लिम महिलाओं के गरिमामय जीवन के विरूद्ध माना। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर सुनवाई को स्वीकार किया। रिजवान अहमद मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के पास गए, अदालत ने इस पर विचार किया कि क्या ट्रीपल तलाक धर्म का अनिवार्य हिस्सा है?या धर्म में बाद में जोडा गया हिस्सा है।इस विषय पर पांच जजों की बेंच बैठी तथा इस बेंच ने दिसम्बर सन् 2017 में फैसला दिया कि ट्रीपल तलाक असंवैधानिक है तथा भारत सरकार को निर्देशित किया कि संसद इस विषय पर कानून बनाये। सन् 2019 में संसद में लोकसभा और राज्यसभा दोनों से ट्रिपल तलाक के विरोध में कानून बन गया,अब भारत में किसी भी तरह का तलाक गैर कानूनी है।
शबाना हाशमी नामक महिला ने एक बच्चे को पाला था,वह उसे अपना बच्चा मानकर पाल रही थी, उसे अपने धर्म के मुस्लिम कानून का ज्ञान नहीं था, जिसमें किसी बच्चे की गार्जियन शिप तो ली जा सकती है परन्तु गोद नही लिया जा सकता।जब वह बच्ची व्यस्क हुई तब वह बात शबाना को पता लगी, ईसाई धर्म के लिए जुबेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन चिल्ड्रेन एक्ट- सन् 2000 से बच्चा गोद ले लेते हैं। शबाना हाशमी मामले में सन् 2014 में यह स्पष्ट हुआ कि अब कोई भी धर्म का आदमी बच्चा गोद ले सकता है।
जनजाति समुदाय जो हजारों साल से अलग थलग जी रहा था उसके लिए धारा 371(A) के तहत कुछ राज्यों में व्यवस्था की गई है। नागालैंड और मिजोरम में संविधान की धारा 371(F) के तहत संसद का कोई भी कानून वहा जभी लागू होगा जब वहा कि विधानसभा एक प्रस्ताव देगी।कस्टमी ला,सीवील ला और क्रिमिनल लॉ में से कुछ कानून वहा के अलग है। संविधान के 244(5,6) भाग में भारत में 10 ट्राईबल एरिया है, ट्राईबल एरिया 244(6) में आते हैं। मेघालय में 3, मिजोरम में 3,असम में 3, त्रिपुरा मे 1 ट्राईबल एरिया है।इनको डिस्ट्रिक ओटोमस कोंसिल का दर्जा मिला हुआ है।
मुस्लिमो के निकाह हलाला और चार पत्नियों के मुस्लिम पर्सनल लॉ के कानून के विरोध में सन् 2020 में कोर्ट ने केस स्वीकार कर लिया है,कोराना महामारी के कारण सुनवाई नही हो सकी है,इन दोनों पर कानून बनते ही पूरे भारत में सबके लिए यूनिफॉर्म सीविल काड बन जायेगा।निकाह हलाला पूरे इस्लाम जगत में बंद हैं अफगानिस्तान सहित।
समाप्त
संदर्भ ग्रंथ
डा विकास दिव्य कीर्ति
1- समान नागरिक संहिता, अर्थ, इतिहास और हिंदू कोड बिल 
https://youtu.be/xiVAIcDVYew
2- मुस्लिम पर्सनल लॉ, अल्पसंख्यक व जनजातिय कानून तथा समान नागरिक संहिता  https://youtu.be/MlBHGQB3Hr0